मेरे निकाले पत्थर से रामलला बने, मजदूरी तक नहीं मिली:अयोध्या जाना सपना; सांसद ने कहा था- PM से मिलाएंगे, एयरपोर्ट बुलाकर मुकर गए

अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को 10 महीने हो चुके हैं। रामलला की प्रतिमा कर्नाटक की कृष्णशिला से बनी है। इसे मैसूरु के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। रामलला की मूर्ति बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी तारीफ की थी। गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें सम्मानित भी किया था। रामलला की प्रतिमा बनाने के लिए अरुण योगीराज की जितनी चर्चा हुई, उतनी ही गुमनामी में उस प्रतिमा के लिए पत्थर निकालने वाले श्रीनिवास नटराज हैं। उनका आरोप है कि उन्हें न तो पहचान मिली, न काम की मजदूरी। श्रीनिवास ने कहा कि वे अब तक अयोध्या नहीं गए हैं। उन्हें पहले तो प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं बुलाया गया। बाद में मैसूरु के तत्कालीन भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा ने रामलला के दर्शन कराने का वादा किया, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। श्रीनिवास ने रामलला की प्रतिमा के लिए चट्टान निकालने से लेकर उसे मंदिर ट्रस्ट को सौंपने तक की पूरी कहानी बताई। उन्होंने इस दौरान 5 दावे किए। इनकी पड़ताल के लिए भास्कर रिपोर्टर ने पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय समेत तीन लोगों से बात भी की। पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा और चंपत राय ने कुछ सवालों के जवाब के बाद इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... पहला दावा: 'चेन्नई से फोन आया, नीला पत्थर ढूंढने को कहा गया था' ​श्रीनिवास एच. डी. कोटे से भास्कर रिपोर्टर को उस प्लॉट पर लेकर गए, जहां से उन्होंने चट्टान निकाली थी। यह मैसूरु से ​​​​​​22 किलोमीटर दूर गुज्जे गौदानापुरा में मेन रोड से करीब 500 मीटर अंदर है। खेत में घास-फूस के बीच बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे। ये उसी कृष्णशिला के टुकड़े थे, जिसके एक हिस्से पर अरुण योगीराज ने रामलला की प्रतिमा उकेरी थी। श्रीनिवास को ठीक से तारीख या महीना तो याद नहीं, पर उसने बताया, 'दिसंबर 2022 में एक दिन गांव के किसान कृष्णन्ना ने मुझे बुलाया और बताया कि यह जमीन उनके पिता रामदास की है। जमीन के नीचे बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं, जिससे खेती में दिक्कत हो रही है। कृष्णन्ना ने चट्टानों को निकालकर जमीन समतल करने के लिए कहा था।' ​श्रीनिवास ने कहा, 'कुछ दिनों बाद 27 जनवरी, 2023 को मुझे सुरेंद्र विश्वकर्मा का फोन आया। सुरेंद्र दो सदस्यीय उस पैनल के अध्यक्ष थे, जिसे रामलला की प्रतिमा के लिए पत्थर तलाशने का काम सौंपा गया था। वो तब चेन्नई में थे।' 