दुनिया के सबसे खतरनाक मिशन पर एक इंडियन:-40° तापमान में 2,700 किलोमीटर का सफर; 200kg वजन के साथ अकेले अंटार्कटिका नापेंगे अक्षय नानावटी

अंटार्कटिका में माइनस 40 डिग्री का तापमान, चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर तक जमी बर्फ और बर्फीली हवाएं। इनके बीच 200 किलोग्राम की स्लेज (बर्फ पर खिंची जाने वाली गाड़ी) को खींचता अकेला शख्स। ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि एक इंसान की हिम्मत और चुनौतियों को अपनाने के जज्बे की मिसाल है। यह मिसाल कायम की है 40 साल के इंडो-अमेरिकन एक्स-मरीन ऑफिसर अक्षय अजय नानावटी ने। अक्षय इन दिनों ऐसी दुर्गम यात्रा पर निकले हैं, जिसके बारे में सोचने से ही रूह कांप जाती है। अक्षय ने 8 नवंबर को अंटार्कटिका में 110 दिन की 'द ग्रेट सोल क्रॉसिंग' नाम की एक ऐसी यात्रा शुरू की है, जिसे उन्हें अकेले ही पूरा करना है। इस कोस्ट-टू-कोस्ट स्की अभियान मे अक्षय 400 पाउंड (181 किलोग्राम) का वजन खींचते हुए 1,700 मील (2735.8 किलोमीटर) की दूरी तय करेंगे। अगर वे सफल हो जाते हैं, तो वे पृथ्वी पर सबसे ठंडे, सबसे शुष्क, सबसे तूफानी और सबसे निर्जन महाद्वीप को बिना किसी सहायता के अकेले पूरा करने वाले पहले इंसान बन जाएंगे। चार साल कड़ी ट्रेनिंग करके यात्रा के लिए तैयार हुए पेशे से आंत्रपेन्योर, स्पीकर और राइटर अक्षय का यह साहसिक अभियान चार साल की कड़ी ट्रेनिंग का नतीजा है। इसमें उन्होंने न केवल शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दिया गया है, बल्कि मानसिक रूप से भी खुद को इस चुनौती के लिए तैयार किया है। ये यात्रा किसी भी तरह से आसान नहीं रहने वाली है। अक्षय के पोलर मेंटर, लार्स एबेसन का कहना है, “यह अभियान एक बेहद कठिन और अनूठा फिजिकल वर्क है, जिसे अब तक किसी ने भी अकेले नहीं किया है। इसका सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू यह है कि यह मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से अत्यधिक दबाव डालता है।" 10 दिन तक अकेले कमरे में बंद रह की ट्रेनिंग अंटार्कटिका के एक्सट्रीम वेदर के अलावा, अक्षय को एक और चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इस अभियान के दौरान लगभग चार महीने तक वे पूरी तरह से अकेले रहेंगे। दरअसल, अंटार्कटिका के एक कोने को छोड़कर, जहां पेंगुइन हैं, बाकी हिस्से में कोई जीवन नहीं है। इस एक्सपिडीशन की ट्रेनिंग उनके लिए आसान नहीं रही। बर्फ में ट्रेनिंग के दौरान अंटार्कटिका में एक्सल हेइबर्ग ग्लेशियर पर चढ़ते समय नानावटी को अपनी दो अंगुलियों के सिरे ठंड के कारण खोने पड़े। इसके अलावा एक्सट्रीम कंडीशन में शांत रहने के लिए के लिए उन्हें हार्ड ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा। वे 10 दिन तक एक छोटे से अंधेरे कमरे में पूरी तरह से अकेले रहे। अक्षय के लिए यह यात्रा उनके जीवन का मिशन बन चुकी है। वे इसे एक अनमोल अवसर के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यह यात्रा मेरे जीवन का एक हिस्सा है और यह हर उस चुनौती का सामना करने का परिणाम है, जो आज तक मेरे जीवन में आई हैं।" बर्फ पर चलने के लिए रेगिस्तान में ली ट्रेनिंग अक्षय और उनकी पत्नी मेलिसा एरिजोना में रहते हैं। उन्होंने अलास्का जैसे ठंडे जगहों और