यूपी में 5 महीने में योगी ने पलटी बाजी:2027 के लिए भाजपा को मिला बूस्टर; क्या सरकारी मशीनरी ने जिताया…सवाल-जवाब में रिजल्ट का एनालिसिस

5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में यूपी की इन 9 विधानसभा सीटों में से 7 पर सपा लीड कर ही थी। लेकिन उपचुनाव के नतीजे पूरी तरह बदल गए। इन 9 सीटों में से 7 सीटें इस बार भाजपा ने जीत लीं, सपा केवल 2 जीत पाई। 5 महीनों में ऐसा क्या हुआ? इन नतीजों से क्या 2027 में भाजपा की राह आसान होगी… ऐसे ही सवालों के जवाब से समझिए यूपी उपचुनाव का रिजल्ट…। यूपी में योगी ने क्या लोकसभा की हार का बदला ले लिया है? लोकसभा में बहुमत का ताला उत्तर प्रदेश की चाबी से खुलता है, यह सब जानते हैं। 5 महीने पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 2019 से 29 कम हो गईं। योगी से सवाल हुए, उनकी लीडरशिप पर सवाल उठे। तभी से योगी ने अपनी वर्किंग और स्ट्रैटजी दोनों में बड़े पैमाने पर बदलाव किए। कार्यकर्ताओं से जुड़ाव बढ़ाया और अफसरशाही को स्पीडी रिजल्ट देने वाला बनाया। यह सही है कि योगी की छवि को जो डेंट लोकसभा चुनाव में लगा था, उसे उन्होंने चैलेंज के रूप में लिया। इसीलिए उन्होंने दो सबसे कठिन सीटों की जिम्मेदारी अपने पास रखी। 3 महीने पहले ही हर सीट की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों को दे दी और लगातार रिव्यू करते रहे। उपचुनाव के इन नतीजों को क्या 2027 के सेमीफाइनल के रूप देखा जाना चाहिए? राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। लेकिन यह तय है कि इन नतीजों से माहौल भाजपा का बनेगा। लोकसभा के नतीजों के बाद जिस तरह सपा में नई ऊर्जा आ गई थी, वही एनर्जी अब भाजपा में दिखाई देगी। लोकसभा से सबक लेकर योगी सरकार ने नौकरी, पर्चा लीक, अफसरशाही जैसे मसलों पर सख्त फैसले लिए हैं। आगे इनमें तेजी आएगी, जिससे माहौल बनेगा। इसका फायदा भाजपा को 2027 में मिल सकता है। इस जीत से क्या राष्ट्रीय राजनीति में योगी का कद बढ़ेगा? निश्चित तौर पर। संगठित पार्टी होने के बावजूद भाजपा में कई ध्रुव हैं। चुनाव के दौरान योगी ने नई लाइन दी- ‘बंटेंगे तो कटेंगे’...। बाकी भाजपा नेताओं ने अलग-अलग शब्दों में इसका इस्तेमाल किया। महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान 8 नवंबर को पीएम मोदी ने भी एक हैं तो सेफ हैं का नारा दिया। यूपी और महाराष्ट्र की जीत में इस लाइन को अहम माना जा रहा है। हो सकता है, यह लाइन आगे जाकर पार्टी में बड़ी लकीर खींचने का काम करे। 2027 और 2029 में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ को धार मिलने वाली है? अभी तो ऐसा ही लग रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में जातिवादी राजनीति के कारण पार्टी को कितना नुकसान हुआ, भाजपा के पास इसका पक्का मैथमेटिक्स है। इसीलिए ‘जाति’ का कांटा निकालने के लिए ‘धर्म’ के कांटे का आगे ज्यादा इस्तेमाल होगा, इसकी संभावना अधिक है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में संघ भाजपा के साथ नहीं था, इस चुनाव में संघ ने पूरी ताकत लगाई? योगी RSS की पसंद माने जाते हैं, यह सब जानते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान संघ की सक्रियता कम हुई थी, इसके भी तमाम कारण गिनाए जाते रहे हैं। अलबत्ता, इस चुनाव में संघ ने पूरी ताकत लगाई। संघ ने मथुरा में अपनी बैठक के दौरान योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे पर मुहर भी लगाई। उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के लगातार आरोप लगे। इसमें कितनी सच्चाई है? उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का प्रचलन बहुत पुराना है। सरकार किसी की भी रही हो, एक सीमा तक