एमपी समेत 16 राज्यों में 10 हजार करोड़ की ठगी:सरकारी योजनाओं के नाम पर स्कीम चलाई; 15 साल में 4 लाख लोगों को ठगा

क्या कहें किस्मत की खूबी, दिन बुरे आने लगे और लालच में फंसकर पत्थरों में ठोकरें खाने लगे। किसी नामालूम कवि की ये लाइनें सुनाते हुए गोटीराम राठौर खुद को कोसते हैं। कहते हैं- मेरी जमीन भी चली गई और लालच में पैसा भी। भिंड जिले के दबोह कस्बे में रहने वाले गोटीराम की जमीन से होकर बायपास गुजरा है। जमीन के बदले मुआवजे के तौर पर सरकार से उन्हें 5 साल पहले साढ़े पांच लाख रुपए मिले थे। राठौर ने ये पूरी रकम एलजेसीसी ( लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड) में जमा करवा दी। सोसाइटी ने 5 साल में दोगुनी राशि देने का दावा किया था। अब सोसाइटी के दफ्तरों में ताले पड़े हुए हैं। ये अकेले गोटीराम की कहानी नहीं है। भिंड जिले के अलग-अलग कस्बों के लोगों के साथ इसी तरह फ्रॉड हुआ है। दैनिक भास्कर ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो पता चला कि एलजेसीसी सोसाइटी ने न केवल भिंड बल्कि मध्यप्रदेश के 16 जिलों के लोगों के साथ 1 हजार करोड़ का फ्रॉड किया है। फ्रॉड के शिकार हुए लोग अब थानों के चक्कर काट रहे हैं। पड़ताल में ये भी पता चला कि ये सोसाइटी, सागा ग्रुप का हिस्सा है। सागा ग्रुप ने पिछले 15 साल में देश के 16 राज्यों के एक हजार शहरों-कस्बों में अलग-अलग नाम की कंपनी और फिर सोसाइटियों के दफ्तर खोले। बताया जा रहा है कि कंपनी के कर्ताधर्ता 10 हजार करोड़ रुपए लेकर फरार हो गए हैं। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सागा ग्रुप के खिलाफ FIR दर्ज हो चुकी है। ईडी (एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट) ने भी मनी लॉन्ड्रिग का केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू की है। पढ़िए, एमपी समेत देश के लाखों लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाले ‘एमपी के सबसे बड़े ठगबाज’ और उसके ‘मायाजाल’ की पूरी पड़ताल का पहला पार्ट 5 पॉइंट्स में जानिए, कैसे फैलाया ठगी का नेटवर्क… 1. कृषि मंत्रालय में 7 को-ऑपरेटिव सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन सागा ग्रुप ने साल 2012-13 के बीच कुल 7 सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन कृषि मंत्रालय में कराया। इनमें से दो सोसाइटियों के दफ्तर एमपी में खोले गए। लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (LJCC) का रजिस्ट्रेशन 24 जनवरी 2013 को हुआ। इसमें समीर अग्रवाल सीएमडी, अनुराग बंसल चेयरमैन, आरके शेट्‌टी वित्तीय सलाहकार, संजय मुदगिल ट्रेनर, सुतीक्ष्ण सक्सेना और पंकज अग्रवाल पार्टनर के तौर पर जुड़े। सागा ग्रुप ने सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन लोन देने के लिए किया था। कंपनी 2016 से बैंकिंग, क्रेडिट, एफडी, आरडी, एमआईएस, सुकन्या, धन पेटी, एजुकेशन प्लान, पेंशन प्लान, आयुष्मान जैसी स्कीम के जरिए लोगों से पैसा इन्वेस्ट कराने लगी। 