अपने परंपरागत वोट के लिए भी जूझीं मायावती:सात सीटों पर जमानत जब्त, 35 साल में सबसे खराब दौर से गुजर रही बसपा

उत्तर प्रदेश में 14 साल बाद विधानसभा उपचुनाव लड़ रही बसपा अपने परंपरागत वोट हासिल करने में भी नाकाम नजर आई। 12 साल पहले पूर्ण बहुमत से सत्ता में रही बहुजन समाजपार्टी मात्र दो सीटों पर ही अपनी जमानत बचा सकी। बाकी सात सीटों पर उसके उम्मीदवार सपा और भाजपा के उम्मीदवारों के आसपास भी नजर नहीं आए। दो सीटें तो ऐसी रहीं जहां चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम से भी पीछे रही और पांचवे स्थान से उसे संतोष करना पड़ा। बसपा केवल कटेहरी और मझंवा में अपनी जमानत बचा सकी। यहां उसे तीसरे स्थान पर रहना पड़ा। जबकि कुंदरकी और मीरापुर में बसपा का प्रदर्शन बेहद शर्मनाक रहा। कुंदरकी में बसपा को अब तक का सबसे कम वोट मात्र 1051 वोट ही हासिल हुए। वहीं मीरापुर में बसपा साढ़े तीन हजार वोटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। यहां उसे 3248 वोट मिले। कानपुर की सीसामऊ सीट जहां सपा की नसीम सोलंकी ने जीत हासिल की है, वहां बसपा को मात्र 1410 वोट ही मिले। विधानसभा आम चुनाव में बसपा को खैर सीट पर 65 हजार वोट मिले थे। इस बार वह 13 हजार वोटों पर सिमट गई। माना जाता है कि दलितों में जाटव वोट बैंक बसपा के साथ अब भी है। लेकिन इस चुनाव में वो मिथक भी टूट गया। बसपा को केवल दो सीटों पर 12 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल हुए। बहुजन समाज पार्टी बीते 35 सालों में अपने सबसे खराब राजनीतिक दौर से गुजर रही है। लोकसभा में बसपा का एक भी सांसद नहीं है। विधानसभा में बसपा के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह है। विधान परिषद में भी बसपा का एक भी सदस्य नहीं है। राज्यसभा में भी बसपा के एक मात्र सदस्य है। अमित वर्मा ने बिगाड़ा शोभावती वर्मा का खेल अम्बेडकर नगर की कटेहरी सीट कुर्मी बाहुल्य सीट मानी जाती है। इस सीट पर लंबे समय से लालजी वर्मा का कब्जा रहा है। लालजीवर्मा पहले बसपा में थे। 2022 के चुनाव से ठीक पहले वह बसपा छोड़ सपा में आ गए थे। इस सीट पर उनकी बादशाहत लंबे समय से कायम रही है। इस बार वह अपनी सीट नहीं बचा सके। उनकी पत्नी को बसपा के साधारण कार्यकर्ता रहे अमित वर्मा ने अपनी बिरादरी का 18 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर लिया। अमित को 40 हजार से अधिक वोट मिले। जबकि शोभावती वर्मा की हार 34 हजार वोटों से हुई। एक भी बड़ा नेता नहीं निकला प्रचार में बसपा के लिए मायावती केवल सोशल मीडिया पर ही वोट मांगती नजर आईं। कोई भी बड़ा नेता बसपा का अपने प्रत्याशियों के प्रचार के लिए मैदान में नजर नहीं आया। यहां तक कि बसपा में दूसरी पंक्ति के नेता सतीश चंद्र मिश्रा हों या आकाश आनंद। यह दोनों भी पार्टी के प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। कुल मिलाकर बसपा ने प्रत्याशी तो उतार दिए, लेकिन उन्हें अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया। यही वजह रही कि जब नतीजे आए तो बसपा नौ में से 4 सीटों पर 10 हजार का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी। हाशिए पर आ गईं मायावती राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी का कहना है कि यूपी की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती हाशिए पर आ गई है। वह