पूर्व CJI बोले- स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप से सावधान रहें जज:ये सोशल मीडिया के जरिए कोर्ट के फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं

देश के पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ कहा- किसी मामले में खास रुचि रखने वाले स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप, प्रेशर ग्रुप उस मामले के रिजल्ट को सोशल मीडिया के जरिए प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। जजों को इनसे सावधान रहने की जरूरत है। आजकल लोग यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देखे 20 सेकेंड के वीडियो के आधार पर राय बना लेते हैं। ये बहुत बड़ा खतरा है। चंद्रचूड़ ने रविवार को NDTV इंडिया के संविधान @ 75 कॉन्क्लेव में कहा- प्रत्येक नागरिक को ये समझने का अधिकार है कि किसी फैसले का आधार क्या है और कोर्ट के फैसलों पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। लेकिन जब ये अदालत के फैसलों से आगे निकल जाता है और जजों को व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाता है। ये एक तरह से बुनियादी सवाल उठाता है- क्या ये वास्तव में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? कोर्ट में निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर पूर्व CJI ने कहा- हर कोई यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जो कुछ भी देखता है, उसके 20 सेकेंड में अपनी राय बनाना चाहता है। ये गंभीर खतरा है। क्योंकि कोर्ट में निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर है। उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया पर किसी के पास इसे समझने के लिए धैर्य नहीं है। और ये एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। भारतीय न्यायपालिका इसका सामना कर रही है। चंद्रचूड़ से सवाल- क्या सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से जजों पर असर पड़ता है ? जवाब- जजों को इस फैक्ट से बहुत सावधान रहना होगा कि वे लगातार स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप के सोशल मीडिय अटैक के अधीन हो रहे हैं। जो कोर्ट के फैसलों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। लोकतंत्र में कानूनों की वैधता तय करने की पावर कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट को सौंपी गई है। पावर के सेपरेशन में नियम उन्होंने कहा कि पावर के सेपरेशन में नियम हैं। जैसे कानून बनाने का काम विधायिका करेगी, कानून का क्रियान्वयन कार्यपालिका करेगी और ज्यूडिशियरी कानून की व्याख्या और विवादों का फैसला करेगी। हालांकि कई बार ये तनावपूर्ण हो जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नीति निर्माण का काम सरकार को सौंपा जाता है। जब मौलिक अधिकारों की बात आती है तो संविधान के तहत कोर्ट का कर्तव्य है कि वे हस्तक्षेप करें। नीति निर्माण विधायिका का काम है, लेकिन इसकी वैधता तय करना कोर्ट का काम और जिम्मेदारी है। चंद्रचूड़ से सवाल- क्या जजों को राजनीति में आना चाहिए? पूर्व सीजेआई ने कहा- संविधान या कानून में ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है। समाज आपको रिटायरमेंट के बाद भी जज के तौर पर देखता है। इसलिए जो काम दूसरे नागरिकों के लिए ठीक हैं, वे जजों के लिए पद छोड़ने के बाद भी ठीक नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जज को तय करना है कि रिटायरमेंट के बाद उनके लिए फैसलों उन लोगों पर असर डालेगा या नहीं जो जज के तौर पर उनके किए काम का आकलन करते हैं।

Nov 24, 2024 - 16:50
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पूर्व CJI बोले- स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप से सावधान रहें जज:ये सोशल मीडिया के जरिए कोर्ट के फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं
देश के पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ कहा- किसी मामले में खास रुचि रखने वाले स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप, प्रेशर ग्रुप उस मामले के रिजल्ट को सोशल मीडिया के जरिए प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। जजों को इनसे सावधान रहने की जरूरत है। आजकल लोग यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देखे 20 सेकेंड के वीडियो के आधार पर राय बना लेते हैं। ये बहुत बड़ा खतरा है। चंद्रचूड़ ने रविवार को NDTV इंडिया के संविधान @ 75 कॉन्क्लेव में कहा- प्रत्येक नागरिक को ये समझने का अधिकार है कि किसी फैसले का आधार क्या है और कोर्ट के फैसलों पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। लेकिन जब ये अदालत के फैसलों से आगे निकल जाता है और जजों को व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाता है। ये एक तरह से बुनियादी सवाल उठाता है- क्या ये वास्तव में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? कोर्ट में निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर पूर्व CJI ने कहा- हर कोई यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जो कुछ भी देखता है, उसके 20 सेकेंड में अपनी राय बनाना चाहता है। ये गंभीर खतरा है। क्योंकि कोर्ट में निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर है। उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया पर किसी के पास इसे समझने के लिए धैर्य नहीं है। और ये एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। भारतीय न्यायपालिका इसका सामना कर रही है। चंद्रचूड़ से सवाल- क्या सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से जजों पर असर पड़ता है ? जवाब- जजों को इस फैक्ट से बहुत सावधान रहना होगा कि वे लगातार स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप के सोशल मीडिय अटैक के अधीन हो रहे हैं। जो कोर्ट के फैसलों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। लोकतंत्र में कानूनों की वैधता तय करने की पावर कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट को सौंपी गई है। पावर के सेपरेशन में नियम उन्होंने कहा कि पावर के सेपरेशन में नियम हैं। जैसे कानून बनाने का काम विधायिका करेगी, कानून का क्रियान्वयन कार्यपालिका करेगी और ज्यूडिशियरी कानून की व्याख्या और विवादों का फैसला करेगी। हालांकि कई बार ये तनावपूर्ण हो जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नीति निर्माण का काम सरकार को सौंपा जाता है। जब मौलिक अधिकारों की बात आती है तो संविधान के तहत कोर्ट का कर्तव्य है कि वे हस्तक्षेप करें। नीति निर्माण विधायिका का काम है, लेकिन इसकी वैधता तय करना कोर्ट का काम और जिम्मेदारी है। चंद्रचूड़ से सवाल- क्या जजों को राजनीति में आना चाहिए? पूर्व सीजेआई ने कहा- संविधान या कानून में ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है। समाज आपको रिटायरमेंट के बाद भी जज के तौर पर देखता है। इसलिए जो काम दूसरे नागरिकों के लिए ठीक हैं, वे जजों के लिए पद छोड़ने के बाद भी ठीक नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जज को तय करना है कि रिटायरमेंट के बाद उनके लिए फैसलों उन लोगों पर असर डालेगा या नहीं जो जज के तौर पर उनके किए काम का आकलन करते हैं।

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