2. एक लाख एजेंट्स बनाए और 1 हजार ब्रांच खोलीं सागा ग्रुप ने सोसाइटियों के रजिस्ट्रेशन के बाद देशभर में तहसील और ब्लॉक स्तर पर 1 हजार ब्रांच खोली। एक लाख एजेंट्स जोड़े। कुछ को सैलेरी पर रखा, बाकियों को इन्वेस्टमेंट लाने पर 4 से 12 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता था। मप्र के 16 जिलों में 40 ब्रांच ऑफिस खोले गए। यूपी के ललितपुर समेत 22 जिलों में भी जगह-जगह ब्रांच ऑफिस खोले गए। ये सोसाइटी लुभावने स्कीम लॉन्च कर लोगों के पैसे जमा कराती थी। इनमें मंथली इनकम सहित एफडी, आरडी, एमआईएस की रसीद देकर मैच्युरिटी की तारीख तय कर देती थी। नकद लेन-देन पर ज्यादा जोर था। इसमें प्रतिदिन के हिसाब से भी लोगों से पैसे जमा कराए जाते थे। 3. एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान में कराते थे इन्वेस्टमेंट सभी सातों सोसाइटियों में एक तरह के निवेश प्लान लॉन्च किए गए थे। इनमें एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान शामिल हैं। 1 हजार रुपए एक साल में जमा करने वाले को 1172 रुपए दिए जाते थे। वहीं, पांच साल की एफडी पर ये रकम दोगुना करने का दावा करते थे। इसके अलावा रोजाना और महीने के अनुसार आरडी का भी प्लान था। इसमें 200 रुपए महीने जमा करने पर एक साल की मैच्योरिटी पर 2560 रुपए मिलते थे। आरडी 200 से 5000 रुपए के बीच कोई भी खोल सकता था। इसमें भी एक साल से लेकर 7 साल तक का प्लान पेश किया गया था। 4. वेबसाइट और ऐप बनाए, बड़े शहरों में ट्रेनिंग कराई सागा ग्रुप ने वेबसाइट और ऐप बना रखे थे। सभी एजेंटों को ऐप के जरिए ही लोगों के पैसे जमा कराने होते थे। इसका लॉगिन और पासवर्ड होता था। इसमें ग्राहक की पॉलिसी नंबर के आधार पर एजेंटों को उसकी मैच्योरिटी देखने की सुविधा मिलती थी। एजेंट जोड़ने का चेन सिस्टम था। एजेंट जो भी पैसे निवेश कराते थे, उसके ऊपर वाले एजेंट को भी उसमें से कुछ प्रतिशत कमीशन मिलता था। ये चेन सिस्टम सीएमडी समीर अग्रवाल तक बना हुआ था। इसी ऐप में एजेंट्स का कमीशन भी आता था, जो पॉइंट्स के रूप में दिखता था। इसे कैश करने का एक ही तरीका था कि उतनी राशि वो किसी ग्राहक से निवेश कराए और उसे खुद रखकर पॉइंट के रूप में मिले कमीशन से उसका भुगतान कर दे। एजेंटों को उनके कमीशन पर सोसाइटी जीएसटी भी काटती थी। एजेंटों को हर महीने ट्रेनिंग के लिए झांसी, सागर, लखनऊ, भोपाल आदि शहरों में बुलाया जाता था। वहां रुकने से लेकर खाने-पीने की सारी व्यवस्था सोसाइटी ही करती थी। कई बार ऑनलाइन ट्रेनिंग कराई जाती थी। ट्रेनर के तौर पर संजय मुद्गिल जुड़ता था। वो एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मिलने वाले ऑफरों को इतने लुभावने तरीके से पेश करता था कि एजेंट उसे पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते थे। 5. दुबई, थाईलैंड, बैंकॉक के टूर, प्लॉट और लग्जरी वाहनों का लालच एलजेसीसी सहित सभी सोसाइटी अपने एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मुंबई, गोवा आदि शहरों के साथ बैंकाक, थाईलैंड और दुबई जैसे देशों की सैर भी कराती थी। देश के बड़े-बड़े शहरों जैसे मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई आदि जगहों पर सेमिनार करती थीं। इनमें एजेंटों को सम्मानित किया जाता था। साथ ही टारगेट पूरा करने वाले एजेंट्स को बड़ी और महंगी गाड़ियां गिफ्ट में दी जाती थी। किसे-कौन सी गाड़ी मिलेगी, ये उसके हर महीने के इन्वेस्टमेंट पर डिपेंड करता था। न्यूनतम राशि के साथ कंपनी गाड़ी खरीदकर देती थी

