फूलपुर में BJP मजबूत, सीसामऊ में नसीम के साथ संवेदनाएं:इरफान की सीट पर दलित पलटे तभी खिलेगा कमल
दो साल पहले कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा और प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कराई। सीसामऊ में भाजपा ने पिछले रिकॉर्ड को खंगाला और गुणा-भाग करके सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। सपा ने जेल में बंद पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया। फूलपुर में भाजपा ने चौथी बार पटेल समीकरण साधा और दीपक पटेल को चुनावी मैदान में उतारा। यहां सपा ने पिछले तीन चुनाव का गणित बैठाते हुए मुस्लिम कार्ड खेला। मुस्तफा सिद्दीकी पर दोबारा भरोसा जताया। अब सियासी समीकरण के मुताबिक, सीसामऊ में संवेदना और जातीय समीकरण के बीच मुकाबला दिख रहा है। फिलहाल, संवेदनाओं के सहारे नसीम सोलंकी मजबूत दिख रही हैं। इस मुस्लिम बहुल सीट पर उनके आंसू वोटर को कनेक्ट कर रहे हैं। हालांकि, भाजपा ने अगर अपना भितरघात रोक लिया। तो जातीय समीकरण पार्टी के पक्ष में माहौल बना सकते हैं। फूलपुर में भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही है। यहां पटेल वोटर के साथ-साथ मौर्य भाजपा की तरफ शिफ्ट होते दिख रहे हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन में टकराव की स्थिति है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने गठबंधन के खिलाफ जाते हुए नामांकन दाखिल किया। इसका प्रभाव भी देखने को मिला। सीसामऊ और फूलपुर सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? अभी हवा का रुख क्या है? ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले बात करते हैं सीसामऊ सीट की इतिहास अब पुरानी बात हो गई
भाजपा में टिकट के लिए होड़ मच गई। ऐसी होड़ कि भाजपा को सबसे बाद में प्रत्याशी घोषित करना पड़ा। मुहर सुरेश अवस्थी के नाम लगी। कहा जा रहा है कि जो रेस में थे, वो और उनके समर्थक नाराज हैं। लोग प्रत्याशियों और पार्टी पर चर्चा कर रहे हैं। भाजपा-सपा के अलावा, बसपा और आजाद समाज पार्टी के नेता-कार्यकर्ता प्रचार में जुट गए हैं। सीसामऊ के मौजूदा समीकरण 3 पॉइंट में समझिए... 1. सीसामऊ में सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूती से एकजुट है। नसीम सोलंकी को टिकट दिए जाने पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। दोनों ही पार्टी के नेता, कार्यकर्ता नसीम के लिए कैंपेनिंग कर रहे हैं। 2. इस सीट पर 22 साल से सोलंकी परिवार का कब्जा है। नसीम सोलंकी खुद को हिम्मती बताते हुए सहानुभूति बटोर रही हैं। वह लोगों को यही मैसेज दे रही हैं कि यह चुनाव आखिरी सीढ़ी है। आप मेरा परिवार हैं। 3. भाजपा ने सबसे ज्यादा प्रचार दलित आबादी वाले क्षेत्रों में किया। पूर्व विधायक राकेश सोनकर ने दावेदारी पेश की और नामांकन पत्र भी खरीदा। वह सीएम योगी से भी मिले। लेकिन भाजपा ने सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। ऐसे में भाजपा के अंदर ही मनमुटाव यानी भितरघात की संभावना दिखाई दे रही है। लोगों ने कहा...