'उन्होंने मुझसे कहा कि अयोध्या में राम विग्रह के लिए नीले रंग का पत्थर चाहिए। उन्होंने खासतौर पर एच. डी. कोटे में पत्थरों की तलाश करने को कहा था क्योंकि यहां के पत्थर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने के लिए मशहूर हैं। आस-पास के कई मंदिरों में इसी पत्थर की प्रतिमाएं स्थापित हैं।' पड़ताल: अयोध्या में भास्कर रिपोर्टर ने मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बात की। उन्होंने बताया कि रामलला की प्रतिमा के लिए पत्थर चुनने से पहले मंदिर ट्रस्ट ने धर्माचार्यों से राय ली थी कि मूर्ति किस तरह की होनी चाहिए। धर्माचार्यों ने बताया कि रामलला नीले रंग के हैं। इसलिए उनकी मूर्ति नीले, काले या सफेद रंग के पत्थर से बननी चाहिए। चंपत राय ने कहा कि सुरेंद्र विश्वकर्मा नाम का कोई व्यक्ति मंदिर ट्रस्ट में नहीं है। हालांकि, श्रीनिवास ने भास्कर रिपोर्टर को सुरेंद्र विश्वकर्मा के साथ अपनी कुछ तस्वीरें दिखाईं। उनका मोबाइल नंबर भी दिया। सुरेंद्र विश्वकर्मा ने फोन पर बातचीत में बताया कि वे मंदिर ट्रस्ट के सदस्य नहीं है। न ही ट्रस्ट से उनका कोई संबंध है। मंदिर ट्रस्ट के गोपाल नाटेकर ने पत्थर के लिए उनसे संपर्क किया था। सुरेंद्र विश्वकर्मा ने कहा, 'मैं बेंगलुरु का रहने वाला हूं। गोपाल नाटेकर को गुलबर्गा के मानिया बडिगेरे ने मेरे बारे में बताया था। गोपाल नाटेकर ने मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से मेरी पहचान कराई थी। मैं एक शिल्प तेगन्यारू (स्टोन सर्चिंग एक्सपर्ट) हूं। मैंने बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से मूर्तिकला से मास्टर्स की पढ़ाई की है। मैं पारंपरिक मूर्तिकारों के परिवार से आता हूं।' 'ट्रस्ट के कहने पर हम कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में मजबूत और अच्छी क्वालिटी के पत्थर खोज रहे थे। मैं श्रीनिवास को पिछले 20 साल से जानता हूं। मैंने उससे नीले पत्थर ढूंढने को कहा था।' दूसरा दावा- 'बिना एडवांस दिए सैंपल ले गए, एग्रीमेंट भी नहीं किया' श्रीनिवास के मुताबिक, 'मैंने सुरेंद्र विश्वकर्मा को सैंपल देखने के लिए बुलाया। वे पैनल सदस्य मनिया बडिगेरे के साथ फ्लाइट लेकर चेन्नई से मैसूरु पहुंचे। मैं उन्हें रामदास के प्लॉट पर लेकर आया। उन्होंने सैंपल देखते ही हां कर दी। फिर बिना कोई एडवांस दिए सैंपल लेकर चले गए। उन्होंने कोई एग्रीमेंट भी नहीं किया।' 'पहले मुझे थोड़ा शक हुआ। फिर सोचा पुण्य का काम है। मुझे सैंपल सिलेक्ट होने की बहुत उम्मीद भी नहीं थी, क्योंकि सुरेंद्र विश्वकर्मा ने कहा था कि देश भर से 8 सैंपल मंगाए हैं। इसमें कोई एक अप्रूव होगा। सौभाग्य से मेरे दिए सैंपल को मंजूरी मिल गई।' श्रीनिवास ने बताया, 'सैंपल सिलेक्ट होने के बाद अयोध्या मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी गोपालजी संतों की एक टीम के साथ यहां पहुंचे। उन्होंने पूजा-पाठ की और खुदाई के लिए हरी झंडी दी। मैंने अपने मजदूरों के साथ करीब 8-9 दिन कड़ी मेहनत के बाद चट्टान निकाली। इस दौरान मंदिर ट्रस्ट के लोग यहीं रुके थे।' 'मैंने चट्टान से भगवान राम के लिए 9 फीट 8 इंच और मां सीता के लिए 7 फीट 5 इंच और 4 फीट चौड़ी दो शिलाएं काटीं। 8 फरवरी, 2023 को दोनों शिलाओं को ट्रक पर लादकर अयोध्या भेजा गया। दो महीने बाद भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमाओं के लिए तीन और शिलाएं बनवाई गई थीं।' पड़ताल: चंपत राय ने कहा, 'रामलला की प्रतिमा के लिए नेपाल और कर्नाटक की दो कृष्णशिलाओं और राजस्थान के मकराना का सफेद संगमरमर चुना गया था। तीनों पत्थरों को अयोध्या मंगाया गया। नेपाल की चट्टान का रंग नीला था। पहले मंदिर ट्रस्

