बड़ी खबर: यशपाल आर्य और प्रीतम सिंह का कार्य मंत्रणा समिति से इस्तीफा, राजनीतिक तूफान
भराड़ीसैंण/गैरसैंण : उत्तराखंड विधानसभा के मानसून सत्र में आज बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने कार्य मंत्रणा समिति की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है। दोनों विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को भेजे पत्र में आरोप लगाया है कि कार्य मंत्रणा समिति को दरकिनार कर सरकार एकतरफा …

बड़ी खबर: यशपाल आर्य और प्रीतम सिंह का कार्य मंत्रणा समिति से इस्तीफा, राजनीतिक तूफान
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भराड़ीसैंण/गैरसैंण: उत्तराखंड विधानसभा के मानसून सत्र में आज एक नया राजनीतिक मोड़ देखने को मिला है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने कार्य मंत्रणा समिति से इस्तीफा दे दिया है। इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है और इसके पीछे कई गंभीर आरोप उठाए गए हैं।
इस्तीफ़े के पीछे का कारण
दोनों विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को एक पत्र भेजकर आरोप लगाया है कि सरकार कार्य मंत्रणा समिति को नजरअंदाज करके एकतरफा फ़ैसले ले रही है। उन्होंने ये भी कहा कि 19 से 22 अगस्त के बीच चलने वाले सत्र के पहले दिन, 19 अगस्त को समाप्ति के बाद न तो कार्य मंत्रणा समिति की बैठक बुलाई गई और न ही विधायकों से चर्चा की गई। इसका संकेत है कि सरकार मर्जी से कार्य कर रही है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन हो रहा है।
सरकार द्वारा की गई अनदेखी
पत्र में यह बताया गया कि 20 अगस्त को अचानक सत्र को समाप्त कर दिया गया, जो दर्शाता है कि सरकार ने लोकतांत्रिक परंपराओं की अनदेखी की। विपक्ष का यह आरोप है कि यह न केवल सदन की निष्क्रियता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह राज्य की जनता के साथ भी धोखा है। दो दिन के सत्र में महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा नहीं की गई, जिससे आम नागरिकों के मुद्दों को ध्यान में नहीं रखा गया।
यशपाल आर्य का बयान
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि सरकार सदन संचालन में "तानाशाही रवैया" अपना रही है। उन्होंने कहा कि जब समिति के निर्णयों की अनदेखी की जा रही है, तब समिति का सदस्य बने रहना बेमानी हो जाता है। यशपाल आर्य की इस टिप्पणी से स्पष्ट होता है कि वे और उनके समकक्ष विधायक सरकार की नीतियों से निराश हैं।
राजनीतिक प्रभाव
यह इस्तीफा उत्तराखंड की राजनीति में अस्थिरता को और बढ़ा सकता है। अन्य विपक्षी दलों के लिए यह एक अवसर हो सकता है कि वे इस स्थिति का लाभ उठाएं। आगामी सत्र में इस मुद्दे पर गर्मागर्मी होने की संभावना है, जो राज्य की राजनीतिक बयार को प्रभावित कर सकती है।
निष्कर्ष
यह घटनाक्रम न केवल उत्तराखंड की राजनीति को प्रभावित करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और सहभागिता का कितना महत्त्व है। विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दे गंभीर हैं और सरकार को इनपर संज्ञान लेने की आवश्यकता है। साथ ही, राजनीतिक आकाओं को सोचने की जरूरत है कि वे अपने निर्णयों में कितनी लोकतांत्रिकता बनाए रख सकते हैं। भविष्य में, यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इस मुद्दे का नवीनतम मोड़ राज्य की राजनीतिक संरचना के लिए क्या परिवर्तन लाता है।
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टीम इंडिया टुडे, साक्षी शर्मा
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