उत्तराखंड: दीपक बिजल्वाण की BJP में एंट्री से राजनीति में उठे तूफान
उत्तरकाशी : उत्तरकाशी जिले की राजनीति में ज़ोरदार उबाल देखने को मिल रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद ब्लॉक प्रमुखों और जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की घोषणा कर दी है। 14 अगस्त को हरिद्वार को छोड़कर राज्य के 12 जिलों में ये चुनाव होंगे। लेकिन इस बीच जिला पंचायत …

उत्तराखंड: दीपक बिजल्वाण की BJP में एंट्री से राजनीति में उठे तूफान
उत्तरकाशी: उत्तरकाशी जिले की राजनीति में इस समय एक बड़ा उबाल देखने को मिल रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद ब्लॉक प्रमुखों और जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की तारीखों की घोषणा की है। 14 अगस्त को हरिद्वार को छोड़कर राज्य के 12 जिलों में यह चुनाव होंगे। इस माहौल में जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण की भाजपा में एंट्री ने जिले की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।
दीपक बिजल्वाण, जो पहले से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए मजबूत दावेदार माने जा रहे थे, अब भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं के चलते पार्टी के भीतर विरोध का केंद्र बन गए हैं।
भाजपा नेताओं की बढ़ती नाराजगी
जैसे ही बिजल्वाण के भाजपा में शामिल होने की खबरें सामने आईं, यमुनोत्री-गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र के भाजपा नेताओं में बेचैनी बढ़ गई। गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान, पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण, पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल, भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष सत्येंद्र राणा और वर्तमान जिला अध्यक्ष नागेंद्र चौहान ने मिलकर पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जताई। इन नेताओं ने दीपक बिजल्वाण पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें पार्टी में शामिल न करने की मांग की है।
गहरी सियासी बुनियाद पर सवाल उठता है
दिलचस्प बात यह है कि हाल के नगर निकाय चुनावों में ये सभी भाजपा नेता बिजल्वाण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे। लेकिन जैसे ही पंचायत चुनाव का वक्त आया, भाजपा के भीतर उनके खिलाफ विरोध की स्थिति बन गई। इस स्थिति ने कई सवाल खड़े किए हैं कि क्या यह विरोध सैद्धांतिक है, या फिर यह केवल सीट की सियासत का परिणाम है?
2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति या सियासी डर?
दीपक बिजल्वाण की योजना स्पष्ट है, वे यमुनोत्री विधानसभा सीट से 2027 में होने वाले चुनाव में उतरने के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं। यह वही सीट है जहां से वे पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं। पार्टी के मनवीर चौहान और पूर्व विधायक केदार सिंह रावत भी इसी सीट से अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। ऐसे में इन दोनों नेताओं को बिजल्वाण की भाजपा में एंट्री से अपने सियासी समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं, और यही वजह है कि चुनावों से पहले ही भाजपा के नेताओं का एक समूह बिजल्वाण के खिलाफ लामबंद हो गया है।
निकाय चुनाव में सुस्ती से अब सक्रियता का मोड़
राजनीतिक विशेषज्ञ इस विरोध को भाजपा नेताओं की रणनीतिक चाल मानते हैं। नगर निकाय चुनाव के दौरान मनवीर चौहान को नाराज जनता का सामना करना पड़ा जबकि केदार सिंह रावत चुनावी मैदान में सक्रिय नहीं दिखे थे। पुरोला नगर पंचायत की सीट भी भाजपा हार गई, जिससे दुर्गेश्वर लाल की पकड़ पर सवाल खड़े हुए। भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष सत्येंद्र राणा भी बिजल्वाण के मुकाबले रामा वार्ड से जिला पंचायत का चुनाव हार चुके हैं।
जैसे ही पंचायत चुनाव और आगामी विधानसभा चुनावों का समीकरण तैयार हो रहा है, भाजपा नेताओं की यह सक्रियता सियासी चर्चाओं का विषय बन गई है। कुल मिलाकर, दीपक बिजल्वाण इस समय एक बड़े राजनीतिक खिलाड़ी साबित हो रहे हैं, जिस कारण भाजपा के नेता भविष्य की अपनी दावेदारी को देखते हुए एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं।
यह स्थिति उत्तराखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकती है, जहां विरोध और समर्थन के बीच गहरा संघर्ष स्पष्ट हो रहा है। 2027 के विधानसभा चुनाव के निकट आने के साथ यह स्थिति और भी जटिल होती जाएगी।
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लेखक: स्नेहा शर्मा, दीप्ति रावत, प्रियंका तिवारी, टीम India Twoday
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