Dec 2, 2024 - 05:05
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मेरे निकाले पत्थर से रामलला बने, मजदूरी तक नहीं मिली:अयोध्या जाना सपना; सांसद ने कहा था- PM से मिलाएंगे, एयरपोर्ट बुलाकर मुकर गए
अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को 10 महीने हो चुके हैं। रामलला की प्रतिमा कर्नाटक की कृष्णशिला से बनी है। इसे मैसूरु के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। रामलला की मूर्ति बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी तारीफ की थी। गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें सम्मानित भी किया था। रामलला की प्रतिमा बनाने के लिए अरुण योगीराज की जितनी चर्चा हुई, उतनी ही गुमनामी में उस प्रतिमा के लिए पत्थर निकालने वाले श्रीनिवास नटराज हैं। उनका आरोप है कि उन्हें न तो पहचान मिली, न काम की मजदूरी। श्रीनिवास ने कहा कि वे अब तक अयोध्या नहीं गए हैं। उन्हें पहले तो प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं बुलाया गया। बाद में मैसूरु के तत्कालीन भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा ने रामलला के दर्शन कराने का वादा किया, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। श्रीनिवास ने रामलला की प्रतिमा के लिए चट्टान निकालने से लेकर उसे मंदिर ट्रस्ट को सौंपने तक की पूरी कहानी बताई। उन्होंने इस दौरान 5 दावे किए। इनकी पड़ताल के लिए भास्कर रिपोर्टर ने पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय समेत तीन लोगों से बात भी की। पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा और चंपत राय ने कुछ सवालों के जवाब के बाद इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... पहला दावा: 'चेन्नई से फोन आया, नीला पत्थर ढूंढने को कहा गया था' ​श्रीनिवास एच. डी. कोटे से भास्कर रिपोर्टर को उस प्लॉट पर लेकर गए, जहां से उन्होंने चट्टान निकाली थी। यह मैसूरु से ​​​​​​22 किलोमीटर दूर गुज्जे गौदानापुरा में मेन रोड से करीब 500 मीटर अंदर है। खेत में घास-फूस के बीच बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे। ये उसी कृष्णशिला के टुकड़े थे, जिसके एक हिस्से पर अरुण योगीराज ने रामलला की प्रतिमा उकेरी थी। श्रीनिवास को ठीक से तारीख या महीना तो याद नहीं, पर उसने बताया, 'दिसंबर 2022 में एक दिन गांव के किसान कृष्णन्ना ने मुझे बुलाया और बताया कि यह जमीन उनके पिता रामदास की है। जमीन के नीचे बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं, जिससे खेती में दिक्कत हो रही है। कृष्णन्ना ने चट्टानों को निकालकर जमीन समतल करने के लिए कहा था।' ​श्रीनिवास ने कहा, 'कुछ दिनों बाद 27 जनवरी, 2023 को मुझे सुरेंद्र विश्वकर्मा का फोन आया। सुरेंद्र दो सदस्यीय उस पैनल के अध्यक्ष थे, जिसे रामलला की प्रतिमा के लिए पत्थर तलाशने का काम सौंपा गया था। वो तब चेन्नई में थे।' 