Dec 1, 2024 - 05:55
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एमपी समेत 16 राज्यों में 10 हजार करोड़ की ठगी:सरकारी योजनाओं के नाम पर स्कीम चलाई; 15 साल में 4 लाख लोगों को ठगा
क्या कहें किस्मत की खूबी, दिन बुरे आने लगे और लालच में फंसकर पत्थरों में ठोकरें खाने लगे। किसी नामालूम कवि की ये लाइनें सुनाते हुए गोटीराम राठौर खुद को कोसते हैं। कहते हैं- मेरी जमीन भी चली गई और लालच में पैसा भी। भिंड जिले के दबोह कस्बे में रहने वाले गोटीराम की जमीन से होकर बायपास गुजरा है। जमीन के बदले मुआवजे के तौर पर सरकार से उन्हें 5 साल पहले साढ़े पांच लाख रुपए मिले थे। राठौर ने ये पूरी रकम एलजेसीसी ( लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड) में जमा करवा दी। सोसाइटी ने 5 साल में दोगुनी राशि देने का दावा किया था। अब सोसाइटी के दफ्तरों में ताले पड़े हुए हैं। ये अकेले गोटीराम की कहानी नहीं है। भिंड जिले के अलग-अलग कस्बों के लोगों के साथ इसी तरह फ्रॉड हुआ है। दैनिक भास्कर ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो पता चला कि एलजेसीसी सोसाइटी ने न केवल भिंड बल्कि मध्यप्रदेश के 16 जिलों के लोगों के साथ 1 हजार करोड़ का फ्रॉड किया है। फ्रॉड के शिकार हुए लोग अब थानों के चक्कर काट रहे हैं। पड़ताल में ये भी पता चला कि ये सोसाइटी, सागा ग्रुप का हिस्सा है। सागा ग्रुप ने पिछले 15 साल में देश के 16 राज्यों के एक हजार शहरों-कस्बों में अलग-अलग नाम की कंपनी और फिर सोसाइटियों के दफ्तर खोले। बताया जा रहा है कि कंपनी के कर्ताधर्ता 10 हजार करोड़ रुपए लेकर फरार हो गए हैं। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सागा ग्रुप के खिलाफ FIR दर्ज हो चुकी है। ईडी (एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट) ने भी मनी लॉन्ड्रिग का केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू की है। पढ़िए, एमपी समेत देश के लाखों लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाले ‘एमपी के सबसे बड़े ठगबाज’ और उसके ‘मायाजाल’ की पूरी पड़ताल का पहला पार्ट 5 पॉइंट्स में जानिए, कैसे फैलाया ठगी का नेटवर्क… 1. कृषि मंत्रालय में 7 को-ऑपरेटिव सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन सागा ग्रुप ने साल 2012-13 के बीच कुल 7 सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन कृषि मंत्रालय में कराया। इनमें से दो सोसाइटियों के दफ्तर एमपी में खोले गए। लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (LJCC) का रजिस्ट्रेशन 24 जनवरी 2013 को हुआ। इसमें समीर अग्रवाल सीएमडी, अनुराग बंसल चेयरमैन, आरके शेट्‌टी वित्तीय सलाहकार, संजय मुदगिल ट्रेनर, सुतीक्ष्ण सक्सेना और पंकज अग्रवाल पार्टनर के तौर पर जुड़े। सागा ग्रुप ने सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन लोन देने के लिए किया था। कंपनी 2016 से बैंकिंग, क्रेडिट, एफडी, आरडी, एमआईएस, सुकन्या, धन पेटी, एजुकेशन प्लान, पेंशन प्लान, आयुष्मान जैसी स्कीम के जरिए लोगों से पैसा इन्वेस्ट कराने लगी। 