यह होता है। लेकिन रिजल्ट केवल इसी कारण ऐसे आए हैं, यह कहना सही नहीं होगा। क्योंकि यदि ऐसा होता तब तो पिछले लोकसभा चुनाव में भी यह हो सकता था। तब भी तो योगी ही मुख्यमंत्री थे और भाजपा की ही सरकार थी। लोकसभा चुनाव में जिस दलित वोटर ने सपा को वोट किया था, क्या इस बार वह छिटक गया? संविधान और आरक्षण बचाओ नारे के कारण लोकसभा चुनाव में दलित वोटर ने एकमुश्त सपा-कांग्रेस को वोट किया। इस बार ये दोनों चुनावी मुद्दे नहीं रहे, इसलिए दलित वोटर बंट गया। उपचुनाव में चंद्रशेखर ‘रावण’ और बसपा की तरफ भी थोड़ा वोटर चला गया, जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशियों को हुआ। 9 में से किस सीट का नतीजा सबसे चौंकाने वाला रहा? सबसे ज्यादा चौंकाया कुंदरकी ने। यहां की स्ट्रैटजी से तय था कि भाजपा जीतेगी लेकिन सपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो जाएगी, यह किसी ने नहीं सोचा था। कारण, यहां 60% मुस्लिम वोटर हैं। सपा को एकतरफा वोट देने वाली मुस्लिम बिरादरी इस तरह बिखर जाएगी, इसका आश्चर्य है। नतीजों के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में योगी के बयान में इसका जवाब मिलता है। उन्होंने कहा- ‘जो भूले भटके रहे होंगे, उन सबमें किसी को अपना गोत्र याद आया होगा, किसी को अपनी जाति।’ अखिलेश की करहल और कानपुर की सीसामऊ सीट सपा ने जीती। क्या यहां भाजपा की रणनीति काम नहीं आई? अखिलेश यादव के सांसद बनने से करहल सीट खाली हुई। यादव परिवार की यह परंपरागत सीट है। भाजपा ने यहां तगड़ी रणनीति बनाते हुए यादव VS यादव कार्ड खेला। पार्टी ने अनुजेश यादव को उतारा। अनुजेश रिश्ते में अखिलेश के बहनोई लगते हैं। अनुजेश लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा में आए। यादव में एक उपजाति होती है ‘घोसी’। अनुजेश इसी से आते हैं। कुल यादवों में 65% घोसी हैं। सपा प्रत्याशी तेजप्रताप उपजाति ‘कमेरिया’ से आते हैं। इस बार यादव बंट गए। यही कारण है कि सपा की जीत का मार्जिन 67 हजार से घटकर सिर्फ 14 हजार पर आ गया। बसपा का परफार्मेंस इस बार भी खराब रहा। यूपी में पार्टी का क्या भविष्य दिखता है? केवल 2 सीट पर बसपा प्रत्याशी अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे। ये सीटें हैं- कटहरी और मझवां। 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। 2022 के विधानसभा चुनाव में एकमात्र विधायक बना। कार्यशैली और रणनीति इसी तरह रही तो आने वाले दिनों में स्थिति और खराब होना तय है। बड़ी संख्या में वोट काटकर क्या आजाद समाज पार्टी और AIMIM के प्रत्याशियों ने सपा को हरा दिया? मीरापुर सीट पर औवेसी और चंद्रशेखर की पार्टी ने सपा प्रत्याशी सुम्बुल राणा के समीकरण बिगाड़ दिए। यहां दोनों पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों को 41 हजार वोट मिले। जबकि यहां 30,796 वोटों

Nov 24, 2024 - 06:05
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यूपी में 5 महीने में योगी ने पलटी बाजी:2027 के लिए भाजपा को मिला बूस्टर; क्या सरकारी मशीनरी ने जिताया…सवाल-जवाब में रिजल्ट का एनालिसिस
5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में यूपी की इन 9 विधानसभा सीटों में से 7 पर सपा लीड कर ही थी। लेकिन उपचुनाव के नतीजे पूरी तरह बदल गए। इन 9 सीटों में से 7 सीटें इस बार भाजपा ने जीत लीं, सपा केवल 2 जीत पाई। 5 महीनों में ऐसा क्या हुआ? इन नतीजों से क्या 2027 में भाजपा की राह आसान होगी… ऐसे ही सवालों के जवाब से समझिए यूपी उपचुनाव का रिजल्ट…। यूपी में योगी ने क्या लोकसभा की हार का बदला ले लिया है? लोकसभा में बहुमत का ताला उत्तर प्रदेश की चाबी से खुलता है, यह सब जानते हैं। 5 महीने पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 2019 से 29 कम हो गईं। योगी से सवाल हुए, उनकी लीडरशिप पर सवाल उठे। तभी से योगी ने अपनी वर्किंग और स्ट्रैटजी दोनों में बड़े पैमाने पर बदलाव किए। कार्यकर्ताओं से जुड़ाव बढ़ाया और अफसरशाही को स्पीडी रिजल्ट देने वाला बनाया। यह सही है कि योगी की छवि को जो डेंट लोकसभा चुनाव में लगा था, उसे उन्होंने चैलेंज के रूप में लिया। इसीलिए उन्होंने दो सबसे कठिन सीटों की जिम्मेदारी अपने पास रखी। 3 महीने पहले ही हर सीट की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों को दे दी और लगातार रिव्यू करते रहे। उपचुनाव के इन नतीजों को क्या 2027 के सेमीफाइनल के रूप देखा जाना चाहिए? राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। लेकिन यह तय है कि इन नतीजों से माहौल भाजपा का बनेगा। लोकसभा के नतीजों के बाद जिस तरह सपा में नई ऊर्जा आ गई थी, वही एनर्जी अब भाजपा में दिखाई देगी। लोकसभा से सबक लेकर योगी सरकार ने नौकरी, पर्चा लीक, अफसरशाही जैसे मसलों पर सख्त फैसले लिए हैं। आगे इनमें तेजी आएगी, जिससे माहौल बनेगा। इसका फायदा भाजपा को 2027 में मिल सकता है। इस जीत से क्या राष्ट्रीय राजनीति में योगी का कद बढ़ेगा? निश्चित तौर पर। संगठित पार्टी होने के बावजूद भाजपा में कई ध्रुव हैं। चुनाव के दौरान योगी ने नई लाइन दी- ‘बंटेंगे तो कटेंगे’...। बाकी भाजपा नेताओं ने अलग-अलग शब्दों में इसका इस्तेमाल किया। महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान 8 नवंबर को पीएम मोदी ने भी एक हैं तो सेफ हैं का नारा दिया। यूपी और महाराष्ट्र की जीत में इस लाइन को अहम माना जा रहा है। हो सकता है, यह लाइन आगे जाकर पार्टी में बड़ी लकीर खींचने का काम करे। 2027 और 2029 में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ को धार मिलने वाली है? अभी तो ऐसा ही लग रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में जातिवादी राजनीति के कारण पार्टी को कितना नुकसान हुआ, भाजपा के पास इसका पक्का मैथमेटिक्स है। इसीलिए ‘जाति’ का कांटा निकालने के लिए ‘धर्म’ के कांटे का आगे ज्यादा इस्तेमाल होगा, इसकी संभावना अधिक है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में संघ भाजपा के साथ नहीं था, इस चुनाव में संघ ने पूरी ताकत लगाई? योगी RSS की पसंद माने जाते हैं, यह सब जानते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान संघ की सक्रियता कम हुई थी, इसके भी तमाम कारण गिनाए जाते रहे हैं। अलबत्ता, इस चुनाव में संघ ने पूरी ताकत लगाई। संघ ने मथुरा में अपनी बैठक के दौरान योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे पर मुहर भी लगाई। उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के लगातार आरोप लगे। इसमें कितनी सच्चाई है? उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का प्रचलन बहुत पुराना है। सरकार किसी की भी रही हो, एक सीमा तक यह होता है। लेकिन रिजल्ट केवल इसी कारण ऐसे आए हैं, यह कहना सही नहीं होगा। क्योंकि यदि ऐसा होता तब तो पिछले लोकसभा चुनाव में भी यह हो सकता था। तब भी तो योगी ही मुख्यमंत्री थे और भाजपा की ही सरकार थी। लोकसभा चुनाव में जिस दलित वोटर ने सपा को वोट किया था, क्या इस बार वह छिटक गया? संविधान और आरक्षण बचाओ नारे के कारण लोकसभा चुनाव में दलित वोटर ने एकमुश्त सपा-कांग्रेस को वोट किया। इस बार ये दोनों चुनावी मुद्दे नहीं रहे, इसलिए दलित वोटर बंट गया। उपचुनाव में चंद्रशेखर ‘रावण’ और बसपा की तरफ भी थोड़ा वोटर चला गया, जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशियों को हुआ। 