लखनऊ विश्वविद्यालय के बेमिसाल 104 साल:कैंपस में खेले-पढ़े राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस, मुख्यमंत्री, वैज्ञानिक; पढ़िए LU का सफरनामा
देश-दुनिया के कई दिग्गजों के हुनर की नर्सरी रहा लखनऊ विश्वविद्यालय अब 104 साल का हो गया है। इस सफर नामे में कई ऐसे पल जो धरोहर की तरह संजोए गए हैं। एक तरफ गौरवशाली अतीत और दूसरी तरफ स्वर्णिम भविष्य। इन सबके बीच लखनऊ विश्वविद्यालय का मौजूदा दौर भी इतिहास रच रहा है। 104 वर्षगांठ पर अतीत से लेकर वर्तमान और भविष्य से जुड़ी दैनिक भास्कर की ये खास रिपोर्ट... स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत के निर्माण तक में योगदान ट्रेडिशनल लर्निंग के साथ होती है मॉडर्न पढ़ाई LU के रिटायर्ड प्रोफेसर राकेश चंद्रा कहते हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय की गौरव गाथा सभी को पता है। इसका इतिहास हिंदुस्तान के बड़े विश्वविद्यालय से जुड़ा है। 1921 में ही शांति निकेतन विश्व भारती भी बना था। देश में पहली यूनिवर्सिटी कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में आई। सेकेंड राउंड में BHU और AMU जैसी यूनिवर्सिटी बनी। इसके बाद तीसरे राउंड में LU की स्थापना हुई। एक छोटी सी जगह से शुरू हुई यूनिवर्सिटी आज इतनी बड़ी बन चुकी है। सबसे अहम बात इसकी खूबसूरती आज भी बरकरार है। यहां गंगा जमुनी तहजीब को संजो कर रखा गया है। आज भी ट्रेडिशनल लर्निंग यहां मौजूद है। यहां पर्शियन और पाली भी पढ़ाई होती है, साथ ही नैनो टेक्नोलॉजी में भी पढ़ाई होती है। इंडियन नॉलेज सिस्टम की पढ़ाई के लिए यहां विदेश से भी स्टूडेंट पढ़ने के लिए आ रहे हैं। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों से फिलासफी में पढ़ाई के लिए स्टूडेंटस आते हैं। जब LU का नाम बदलने का आया था प्रस्ताव लखनऊ यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (LUTA) के प्रेसिडेंट और फिजिक्स विभाग के प्रो.आरबी सिंह मून कहते हैं, साल 2004 के करीब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ विश्वविद्यालय का नाम पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता के नाम पर किए जाने का प्रस्ताव दिया। इस बात की जानकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को हुई तब किसी ने कोई हंगामा या नारेबाजी नहीं की। बस विश्वविद्यालय की सरस्वती प्रतिमा से लेकर हजरतगंज गांधी प्रतिमा तक साइलेंट मार्च किया। मुझे आज भी याद है वह दिन जैसे ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह को इसकी जानकारी दी गई, उन्होंने तत्काल प्रस्ताव वापस लेने के आदेश दे दिया। 1996 में 1996 मतों से जीता छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लखनऊ विश्वविद्यालय पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष प्रमोद तिवारी ने कहा- मैं साइंस बैकग्राउंड से रहा। सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। हॉस्टल में रहने के कारण थोड़ा ज्यादा सोशल हो गया, इसलिए सिविल सर्विस की तैयारी के लिए पूरा समय नहीं निकाल पा रहा था। इस बीच ख्याल आया कि छात्र संघ का चुनाव लड़ा जाए। चुनाव लड़ने के लिए पद अध्यक्ष का ही चुना। पहला चुनाव हार गया था पर दोबारा चुनाव लड़ा और फिर जीत भी दर्ज की। मकसद ये जताना था कि बिना बदमाशी और गुंडई के बिना भी स्टूडेंट यूनियन का इलेक्शन जीता जा सकता है। अपने कार्यकाल के दौरान परिसर में कई जगह पौड़ रोपण कराया। और ये वो दौर था जब कैंपस में हिंसा चरम पर थी। मेरे कार्यकाल में सालभर में किसी भी स्टूडेंट्स पर कोई FIR दर्ज नही हुई और न ही कोई आपराधिक घटना हुई। LU से जुड़ने का हमेशा रहा फख्र प्रमोद तिवारी कहते हैं, साल 1989 की बात है, मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उच्च शिक्षा मंत्री के घेराव के लिए हम 6 स्टूडेंट विधान मंडल सत्र के दौरान विधानसभा पहुंच गए। भारी सुरक्षा बल के बावजूद हम परिसर में दाखिल हुए और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध दर्ज कराया। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों में कभी कोई साहस की कोई कमी नहीं रही। यह बात जरूर है ज्यादातर स्टूडेंट्स बहुत मेरीटोरियस नहीं थे, पर हिम्मत में हमारा कोई सानी नहीं था। आज के दौर में वो बात नहीं, मेरिटोरिस स्टूडेंट्स बढ़े और जज्बे में कमी दिखती है। विश्वविद्यालय का अतीत बेहद गौरवशाली रहा, मेरा जुड़ाव रहा इसका फख्र भी महसूस होता है। अब जानिए LU को लेकर क्या कहते है स्टूडेंट्स.... यहां गुजारे पल कभी न भूलने वाले ग्रेजुएशन पास कर चुकी तनिष्का मिश्रा कहती हैं कि यूनिवर्सिटी में मेरा बेहद बहुत अच्छा एक्सपीरियंस रहा। पढ़ाई के दौरान मैंने NCC भी लिया था। ग्राउंड में हम प्रैक्टिस करते थे। आज जब डिग्री लेने कैंपस पहुंची, तो नजर इसी ग्राउंड में जाकर ठहर गई। ये बिताए पल कभी न भूलने वाले हैं। यहां का अनुभव शब्दों में बयां करना मुश्किल रिसर्च स्कॉलर नेहा गौतम कहती हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय में जिसने पढ़ाई की है, वही इसकी खूबसूरती को पहचान सकता है। LU में बेहद नायाब बेहद उम्दा और शानदार सफर मेरा रहा है। मैंने यहीं से ग्रेजुएशन किया, पीजी की और अब पीएचडी कर रही हूं। कैंपस के बारे में शब्दों में बयां करना किसी के लिए भी आसान नहीं रहता। वर्ल्ड क्लास है फैकल्टी ग्रेजुएशन के छात्र रितेश कहते हैं, बहुत पुरानी यूनिवर्सिटी होने के कारण यहां के फैकल्टी बेहद अच्छे हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जिनका इंटरनेशनल लेवल पर भी नाम है। हम उन पर गर्व करते हैं। पढ़ाई का माहौल अच्छा बीए के छात्र अर्जुन पांडे कहते हैं, लखनऊ विश्वविद्यालय में विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। पढ़ाई का माहौल भी अच्छा है। विश्वविद्यालय में किस चीज की कमी है के सवाल पर वो कहते हैं कि वैसे तो कोई विशेष चीज की कमी नहीं है पर इंफ्रास्ट्रक्चर कुछ जगह का बहुत पुराना होने के कारण बदहाल है उसमें सुधार किया जाना चाहिए। लखनऊ विश्वविद्यालय के स्थापना की कहानी
लखनऊ विश्वविद्यालय की बुनियाद रखने का विचार सबसे पहले राजा महमूदाबाद मोहम्मद अली खान, खान बहादुर को आया। यूनाइटेड प्रोविंस के लेफ्टिनंट गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने इसे मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभाई। 25 नवंबर 1920 को गवर्नर जनरल ने विश्वविद्यालय एक्ट पर हस्ताक्षर किए और इसी तारीख को विश्वविद्यालय स्थापना दिवस मनाता है। 17 जुलाई 1921 को पहला शैक्षिक सत्र शुरू हुआ। विश्वविद्यालय बनने से पहले इसे कैनिंग कॉलेज के नाम से जाना जाता था। विश
देश-दुनिया के कई दिग्गजों के हुनर की नर्सरी रहा लखनऊ विश्वविद्यालय अब 104 साल का हो गया है। इस सफर नामे में कई ऐसे पल जो धरोहर की तरह संजोए गए हैं। एक तरफ गौरवशाली अतीत और दूसरी तरफ स्वर्णिम भविष्य। इन सबके बीच लखनऊ विश्वविद्यालय का मौजूदा दौर भी इतिहास रच रहा है। 104 वर्षगांठ पर अतीत से लेकर वर्तमान और भविष्य से जुड़ी दैनिक भास्कर की ये खास रिपोर्ट... स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत के निर्माण तक में योगदान ट्रेडिशनल लर्निंग के साथ होती है मॉडर्न पढ़ाई LU के रिटायर्ड प्रोफेसर राकेश चंद्रा कहते हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय की गौरव गाथा सभी को पता है। इसका इतिहास हिंदुस्तान के बड़े विश्वविद्यालय से जुड़ा है। 