'उन्होंने मुझसे कहा कि अयोध्या में राम विग्रह के लिए नीले रंग का पत्थर चाहिए। उन्होंने खासतौर पर एच. डी. कोटे में पत्थरों की तलाश करने को कहा था क्योंकि यहां के पत्थर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने के लिए मशहूर हैं। आस-पास के कई मंदिरों में इसी पत्थर की प्रतिमाएं स्थापित हैं।' पड़ताल: अयोध्या में भास्कर रिपोर्टर ने मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बात की। उन्होंने बताया कि रामलला की प्रतिमा के लिए पत्थर चुनने से पहले मंदिर ट्रस्ट ने धर्माचार्यों से राय ली थी कि मूर्ति किस तरह की होनी चाहिए। धर्माचार्यों ने बताया कि रामलला नीले रंग के हैं। इसलिए उनकी मूर्ति नीले, काले या सफेद रंग के पत्थर से बननी चाहिए। चंपत राय ने कहा कि सुरेंद्र विश्वकर्मा नाम का कोई व्यक्ति मंदिर ट्रस्ट में नहीं है। हालांकि, श्रीनिवास ने भास्कर रिपोर्टर को सुरेंद्र विश्वकर्मा के साथ अपनी कुछ तस्वीरें दिखाईं। उनका मोबाइल नंबर भी दिया। सुरेंद्र विश्वकर्मा ने फोन पर बातचीत में बताया कि वे मंदिर ट्रस्ट के सदस्य नहीं है। न ही ट्रस्ट से उनका कोई संबंध है। मंदिर ट्रस्ट के गोपाल नाटेकर ने पत्थर के लिए उनसे संपर्क किया था। सुरेंद्र विश्वकर्मा ने कहा, 'मैं बेंगलुरु का रहने वाला हूं। गोपाल नाटेकर को गुलबर्गा के मानिया बडिगेरे ने मेरे बारे में बताया था। गोपाल नाटेकर ने मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से मेरी पहचान कराई थी। मैं एक शिल्प तेगन्यारू (स्टोन सर्चिंग एक्सपर्ट) हूं। मैंने बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से मूर्तिकला से मास्टर्स की पढ़ाई की है। मैं पारंपरिक मूर्तिकारों के परिवार से आता हूं।' 'ट्रस्ट के कहने पर हम कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में मजबूत और अच्छी क्वालिटी के पत्थर खोज रहे थे। मैं श्रीनिवास को पिछले 20 साल से जानता हूं। मैंने उससे नीले पत्थर ढूंढने को कहा था।' दूसरा दावा- 'बिना एडवांस दिए सैंपल ले गए, एग्रीमेंट भी नहीं किया' श्रीनिवास के मुताबिक, 'मैंने सुरेंद्र विश्वकर्मा को सैंपल देखने के लिए बुलाया। वे पैनल सदस्य मनिया बडिगेरे के साथ फ्लाइट लेकर चेन्नई से मैसूरु पहुंचे। मैं उन्हें रामदास के प्लॉट पर लेकर आया। उन्होंने सैंपल देखते ही हां कर दी। फिर बिना कोई एडवांस दिए सैंपल लेकर चले गए। उन्होंने कोई एग्रीमेंट भी नहीं किया।' 'पहले मुझे थोड़ा शक हुआ। फिर सोचा पुण्य का काम है। मुझे सैंपल सिलेक्ट होने की बहुत उम्मीद भी नहीं थी, क्योंकि सुरेंद्र विश्वकर्मा ने कहा था कि देश भर से 8 सैंपल मंगाए हैं। इसमें कोई एक अप्रूव होगा। सौभाग्य से मेरे दिए सैंपल को मंजूरी मिल गई।' श्रीनिवास ने बताया, 'सैंपल सिलेक्ट होने के बाद अयोध्या मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी गोपालजी संतों की एक टीम के साथ यहां पहुंचे। उन्होंने पूजा-पाठ की और खुदाई के लिए हरी झंडी दी। मैंने अपने मजदूरों के साथ करीब 8-9 दिन कड़ी मेहनत के बाद चट्टान निकाली। इस दौरान मंदिर ट्रस्ट के लोग यहीं रुके थे।' 