आइसलैंड, नॉर्वे, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका जैसे देशों में कई महीने बिताए, लेकिन उनकी अधिकतर ट्रेनिंग रेगिस्तान में हुई। गर्मियों में, उन्होंने तेज गर्मी में स्कॉट्सडेल पार्क के चारों ओर कई टायर खींचकर स्लेज खींचने का अभ्यास किया। अक्षय ने रॉक क्लाइम्बिंग, स्काईडाइविंग, और मरीन के साथ युद्ध में भाग लिया, जिससे उन्हें अपनी बाउड्रीज को पुश करने का अवसर मिला। हाई फैट फूड बनेगा इस चुनौती में मददगार अक्षय ने हाई फैट वाला आहार अपनाया, क्योंकि यह कार्बोहाइड्रेट की तुलना में अधिक कैलोरी प्रदान करता है। नॉर्वे में उन्होंने स्की तकनीक सुधारने के लिए एबेसेन के साथ प्रशिक्षण लिया। एबेसेन ने बताया कि सही तकनीक से ऊर्जा बचाने में मदद मिलती है। नानावती प्रतिदिन 5,800 कैलोरी का सेवन करने की योजना बना रहे हैं ताकि वह 8,000 से 10,000 कैलोरी बर्न कर सकें। उनका फूड विशेष रूप से हाई विटामिन और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर है। उनकी पत्नी मेलिसा का कहना है कि वह लगभग 23 किलोग्राम (50 पाउंड) वजन कम करेंगे। नानावटी मानते हैं कि ध्रुवीय यात्रा के लिए ताकत और सहनशक्ति का प्रशिक्षण जरूरी है ताकि वह 400 पाउंड की स्लेज को 10 से 12 घंटे तक खींच सकें। नानावटी ने प्रत्येक दिन को 66 मिनट की स्कीइंग शिफ्ट में डिवाइड किया है। हर शिफ्ट के बाद वे छोटा ब्रेक लेते हैं। इससे वे आसानी से छोटे-छोटे टारगेट्स को पूरा कर सकते हैं। आइए जानते हैं इस अनोखे सफर तक पहुंचने की अक्षय की कहानी... 18 साल की उम्र में मरीन में शामिल हो पहुंचे इराक मुंबई में जन्मे और बेंगलुरु, सिंगापुर, और अमेरिका में पले-बढ़े नानावटी का युद्ध के मैदान से धरती के एक किनारे तक का सफर उनकी निडरता का प्रमाण है। 18 साल की उम्र में मरीन में शामिल होने के बाद, उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। इराक में उन्हें गाड़ियों के काफिले के आगे चलकर विस्फोटकों की पहचान करने की खतरनाक भूमिका में रखा गया। इस चुनौतीपूर्ण अनुभव ने उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर मजबूत बनाया, जिससे वे एक निडर खोजकर्ता (एक्सप्लोर) बन गए। डिप्रेशन में रहे, आत्महत्या का भी ख्याल आया इराक में रहने के दौरान एक बार अक्षय के काफिले की कुछ गाड़ियां जमीन में लगे एक्टिव IED बम पर चली गईं। हालांकि, उनकी गाड़ी के नीचे का बम नहीं फटा। इस दुर्घटना में उनके कई दोस्तों की जान गई। इस घटना के बाद वे अमेरिका लौटे और डिप्रेशन में चले गए। उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्हें आत्महत्या के ख्याल आने लगे। मरीन से रिटायर होकर 'फियरवाना' नाम की किताब लिखी परिवार की मदद से वे धीरे-धीरे फिर से सामान्य हुए और जोखिम भरी जर्नी को जीवन की विरासत मानकर आगे बढ़ने का फैसला लिया। रिटायर होने के बाद, नानावटी ने ‘फियरवाना’ नाम से एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने अपनी सभी नकारात्मक भावनाओं को हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस में बदलने के अपने फाॅर्मूले के बारे में बताया। अक्षय ने बताया, "मैं हर चीज से डरता था, इसलिए मैंने अपने हर डर का सामना करने का निर्णय लिया।" अक्षय

Dec 2, 2024 - 18:25
