जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बड़ा बयान: गोत्र है हिंदुओं की पहचान
बिहार : गौमाता के प्राणों की रक्षा और उन्हें राष्ट्रमाता घोषित करने के लिए चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के तहत बिहार में गौमाता रक्षा संकल्प यात्रा के दौरान आज सुपौल में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने सनातन धर्मियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि गोत्र ही हिंदुओं की असली पहचान है, जिसे …

जगद्गुरु शंकराचार्य का संदेश: गोत्र ही हिंदुओं की पहचान है
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कम शब्दों में कहें तो, बिहार के सुपौल में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि गोत्र ही हिंदुओं की असली पहचान है, जिसे वर्तमान में लोग भूलते जा रहे हैं। उनका यह बयान गौमाता की रक्षा के लिए चल रही राष्ट्रव्यापी आंदोलन के संदर्भ में आया है।
बिहार में चल रही "गौमाता रक्षा संकल्प यात्रा" के दौरान आज आयोजित कार्यक्रम में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्मियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सनातनी का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने गोत्र और इसके महत्व को याद रखे। उनके अनुसार, हमारी पहचान हमारे गोत्र से जुड़ी हुई है, जो हमारी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।
गौमाता का महत्व और उसकी रक्षा
सुपौल में हुए इस कार्यक्रम में भारी संख्या में गौभक्त उपस्थित थे, जिन्होंने शंकराचार्य जी का स्वागत पालकी में बिठाकर किया। उन्होंने गौमाता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि गौमाता 33 कोटि देवी-देवताओं का आश्रय स्थल हैं। वे बोले, जीवन में गुरु और ईश्वर का स्थान सर्वोपरि होता है, लेकिन भोजन बनाने के समय घर की पहली रोटी गौमाता के लिए निकाली जाती है, यह हमारे संस्कारों का प्रतीक है।
शंकराचार्य जी ने आगे कहा कि गौमाता की रक्षा के लिए भगवान नारायण हर युग में अवतरित होते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस पवित्र भूमि पर अब गौमाता का रक्त बहने नहीं दिया जाएगा। गौभक्तों को उन्होंने यह संदेश दिया कि हमें गौमाता के लिए सक्रिय होना होगा और उनकी रक्षा के लिए अपनी आवाज उठानी होगी।
राजनीतिक निष्क्रियता पर कड़ी टिप्पणी
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राजनीतिक निष्क्रियता पर भी अपनी आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि पिछले 78 वर्षों में जनता नेताओं पर विश्वास करती रही है, लेकिन कुछ नेताओं ने अपने निहित स्वार्थों के कारण गौकशी को बढ़ावा दिया। अब समय आ गया है कि गौमाता के प्राणों की रक्षा के लिए हम मतदान करें। इससे न केवल गौमाता की सुरक्षा होगी, बल्कि हम गौकशी के पाप से भी बच सकेंगे।
उन्होंने उपस्थित गौभक्तों से दाहिना हाथ उठाकर मतदान करने का संकल्प दिलवाया, जिससे गौमाता की रक्षा को और मजबूती मिले।
गौमाता की आराधना का पावन अनुभव
कार्यक्रम के बाद, शंकराचार्य जी ने फारबिसगंज का दौरा किया, जहां भक्तों ने उनके स्वागत में पुष्पवर्षा की। अनेक स्थानों पर भक्तों ने शंकराचार्य जी की चरण-पादुका की पूजा की और अपने जीवन को धन्य माना।
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य प्रमुख हस्तियों में प्रत्यक्चैतन्यमुकुंदानंद गिरी जी महाराज, श्रीनिधिरव्यानंद दिव्यानंद सागर जी, देवेंद्र पाण्डेय, राजीव झा और रामकुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम ने गौमाता की रक्षा की भावना को और मजबूत किया है, जो हिंदू संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी परंपराओं का सम्मान करें और उन्हें जीवित रखें।
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