'मैंने चट्टान से भगवान राम के लिए 9 फीट 8 इंच और मां सीता के लिए 7 फीट 5 इंच और 4 फीट चौड़ी दो शिलाएं काटीं। 8 फरवरी, 2023 को दोनों शिलाओं को ट्रक पर लादकर अयोध्या भेजा गया। दो महीने बाद भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमाओं के लिए तीन और शिलाएं बनवाई गई थीं।' पड़ताल: चंपत राय ने कहा, 'रामलला की प्रतिमा के लिए नेपाल और कर्नाटक की दो कृष्णशिलाओं और राजस्थान के मकराना का सफेद संगमरमर चुना गया था। तीनों पत्थरों को अयोध्या मंगाया गया। नेपाल की चट्टान का रंग नीला था। पहले मंदिर ट्रस्ट उसी से प्रतिमा बनवाना चाहता था, लेकिन उसमें कुछ दरार और अन्य कमियों के कारण मूर्ति नहीं बनाई जा सकी।' 'कर्नाटक और राजस्थान के पत्थरों की वैज्ञानिक जांच कराई गई, जिसमें दोनों उम्र और मजबूती के हिसाब से सही पाए गए। इसके बाद ट्रस्ट ने देश के तीन प्रसिद्ध मूर्तिकारों- सत्यनारायण पांडेय, अरुण योगीराज और गणेश भट्ट को प्रतिमा बनाने के लिए चुना।' चंपत राय के मुताबिक, 'पुणे के मूर्तिकार वासुदेव कामत ने रामलला के 5 साल के स्वरूप का चित्र बनाया था। इसे पसंद करने के बाद मिट़्टी से रामलला की मूर्तियां बनीं। इसे हरी झंडी मिलने के बाद करीब 9 महीने की कड़ी मेहनत के बाद मूर्तिकार अरुण योगीराज और गणेश भट्ट ने कर्नाटक की कृष्णशिला से दो अलग-अलग मूर्तियां बनाईं। सत्यनारायण पांडेय ने संगमरमर की मूर्ति बनाई थी।' तीसरा दावा- 'लोगों से दान में रुपए मिले, मंदिर ट्रस्ट ने कुछ नहीं दिया' श्रीनिवास ने आरोप लगाया कि उसे मंदिर ट्रस्ट या सरकार की तरफ से कभी कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। उसने बताया, 'मैंने प्रोजेक्ट में अपनी जेब से पैसे खर्च किए। मजदूरों को 80 हजार रुपए दिए। अकेले जेसीबी पर 60 हजार रुपए खर्च करने पड़े। ट्रक पर लोडिंग के लिए क्रेन को 16 हजार रुपए दिए। मैंने सोचा पुण्य का काम है। पैसे पर कभी ध्यान नहीं दिया।' 'खुदाई के दौरान मुझे कोई मदद नहीं मिली। सामाजिक तौर पर कुछ लोग आगे आए और मदद की। बेंगलुरु के श्रीनाथ नाम के व्यक्ति ने 1 लाख 75 हजार रुपए दिए। वीरा कन्नडगिरा गर्जाने के अध्यक्ष मंजूनाथ ने चेक के माध्यम से 80 हजार रुपए दिए। कुछ और लोगों के जरिए 35 हजार रुपए कैश मिले।' श्रीनिवास के मुताबिक, 'रामलला की प्रतिमा की जानकारी बाहर आई तो खुदाई वाली जगह और चट्टान को देखने के लिए विजिटर्स की भारी भीड़ उमड़ने लगी। तब भी मैंने 5 एकड़ जमीन में पार्किंग की व्यवस्था करवाई थी।' पड़ताल: सुरेंद्र विश्वकर्मा के मुताबिक, 'श्रीनिवास का कोई रकम बकाया नहीं है। मुझे यह नहीं पता कि कितने में लेन-देन हुई थी, लेकिन पत्थर ट्रक में लोड होने के तुरंत बाद ही ​​बेंगलुरु में रहने वाले एक बिजनेसमैन ने उसे रुपए दिए थे।' भास्कर रिपोर्टर ने जब चंपत राय से इस पर सवाल किया तो उन्होंने श्रीनिवास से पैसों के लेन-देन पर कुछ नहीं बताया। उन्होंने कहा, 'रामलला की प्रतिमा के लिए नेपाल के लोग वहां की शिला दान के रूप में लेकर आए थे। मूर्ति बनाने वाले तीनों मूर्तिकारों को 75-75 लाख रुपए दिए गए थे। अंत में अरुण योगीराज की बनाई प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठा के लिए चुनी गई।' चंपत राय ने इन सवालों का जवाब देने से मना कर दिया- चौथा दावा- '80 हजार जुर्माना भरा, BJP सांसद ने कहा था- क्षतिपूर्ति करवा देंगे' प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मीडिया में खबरें आई थीं की रामलला की प्रतिमा अवैध तरीके से खोदी चट्टान से बनी है। इसके लिए ​​​​​ माइन्स और जियोलॉजी डिपार्टमेंट ने श्रीनिवास पर 80 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया था। श्रीनिवास ने कहा, 'जुर्माने की बात तो सही है, लेकिन वह सिर्फ रामलला की प्रतिमा नहीं, दूसरी चट्टानों की खुदाई के लिए भी लगा था। मैं शुरू से राजनीति का शिकार हुआ। हर लेवल पर पॉलिटिक्स की गई। मैंने 25 जुलाई, 2022 को 80 हजार का जुर्माना भरा था।' 'प्राण-प्रतिष्ठा के बाद तत्कालीन भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा और चामुंडी के JDS विधायक जीटी देवेगौड़ा ने वादा किया वे मुझे जुर्माने की राशि क्षतिपूर्ति करवाने में मदद करेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। बेंगलुरु के एक रामभक्त ने मुझे 1 लाख 15 हजार रुपए दिए। नेताओं के वादे कभी पूरे नहीं हुए।' पड़ताल: पूर्व भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा ने अपने ऊपर लगाए आरोपों पर कहा, 'श्रीनिवास पर सिर्फ रामदास की जमीन ही नहीं, बल्कि अन्य जगहों से अवैध रूप से चट्टान खोदने के लिए 80 हजार रुपए का जुर्माना लगा था। उस समय माइन्स और जियोलॉजी डिपार्टमेंट को अयोध्या में रामलला की मूर्ति के लिए खुदाई की जानकारी नहीं थी।' 'मीडिया में जब श्रीनिवास पर जुर्माना लगाने की खबर आई, तो बेंगलुरु के एक डोनर ने उसे 1लाख 15 हजार रुपए कैश दिए। जब श्रीनिवास को वो रुपए मिल ही गए तो दोबारा रुपए देने का सवाल ही नहीं उठता। मंदिर ट्रस्ट या मेरे लिए यह बहुत बड़ी रकम नहीं है। अगर डोनर ने श्रीनिवास की मदद नहीं की होती तो मैं उसकी मदद जरूर करता।' पांचवां दावा- 'अयोध्या भेजने का वादा किया, मैसूरु में घंटों इंतजार के बाद घर लौटे' श्रीनिवास ने बताया, 'जिस पत्थर ने लगभग 2000 किलोमीटर दूर अयोध्या जाकर हमें गर्व महसूस कराया, हम अब तक उससे बने रामलला के दर्शन नहीं कर पाए हैं। मैं चाहता था कि सरकार हमारे काम को सम्मानित करे, लेकिन हमें तो प्राण-प्रतिष्ठा में भी नहीं बुलाया गया था। 22 जनवरी के दिन हमने खुदाई स्थल पर पूजा की थी।' 'तत्कालीन भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा ने प्राण-प्रतिष्ठा के लगभग 20 दिन बाद कहा कि हमें अयोध्या ले जाएंगे। उन्होंने हमें गुज्जे गौदानापुरा से मैसूरु बुलाया और कहा कि वहां से एक कार हमें बेंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचा देगी। सांसद के कहने पर हम मैसूरु पहुंच गए। वहां घंटों इंतजार भी किया, लेकिन कोई कार लेने नहीं आई। प्रताप सिम्हा ने आखिरी समय में बहाना बनाकर टाल दिया। हमको वापस घर लौटना पड़ा।' 