सीसामऊ घनी आबादी वाला शहरी क्षेत्र है। इस एरिया में 17 वार्ड आते हैं। लोगों का मुख्य पेशा व्यापार है। इसे 3 मंडल- कौशलपुरी, रायपुरवा और चुन्नीगंज में बांटा गया है। हम यहां करीब 30 इलाकों में गए। 100 लोगों से बात की। यहां चुनाव के अलावा बहराइच हिंसा की चर्चा होते दिखी। रायपुरवा के व्यापारी ओमप्रकाश तिवारी ने कहा- इस बार प्रत्याशी और पार्टी को देखकर वोट करेंगे। सीएम योगी का काम बढ़िया है। लेकिन, यहां हिंदू और मुस्लिम में आबादी बंटी हुई है। मुस्लिम एकजुट हैं। लेकिन हिंदू एकजुट नहीं हो पाता। इरफान से नाराजगी नहीं है, काम भी उन्होंने खूब किया। लेकिन मुस्लिमों को ज्यादा सपोर्ट करते हैं। सीसामऊ क्षेत्र के रहने वाले राहुल राठौर कहते हैं- सपा और भाजपा में टक्कर है। क्षेत्र में भी हिंदू-मुस्लिम एक बराबर हैं। विकास के नाम पर वोट करेंगे। भाजपा को यहां से दलित प्रत्याशी उतारना चाहिए था, तो और कांटे की लड़ाई हो जाती। चमनगंज के रहने वाले अतीक अहमद ने कहा- सीसामऊ की जनता का मत साफ है। जो हमारे क्षेत्र की बात करेगा, हमारे मुद्दे रखेगा, जनता उसे ही वोट देगी। जिसके ऊपर जुल्म हुआ है, जनता उसका साथ देगी। खामोशी से लोगों ने मन बना लिया है। उन्होंने बहराइच हिंसा का भी जिक्र किया। कहा- सब कुछ खुलकर सामने आ गया है। हिंदू इलाके रामबाग के रहने वाले बाबू सिंह ने कहा- इस बार भाजपा की फिजा ठीक है। पहले भी यहां कम वोटों से हारे थे। इस बार जीत सकते हैं। संघ और भाजपा का गठजोड़ पक्का है। अभी मुकाबला कड़ा दिख रहा है। चमनगंज में गृहिणी साबिया कहती हैं- भाजपा ने मुसलमानों के लिए कोई काम नहीं किया। फ्री राशन और गैस सिलेंडर देख-देखकर बांटे गए हैं। सरकार से हमें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा। मकान भी नहीं मिला। हम तो अखिलेश के साथ हैं। इस सरकार में बुलडोजर चलाया जा रहा है। जेल में डाल दिया जा रहा है। जब से योगी की जनसभा हुई, तब से लाइट नहीं आ रही। अब जानते हैं वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं... 1. सीसामऊ में 80% मुस्लिम सपा को वोट करता है। हर बूथ पर 10-15% वोट सपा को मिलता है। मुस्लिम के बाद यहां सवर्ण वोटर्स ज्यादा हैं। तीसरे नंबर पर दलित वोटर्स हैं। फिर वैश्य-कायस्थ हैं। इनमें ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ और सिख का वोट भाजपा के फेवर में जाता है। लेकिन, दलित वोट बैंक सपा-कांग्रेस, बसपा में बंट जाता है। भाजपा अगर दलित वोटर्स को साध लेती है, तो चुनाव उसके पक्ष में हो सकता है। 2. पिछले चुनाव में भाजपा को 8% मुस्लिम वोट मिला। इस बार इसे 20% बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। अगर पार्टी इसे हासिल कर लेती है, तो उसे अच्छी लीड मिलेगी। हालांकि, ये बहुत चुनौतीपूर्ण है। 3. बसपा ने यहां वीरेंद्र कुमार शुक्ला को प्रत्याशी बनाया है। चंद्रशेखर की पार्टी ने मुस्लिम कैंडिडेट चांद बाबू को टिकट दिया है। बसपा यहां भाजपा की रणनीति को नुकसान पहुंचा सकती है। चंद्रशेखर सपा को। 4. 2017 चुनाव में सुरेश अवस्थी को सीसामऊ से बंपर वोट मिले। वह इरफान सोलंकी से मात्र 5 हजार 826 वोट पीछे रहे। भाजपा ने इसी कम मार्जिन को देखते हुए उन्हें टिकट दिया। अगर सुरेश अवस्थी 2017 वाला समीकरण बैठा लेते हैं, तो वह 5 हजार वोटों के मार्जिन
दो साल पहले कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा और प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कराई। सीसामऊ में भाजपा ने पिछले रिकॉर्ड को खंगाला और गुणा-भाग करके सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। सपा ने जेल में बंद पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया। फूलपुर में भाजपा ने चौथी बार पटेल समीकरण साधा और दीपक पटेल को चुनावी मैदान में उतारा। यहां सपा ने पिछले तीन चुनाव का गणित बैठाते हुए मुस्लिम कार्ड खेला। मुस्तफा सिद्दीकी पर दोबारा भरोसा जताया। अब सियासी समीकरण के मुताबिक, सीसामऊ में संवेदना और