हिमाचल के मंत्रियों को CM के आदेशों की परवाह नहीं:कांग्रेस दफ्तर में नहीं बैठते मिनिस्टर, सचिवालय में भी कम ही नजर आते हैं
हिमाचल सरकार के मंत्री कांग्रेस ऑफिस में बैठने को तवज्जो नहीं दे रहे, जबकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने खुद 2 मार्च 2023 को कांग्रेस ऑफिस में बैठकर यह घोषणा की थी कि उनके सभी मंत्री बारी-बारी कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन शिमला में बैठेंगे, ताकि पार्टी वर्कर और आम जनता को अपनी समस्याएं सरकार के समक्ष रखने का प्लेटफॉर्म मिल सके। मगर, 2 साल से भी ज्यादा समय बीतने के बाद मुख्यमंत्री की यह घोषणा कोरी साबित हुई है। इसका सबसे ज्यादा मलाल कांग्रेस वर्कर को है, क्योंकि वह उनकी फरियाद सुनने के लिए पांच महीने से भी ज्यादा समय से कांग्रेस संगठन भी भंग है। इससे पार्टी वर्कर को अपनी बात रखने के लिए प्लेटफॉर्म नहीं मिल पा रहा। कांग्रेस कार्यालय में इसलिए जरूरी प्रदेश सचिवालय में हर व्यक्ति मंत्री से आसानी से मुलाकात नहीं कर पाता, क्योंकि सचिवालय में बिना एंट्री पास के किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता। ऐसे में यदि मंत्री कांग्रेस कार्यालय में बैठेंगे तो पार्टी वर्कर और आम जनता आसानी से अपनी समस्याएं सरकार के समक्ष उठा पाएंगे। कुछ मंत्री तो सचिवालय में कम नजर आते हैं कांग्रेस दफ्तर तो दूर कुछ मंत्री सचिवालय में भी कम ही नजर आते हैं। इससे प्रदेश के कोने-कोने से विभिन्न काम को लेकर सचिवालय आने वाले लोगों को निराश होकर वापस लौटना पड़ता हैं। मंत्रियों के रूटीन में सचिवालय में नहीं बैठने से संबंधित विभागों की फाइलें कई-कई दिन तक मंत्रियों के टेबल पर पड़ी रहती है। सचिवालय के गलियारों में मंत्रियों के नहीं बैठने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है, क्योंकि मंत्रियों के दफ्तर से नहीं बैठने का अफसरशाही भी फायदा उठाती है। इससे कई अफसर भी अपनी सीट पर नहीं मिलते। सुक्खू सरकार में ये मंत्री सुक्खू कैबिनेट में डिप्टी CM मुकेश अग्निहोत्री के अलावा 10 मंत्री है। इनमें धनीराम शांडिल, चंद्र कुमार, हर्षवर्धन चौहान, जगत सिंह नेगी, रोहित ठाकुर, अनिरुद्ध सिंह, विक्रमादित्य सिंह, राजेश धर्माणी और यादवेंद्र गोमा शामिल हैं। इनके पार्टी दफ्तर में बैठने से जनता को अपनी शिकायत सरकार के समक्ष उठाने का मंच मिलेगा।

हिमाचल के मंत्रियों को CM के आदेशों की परवाह नहीं
हिमाचल प्रदेश की राजनीतिक स्थिति इन दिनों बेहद चर्चित है, जहां कांग्रेस पार्टी के मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के आदेशों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है। ऐसा लगता है कि मंत्रियों में न केवल जिम्मेदारी का अभाव है, बल्कि वे पार्टी कार्यालयों में भी नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो रहे हैं।
मंत्रियों की गैरहाज़िरी पर उठ रहे सवाल
हाल के समाचारों के अनुसार, कांग्रेस दफ्तर में मंत्री शायद ही दिखाई देते हैं, और सचिवालय में भी उनकी उपस्थिति बहुत कम नजर आती है। इस स्थिति ने न केवल पार्टी के भीतर असंतोष पैदा कर दिया है, बल्कि सरकारी कार्यों की प्रगति पर भी विपरीत प्रभाव डाला है। मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन न करना मंत्रियों की गैर-जिम्मेदारी को दर्शाता है।
सीएम के दिशा-निर्देशों की अनदेखी
मुख्यमंत्री ने कई बार मंत्रियों को बैठकें आयोजित करने और अधिक सक्रिय रूप से कार्य करने के लिए कहा है। हालाँकि, इन आग्रहों के बावजूद, मंत्रियों का रवैया यथावत है। इस मुद्दे ने कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी विवाद को भी जन्म दिया है, जिससे पार्टी की एकता पर सवाल उठने लगे हैं।
भविष्य की दिशा
विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो यह कांग्रेस पार्टी के लिए गंभीर समस्याएँ ला सकती है। अभी के लिए, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों के खिलाफ कुछ कठोर कदम उठाएँगे या फिर यह स्थिति यथावत बनी रहेगी।
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