दलित युवती से रेप के दोषी को 10 साल जेल:सोनभद्र में 31 हजार का लगाया जुर्माना, दूसरा आरोपी बरी
सोनभद्र में एक दलित युवती के साथ दुष्कर्म के मामले में एससी/एसटी एक्ट की अदालत ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। मुख्य आरोपी तहियात अली उर्फ बच्चा को 10 साल के कठोर कारावास और 31 हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया गया है। अर्थदंड न चुकाने पर तीन माह की अतिरिक्त कैद का प्रावधान रखा गया है। घटना 6 जून 2021 की है, जब पीड़िता अपनी मां के साथ दुद्धी बाजार गई थी। दोपहर को बस अड्डे पर विधायक का चालक होने का दावा करने वाला तहियात अली एक अन्य युवक के साथ आया और पीड़िता को जबरन गाड़ी में बैठा लिया। आरोपी पहले वाराणसी गया, जहां से दूसरे आरोपी शाबिर को वापस भेज दिया। फिर पीड़िता को प्रयागराज ले जाकर एक दोस्त के घर में दुष्कर्म किया। बाद में उसे सूरत ले जाया गया, जहां से पुलिस ने उसे बरामद किया। पीड़िता की मां ने 7 जून 2021 को दुद्धी कोतवाली में मामला दर्ज कराया था। जांच में पर्याप्त साक्ष्य मिलने पर पुलिस ने तहियात अली और शाबीर उर्फ जाबिद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। अदालत ने सभी तथ्यों और गवाहियों के आधार पर तहियात अली को दोषी करार दिया, जबकि शाबीर को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। आरोपी की जेल में बिताई गई अवधि को सजा में समायोजित किया जाएगा।

दलित युवती से रेप के दोषी को 10 साल जेल
सोनभद्र जिले में एक दलित युवती के साथ हुए यौन शोषण के मामले में स्थानीय अदालत ने एक आरोपी को 10 साल की सजा सुनाई है। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया है और समुदाय ने न्याय की मांग की है। न्यायालय ने आरोपी पर 31 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जिससे पीड़िता को कुछ राहत मिलेगी।
मामले का विवरण
आरोपी ने युवती के साथ एक सुनसान स्थान पर गंभीर अपराध किया। यह घटना उस समय हुई जब युवती अपने घर से बाहर थी। पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया।
दूसरे आरोपी की बरी होने की जानकारी
दिलचस्प बात यह है कि एक अन्य आरोपी को अदालत ने बरी कर दिया। परिवार और समुदाय इस निर्णय से निराश हैं और इस पर सवाल उठाते हुए न्याय का फिर से अवलोकन करने की मांग कर रहे हैं।
समाज पर प्रभाव
इस मामले ने सोनभद्र जैसे क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या को उजागर किया है। समुदाय के सदस्यों ने आपस में चर्चा की है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
इस निर्णय में न्यायालय की भूमिका महत्वपूर्ण है और यह समाज में एक सन्देश फैलाने का काम करती है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सहन नहीं किया जाएगा।
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