कानपुर में महिलाओं ने की बछवाछ पूजा:व्रत रखकर गांव-गांव में की गाय-बछड़े की पूजा, संतान के दीर्घायू होने की कामना

कानपुर के घाटमपुर नगर समेत क्षेत्र में बछवाछ का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया गया। क्षेत्र में सुबह से महिलाओं ने स्नान करके व्रत रखा। जिसके बाद महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा कर अपनी संतान के दीर्घायु होने की कामना की। इस पर्व के चलते गांव-गांव में गाय और बछड़े की पूजा की गई है। महिलाओं ने रखा व्रत की पूजा-अर्चना हिंदू पंचाग के अनुसार, भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। गाय-बछड़े की पूजा के लिए समर्पित इस पर्व को लोक भाषा में बछ बारस या ओक द्वादशी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं हर विपत्ति से उनकी रक्षा एवं प्रसन्नता की कामना करने के लिए यह व्रत रखती हैं। महिलाओं ने सूप सजाकर गाय और बछड़े की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। बछवाछ का त्योहार क्यों मनाया जाता है, जाने महत्व प्राचीन काल में राजा ने जनहित के लिए एक तालाब बनवाया था। जिसके आसपास दीवार पक्की करवा दी थी, पर तालाब में पानी नहीं भरा। तब राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पूछा। तो उसने बताया कि अगर आप अपने नाती की बलि दें और यज्ञ करें तो तालाब पानी से भर जायेगा। जिसके चलते राजा ने यज्ञ में अपने बच्चे की बलि दी। बलि देने के बाद तेज बारिश होने लगी। जिससे तालाब पानी से भर गया। राजा ने तालाब का पूजन किया। पीछे उनकी नौकरानी ने गाय के बछड़े को काटकर साग बना दिया। लौटने पर जब राजा रानी ने नौकरानी से पूछा, "बछड़ा कहा गया?" नौकरानी ने कहा- उसकी मैंने सब्जी बना दी है। राजा कहने लगा-पापिन तूने यह क्या कर दिया। राजा ने उस बछड़े के मांस की हांडी को जमीन में गाड़ दिया। शाम को जब गाय वापस आई तो उस जगह को अपने सींगो से खोदने लगी। जहां पर बछड़े के मांस की हांडी गाढ़ी गई थी। जब सींग हांडी में लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला। उस हांडी में से गाय का बछडा और राजा का नाती जीवित निकले। उस दिन से अपने बच्चों की सलामती के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

Oct 28, 2024 - 15:05
 49  501.8k
कानपुर में महिलाओं ने की बछवाछ पूजा:व्रत रखकर गांव-गांव में की गाय-बछड़े की पूजा, संतान के दीर्घायू होने की कामना
कानपुर के घाटमपुर नगर समेत क्षेत्र में बछवाछ का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया गया। क्षेत्र में सुबह से महिलाओं ने स्नान करके व्रत रखा। जिसके बाद महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा कर अपनी संतान के दीर्घायु होने की कामना की। इस पर्व के चलते गांव-गांव में गाय और बछड़े की पूजा की गई है। महिलाओं ने रखा व्रत की पूजा-अर्चना हिंदू पंचाग के अनुसार, भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। गाय-बछड़े की पूजा के लिए समर्पित इस पर्व को लोक भाषा में बछ बारस या ओक द्वादशी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं हर विपत्ति से उनकी रक्षा एवं प्रसन्नता की कामना करने के लिए यह व्रत रखती हैं। महिलाओं ने सूप सजाकर गाय और बछड़े की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। बछवाछ का त्योहार क्यों मनाया जाता है, जाने महत्व प्राचीन काल में राजा ने जनहित के लिए एक तालाब बनवाया था। जिसके आसपास दीवार पक्की करवा दी थी, पर तालाब में पानी नहीं भरा। तब राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पूछा। तो उसने बताया कि अगर आप अपने नाती की बलि दें और यज्ञ करें तो तालाब पानी से भर जायेगा। जिसके चलते राजा ने यज्ञ में अपने बच्चे की बलि दी। बलि देने के बाद तेज बारिश होने लगी। जिससे तालाब पानी से भर गया। राजा ने तालाब का पूजन किया। पीछे उनकी नौकरानी ने गाय के बछड़े को काटकर साग बना दिया। लौटने पर जब राजा रानी ने नौकरानी से पूछा, "बछड़ा कहा गया?" नौकरानी ने कहा- उसकी मैंने सब्जी बना दी है। राजा कहने लगा-पापिन तूने यह क्या कर दिया। राजा ने उस बछड़े के मांस की हांडी को जमीन में गाड़ दिया। शाम को जब गाय वापस आई तो उस जगह को अपने सींगो से खोदने लगी। जहां पर बछड़े के मांस की हांडी गाढ़ी गई थी। जब सींग हांडी में लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला। उस हांडी में से गाय का बछडा और राजा का नाती जीवित निकले। उस दिन से अपने बच्चों की सलामती के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow