सपा के साथ कांग्रेस कितना मिला रही कंधा?:दिल्ली-लखनऊ में दिल मिलाने की कोशिश, जहां चुनाव वहां से टशन की खबरें
कांग्रेस और सपा के बीच उपचुनाव को लेकर दिल्ली और फिर लखनऊ स्तर पर बात पक्की हो गई है। कांग्रेस ने सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ समन्वय के लिए कमेटी भी बना दी है। इसमें पार्टी सांसदों और पूर्व विधायकों को जिम्मेदारी दी गई है। कल तक प्रदेश स्तर के कांग्रेस नेता यह कह रहे थे कि उन्हें नहीं पता कि कितनी सीटें मिली हैं, वो अब सपा के पक्ष में सक्रिय होने की बात कह रहे हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्या कांग्रेस कार्यकर्ता इसे मानेंगे? जिन सीटों पर कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वो सपा के प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाएंगे? सबसे पहले जानिए कांग्रेस क्या कर रही... 1- दावा: पार्टी के बड़े नेताओं का कहना है कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर यूपी में भाजपा को बढ़त लेने से रोका था, उसी तरह से आगे के चुनाव में भी कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगी। भाजपा को प्रदेश में रोकने का काम करेंगी। जिन सीटों पर कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता ने गड़बड़ी करने की कोशिश की, उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। 2- तैयारी: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने उपचुनाव के लिए सभी 9 सीटों पर कोऑर्डिनेशन के लिए कमेटी बना दी है। ज्यादातर समिति में 7 लोगों को रखा गया है। कुछ समितियों में 6 लोगों को रखा गया है। चुनाव लड़ रहे कांग्रेस जिलाध्यक्ष 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित
कांग्रेस के प्रदेश महासचिव संगठन अनिल यादव का कहना है, जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है वहां कांग्रेस और सपा के नेताओं के बीच संवाद हो रहा है। दोनों दल की ओर से हर सीट पर समन्वय के लिए समितियों का गठन किया गया है। सपा के प्रत्याशी भी कांग्रेस का सहयोग ले रहे हैं। मसलन गाजियाबाद में मंगलवार को सपा के प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी के दफ्तर पहुंचे और वहां कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग की है। त्योहारों के बाद इसमें और तेजी आएगी। सपा और कांग्रेस दोनों का उद्देश्य भाजपा काे हराना है। फूलपुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ने चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उससे पार्टी ने न सिर्फ किनारा किया, बल्कि 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का कहना है, उत्तर प्रदेश में इंडी गठबंधन पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहा है। कांग्रेस की ओर से पूरी मदद का भरोसा सपा को दिया गया है। कांग्रेस के प्रयागराज गंगापार के जिलाध्यक्ष ने पार्टी के निर्णय के विरोध में चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता पूरी जिम्मेदारी के साथ इंडी गठबंधन के प्रत्याशी को जिताने का काम करेगा। कहां बिगड़ रही है बात… 1- महाराष्ट्र में सीटें न मिलने का सपा पर दिख सकता है असर
समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सीटें नहीं छोड़ीं, जबकि सपा 5 सीटों की मांग कर रही थी। कांग्रेस से सीटें न मिलने के बाद सपा ने 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी महाराष्ट्र में उतारे। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का कहना है, वह सिर्फ उन्हीं सीटों पर प्रत्याशी उतार रहे हैं, जहां से उन्हें अपने कैंडिडेट पर जीतने का भरोसा है। उनका यह भी कहना है कि बात सीट की नहीं, जीत की है। बड़ी लड़ाई में त्याग करना होता है। उनका मकसद भाजपा की नफरत की राजनीति को रोकना है। वहीं, माना यह भी जा रहा है कि कांग्रेस ने सपा को महाराष्ट्र में सीटें नहीं दीं। इसलिए इसका असर यहां के चुनाव में भी दिख सकता है। कांग्रेस ने भले ही सपा के साथ समन्वय के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिए हों, सपा उनका कितना सहयोग लेगी और उसके चुनावी मंच पर कितने कांग्रेसी नजर आएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। 2- अंदर ही अंदर टशन
सूत्रों का कहना है, यूपी में कांग्रेस के एक भी सीट पर चुनाव न लड़ने से कांग्रेस के कुछ नेता और कार्यकर्ता खुश नहीं हैं। इसे लेकर अंदर ही अंदर दोनों दलों के बीच प्रदेश स्तर पर मनमुटाव की भी खबरें हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सपा को उपचुनाव में कम से कम एक-दो सीटें कांग्रेस को देनी चाहिए थीं। सपा की ओर से जो दो सीटें छोड़ी गई थीं, उन पर मौजूदा परिस्थितियों में जीत हासिल कर पाना मुश्किल था। कांग्रेस ने सपा के सामने 5 सीटों की मांग रखी थी। सपा को दो ही सीट देनी थीं, तो उसे फूलपुर और मीरापुर सीट देना चाहिए था, जहां कांग्रेस का जनाधार है। वहीं, सपा के नेताओं का कहना था कि वह हारने के लिए कोई सीट नहीं देना चाहते थे। कांग्रेस की 5 सीट की मांग शुरू से ही गलत थी। मीरापुर सीट 2022 के चुनाव में सपा-आरएलडी के साथ गठबंधन में जीती थी। उस पर कांग्रेस की दावेदारी कहीं से भी उचित नहीं थी। रहा सवाल फूलपुर का, तो यह सीट सपा कांग्रेस को देने को तैयार हो गई थी। लेकिन, कांग्रेस ने ही अंतिम समय में निर्णय लिया कि सभी सीटों पर सपा चुनाव लड़े और कांग्रेस उसका सपोर्ट करेगी। हालांकि, गठबंधन हो जाने के बाद दोनों दलों का काेई भी नेता खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति की बारीक समझ रखने वाले सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, यूपी में जो खींचतान थी वह प्रदेश स्तर पर थी। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और सपा के नेता, बल्कि यूं कहें कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच जबरदस्त बॉन्डिंग है। यह तात्कालिक फायदे के लिए नहीं, लॉन्ग टर्म के लिए मिल-जुल कर फैसले ले रहे हैं। जहां तक दूसरे राज्यों में सपा को सीटें न मिलने की बात है, तो हर राज्य की अलग-अलग परिस्थिति होती है। वहां सपा जो सीटें मांग रही है, वो एनसीपी शरद पवार गुट के पास है। उसके लिए भी बातचीत चल रही है, जल्द ही वहां भी निर्णय होगा। वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी में काम कर चुके कुर्बान अली कहते हैं - कांग्रेस को गठबंधन पालिटिक्स के लिए भाजपा से सीखना चाहिए। जो भी उसके पार्टनर हैं, उनके साथ गुडविल बनाकर रखनी चाहिए और किसी को नाराज नहीं करना चाहिए। जहां तक यूपी में हो रहे उपचुनाव का सवाल है, तो यहां कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पूरी तरह से सपा का साथ द
कांग्रेस और सपा के बीच उपचुनाव को लेकर दिल्ली और फिर लखनऊ स्तर पर बात पक्की हो गई है। कांग्रेस ने सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ समन्वय के लिए कमेटी भी बना दी है। इसमें पार्टी सांसदों और पूर्व विधायकों को जिम्मेदारी दी गई है। कल तक प्रदेश स्तर के कांग्रेस नेता यह कह रहे थे कि उन्हें नहीं पता कि कितनी सीटें मिली हैं, वो अब सपा के पक्ष में सक्रिय होने की बात कह रहे हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्या कांग्रेस कार्यकर्ता इसे मानेंगे? जिन सीटों पर कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वो सपा के प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाएंगे? सबसे पहले जानिए कांग्रेस क्या कर रही... 1- दावा: पार्टी के बड़े नेताओं का कहना है कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर यूपी में भाजपा को बढ़त लेने से रोका था, उसी तरह से आगे के चुनाव में भी कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगी। भाजपा को प्रदेश में रोकने का काम करेंगी। जिन सीटों पर कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता ने गड़बड़ी करने की कोशिश की, उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। 2- तैयारी: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने उपचुनाव के लिए सभी 9 सीटों पर कोऑर्डिनेशन के लिए कमेटी बना दी है। ज्यादातर समिति में 7 लोगों को रखा गया है। कुछ समितियों में 6 लोगों को रखा गया है। चुनाव लड़ रहे कांग्रेस जिलाध्यक्ष 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित
कांग्रेस के प्रदेश महासचिव संगठन अनिल यादव का कहना है, जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है वहां कांग्रेस और सपा के नेताओं के बीच संवाद हो रहा है। दोनों दल की ओर से हर सीट पर समन्वय के लिए समितियों का गठन किया गया है। सपा के प्रत्याशी भी कांग्रेस का सहयोग ले रहे हैं। मसलन गाजियाबाद में मंगलवार को सपा के प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी के दफ्तर पहुंचे और वहां कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग की है। त्योहारों के बाद इसमें और तेजी आएगी। सपा और कांग्रेस दोनों का उद्देश्य भाजपा काे हराना है। फूलपुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ने चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उससे पार्टी ने न सिर्फ किनारा किया, बल्कि 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का कहना है, उत्तर प्रदेश में इंडी गठबंधन पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहा है। कांग्रेस की ओर से पूरी मदद का भरोसा सपा को दिया गया है। कांग्रेस के प्रयागराज गंगापार के जिलाध्यक्ष ने पार्टी के निर्णय के विरोध में चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता पूरी जिम्मेदारी के साथ इंडी गठबंधन के प्रत्याशी को जिताने का काम करेगा। कहां बिगड़ रही है बात… 1- महाराष्ट्र में सीटें न मिलने का सपा पर दिख सकता है असर
समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सीटें नहीं छोड़ीं, जबकि सपा 5 सीटों की मांग कर रही थी। कांग्रेस से सीटें न मिलने के बाद सपा ने 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी महाराष्ट्र में उतारे। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का कहना है, वह सिर्फ उन्हीं सीटों पर प्रत्याशी उतार रहे हैं, जहां से उन्हें अपने कैंडिडेट पर जीतने का भरोसा है। उनका यह भी कहना है कि बात सीट की नहीं, जीत की है। बड़ी लड़ाई में त्याग करना होता है। उनका मकसद भाजपा की नफरत की राजनीति को रोकना है। वहीं, माना यह भी जा रहा है कि कांग्रेस ने सपा को महाराष्ट्र में सीटें नहीं दीं। इसलिए इसका असर यहां के चुनाव में भी दिख सकता है। कांग्रेस ने भले ही सपा के साथ समन्वय के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिए हों, सपा उनका कितना सहयोग लेगी और उसके चुनावी मंच पर कितने कांग्रेसी नजर आएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। 2- अंदर ही अंदर टशन
सूत्रों का कहना है, यूपी में कांग्रेस के एक भी सीट पर चुनाव न लड़ने से कांग्रेस के कुछ नेता और कार्यकर्ता खुश नहीं हैं। इसे लेकर अंदर ही अंदर दोनों दलों के बीच प्रदेश स्तर पर मनमुटाव की भी खबरें हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सपा को उपचुनाव में कम से कम एक-दो सीटें कांग्रेस को देनी चाहिए थीं। सपा की ओर से जो दो सीटें छोड़ी गई थीं, उन पर मौजूदा परिस्थितियों में जीत हासिल कर पाना मुश्किल था। कांग्रेस ने सपा के सामने 5 सीटों की मांग रखी थी। सपा को दो ही सीट देनी थीं, तो उसे फूलपुर और मीरापुर सीट देना चाहिए था, जहां कांग्रेस का जनाधार है। वहीं, सपा के नेताओं का कहना था कि वह हारने के लिए कोई सीट नहीं देना चाहते थे। कांग्रेस की 5 सीट की मांग शुरू से ही गलत थी। मीरापुर सीट 2022 के चुनाव में सपा-आरएलडी के साथ गठबंधन में जीती थी। उस पर कांग्रेस की दावेदारी कहीं से भी उचित नहीं थी। रहा सवाल फूलपुर का, तो यह सीट सपा कांग्रेस को देने को तैयार हो गई थी। लेकिन, कांग्रेस ने ही अंतिम समय में निर्णय लिया कि सभी सीटों पर सपा चुनाव लड़े और कांग्रेस उसका सपोर्ट करेगी। हालांकि, गठबंधन हो जाने के बाद दोनों दलों का काेई भी नेता खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति की बारीक समझ रखने वाले सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, यूपी में जो खींचतान थी वह प्रदेश स्तर पर थी। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और सपा के नेता, बल्कि यूं कहें कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच जबरदस्त बॉन्डिंग है। यह तात्कालिक फायदे के लिए नहीं, लॉन्ग टर्म के लिए मिल-जुल कर फैसले ले रहे हैं। जहां तक दूसरे राज्यों में सपा को सीटें न मिलने की बात है, तो हर राज्य की अलग-अलग परिस्थिति होती है। वहां सपा जो सीटें मांग रही है, वो एनसीपी शरद पवार गुट के पास है। उसके लिए भी बातचीत चल रही है, जल्द ही वहां भी निर्णय होगा। वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी में काम कर चुके कुर्बान अली कहते हैं - कांग्रेस को गठबंधन पालिटिक्स के लिए भाजपा से सीखना चाहिए। जो भी उसके पार्टनर हैं, उनके साथ गुडविल बनाकर रखनी चाहिए और किसी को नाराज नहीं करना चाहिए। जहां तक यूपी में हो रहे उपचुनाव का सवाल है, तो यहां कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पूरी तरह से सपा का साथ देगी। जो लोग यूपी से वायनाड प्रचार के लिए जा रहे थे, कांग्रेस ने उन्हें न सिर्फ रोक दिया है। बल्कि यह कहा है कि यूपी के उपचुनाव में मेहनत कीजिए और गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताइए। त्योहारों बाद सही तस्वीर आएगी सामने
यह त्योहारों का सप्ताह है। दीपावली, भैया दूज और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहार हैं। ऐसे में चुनाव प्रचार भी इन त्योहारों के बाद ही रफ्तार पकड़ेगा। जब चुनावी सभाएं शुरू होंगी, तभी सही तस्वीर भी सामने आएगी। पता चलेगा कि सपा को कांग्रेस का कितना सपोर्ट जमीन पर मिल रहा है। 9 सीटों पर 90 प्रत्याशी मैदान में
उपचुनाव की 9 सीटों पर 90 प्रत्याशी मैदान में हैं। इसमें सबसे ज्यादा गाजियाबाद और कुंदरकी में 14-14 प्रत्याशी, मझंवा में 13, मीरापुर, फूलपुर और कटेहरी में 12-12, करहल में 7, सीसामऊ में 6 और खैर में 5 प्रत्याशी मैदान में हैं। खैर सुरक्षित सीट है। यहां सपा, बसपा और भाजपा के अलावा चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी कांशीराम के नितिन कुमार चोटिल और राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के भूपेंद्र कुमार धंगर मैदान में हैं। तीन सीटों पर एमआईएम भी मैदान में
हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे हैं। कुंदरकी, गाजियाबाद और मीरापुर में एमआईएम के प्रत्याशी मैदान में हैं। इन सीटों में कुंदरकी और मीरापुर मुुस्लिम बाहुल्य सीट है, जहां से एमआईएम ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। जबकि गाजियाबाद की सामान्य सीट पर सपा की तरह एमआईएम ने भी दलित उम्मीदवार का कार्ड चला है। देखना दिलचस्प होगा कि एमआईएम खुद कितने वोट हासिल कर पाती है और किसका नुकसान करती है। -------------------------- यह खबर भी पढ़ें अखिलेश ने केशव को बताया जोकर, हरदोई में बोले- सर्कस में गैप फिलर जैसे; योगी जब चीजें फेस नहीं कर पाते, तो आगे कर देते हैं हरदोई में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को जोकर बता दिया। उन्होंने कहा, सर्कस में कुछ लोगों को गैप फिल करने के लिए रखा जाता है। मुख्यमंत्री जी जब चीजों को फेस नहीं कर पाते, तो ऐसे लोगों को आगे कर देते हैं। उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य के बयान '2027 क्या 47 तक सपा का कुछ नहीं हो सकता' पर पलटवार करते हुए यह बात कही। यहां पढ़ें पूरी खबर