हमीरपुर में गोवेर्धन पूजा पर मोर के पंख लेकर मौन-व्रत:गोवर्धन पूजा की अनोखी परंपरा, भगवान श्रीकृष्ण ने मोर के पंख को अपने शीश पर धारण किया था

दीपावली का त्यौहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है, लेकिन बुंदेलखंड, विशेष रूप से हमीरपुर में, इसका खास अंदाज देखने को मिलता है। यहां सर्व धर्म समवेत की संस्कृति का अनोखा संगम है, जिसके कारण राम और कृष्ण दोनों के त्योहारों का उत्साहपूर्ण आयोजन किया जाता है। बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा भी एक विशेष तरीके से मनाई जाती है। दीपावली के बाद 'परीवा' के दिन लोग मोर पंख लेकर मौनी चराते हैं। इस दिन, बड़ी संख्या में लोग मौन व्रत रखकर नाचते-गाते देवस्थानों की ओर प्रस्थान करते हैं। यह परंपरा मुख्य रूप से यादव जाति के लोगों द्वारा निभाई जाती है, जो खुद को भगवान कृष्ण की गाय मानते हैं। उनका विश्वास है कि इस अनुष्ठान के माध्यम से उन्हें कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मोर पंखों के बंडल लिए ये भक्त एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं। वे 12 वर्षों तक मौन व्रत का पालन करते हैं, और यदि वे गलती से बोल देते हैं, तो उन्हें गाय के गोबर और मूत्र का सेवन करना पड़ता है। ये सभी भक्त ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते हैं और अंत में चित्रकूट जाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। दीपावली की रात से ही ये लोग मौन व्रत धारण कर लेते हैं और दिन भर इसी परंपरा का पालन करते हैं। प्यास लगने पर, वे बड़े बर्तन से उसी प्रकार पानी पीते हैं, जैसे कृष्ण की गायें पीती थीं। यह उनका एक अनोखा तरीका है, जिससे वे भगवान कृष्ण से अपने प्रेम को जोड़ते हैं। समाजसेवी सुनील त्रिपाठी ने बताया कि यह परंपरा त्रेतायुग से जुड़ी हुई है। जब मां जानकी का हरण हुआ था, तब मोर ने उस दृश्य को देखा था। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने मोर के पंख को अपने सिर पर धारण किया। तब से गोवर्धन पूजा के दौरान मोर पंख का विशेष महत्व है और इसे पूजा में शामिल किया जाता है। इस प्रकार, बुंदेलखंड में दीपावली का यह त्यौहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। यहाँ की गोवर्धन पूजा की परंपरा, भक्तों के गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक संबंधों को प्रकट करती है।

Nov 1, 2024 - 10:05
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हमीरपुर में गोवेर्धन पूजा पर मोर के पंख लेकर मौन-व्रत:गोवर्धन पूजा की अनोखी परंपरा, भगवान श्रीकृष्ण ने मोर के पंख को अपने शीश पर धारण किया था
दीपावली का त्यौहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है, लेकिन बुंदेलखंड, विशेष रूप से हमीरपुर में, इसका खास अंदाज देखने को मिलता है। यहां सर्व धर्म समवेत की संस्कृति का अनोखा संगम है, जिसके कारण राम और कृष्ण दोनों के त्योहारों का उत्साहपूर्ण आयोजन किया जाता है। बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा भी एक विशेष तरीके से मनाई जाती है। दीपावली के बाद 'परीवा' के दिन लोग मोर पंख लेकर मौनी चराते हैं। इस दिन, बड़ी संख्या में लोग मौन व्रत रखकर नाचते-गाते देवस्थानों की ओर प्रस्थान करते हैं। यह परंपरा मुख्य रूप से यादव जाति के लोगों द्वारा निभाई जाती है, जो खुद को भगवान कृष्ण की गाय मानते हैं। उनका विश्वास है कि इस अनुष्ठान के माध्यम से उन्हें कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मोर पंखों के बंडल लिए ये भक्त एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं। वे 12 वर्षों तक मौन व्रत का पालन करते हैं, और यदि वे गलती से बोल देते हैं, तो उन्हें गाय के गोबर और मूत्र का सेवन करना पड़ता है। ये सभी भक्त ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते हैं और अंत में चित्रकूट जाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। दीपावली की रात से ही ये लोग मौन व्रत धारण कर लेते हैं और दिन भर इसी परंपरा का पालन करते हैं। प्यास लगने पर, वे बड़े बर्तन से उसी प्रकार पानी पीते हैं, जैसे कृष्ण की गायें पीती थीं। यह उनका एक अनोखा तरीका है, जिससे वे भगवान कृष्ण से अपने प्रेम को जोड़ते हैं। समाजसेवी सुनील त्रिपाठी ने बताया कि यह परंपरा त्रेतायुग से जुड़ी हुई है। जब मां जानकी का हरण हुआ था, तब मोर ने उस दृश्य को देखा था। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने मोर के पंख को अपने सिर पर धारण किया। तब से गोवर्धन पूजा के दौरान मोर पंख का विशेष महत्व है और इसे पूजा में शामिल किया जाता है। इस प्रकार, बुंदेलखंड में दीपावली का यह त्यौहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। यहाँ की गोवर्धन पूजा की परंपरा, भक्तों के गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक संबंधों को प्रकट करती है।

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