जातीय समीकरण के बीच मुकाबला दिख रहा है। फिलहाल, संवेदनाओं के सहारे नसीम सोलंकी मजबूत दिख रही हैं। इस मुस्लिम बहुल सीट पर उनके आंसू वोटर को कनेक्ट कर रहे हैं। हालांकि, भाजपा ने अगर अपना भितरघात रोक लिया। तो जातीय समीकरण पार्टी के पक्ष में माहौल बना सकते हैं। फूलपुर में भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही है। यहां पटेल वोटर के साथ-साथ मौर्य भाजपा की तरफ शिफ्ट होते दिख रहे हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन में टकराव की स्थिति है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने गठबंधन के खिलाफ जाते हुए नामांकन दाखिल किया। इसका प्रभाव भी देखने को मिला। सीसामऊ और फूलपुर सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? अभी हवा का रुख क्या है? ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले बात करते हैं सीसामऊ सीट की इतिहास अब पुरानी बात हो गई
भाजपा में टिकट के लिए होड़ मच गई। ऐसी होड़ कि भाजपा को सबसे बाद में प्रत्याशी घोषित करना पड़ा। मुहर सुरेश अवस्थी के नाम लगी। कहा जा रहा है कि जो रेस में थे, वो और उनके समर्थक नाराज हैं। लोग प्रत्याशियों और पार्टी पर चर्चा कर रहे हैं। भाजपा-सपा के अलावा, बसपा और आजाद समाज पार्टी के नेता-कार्यकर्ता प्रचार में जुट गए हैं। सीसामऊ के मौजूदा समीकरण 3 पॉइंट में समझिए... 1. सीसामऊ में सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूती से एकजुट है। नसीम सोलंकी को टिकट दिए जाने पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। दोनों ही पार्टी के नेता, कार्यकर्ता नसीम के लिए कैंपेनिंग कर रहे हैं। 2. इस सीट पर 22 साल से सोलंकी परिवार का कब्जा है। नसीम सोलंकी खुद को हिम्मती बताते हुए सहानुभूति बटोर रही हैं। वह लोगों को यही मैसेज दे रही हैं कि यह चुनाव आखिरी सीढ़ी है। आप मेरा परिवार हैं। 3. भाजपा ने सबसे ज्यादा प्रचार दलित आबादी वाले क्षेत्रों में किया। पूर्व विधायक राकेश सोनकर ने दावेदारी पेश की और नामांकन पत्र भी खरीदा। वह सीएम योगी से भी मिले। लेकिन भाजपा ने सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। ऐसे में भाजपा के अंदर ही मनमुटाव यानी भितरघात की संभावना दिखाई दे रही है। लोगों ने कहा...
सीसामऊ घनी आबादी वाला शहरी क्षेत्र है। इस एरिया में 17 वार्ड आते हैं। लोगों का मुख्य पेशा व्यापार है। इसे 3 मंडल- कौशलपुरी, रायपुरवा और चुन्नीगंज में बांटा गया है। हम यहां करीब 30 इलाकों में गए। 100 लोगों से बात की। यहां चुनाव के अलावा बहराइच हिंसा की चर्चा होते दिखी। रायपुरवा के व्यापारी ओमप्रकाश तिवारी ने कहा- इस बार प्रत्याशी और पार्टी को देखकर वोट करेंगे। सीएम योगी का काम बढ़िया है। लेकिन, यहां हिंदू और मुस्लिम में आबादी बंटी हुई है। मुस्लिम एकजुट हैं। लेकिन हिंदू एकजुट नहीं हो पाता। इरफान से नाराजगी नहीं है, काम भी उन्होंने खूब किया। लेकिन मुस्लिमों को ज्यादा सपोर्ट करते हैं। सीसामऊ क्षेत्र के रहने वाले राहुल राठौर कहते हैं- सपा और भाजपा में टक्कर है। क्षेत्र में भी हिंदू-मुस्लिम एक बराबर हैं। विकास के नाम पर वोट करेंगे। भाजपा को यहां से दलित प्रत्याशी उतारना चाहिए था, तो और कांटे की लड़ाई हो जाती। चमनगंज के रहने वाले अतीक अहमद ने कहा- सीसामऊ की जनता का मत साफ है। जो हमारे क्षेत्र की बात करेगा, हमारे मुद्दे रखेगा, जनता उसे ही वोट देगी। जिसके ऊपर जुल्म हुआ है, जनता उसका साथ देगी। खामोशी से लोगों ने मन बना लिया है। उन्होंने बहराइच हिंसा का भी जिक्र किया। कहा- सब कुछ खुलकर सामने आ गया है। हिंदू इलाके रामबाग के रहने वाले बाबू सिंह ने कहा- इस बार भाजपा की फिजा ठीक है। पहले भी यहां कम वोटों से हारे थे। इस बार जीत सकते हैं। संघ और भाजपा का गठजोड़ पक्का है। अभी मुकाबला कड़ा दिख रहा है। चमनगंज में गृहिणी साबिया कहती हैं- भाजपा ने मुसलमानों के लिए कोई काम नहीं किया। फ्री राशन और गैस सिलेंडर देख-देखकर बांटे गए हैं। सरकार से हमें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा। मकान भी नहीं मिला। हम तो अखिलेश के साथ हैं। इस सरकार में बुलडोजर चलाया जा रहा है। जेल में डाल दिया जा रहा है। जब से योगी की जनसभा हुई, तब से लाइट नहीं आ रही। अब जानते हैं वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं... 