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दुनिया के सबसे खतरनाक मिशन पर एक इंडियन:-40° तापमान में 2,700 किलोमीटर का सफर; 200kg वजन के साथ अकेले अंटार्कटिका नापेंगे अक्षय नानावटी
अंटार्कटिका में माइनस 40 डिग्री का तापमान, चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर तक जमी बर्फ और बर्फीली हवाएं। इनके बीच 200 किलोग्राम की स्लेज (बर्फ पर खिंची जाने वाली गाड़ी) को खींचता अकेला शख्स। ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि एक इंसान की हिम्मत और चुनौतियों को अपनाने के जज्बे की मिसाल है। यह मिसाल कायम की है 40 साल के इंडो-अमेरिकन एक्स-मरीन ऑफिसर अक्षय अजय नानावटी ने। अक्षय इन दिनों ऐसी दुर्गम यात्रा पर निकले हैं, जिसके बारे में सोचने से ही रूह कांप जाती है। अक्षय ने 8 नवंबर को अंटार्कटिका में 110 दिन की 'द ग्रेट सोल क्रॉसिंग' नाम की एक ऐसी यात्रा शुरू की है, जिसे उन्हें अकेले ही पूरा करना है। इस कोस्ट-टू-कोस्ट स्की अभियान मे अक्षय 400 पाउंड (181 किलोग्राम) का वजन खींचते हुए 1,700 मील (2735.8 किलोमीटर) की दूरी तय करेंगे। अगर वे सफल हो जाते हैं, तो वे पृथ्वी पर सबसे ठंडे, सबसे शुष्क, सबसे तूफानी और सबसे निर्जन महाद्वीप को बिना किसी सहायता के अकेले पूरा करने वाले पहले इंसान बन जाएंगे। चार साल कड़ी ट्रेनिंग करके यात्रा के लिए तैयार हुए पेशे से आंत्रपेन्योर, स्पीकर और राइटर अक्षय का यह साहसिक अभियान चार साल की कड़ी ट्रेनिंग का नतीजा है। इसमें उन्होंने न केवल शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दिया गया है, बल्कि मानसिक रूप से भी खुद को इस चुनौती के लिए तैयार किया है। ये यात्रा किसी भी तरह से आसान नहीं रहने वाली है। अक्षय के पोलर मेंटर, लार्स एबेसन का कहना है, “यह अभियान एक बेहद कठिन और अनूठा फिजिकल वर्क है, जिसे अब तक किसी ने भी अकेले नहीं किया है। इसका सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू यह है कि यह मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से अत्यधिक दबाव डालता है।" 10 दिन तक अकेले कमरे में बंद रह की ट्रेनिंग अंटार्कटिका के एक्सट्रीम वेदर के अलावा, अक्षय को एक और चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इस अभियान के दौरान लगभग चार महीने तक वे पूरी तरह से अकेले रहेंगे। दरअसल, अंटार्कटिका के एक कोने को छोड़कर, जहां पेंगुइन हैं, बाकी हिस्से में कोई जीवन नहीं है। इस एक्सपिडीशन की ट्रेनिंग उनके लिए आसान नहीं रही। बर्फ में ट्रेनिंग के दौरान अंटार्कटिका में एक्सल हेइबर्ग ग्लेशियर पर चढ़ते समय नानावटी को अपनी दो अंगुलियों के सिरे ठंड के कारण खोने पड़े। इसके अलावा एक्सट्रीम कंडीशन में शांत रहने के लिए के लिए उन्हें हार्ड ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा। वे 10 दिन तक एक छोटे से अंधेरे कमरे में पूरी तरह से अकेले रहे। अक्षय के लिए यह यात्रा उनके जीवन का मिशन बन चुकी है। वे इसे एक अनमोल अवसर के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यह यात्रा मेरे जीवन का एक हिस्सा है और यह हर उस चुनौती का सामना करने का परिणाम है, जो आज तक मेरे जीवन में आई हैं।" बर्फ पर चलने के लिए रेगिस्तान में ली ट्रेनिंग अक्षय और उनकी पत्नी मेलिसा एरिजोना में रहते हैं। उन्होंने अलास्का जैसे ठंडे जगहों और आइसलैंड, नॉर्वे, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका जैसे देशों में कई महीने बिताए, लेकिन उनकी अधिकतर ट्रेनिंग रेगिस्तान में हुई। गर्मियों में, उन्होंने तेज गर्मी में स्कॉट्सडेल पार्क के चारों ओर कई टायर खींचकर स्लेज खींचने का अभ्यास किया। अक्षय ने रॉक क्लाइम्बिंग, स्काईडाइविंग, और मरीन के साथ युद्ध में भाग लिया, जिससे उन्हें अपनी बाउड्रीज को पुश करने का अवसर मिला। हाई फैट फूड बनेगा इस चुनौती में मददगार अक्षय ने हाई फैट वाला आहार अपनाया, क्योंकि यह कार्बोहाइड्रेट की तुलना में अधिक कैलोरी प्रदान करता है। नॉर्वे में उन्होंने स्की तकनीक सुधारने के लिए एबेसेन के साथ प्रशिक्षण लिया। एबेसेन ने बताया कि सही तकनीक से ऊर्जा बचाने में मदद मिलती है। नानावती प्रतिदिन 5,800 कैलोरी का सेवन करने की योजना बना रहे हैं ताकि वह 8,000 से 10,000 कैलोरी बर्न कर सकें। उनका फूड विशेष रूप से हाई विटामिन और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर है। उनकी पत्नी मेलिसा का कहना है कि वह लगभग 23 किलोग्राम (50 पाउंड) वजन कम करेंगे। नानावटी मानते हैं कि ध्रुवीय यात्रा के लिए ताकत और सहनशक्ति का प्रशिक्षण जरूरी है ताकि वह 400 पाउंड की स्लेज को 10 से 12 घंटे तक खींच सकें। नानावटी ने प्रत्येक दिन को 66 मिनट की स्कीइंग शिफ्ट में डिवाइड किया है। हर शिफ्ट के बाद वे छोटा ब्रेक लेते हैं। इससे वे आसानी से छोटे-छोटे टारगेट्स को पूरा कर सकते हैं। आइए जानते हैं इस अनोखे सफर तक पहुंचने की अक्षय की कहानी... 18 साल की उम्र में मरीन में शामिल हो पहुंचे इराक मुंबई में जन्मे और बेंगलुरु, सिंगापुर, और अमेरिका में पले-बढ़े नानावटी का युद्ध के मैदान से धरती के एक किनारे तक का सफर उनकी निडरता का प्रमाण है। 18 साल की उम्र में मरीन में शामिल होने के बाद, उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। इराक में उन्हें गाड़ियों के काफिले के आगे चलकर विस्फोटकों की पहचान करने की खतरनाक भूमिका में रखा गया। इस चुनौतीपूर्ण अनुभव ने उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर मजबूत बनाया, जिससे वे एक निडर खोजकर्ता (एक्सप्लोर) बन गए। डिप्रेशन में रहे, आत्महत्या का भी ख्याल आया इराक में रहने के दौरान एक बार अक्षय के काफिले की कुछ गाड़ियां जमीन में लगे एक्टिव IED बम पर चली गईं। हालांकि, उनकी गाड़ी के नीचे का बम नहीं फटा। इस दुर्घटना में उनके कई दोस्तों की जान गई। इस घटना के बाद वे अमेरिका लौटे और डिप्रेशन में चले गए। उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्हें आत्महत्या के ख्याल आने लगे। मरीन से रिटायर होकर 'फियरवाना' नाम की किताब लिखी परिवार की मदद से वे धीरे-धीरे फिर से सामान्य हुए और जोखिम भरी जर्नी को जीवन की विरासत मानकर आगे बढ़ने का फैसला लिया। रिटायर होने के बाद, नानावटी ने ‘फियरवाना’ नाम से एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने अपनी सभी नकारात्मक भावनाओं को हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस में बदलने के अपने फाॅर्मूले के बारे में बताया। अक्षय ने बताया, "मैं हर चीज से डरता था, इसलिए मैंने अपने हर डर का सामना करने का निर्णय लिया।" अक्षय के माता-पिता ने क्या कहा... बेटे की इस कठिन चुनौती पर माता-पिता क्या सोचते हैं, यह समझने हम बेंगलुरु से 50 किलोमीटर दूर देवनहल्ली तालुक, के