ऐसा कुछ कर नहीं रही है जिससे उनका वोट बैंक उनके पास रहे या कोई अन्य वोट बैंक उनके साथ जुड़े। उन्होंने आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन आकाश की भी उप चुनाव में कोई गतिविधि नहीं रही। यदि यही स्थिति रही तो 2027 में मायावती कुछ कर पाएंगी यह कहना मुश्किल है। अब आगे क्या है बसपा को गठबंधन करना ही पड़ेगा राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट मानते हैं कि देश में अब राजनीति दो ध्रवी हो गई है। यूपी में इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन इतना मजबूत है कि कोई भी तीसरा दल अपने दम पर इनके सामने खड़ा नहीं हो सकता है। ऐसे में मायावती को 2027 में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए इन दोनों में से किसी एक गठबंधन में शामिल होना ही पड़ेगा। इस चुनाव में मायावती को अपनी पार्टी की स्थिति साफ नजर आ रही थी इसलिए वह चुनाव प्रचार पर नहीं निकली। सपा की राह में रोड़ा बना मुस्लिम वोटों का बिखराव समाजवादी पार्टी को मीरापुर में हार का सामना करना पड़ा। यहां सपा की सुंबुल राणा को रालोद की मिथिलेश पाल ने 30 हजार 796 वोटों से हराया। मिथिलेश पाल को यहां 84 हजार 304 वोट मिले। वहीं सुंबुल को 53508 वोट मिले। वहीं अगर चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हुसैन को मिले 22661 वोट और एमआईएम के प्रत्याशी मोहम्मद अरशद को 18869 वोट मिले। यह दोनों मिलकर 41 हजार से अधिक वोट होते हैं। माना जा रहा है कि यह वोट सपा के वोट थे। अगर सपा इस वोट को हासिल करने में कामयाब रहती तो जीत सपा की होती।

Nov 24, 2024 - 11:50
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अपने परंपरागत वोट के लिए भी जूझीं मायावती:सात सीटों पर जमानत जब्त, 35 साल में सबसे खराब दौर से गुजर रही बसपा
उत्तर प्रदेश में 14 साल बाद विधानसभा उपचुनाव लड़ रही बसपा अपने परंपरागत वोट हासिल करने में भी नाकाम नजर आई। 12 साल पहले पूर्ण बहुमत से सत्ता में रही बहुजन समाजपार्टी मात्र दो सीटों पर ही अपनी जमानत बचा सकी। बाकी सात सीटों पर उसके उम्मीदवार सपा और भाजपा के उम्मीदवारों के आसपास भी नजर नहीं आए। दो सीटें तो ऐसी रहीं जहां चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम से भी पीछे रही और पांचवे स्थान से उसे संतोष करना पड़ा। बसपा केवल कटेहरी और मझंवा में अपनी जमानत बचा सकी। यहां उसे तीसरे स्थान पर रहना पड़ा। जबकि कुंदरकी और मीरापुर में बसपा का प्रदर्शन बेहद शर्मनाक रहा। कुंदरकी में बसपा को अब तक का सबसे कम वोट मात्र 1051 वोट ही हासिल हुए। वहीं मीरापुर में बसपा साढ़े तीन हजार वोटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। यहां उसे 3248 वोट मिले। कानपुर की सीसामऊ सीट जहां सपा की नसीम सोलंकी ने जीत हासिल की है, वहां बसपा को मात्र 1410 वोट ही मिले। विधानसभा आम चुनाव में बसपा को खैर सीट पर 65 हजार वोट मिले थे। इस बार वह 13 हजार वोटों पर सिमट गई। माना जाता है कि दलितों में जाटव वोट बैंक बसपा के साथ अब भी है। लेकिन इस चुनाव में वो मिथक भी टूट गया। बसपा को केवल दो सीटों पर 12 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल हुए। बहुजन समाज पार्टी बीते 35 सालों में अपने सबसे खराब राजनीतिक दौर से गुजर रही है। लोकसभा में बसपा का एक भी सांसद नहीं है। विधानसभा में बसपा के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह है। विधान परिषद में भी बसपा का एक भी सदस्य नहीं है। राज्यसभा में भी बसपा के एक मात्र सदस्य है। अमित वर्मा ने बिगाड़ा शोभावती वर्मा का खेल अम्बेडकर नगर की कटेहरी सीट कुर्मी बाहुल्य सीट मानी जाती है। इस सीट पर लंबे समय से लालजी वर्मा का कब्जा रहा है। लालजीवर्मा पहले बसपा में थे। 