2. एक लाख एजेंट्स बनाए और 1 हजार ब्रांच खोलीं सागा ग्रुप ने सोसाइटियों के रजिस्ट्रेशन के बाद देशभर में तहसील और ब्लॉक स्तर पर 1 हजार ब्रांच खोली। एक लाख एजेंट्स जोड़े। कुछ को सैलेरी पर रखा, बाकियों को इन्वेस्टमेंट लाने पर 4 से 12 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता था। मप्र के 16 जिलों में 40 ब्रांच ऑफिस खोले गए। यूपी के ललितपुर समेत 22 जिलों में भी जगह-जगह ब्रांच ऑफिस खोले गए। ये सोसाइटी लुभावने स्कीम लॉन्च कर लोगों के पैसे जमा कराती थी। इनमें मंथली इनकम सहित एफडी, आरडी, एमआईएस की रसीद देकर मैच्युरिटी की तारीख तय कर देती थी। नकद लेन-देन पर ज्यादा जोर था। इसमें प्रतिदिन के हिसाब से भी लोगों से पैसे जमा कराए जाते थे। 3. एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान में कराते थे इन्वेस्टमेंट सभी सातों सोसाइटियों में एक तरह के निवेश प्लान लॉन्च किए गए थे। इनमें एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान शामिल हैं। 1 हजार रुपए एक साल में जमा करने वाले को 1172 रुपए दिए जाते थे। वहीं, पांच साल की एफडी पर ये रकम दोगुना करने का दावा करते थे। इसके अलावा रोजाना और महीने के अनुसार आरडी का भी प्लान था। इसमें 200 रुपए महीने जमा करने पर एक साल की मैच्योरिटी पर 2560 रुपए मिलते थे। आरडी 200 से 5000 रुपए के बीच कोई भी खोल सकता था। इसमें भी एक साल से लेकर 7 साल तक का प्लान पेश किया गया था। 4. वेबसाइट और ऐप बनाए, बड़े शहरों में ट्रेनिंग कराई सागा ग्रुप ने वेबसाइट और ऐप बना रखे थे। सभी एजेंटों को ऐप के जरिए ही लोगों के पैसे जमा कराने होते थे। इसका लॉगिन और पासवर्ड होता था। इसमें ग्राहक की पॉलिसी नंबर के आधार पर एजेंटों को उसकी मैच्योरिटी देखने की सुविधा मिलती थी। एजेंट जोड़ने का चेन सिस्टम था। एजेंट जो भी पैसे निवेश कराते थे, उसके ऊपर वाले एजेंट को भी उसमें से कुछ प्रतिशत कमीशन मिलता था। ये चेन सिस्टम सीएमडी समीर अग्रवाल तक बना हुआ था। इसी ऐप में एजेंट्स का कमीशन भी आता था, जो पॉइंट्स के रूप में दिखता था। इसे कैश करने का एक ही तरीका था कि उतनी राशि वो किसी ग्राहक से निवेश कराए और उसे खुद रखकर पॉइंट के रूप में मिले कमीशन से उसका भुगतान कर दे। एजेंटों को उनके कमीशन पर सोसाइटी जीएसटी भी काटती थी। एजेंटों को हर महीने ट्रेनिंग के लिए झांसी, सागर, लखनऊ, भोपाल आदि शहरों में बुलाया जाता था। वहां रुकने से लेकर खाने-पीने की सारी व्यवस्था सोसाइटी ही करती थी। कई बार ऑनलाइन ट्रेनिंग कराई जाती थी। ट्रेनर के तौर पर संजय मुद्गिल जुड़ता था। वो एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मिलने वाले ऑफरों को इतने लुभावने तरीके से पेश करता था कि एजेंट उसे पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते थे। 5. दुबई, थाईलैंड, बैंकॉक के टूर, प्लॉट और लग्जरी वाहनों का लालच एलजेसीसी सहित सभी सोसाइटी अपने एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मुंबई, गोवा आदि शहरों के साथ बैंकाक, थाईलैंड और दुबई जैसे देशों की सैर भी कराती थी। देश के बड़े-बड़े शहरों जैसे मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई आदि जगहों पर सेमिनार करती थीं। इनमें एजेंटों को सम्मानित किया जाता था। साथ ही टारगेट पूरा करने वाले एजेंट्स को बड़ी और महंगी गाड़ियां गिफ्ट में दी जाती थी। किसे-कौन सी गाड़ी मिलेगी, ये उसके हर महीने के इन्वेस्टमेंट पर डिपेंड करता था। न्यूनतम राशि के साथ कंपनी गाड़ी खरीदकर देती थी। बाकी पैसा बैंक से फाइनेंस कराया जाता था, जिसकी किस्त एजेंट अपने टारगेट पूरे कर भरता था। 15 साल में अलग-अलग कंपनियों के नाम से ठगी सागा ग्रुप के बारे में प्रचारित किया गया कि ये कंपनी विदेश में सोने-कोयले की खदान, तेल कुआं और रियल इस्टेट का काम करती है। समीर अग्रवाल पिछले 15 साल से अलग-अलग नाम की कंपनी और सोसाइटियों के जरिए लोगों से ठगी कर रहा है। साल 2009: एडवांटेज ट्रेड कॉम नाम से ग्वालियर में कंपनी का रजिस्ट्रेशन ये कंपनी टूर पैकेज बेचने का काम करती थी। इसमें 7500 रुपए एक ग्राहक से लिए जाते थे। टूर देश के ही अलग-अलग हिस्सों में कराया जाता था। तीन साल के इस प्लान में यदि कोई ग्राहक टूर नहीं करता था तो उसे डबल रकम के तौर पर 15000 रुपए भुगतान का लालच दिया जाता था। साल 2012: ऑप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का ग्वालियर में रजिस्ट्रेशन इस कंपनी में एडवांटेज ट्रेड के ग्राहकों को मर्ज कर दिया गया। इसका हेड ऑफिस इंदौर में खोला गया। कंपनी तब बॉन्ड बेचती थी। इसमें पांच साल में लोगों की रकम डबल करने का झांसा दिया जाता था। साल 2016: कंपनी बंद, 7 सोसाइटियों का रजिस्ट्रेशन समीर अग्रवाल ने कंपनियों को बंद कर कृषि मंत्रालय में अलग-अलग नामों से 7 सोसाइटी रजिस्टर्ड कराई। मध्यप्रदेश में श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी (एसएसवी) ने ऑप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का स्थान लिया। साल 2019: एसएसवी सोसाइटी बंद, LJCC शुरू भोपाल में एसएसवी के खिलाफ शिकायतें और एफआईआर दर्ज होने पर सेबी ने इसके कामकाज पर रोक लगा दी। इसके बाद एमपी में लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (LJCC) ने काम शुरू किया। एसएसवी के सभी ग्राहकों को इसमें मर्ज कर दिया गया। सारा काम पुरानी सोसाइटी की तरह ही होता था। लोगों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे पर नजर सागा ग्रुप ने एमपी में उन जगहों को टारगेट किया, जहां लोगों को सरकारी मुआवजे के तौर पर पैसा मिला। एमपी और यूपी के बुंदेलखंड रीजन में पिछले सालों में सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट आए। ललितपुर में 2012 में बजाज पावर प्लांट की स्थापना हुई। एमपी के टीकमगढ़ में बानसुजारा बांध बना। इसमें लोगों की जमीनें अधिगृहीत हुई। उनके पास पैसे आए। सागा