ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने केस किया:अमेरिकी सरकार ने 2.2 अरब डॉलर की फंडिंग पर रोक लगाई थी
अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सोमवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। यूनिवर्सिटी ने आरोप लगाया है कि ट्रम्प सरकार यूनिवर्सिटी पर राजनीतिक दबाव बनाकर शैक्षणिक कामकाज पर कंट्रोल करना चाहती है। हार्वर्ड ने इसे यूनिवर्सिटी के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन का आरोप लगाया है। दरअसल ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड की 2.2 अरब डॉलर फंडिंग पर रोक लगा दी है। साथ ही विश्वविद्यालय से यह भी मांग की है कि वह अक्टूबर 2023 के बाद कैंपस में हुई यहूदी विरोधी घटनाओं पर बनी सभी रिपोर्ट और ड्राफ्ट भी सरकार को सौंपे। प्रशासन चाहता है कि इन रिपोर्टों को तैयार करने वाले सभी लोगों के नाम बताए जाएं और उन्हें संघीय अधिकारियों के इंटरव्यू के लिए उपलब्ध कराया जाए। प्रोफेसर्स के दो ग्रुप भी केस कर चुके हैं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स ने भी 12 अप्रैल को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के खिलाफ मैसाचुसेट्स की फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट केस दायर किया था। प्रोफेसर्स के दो ग्रुप ने यूनिवर्सिटी फंड को रोकनी की धमकी के खिलाफ यह केस दर्ज किया था। दरअसल उस दौरान ट्रम्प प्रशासन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को मिलने वाले 9 अरब डॉलर के फंड की समीक्षा कर रहा था। हार्वर्ड के प्रोफेसर्स ने हवाला दिया कि ट्रम्प का यह फैसला अमेरिकी संविधान के फर्स्ट अमेंडमेंट (प्रथम संशोधन) का उल्लंघन करता है। प्रोफेसर्स ने आरोप लगाया है कि यूनिवर्सिटी फंड में कटौती करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। कोर्ट में दायर याचिका में ट्रम्प प्रशासन के फैसले पर रोक लगाने की मांग भी की गई है। यूनिवर्सिटी पर आरोप- यहूदियों के खिलाफ नफरत को रोकने में नाकाम हाल ही में ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड को एक चिट्ठी भेजी थी। इस चिट्ठी में यूनिवर्सिटी को कुछ शर्तें पूरी करने के लिए कहा गया था। ऐसा न करने पर यूनिवर्सिटी की संघीय फंडिंग पर रोक लगाने की धमकी दी गई। इस कदम के पीछे ट्रम्प प्रशासन का दावा था कि हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान एंटी-सेमिटिज्म (यहूदियों के खिलाफ नफरत) को रोकने में नाकाम रहे हैं। प्रशासन ने आरोप लगाया कि कैंपस में यहूदी छात्रों और प्रोफेसरों के खिलाफ भेदभाव हो रहा है। यूनिवर्सिटी को मिलने वाली फंडिंग सर्च, स्टूडेंट स्कॉलरशिप, और कई साइंस और मेडिकल प्रोजेक्ट्स के लिए बेहद जरूरी है। यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीनी झंडा फहराया था गाजा में जारी इजराइल-हमास जंग के खिलाफ पिछले साल अमेरिका की कई यूनिवर्सिटीज में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों में हजारों छात्रों ने हिस्सा लिया था। AP की रिपोर्ट के मुताबिक 1000 से ज्यादा छात्र गिरफ्तार भी हुए। इस दौरान हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में छात्रों ने फिलिस्तीनी झंडा फहराया था। यूनिवर्सिटी ने इसे पॉलिसी के खिलाफ बताते हुए छात्रों के खिलाफ एक्शन लेने की बात कही थी। ट्रम्प प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी को 33 अरब रुपए की मदद रोकी ट्रम्प प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 33 अरब रुपए) के अनुदान को रद्द कर दिया था। प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी पर भी यहूदी छात्रों के हो रहे उत्पीड़न को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया था। अमेरिकी शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग, न्याय विभाग और सामान्य सेवा प्रशासन की जॉइंट टास्क फोर्स टु कॉम्बैट एंटी-सेमिटिज्म ने यह कार्रवाई की। कोलंबिया यूनिवर्सिटी ज्यूडिशियल बोर्ड ने गाजा को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान हैमिल्टन हॉल पर कब्जे में शामिल छात्रों पर सख्त कार्रवाई भी की है। ------------------------ ट्रम्प के फैसले से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... ट्रम्प का शिक्षा विभाग को बंद करने का ऑर्डर:व्हाइट हाउस की रिपोर्ट- 8वीं क्लास के 70% स्टूडेंट ठीक से पढ़ नहीं पाते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मार्च में शिक्षा विभाग बंद करने से जुड़े आदेश (एग्जीक्यूटिव ऑर्डर) पर दस्तखत कर दिया। ट्रम्प ने दस्तखत करने के बाद कहा कि अमेरिका लंबे समय से छात्रों को अच्छी शिक्षा नहीं दे रहा है। पूरी खबर यहां पढ़ें...

ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने केस किया
हाल ही में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अमेरिकी संघीय सरकार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कानूनी कार्रवाई की है। यह मामला उस समय का है जब ट्रम्प प्रशासन ने 2.2 अरब डॉलर की फंडिंग पर रोक लगाने का निर्णय लिया था। इस फंडिंग का उपयोग उच्च शिक्षा और अनुसंधान परियोजनाओं के लिए किया जाना था, जो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के लिए आवश्यक था।
ट्रम्प प्रशासन का निर्णय
ट्रम्प प्रशासन के इस निर्णय ने विश्वविद्यालयों में काफी हलचल मचा दी थी। इन फंडिंग में न केवल अनुसंधान के लिए आवश्यक संसाधन शामिल थे, बल्कि यह विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए कई कार्यक्रमों और स्कॉलर्शिप्स को भी प्रभावित करता था। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह निर्णय असंगत और अविश्वासपूर्ण है।
हार्वर्ड का कानूनी सामना
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने यह मामला अदालत में लेकर जाने का निर्णय लिया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि फंडिंग पर रोक लगाने का निर्णय संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यूनिवर्सिटी का कहना है कि यह निर्णय केवल एक शिक्षण संस्थान को लक्षित करने के लिए किया गया था और इससे शैक्षिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
इस मामले के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी होंगे। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने बताया है कि इस फंडिंग के बिना, अनुसंधान कार्यक्रमों को खत्म करना पड़ सकता है जो देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, यह छात्रों की स्कॉलरशिप्स और वित्तीय सहायता पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है।
सभी की नजरें अब अदालत पर हैं, जहाँ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ी है। यह मामला न केवल ट्रम्प प्रशासन के निर्णयों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह उच्च शिक्षा संस्थानों की राइट्स और फंडिंग के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
निष्कर्ष
यह कानूनी लड़ाई अमेरिकी शिक्षा प्रणाली और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण संकेत देने वाली है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का यह कदम अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। अब यह देखना होगा कि अदालत इस मुद्दे पर क्या फैसला लेती है।
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