2022 के चुनाव से ठीक पहले वह बसपा छोड़ सपा में आ गए थे। इस सीट पर उनकी बादशाहत लंबे समय से कायम रही है। इस बार वह अपनी सीट नहीं बचा सके। उनकी पत्नी को बसपा के साधारण कार्यकर्ता रहे अमित वर्मा ने अपनी बिरादरी का 18 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर लिया। अमित को 40 हजार से अधिक वोट मिले। जबकि शोभावती वर्मा की हार 34 हजार वोटों से हुई। एक भी बड़ा नेता नहीं निकला प्रचार में बसपा के लिए मायावती केवल सोशल मीडिया पर ही वोट मांगती नजर आईं। कोई भी बड़ा नेता बसपा का अपने प्रत्याशियों के प्रचार के लिए मैदान में नजर नहीं आया। यहां तक कि बसपा में दूसरी पंक्ति के नेता सतीश चंद्र मिश्रा हों या आकाश आनंद। यह दोनों भी पार्टी के प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। कुल मिलाकर बसपा ने प्रत्याशी तो उतार दिए, लेकिन उन्हें अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया। यही वजह रही कि जब नतीजे आए तो बसपा नौ में से 4 सीटों पर 10 हजार का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी। हाशिए पर आ गईं मायावती राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी का कहना है कि यूपी की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती हाशिए पर आ गई है। वह ऐसा कुछ कर नहीं रही है जिससे उनका वोट बैंक उनके पास रहे या कोई अन्य वोट बैंक उनके साथ जुड़े। उन्होंने आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन आकाश की भी उप चुनाव में कोई गतिविधि नहीं रही। यदि यही स्थिति रही तो 2027 में मायावती कुछ कर पाएंगी यह कहना मुश्किल है। अब आगे क्या है बसपा को गठबंधन करना ही पड़ेगा राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट मानते हैं कि देश में अब राजनीति दो ध्रवी हो गई है। यूपी में इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन इतना मजबूत है कि कोई भी तीसरा दल अपने दम पर इनके सामने खड़ा नहीं हो सकता है। ऐसे में मायावती को 2027 में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए इन दोनों में से किसी एक गठबंधन में शामिल होना ही पड़ेगा। इस चुनाव में मायावती को अपनी पार्टी की स्थिति साफ नजर आ रही थी इसलिए वह चुनाव प्रचार पर नहीं निकली। सपा की राह में रोड़ा बना मुस्लिम वोटों का बिखराव समाजवादी पार्टी को मीरापुर में हार का सामना करना पड़ा। यहां सपा की सुंबुल राणा को रालोद की मिथिलेश पाल ने 30 हजार 796 वोटों से हराया। मिथिलेश पाल को यहां 84 हजार 304 वोट मिले। वहीं सुंबुल को 53508 वोट मिले। वहीं अगर चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हुसैन को मिले 22661 वोट और एमआईएम के प्रत्याशी मोहम्मद अरशद को 18869 वोट मिले। यह दोनों मिलकर 41 हजार से अधिक वोट होते हैं। माना जा रहा है कि यह वोट सपा के वोट थे। अगर सपा इस वोट को हासिल करने में कामयाब रहती तो जीत सपा की होती।

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