1921 में ही शांति निकेतन विश्व भारती भी बना था। देश में पहली यूनिवर्सिटी कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में आई। सेकेंड राउंड में BHU और AMU जैसी यूनिवर्सिटी बनी। इसके बाद तीसरे राउंड में LU की स्थापना हुई। एक छोटी सी जगह से शुरू हुई यूनिवर्सिटी आज इतनी बड़ी बन चुकी है। सबसे अहम बात इसकी खूबसूरती आज भी बरकरार है। यहां गंगा जमुनी तहजीब को संजो कर रखा गया है। आज भी ट्रेडिशनल लर्निंग यहां मौजूद है। यहां पर्शियन और पाली भी पढ़ाई होती है, साथ ही नैनो टेक्नोलॉजी में भी पढ़ाई होती है। इंडियन नॉलेज सिस्टम की पढ़ाई के लिए यहां विदेश से भी स्टूडेंट पढ़ने के लिए आ रहे हैं। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों से फिलासफी में पढ़ाई के लिए स्टूडेंटस आते हैं। जब LU का नाम बदलने का आया था प्रस्ताव लखनऊ यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (LUTA) के प्रेसिडेंट और फिजिक्स विभाग के प्रो.आरबी सिंह मून कहते हैं, साल 2004 के करीब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ विश्वविद्यालय का नाम पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता के नाम पर किए जाने का प्रस्ताव दिया। इस बात की जानकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को हुई तब किसी ने कोई हंगामा या नारेबाजी नहीं की। बस विश्वविद्यालय की सरस्वती प्रतिमा से लेकर हजरतगंज गांधी प्रतिमा तक साइलेंट मार्च किया। मुझे आज भी याद है वह दिन जैसे ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह को इसकी जानकारी दी गई, उन्होंने तत्काल प्रस्ताव वापस लेने के आदेश दे दिया। 1996 में 1996 मतों से जीता छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लखनऊ विश्वविद्यालय पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष प्रमोद तिवारी ने कहा- मैं साइंस बैकग्राउंड से रहा। सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। हॉस्टल में रहने के कारण थोड़ा ज्यादा सोशल हो गया, इसलिए सिविल सर्विस की तैयारी के लिए पूरा समय नहीं निकाल पा रहा था। इस बीच ख्याल आया कि छात्र संघ का चुनाव लड़ा जाए। चुनाव लड़ने के लिए पद अध्यक्ष का ही चुना। पहला चुनाव हार गया था पर दोबारा चुनाव लड़ा और फिर जीत भी दर्ज की। मकसद ये जताना था कि बिना बदमाशी और गुंडई के बिना भी स्टूडेंट यूनियन का इलेक्शन जीता जा सकता है। अपने कार्यकाल के दौरान परिसर में कई जगह पौड़ रोपण कराया। और ये वो दौर था जब कैंपस में हिंसा चरम पर थी। मेरे कार्यकाल में सालभर में किसी भी स्टूडेंट्स पर कोई FIR दर्ज नही हुई और न ही कोई आपराधिक घटना हुई। LU से जुड़ने का हमेशा रहा फख्र प्रमोद तिवारी कहते हैं, साल 1989 की बात है, मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उच्च शिक्षा मंत्री के घेराव के लिए हम 6 स्टूडेंट विधान मंडल सत्र के दौरान विधानसभा पहुंच गए। भारी सुरक्षा बल के बावजूद हम परिसर में दाखिल हुए और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध दर्ज कराया। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों में कभी कोई साहस की कोई कमी नहीं रही। यह बात जरूर है ज्यादातर स्टूडेंट्स बहुत मेरीटोरियस नहीं थे, पर हिम्मत में हमारा कोई सानी नहीं था। आज के दौर में वो बात नहीं, मेरिटोरिस स्टूडेंट्स बढ़े और जज्बे में कमी दिखती है। विश्वविद्यालय का अतीत बेहद गौरवशाली रहा, मेरा जुड़ाव रहा इसका फख्र भी महसूस होता है। अब जानिए LU को लेकर क्या कहते है स्टूडेंट्स.... यहां गुजारे पल कभी न भूलने वाले ग्रेजुएशन पास कर चुकी तनिष्का मिश्रा कहती हैं कि यूनिवर्सिटी में मेरा बेहद बहुत अच्छा एक्सपीरियंस रहा। पढ़ाई के दौरान मैंने NCC भी लिया था। ग्राउंड में हम प्रैक्टिस करते थे। आज जब डिग्री लेने कैंपस पहुंची, तो नजर इसी ग्राउंड