पंचायत चुनाव: हाईकोर्ट ने कहा, चुनाव नहीं टालना चाहते, लेकिन नियमों का पालन जरूरी, कल आ सकता है अंतिम फैसला
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पंचायत चुनाव: हाईकोर्ट ने कहा, चुनाव नहीं टालना चाहते, लेकिन नियमों का पालन जरूरी, कल आ सकता है अंतिम फैसला
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रैबार डेस्क: पंचायत चुनावों में आरक्षण रोस्टर के मामले पर सरकार अदालत में घिरी है। उच्च न्यायालय ने चुनावों पर रोक लगाने के बाद इस मामले पर सुनवाई गुरुवार को भी जारी रखी। न्यायालय ने कहा कि हम चुनाव नहीं टालना चाहते, लेकिन सरकार को नियमों का पालन करना भी जरूरी है। अब इस मामले पर शुक्रवार को फिर से सुनवाई होगी और माना जा रहा है कि इसी दिन मामले पर अंतिम फैसला आ सकता है।
आरक्षण रोस्टर का विवाद
पंचायत चुनावों में आरक्षण के रोस्टर को लेकर कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई हैं, जिनका निपटारा चीफ जस्टिस की बेंच कर रही है। आरक्षण का नोटिफिकेशन जारी न करने के बावजूद चुनावी कार्यक्रम की घोषणा से कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की बेंच इस मुद्दे पर गंभीरता से सुनवाई कर रही है।
सरकारी स्थिरता और याचिकाकर्ताओं की चिंताएं
गुरुवार को सरकार की ओर से कोर्ट में आरक्षण का रोस्टर पेश किया गया। इस दौरान सरकारी वकील ने तर्क पेश किया कि आरक्षण में रिपीटीशन नहीं किया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात का विरोध करते हुए कहा कि करीब 40 प्रतिशत सीटों पर आरक्षण का रिपीटीशन हुआ है, जिससे कई लोगों का हक मारा जा रहा है। चीफ जस्टिस ने इस पर अंगुली उठाते हुए कहा कि प्राइमा फेसी आपकी बात सही लगती है।
आगामी सुनवाई और संभावित निर्णय
याचिकाकर्ताओं ने रोस्टर के अंतिम अध्ययन के लिए समय मांगा, जो कोर्ट ने कल तक के लिए टाल दिया। इस प्रक्रिया के दौरान, सरकार ने चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक हटाने की भी अपील की। लेकिन हाईकोर्ट ने फिर से यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य चुनाव टालना नहीं है, परंतु नियमों का पालन करना अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 243 टी, डी व अन्य का उल्लेख करते हुए कहा कि आरक्षण में रोस्टर अनिवार्य है। यह संवैधानिक बाध्यता है।
निष्कर्ष
पंचायत चुनावों की स्थिति अभी भी अनिश्चित है, लेकिन उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश से यह स्पष्ट हो गया है कि नियमों का पालन सर्वोपरि है। सभी की नजरें अब शुक्रवार की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां संभावित अन्तिम फैसला लिया जा सकता है। इससे चुनावी माहौल में और भी बदलाव संभव हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सुलझा पाती है या नहीं।
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