कुन्दना होबली इलाके में पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात उनके पिता अजय विपिन नानावटी से हुई। वे पहले भारत और इजराइल में 3M के प्रबंध निदेशक और सिंडिकेट बैंक के अध्यक्ष थे। वे वर्तमान में एलिकॉन कैस्टलॉय के अध्यक्ष हैं। पिता ने कहा- अक्षय 'सिटिजन ऑफ वर्ल्ड' बेटे की जर्नी को याद करते हुए अजय बताते हैं कि मेरा काम ऐसा था कि मुझे लगातार ट्रेवल करना पड़ता था। जब अक्षय पैदा हुआ तो मैं घर पर नहीं था। मेरी पत्नी को उसकी अकेले देख रेख करनी पड़ी। हम दुनिया के अलग-अलग देशों में रहे इसका अक्षय को एक बड़ा फायदा हुआ। उन्हें मल्टीकल्चर इनवायरमेंट में रहने का मौका मिला। अलग-अलग हिस्सों में रहने के कारण अक्षय खुद को 'सिटिजन ऑफ वर्ल्ड' मानते हैं। हम अक्सर यह कॉम्पीटिशन करते हैं कि किसके पासपोर्ट पर ज्यादा वीजा होंगे और मेरे दोनों बेटे इसमें मुझ से जीत जाते हैं। वे अब तक 70 से ज्यादा देशों में यात्रा कर चुके हैं। समाज बदलने अक्षय ने की जनर्लिज्म की पढ़ाई अजय बताते हैं कि मैं और मेरे पिता इंजीनियरिंग बेकग्राउंड से थे और अक्षय लोगों से ज्यादा से ज्यादा कम्युनिकेशन करना चाहता था, समाज में बदलाव करना चाहता था। जनर्लिजम सबसे सशक्त माध्यम है इन चीजों के लिए इसलिए उसने इसे चुना और अपनी किताब 'फेरवाना' लिखी। अजय कहते हैं कि अक्षय मुझ से ज्यादा अपनी मां के करीब हैं। वे मुझसे ज्यादा स्प्रिचुअल, इमोशनल और जमीन से जुड़ी हुई हैं। काम और इन्वेस्टमेंट से जुड़ी राय वे मुझ से लेते हैं। अक्षय की ट्रेनिंग से कम हुआ माता-पिता का डर इस खतरनाक चैलेंज पर अजय कहते हैं कि शुरू में हमें डर लगा लेकिन अक्षय ने इसके लिए चार साल की एक कड़ी ट्रेनिंगली है। इसलिए हमें उम्मीद है कि वे सफलता से इसे पूरा कर लेंगे। बेंगलुरु में ट्रेनिंग के दिनों को याद करते हुए अजय बताते हैं कि वे दो बड़े टायर बांध उन्हें 12-12 घंटे खींचा करते थे। मैंने उनकी ट्रेनिंग देखी है और मुझे लगता है कि वे इसे जरुर पूरा कर लेंगे। जो होना है वह होगा ही हालांकि, मेरा मानना है कि मंजिल से ज्यादा जरुरी जर्नी होती है। इस पूरी यात्रा के बाद जो अक्षय बाहर आएगा वह गेम चेंजर होगा। वीकनेस की जगह स्ट्रेंथ पर फोकस होना चाहिए अजय आगे बताते हैं कि हमें अपने बच्चों की स्ट्रेंथ और वीकनेस को सराहना चाहिए। हम कई बार उनकी स्ट्रेंथ को इग्नोर कर उनकी कमजोरियों को फोर्स तरीके से दूर करने का प्रयास करते हैं। सिंगापूर में रहने के दौरान हमने अक्षय की स्ट्रेंथ पर काम करते हुए उसे स्विमिंग, म्यूजिक, हिंदी सिखाई और उसे और मजबूत करने का काम किया। पिता बोले-अक्षय लोगों की जिंदगी बदलना चाहते अजय ने बताया कि जब लोग कहते हैं कि मेरे बेटे ने लोगों की जिंदगी को बदल दिया तो मुझे बहुत गर्व होता है। इंडिया आने पर उसने कई टॉक शोज में अपनी जर्नी को शेयर किया। लोग उनके पास आते हैं और अपना मेंटर बनने का ऑफर देते हैं। अक्षय का उद्देश्य है कि वह लोगों की जिंदगी में बदलाव लाना चाहता है। अजय बताते हैं कि अक्षय के बारे में जब भी लोग बात करते हैं वे उनके फिजिकल फिटनेस की चर्चा करते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि उनकी मेंटल हेल्थ की वजह से वे बड़ी चुनौतियों को वे पूरा कर पाए हैं। मेरे लिए सबसे प्राउड मोमेंट तब था जब उन्हें जर्नलिजम में मास्टर करने