लखनऊ में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन:कुलपति प्रो. डीपी तिवारी बोले- संस्कृत के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं

लखनऊ के अलीगंज स्थित अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् देववाणी भवन में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय भारतीय ज्ञान परम्परा-साहित्य, संस्कृति और कला था। इस सेमिनार की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव डॉ. चंद्र भूषण त्रिपाठी ने की। डॉ. त्रिपाठी ने भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व पर बात करते हुए कहा कि भारत, भारतीयता और संस्कृत का संबंध केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि वैचारिक है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के बिना संस्कृति की कल्पना आधारहीन है,भारतीय संस्कृति में प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों धारणाएं महत्वपूर्ण हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सबसे पुरानी परंपरा कुलपति प्रो. डीपी तिवारी (जय-मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय रानपुर) ने संस्कृत की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है, तो संस्कृत को बचाना होगा। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व के सबसे पुराने ज्ञान परंपरा में एक बताया। भारतीय संस्कृति में संगीत और वीणा का महत्व निदेशक प्रो. विजय कुमार जैन (भोगीचंद-लहेरचंद इंस्टिट्यूट ऑफ इंडोलॉजी दिल्ली ) ने भारतीय संस्कृति में संगीत और वीणा की महत्ता को बताया। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे ज्ञान और चरित्र की परंपरा एक-दूसरे के सहायक हैं, यह हमारी संस्कृति के केंद्र में है। कार्यक्रम के अंत में परिषद के अपर मंत्री डॉ. अभिमन्यु सिंह ने सभी अतिथियों का धन्यवाद दिया । इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. अशोक शतपथी, डॉ. विष्णुकांत शुक्ल, डॉ अनिल पोलवाल और डॉ. सुधा के साथ अन्य प्रमुख लोग शामिल थे। कार्यक्रम में लगभग 75 शोध पत्रों का वाचन किया गया और 100 से अधिक छात्र - छात्राएं उपस्थित रहे।

Dec 2, 2024 - 09:25
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लखनऊ में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन:कुलपति प्रो. डीपी तिवारी बोले- संस्कृत के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं
लखनऊ के अलीगंज स्थित अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् देववाणी भवन में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय भारतीय ज्ञान परम्परा-साहित्य, संस्कृति और कला था। इस सेमिनार की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव डॉ. चंद्र भूषण त्रिपाठी ने की। डॉ. त्रिपाठी ने भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व पर बात करते हुए कहा कि भारत, भारतीयता और संस्कृत का संबंध केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि वैचारिक है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के बिना संस्कृति की कल्पना आधारहीन है,भारतीय संस्कृति में प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों धारणाएं महत्वपूर्ण हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सबसे पुरानी परंपरा कुलपति प्रो. डीपी तिवारी (जय-मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय रानपुर) ने संस्कृत की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है, तो संस्कृत को बचाना होगा। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व के सबसे पुराने ज्ञान परंपरा में एक बताया। भारतीय संस्कृति में संगीत और वीणा का महत्व निदेशक प्रो. विजय कुमार जैन (भोगीचंद-लहेरचंद इंस्टिट्यूट ऑफ इंडोलॉजी दिल्ली ) ने भारतीय संस्कृति में संगीत और वीणा की महत्ता को बताया। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे ज्ञान और चरित्र की परंपरा एक-दूसरे के सहायक हैं, यह हमारी संस्कृति के केंद्र में है। कार्यक्रम के अंत में परिषद के अपर मंत्री डॉ. अभिमन्यु सिंह ने सभी अतिथियों का धन्यवाद दिया । इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. अशोक शतपथी, डॉ. विष्णुकांत शुक्ल, डॉ अनिल पोलवाल और डॉ. सुधा के साथ अन्य प्रमुख लोग शामिल थे। कार्यक्रम में लगभग 75 शोध पत्रों का वाचन किया गया और 100 से अधिक छात्र - छात्राएं उपस्थित रहे।

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