महेंद्र प्रताप ने 32-साल विदेश में रहकर आजादी की लड़ी-जंग:राजनीतिक दलों की नीतियों से संतुष्ट नहीं थे राजा साहब, 1957 में अटल जी को हराया था चुनाव

हाथरस में जन्मे महान स्वाधीनता सेनानी और देश को आजाद कराने के लिए 32 साल तक विदेश में रहकर अंग्रेजों से जंग लड़ने वाले राजा महेंद्र प्रताप की आज जयंती है। आजादी की जंग में राजा साहब के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। राजा महेंद्र प्रताप का जन्म 1 दिसंबर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था। वह मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र थे। जब वे 3 वर्ष के थे, तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया। राजा महेंद्र प्रताप का विवाह 1902 में जिंद रियासत की राजकुमारी बलवीर कौर से संगरूर में विवाह हुआ। राजा महेंद्र प्रताप ने 1906 में कांग्रेस की कोलकाता में हुए अधिवेशन में भाग लिया और वहीं से राजा महेंद्र प्रताप स्वदेशी के रंग में रंग गए। इसके बाद उन्होंने स्वाधीनता की जंग लड़ रहे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश को आजाद करने की योजना बनाई। इसी के लिए उन्होंने 1914 में देश छोड़ दिया और विदेश चले गए। अफगानिस्तान में की हिंद सरकार की स्थापना.... राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में 1916 में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और अफगान सैनिकों को एकत्रित कर अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि राजा साहब इसमें सफल नहीं हो सके। इसके बाद वह जापान गए और वहां अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई। अंग्रेजों ने राजा साहब को राजद्रोही घोषित कर दिया था। 32 साल तक विदेश में अंग्रेजों से जंग लड़ने के बाद राजा महेंद्र प्रताप जब 1946 में भारत आए तो यहां के हालात देखकर दंग रह गए। देश के बंटवारे से दुखी थे राजा साहब... हालात ये थे कि देश के बंटवारे की बात चल रही थी। राजा इससे बड़े व्यथित हुए। उन्होंने उस समय के हर क्रांतिकारी व नेता से इसका विरोध जताया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। देश दो टुकड़ों में बंट गया और पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर आ चुका था। 32 साल वह परिवार से दूर रहे। उनकी पत्नी की भी इस दौरान मौत हो गई। पूरा परिवार बिखर गया था। घोड़ा मिला चुनाव चिन्ह और घोड़े पर प्रचार.... उनका एक ही सपना था देश से अंग्रेजों को भगाना। उन्हें सबसे अधिक देश के बंटवारे की खबर ने दुखी किया। राजा साहब राजनीतिक दलों की नीतियों से वह संतुष्ट नहीं थे इस कारण ही उन्होंने मथुरा से लोक सभा का निर्दलीय चुनाव लड़ा। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1957 में हुए लोकसभा के दूसरे चुनाव में मथुरा से भाग्य आजमाया। जीत भी हासिल की। राजा को चुनाव चिह्न घोड़ा मिला था। घोड़े पर ही वह प्रचार करते थे। इस चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हरा दिया। अटल बिहारी वाजपेई की इस चुनाव में जमानत जब्त हो गई। राजा महेंद्र प्रताप का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए अपनी जमीन दान की। इसके अलावा वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय भी राजा साहब की देन है। एएमयू के लिए दान की थी जमीन... राजा साहब सर्व धर्म सद्भाव में विश्वास रखते थे। उन्होंने प्रेम धर्म भी चलाया। मथुरा में सरकार ने अलीगढ़ में उनके नाम पर राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना की है। हालांकि लोग लगातार राजा साहब को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की मांग कर रहे हैं।

Dec 1, 2024 - 08:20
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महेंद्र प्रताप ने 32-साल विदेश में रहकर आजादी की लड़ी-जंग:राजनीतिक दलों की नीतियों से संतुष्ट नहीं थे राजा साहब, 1957 में अटल जी को हराया था चुनाव
हाथरस में जन्मे महान स्वाधीनता सेनानी और देश को आजाद कराने के लिए 32 साल तक विदेश में रहकर अंग्रेजों से जंग लड़ने वाले राजा महेंद्र प्रताप की आज जयंती है। आजादी की जंग में राजा साहब के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। राजा महेंद्र प्रताप का जन्म 1 दिसंबर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था। वह मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र थे। जब वे 3 वर्ष के थे, तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया। राजा महेंद्र प्रताप का विवाह 1902 में जिंद रियासत की राजकुमारी बलवीर कौर से संगरूर में विवाह हुआ। राजा महेंद्र प्रताप ने 1906 में कांग्रेस की कोलकाता में हुए अधिवेशन में भाग लिया और वहीं से राजा महेंद्र प्रताप स्वदेशी के रंग में रंग गए। इसके बाद उन्होंने स्वाधीनता की जंग लड़ रहे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश को आजाद करने की योजना बनाई। इसी के लिए उन्होंने 1914 में देश छोड़ दिया और विदेश चले गए। अफगानिस्तान में की हिंद सरकार की स्थापना.... राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में 1916 में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और अफगान सैनिकों को एकत्रित कर अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि राजा साहब इसमें सफल नहीं हो सके। इसके बाद वह जापान गए और वहां अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई। अंग्रेजों ने राजा साहब को राजद्रोही घोषित कर दिया था। 32 साल तक विदेश में अंग्रेजों से जंग लड़ने के बाद राजा महेंद्र प्रताप जब 1946 में भारत आए तो यहां के हालात देखकर दंग रह गए। देश के बंटवारे से दुखी थे राजा साहब... हालात ये थे कि देश के बंटवारे की बात चल रही थी। राजा इससे बड़े व्यथित हुए। उन्होंने उस समय के हर क्रांतिकारी व नेता से इसका विरोध जताया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। देश दो टुकड़ों में बंट गया और पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर आ चुका था। 32 साल वह परिवार से दूर रहे। उनकी पत्नी की भी इस दौरान मौत हो गई। पूरा परिवार बिखर गया था। घोड़ा मिला चुनाव चिन्ह और घोड़े पर प्रचार.... उनका एक ही सपना था देश से अंग्रेजों को भगाना। उन्हें सबसे अधिक देश के बंटवारे की खबर ने दुखी किया। राजा साहब राजनीतिक दलों की नीतियों से वह संतुष्ट नहीं थे इस कारण ही उन्होंने मथुरा से लोक सभा का निर्दलीय चुनाव लड़ा। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1957 में हुए लोकसभा के दूसरे चुनाव में मथुरा से भाग्य आजमाया। जीत भी हासिल की। राजा को चुनाव चिह्न घोड़ा मिला था। घोड़े पर ही वह प्रचार करते थे। इस चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हरा दिया। अटल बिहारी वाजपेई की इस चुनाव में जमानत जब्त हो गई। राजा महेंद्र प्रताप का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए अपनी जमीन दान की। इसके अलावा वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय भी राजा साहब की देन है। एएमयू के लिए दान की थी जमीन... राजा साहब सर्व धर्म सद्भाव में विश्वास रखते थे। उन्होंने प्रेम धर्म भी चलाया। मथुरा में सरकार ने अलीगढ़ में उनके नाम पर राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना की है। हालांकि लोग लगातार राजा साहब को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की मांग कर रहे हैं।

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