के लिए सिराकस यूनिवर्सिटी में स्कोलरशिप मिली। इसे अलावा जब उन्होंने किताब 'फेरवाना' लिखी तो वह हमारे परिवार के लिए एक प्राउड मोमेंट था। डर खत्म हो इसलिए खतरनाक झूलों पर बेटे को बैठाया बेटे की जर्नी को याद करते हुए अक्षय की मदर अंजलि अजय नानावटी बताती हैं कि जब वे सिर्फ तीन दिन के थे तो उन्होंने अपने आप करवट बदली थी। यह उनकी स्ट्रेंथ को साबित करता है। सिर्फ 3 साल की उम्र में हमने उन्हें ऐसे राइड्स (झूले) से इंट्रोड्यूस करवाया, जिसमें बैठने से बड़े लोग भी डरते हैं। एक मां के नाते मेरा सोचना था कि अगर वे जीवन में अभी से चैलेंज लेगा तो वह किसी भी कठिनाई से निपट लेगा। स्कूल टाइम में जो सही था, उसके लिए वह हमेशा खड़ा रहा। यूएस में जब वे डिप्रेशन में चले गए और ड्रिंकिंग शुरू कर दी थी, तब भी हम उनके साथ खड़े रहे और वे कुछ ही दिन में इससे उबर आए। खुद को चैलेंज करने अक्षय ने अंटार्टिका का प्लान बनाया अंजलि बताती हैं कि इराक में अक्षय IED ब्लास्ट में लगभग मरते-मरते बचे। तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका जीवन कुछ बड़ा करने के लिए है। उन्होंने अफ्रीकी देशों के लिए फंड जमा किए। हार्ट प्रॉब्लम से जूझ रहे बच्चों की मदद की, उन्होंने 'डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की टीम के साथ काम किया। लोगों को मोटिवेट करने के लिए उन्होंने कई लेख लिखे। तब खुद को चैलेंज करने के लिए अंटार्टिका का यह प्लान उनके जहन में आया। वे अपनी बाउंड्रीज को पुश करते हुए फिर से आज भी अंटार्टिका में 200 किलोग्राम वजन के साथ आगे बढ़ रहे हैं। डिप्रेशन में बेटे के साथ ऐसे खड़े रहे माता-पिता अंजलि ने बताया कि शुरू में जो भी अक्षय के साथ हुआ वह हमारे लिए दिल तोड़ने वाला था। लेकिन जब उन्होंने चुनौतियों को हराते हुए आगे बढ़ने का मन बनाया तो कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वे अब जो कर रहे हैं, उस पर हमें गर्व है। हम (अजय और मैं) हमेशा अक्षय के मुश्किल वक्त में उसके साथ एक सपोर्ट सिस्टम की तरह खड़े रहे। डिप्रेशन के रहने के दौरान उन्होंने न्यूरो साइंस पढ़ना शुरू किया। उस समय भी हम उनके साथ थे। उनकी लाइफ को ट्रैक पर लाने के लिए मैं उनके साथ कई माउंटेन ट्रिप पर गई। हमने साथ में काफी क्वालिटी टाइम स्पेंड किया। इसी दौरान अक्षय को यह एहसास हुआ कि वह वह जीवन नहीं है, जो उसने अपने लिए चुना था। वह अपनी जिंदगी को ऐसे ही वेस्ट नहीं कर सकता है। जो परिजन अपने बच्चों के सपनों के साथ खड़े हैं उन्हें क्या मैसेज देना चाहते हैं? इस पर अंजली कहती हैं कि सभी माता-पिता को अपने बच्चों को एक ऐसा एनवायरमेंट और गाइडेंस देना चाहिए जिसमें वे किसी भी माहौल में आगे बढ़ सकें और सर्वाइव कर सकें। एक ऐसा माहौल बनाए जिसमें बच्चे अपनी मंजिल तक पहुंच सकें, न कि उन पर आपकी मंजिलों की तरफ जाने के लिए दबाव डालें। कोई भी प्रोफेशन गलत नहीं होता है, बस आपको वह पसंद आना चाहिए। आजकल के माहौल में परिजन अपने बच्चे को गिरने भी नहीं देते हैं, जब तक वे गिरेंगे नहीं तो संभलेंगे कैसे। माता-पिता से मेरा एडवाइज है कि वे अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। उन्हें एडवेंचर्स स्पोर्ट्स में डाले और उन्हें अपने करियर चुनने की आजादी दें।

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