9 में से किस सीट का नतीजा सबसे चौंकाने वाला रहा? सबसे ज्यादा चौंकाया कुंदरकी ने। यहां की स्ट्रैटजी से तय था कि भाजपा जीतेगी लेकिन सपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो जाएगी, यह किसी ने नहीं सोचा था। कारण, यहां 60% मुस्लिम वोटर हैं। सपा को एकतरफा वोट देने वाली मुस्लिम बिरादरी इस तरह बिखर जाएगी, इसका आश्चर्य है। नतीजों के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में योगी के बयान में इसका जवाब मिलता है। उन्होंने कहा- ‘जो भूले भटके रहे होंगे, उन सबमें किसी को अपना गोत्र याद आया होगा, किसी को अपनी जाति।’ अखिलेश की करहल और कानपुर की सीसामऊ सीट सपा ने जीती। क्या यहां भाजपा की रणनीति काम नहीं आई? अखिलेश यादव के सांसद बनने से करहल सीट खाली हुई। यादव परिवार की यह परंपरागत सीट है। भाजपा ने यहां तगड़ी रणनीति बनाते हुए यादव VS यादव कार्ड खेला। पार्टी ने अनुजेश यादव को उतारा। अनुजेश रिश्ते में अखिलेश के बहनोई लगते हैं। अनुजेश लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा में आए। यादव में एक उपजाति होती है ‘घोसी’। अनुजेश इसी से आते हैं। कुल यादवों में 65% घोसी हैं। सपा प्रत्याशी तेजप्रताप उपजाति ‘कमेरिया’ से आते हैं। इस बार यादव बंट गए। यही कारण है कि सपा की जीत का मार्जिन 67 हजार से घटकर सिर्फ 14 हजार पर आ गया। बसपा का परफार्मेंस इस बार भी खराब रहा। यूपी में पार्टी का क्या भविष्य दिखता है? केवल 2 सीट पर बसपा प्रत्याशी अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे। ये सीटें हैं- कटहरी और मझवां। 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। 2022 के विधानसभा चुनाव में एकमात्र विधायक बना। कार्यशैली और रणनीति इसी तरह रही तो आने वाले दिनों में स्थिति और खराब होना तय है। बड़ी संख्या में वोट काटकर क्या आजाद समाज पार्टी और AIMIM के प्रत्याशियों ने सपा को हरा दिया? मीरापुर सीट पर औवेसी और चंद्रशेखर की पार्टी ने सपा प्रत्याशी सुम्बुल राणा के समीकरण बिगाड़ दिए। यहां दोनों पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों को 41 हजार वोट मिले। जबकि यहां 30,796 वोटों से सपा की हार हुई। बाकी सीटों पर दोनों का असर नहीं दिखा। और आखिर में… पूरे उपचुनाव में कांग्रेस कहां रही? सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनने पर कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा। जिन सीटों पर कांग्रेस का थोड़ा प्रभाव था, वहां भी इनके कार्यकर्ता निष्क्रिय रहे। फूलपुर सीट पर बगावत करके कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुरेश यादव मैदान में उतरे। वह बात अलग है कि 1365 वोट पाकर इनकी जमानत जब्त हो गई। नीचे से लेकर ऊपर तक के कार्यकर्ता यदि थोड़ी सक्रियता दिखाते तो शायद सपा को कुछ सीटों पर फायदा मिल सकता था। ------------------------ यह खबर भी पढ़ें यूपी उपचुनाव-भास्कर का एग्जिट पोल 100% सही, सिर्फ हमने बताया था- BJP+ को 7 सीटें; हर सीट पर बिल्कुल सटीक नतीजे यूपी उपचुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो चुकी है। सभी 9 सीटों पर भास्कर रिपोर्टर्स का एग्जिट पोल 100% सही रहा। एक-एक सीट पर हमारे रिपोर्टर ने जो एग्जिट पोल किया, नतीजे भी बिल्कुल वैसे ही रहे। एग्जिट पोल में हमने बताया था कि 9 में से 7 सीटें BJP+ को मिलेंगी। इनमें 6 पर भाजपा, एक सीट पर रालोद, जबकि 2 सीटें सपा जीतेगी। रिजल्ट में ऐसा ही हुआ। सपा सिर्फ 2 सीटें जीती। भाजपा ने 6 और उसकी सहयोगी रालोद ने मीरापुर में जीत दर्ज की। यूपी में सिर्फ दैनिक भास्कर ही था, जिसने एक-एक सीट पर एग्जिट पोल किया था। बाकी मीडिया हाउस ने सिर्फ कुल सीटों का आंकड़ा देकर एग्जिट पोल किया था। यहां पढ़ें पूरी खबर

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