में जाकर ठहर गई। ये बिताए पल कभी न भूलने वाले हैं। यहां का अनुभव शब्दों में बयां करना मुश्किल रिसर्च स्कॉलर नेहा गौतम कहती हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय में जिसने पढ़ाई की है, वही इसकी खूबसूरती को पहचान सकता है। LU में बेहद नायाब बेहद उम्दा और शानदार सफर मेरा रहा है। मैंने यहीं से ग्रेजुएशन किया, पीजी की और अब पीएचडी कर रही हूं। कैंपस के बारे में शब्दों में बयां करना किसी के लिए भी आसान नहीं रहता। वर्ल्ड क्लास है फैकल्टी ग्रेजुएशन के छात्र रितेश कहते हैं, बहुत पुरानी यूनिवर्सिटी होने के कारण यहां के फैकल्टी बेहद अच्छे हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जिनका इंटरनेशनल लेवल पर भी नाम है। हम उन पर गर्व करते हैं। पढ़ाई का माहौल अच्छा बीए के छात्र अर्जुन पांडे कहते हैं, लखनऊ विश्वविद्यालय में विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। पढ़ाई का माहौल भी अच्छा है। विश्वविद्यालय में किस चीज की कमी है के सवाल पर वो कहते हैं कि वैसे तो कोई विशेष चीज की कमी नहीं है पर इंफ्रास्ट्रक्चर कुछ जगह का बहुत पुराना होने के कारण बदहाल है उसमें सुधार किया जाना चाहिए। लखनऊ विश्वविद्यालय के स्थापना की कहानी
लखनऊ विश्वविद्यालय की बुनियाद रखने का विचार सबसे पहले राजा महमूदाबाद मोहम्मद अली खान, खान बहादुर को आया। यूनाइटेड प्रोविंस के लेफ्टिनंट गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने इसे मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभाई। 25 नवंबर 1920 को गवर्नर जनरल ने विश्वविद्यालय एक्ट पर हस्ताक्षर किए और इसी तारीख को विश्वविद्यालय स्थापना दिवस मनाता है। 17 जुलाई 1921 को पहला शैक्षिक सत्र शुरू हुआ। विश्वविद्यालय बनने से पहले इसे कैनिंग कॉलेज के नाम से जाना जाता था। विश्वविद्यालय को चलाने के लिए कैनिंग कॉलेज को एक जुलाई 1922 को हस्तांतरित किया गया। कभी किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय और आईटी कॉलेज भी इसका हिस्सा हुआ करते थे। बाद में दायरा बढ़ने पर इन्हें अलग कर दिया गया। शताब्दी वर्ष पूरा करने के बाद साल 2022 में लखनऊ विश्वविद्यालय को NAAC रेटिंग में A++ ग्रेड मिला। इसे अब तक की सभी बड़ी उपलब्धियों में से एक गिना जाता है। ये रहे ऑल टाइम ग्रेटस भारत के नौवें राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा, भारत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एमएच बेग, डा. रितु करिधाल, वरिष्ठ प्रमुख विज्ञानी डा. अश्वनी कुमार सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित इस लिस्ट में एक से बढ़कर एक दिग्गज के नाम शामिल है। NAAC की टॉप रेटिंग का जबरदस्त असर LU के कुलपति प्रो.आलोक कुमार राय कहते हैं कि स्टूडेंट, टीचर्स और नॉन टीचिंग स्टाफ का कॉन्फिडेंस जबरदस्त रूप से बढ़ा है। इसका साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट बहुत ज्यादा हुआ। दूसरा इंस्टीट्यूशन के ब्रांडिंग पर भी बहुत गहरा असर पड़ा है। बच्चे भी बाहर बहुत कॉन्फिडेंस से कहते हैं। 1 लाख से ज्यादा बच्चे एडमिशन के लिए अप्लाई करते हैं, जबकि रजिस्ट्रेशन कराने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 2 लाख 44 हजार से ज्यादा थे। इस तरह से बहुत सारे लोग बढ़े, ब्रांडिंग बढ़ी और हमारे स्टूडेंटस की एम्पलाईेबिलिटी भी बढ़ी। हम देश में इकलौते ऐसे इंस्टीट्यूशन होंगे जहां बीए, बीएससी और बीकॉम के 2 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स को निजी क्षेत्र में जॉब मिली है। इससे हमारी रिकग्निजेशन बढ़ी, सेंट्रल गवर्नमेंट की तमाम सारी एजेंसी से मिलने वाली रिसर्च ग्रांट भी बढ़ी और इसी का नतीजा रहा कि NIRF की रैंकिंग में भी जबरदस्त सुधार हुआ है।