ग्रुप ने सोसाइटियों के जरिए ये पैसा अपनी स्कीम्स में निवेश कराया। अब जानिए, कैसे ठगी के नेटवर्क का खुलासा हुआ एमपी के टीकमगढ़, विदिशा, भिंड, सागर, छतरपुर, दमोह, सागर, कटनी, सीहोर आदि शहरों में जनवरी 2024 से कंपनी ने मैच्योरिटी की राशि का भुगतान बंद कर दिया। पहले लोगों को लोकसभा चुनाव का हवाला दिया गया। इसके बाद अलग-अलग बहाने बनाए गए। जब पैसा नहीं मिला तो लोगों ने थाने पहुंचकर शिकायतें करनी शुरू कीं। अगस्त के महीने में ललितपुर और टीकमगढ़ में एक साथ पुलिस ने पहली बार पीड़ितों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की।​​​​ टीकमगढ़ के तत्कालीन एसपी रोहित काशवानी (अब विदिशा एसपी) बताते हैं कि हमारे पास सागा ग्रुप की सोसाइटी के खिलाफ 100 शिकायती आवेदन आए। इसके आधार पर हमने 5 एफआईआर दर्ज कीं, जिनमें ग्रुप के सीएमडी समीर अग्रवाल समेत 17 लोगों को आरोपी बनाया। इनमें से सोसाइटी के टीकमगढ़ हेड सुबोध रावत समेत 11 आरोपियों को हमने उसी समय गिरफ्तार कर लिया था। हमने आरोपियों की 4 करोड़ रुपए कीमत की प्रॉपर्टी भी जब्त की है। इसमें वाहन और जमीनें हैं। यूपी के ललितपुर में 13 एफआईआर ललितपुर एसपी मोहम्मद मुश्ताक के मुताबिक, कई हजार करोड़ की ठगी सिंडिकेट बनाकर की गई है। अभी तक 13 एफआईआर दर्ज की हैं। इस मामले में ललितपुर के मास्टरमाइंड रवि तिवारी और आलोक जैन को गिरफ्तार किया है। उनके खातों में जमा 54 लाख रुपए फ्रीज कराया गया है। ईडी भी इस मामले की जांच कर रही है। उत्तराखंड पुलिस भी 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है। मास्टरमाइंड और दुबई के अबूधाबी में बैठे समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया जा चुका है। पीड़ितों की जुबानी सुनिए, कंपनी की ठगी की कहानी अनूप रैकवार, टीकमगढ़: मैं ठेले पर सैंडविच बेचता हूं। एलजेसीसी में तीन साल पहले हर दिन 500 रुपए जमा किए थे। मुझे बताया गया था कि मैच्योरिटी पूरी होने पर 7 लाख रुपए मिलेंगे। अब कंपनी भाग गई है। जिस एजेंट ने मुझसे पैसा जमा करवाया था, उसने भी पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। गोटीराम राठौर, भिंड: दबोह के रहने वाले गोटीराम राठौर की खेती की जमीन को सरकार ने हाईवे बनाने के लिए अधिगृहीत किया। इसके एवज में उन्हें 5.50 लाख रुपए का मुआवजा मिला। गोटीराम कहते हैं कि सोसाइटी के एजेंट ने संपर्क किया। बताया कि रकम पांच साल में दोगुनी हो जाएगी यानी 11 लाख रुपए मिलेंगे। फायदे का सौदा देख मैंने पूरी रकम इन्वेस्ट कर दी। सचिन गोयल, विदिशा: गंजबासौदा में फेरी लगाकर किराना सामान बेचने वाले सचिन गोयल जेएलसीसी में रोज 100 रुपए जमा करते थे। उन्होंने इस तरह 36 हजार रुपए जमा किए। एक साल में उन्हें 38 हजार रुपए देने का लालच दिया गया था। अब ब्रांच में ताला लग चुका है। कल यानी 2 दिसंबर को पढ़िए, एमपी का महाठग- पार्ट-2 इस पार्ट में बताएंगे कैसे मटका सट्टा चलाने वाला समीर अग्रवाल बड़ा ठग बना? कैसे उसके साथ चाय बेचने वाला और हम्माल भी करोड़पति हो गए..

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