'अयोध्या जाना आज भी हमारे लिए एक सपने जैसा है। पूर्व सांसद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करवाने का भी वादा किया था। कहा था कि खुदाई वाली जगह पर मंदिर भी बनवाएंगे। सब वादे झूठे निकले। जमीन मालिक रामदास तो मंदिर के लिए आज भी अपनी 4 गुंठा जमीन (4356 स्क्वायर फीट) दान देने के लिए तैयार हैं।' पड़ताल: प्रताप सिम्हा ने इन आरोपों पर कहा, 'हम यादगार के तौर पर उस जमीन पर राम मंदिर बनाने की योजना बना रहे हैं। हमने वहां पत्थर का एक खंड भी रखवाया था, जहां से अयोध्या के लिए चट्टान की खुदाई की गई थी।' पूर्व सांसद ने भास्कर रिपोर्टर से फोन पर बातचीत में कहा कि वे इस मुद्दे पर और कुछ भी बात नहीं करना चाहते हैं। मैसूरु से दो बार के सांसद प्रताप सिम्हा पिछले साल संसद में हुई सुरक्षा चूक मामले के बाद सुर्खियों में आए थे। 13 दिसंबर 2023 को नए संसद भवन की विजिटर्स गैलरी से बैठे 2 युवकों ने अपने जूतों से छिपा पीला स्प्रे फैलाकर नारेबाजी की थी। ये लोग 5 लेयर की सुरक्षा तोड़कर लोकसभा में घुसे थे। जांच में पता चला था कि प्रताप सिम्हा के कार्यालय से दोनों युवकों को पास जारी किए गए थे। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रताप सिम्हा का टिकट काटकर पूर्ववर्ती मैसूरु शाही परिवार के प्रमुख मुखिया यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार को टिकट दे दिया था, जो बाद में चुनाव जीत गए। रामलला से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... बच्चों की 2000 फोटो देखीं, तब बनाई रामलला की प्रतिमा:रोज 18 घंटे काम, 2 घंटे की नींद; अरुण योगीराज की पूरी कहानी 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की जिस प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा हुई, वो अरुण योगीराज ने बनाई है। इस कहानी का पहला सिरा जनवरी, 2023 तक जाता है। राम मंदिर ट्रस्ट ने रामलला की प्रतिमा बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। मई, 2023 में अरुण दिल्ली गए, प्रजेंटेशन दिया और सिलेक्ट हो गए। दैनिक भास्कर मैसूरु में उनके घर पहुंचा और फैमिली से बात की। पूरी खबर पढ़ें... अयोध्या में रामलला के 3 मूर्तिकारों को 75-75 लाख मिले: ट्रस्ट ने 18% GST भी दिया; अब तक 2 करोड़ 85 लाख भक्तों ने किए दर्शन श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की मूर्ति बनाने वाले तीनों मूर्तिकारों को 75-75 लाख रुपए 18% GST के साथ ट्रस्ट ने दिया है। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अब तक 2 करोड़ 85 लाख भक्त रामलला के दर्शन कर चुके हैं। यह जानकारी ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने दी। उन्होंने बताया कि अयोध्या में राम मंदिर के फर्स्ट फ्लोर पर टाइटेनियम का राम दरबार बनाया जाएगा। यहां लगने वाली मुख्य मूर्ति सफेद संगमरमर की होगी। पूरी खबर पढ़ें...​​​​​​​

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