1. सीसामऊ में 80% मुस्लिम सपा को वोट करता है। हर बूथ पर 10-15% वोट सपा को मिलता है। मुस्लिम के बाद यहां सवर्ण वोटर्स ज्यादा हैं। तीसरे नंबर पर दलित वोटर्स हैं। फिर वैश्य-कायस्थ हैं। इनमें ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ और सिख का वोट भाजपा के फेवर में जाता है। लेकिन, दलित वोट बैंक सपा-कांग्रेस, बसपा में बंट जाता है। भाजपा अगर दलित वोटर्स को साध लेती है, तो चुनाव उसके पक्ष में हो सकता है। 2. पिछले चुनाव में भाजपा को 8% मुस्लिम वोट मिला। इस बार इसे 20% बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। अगर पार्टी इसे हासिल कर लेती है, तो उसे अच्छी लीड मिलेगी। हालांकि, ये बहुत चुनौतीपूर्ण है। 3. बसपा ने यहां वीरेंद्र कुमार शुक्ला को प्रत्याशी बनाया है। चंद्रशेखर की पार्टी ने मुस्लिम कैंडिडेट चांद बाबू को टिकट दिया है। बसपा यहां भाजपा की रणनीति को नुकसान पहुंचा सकती है। चंद्रशेखर सपा को। 4. 2017 चुनाव में सुरेश अवस्थी को सीसामऊ से बंपर वोट मिले। वह इरफान सोलंकी से मात्र 5 हजार 826 वोट पीछे रहे। भाजपा ने इसी कम मार्जिन को देखते हुए उन्हें टिकट दिया। अगर सुरेश अवस्थी 2017 वाला समीकरण बैठा लेते हैं, तो वह 5 हजार वोटों के मार्जिन को कम कर सकते हैं। अब जानते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने क्या कहा... सीसामऊ को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक राजेश द्विवेदी ने कहा- राकेश सोनकर को टिकट न देने से दलितों में नाराजगी हो सकती है। यहां आखिर में चुनाव हिंदू-मुस्लिम ही हो जाता है। अगर मुस्लिम की वोटिंग 65% से ज्यादा होती है, तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी होना तय है। ये भी तय है कि उप चुनाव में अगर हिंदू जमकर वोट करता है, तभी भाजपा को फायदा होगा। राजेश द्विवेदी ने कहा- भाजपा को 2 बार के हारे हुए चेहरे को उतारने के बजाय नया चेहरा लाना चाहिए था। वहीं सीट पर कांग्रेस का वोट करीब 20 हजार है, जो सपा के लिए प्लस होगा। सिख वोटर सपा में जाता है। जबकि भाजपा में कोई ऐसा नेता नहीं है, जो सिख वोटर को अपने पक्ष में ला सके। सीसामऊ में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट अब बात फूलपुर विधानसभा चुनाव की.... फूलपुर सीट पर भाजपा महाकुंभ और विकास की तमाम योजनाओं के साथ चुनावी मैदान में है। यहां सपा PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फार्मूला अपना रही है। 30 दिन पहले जब हमने यहां ग्राउंड रिपोर्ट की, तब मंगेश यादव एनकाउंटर केस चर्चा में था। लेकिन, अब यहां चुनाव का माहौल है। लोग सिर्फ प्रत्याशियों की बात करते दिख रहे हैं। फूलपुर में जातीय फैक्टर हावी है। सपा ने लोकसभा चुनाव में अमरनाथ मौर्य को उतारा था। तब उसे फूलपुर विधानसभा में लीड मिली। लेकिन, मुस्लिम कैंडिडेट उतारने के बाद स्थिति बदल गई है। भाजपा में भी दीपक पटेल को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटर्स में थोड़ी नाराजगी है। लेकिन कोई विकल्प न होने की वजह से वह भाजपा में जा सकते हैं। बसपा ने जितेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। लेकिन, वह पहली बार चुनावी मैदान में हैं। फूलपुर के मौजूदा समीकरण 3 पॉइंट में समझिए... 1. फूलपुर में एससी-ओबीसी वोट बैंक जिसके फेवर में होता है, यहां जीत उसी की होती है। ओबीसी वोटर्स में सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर पर पटेल-मौर्य हैं। सपा यादव-मुस्लिम वोट बैंक को अपना मानती है। वहीं, भाजपा पटेल वोटर्स को साधने की कोशिश करती है। यहीं से जीत-हार का अंतर बनता है। 2. सपा की तरफ से अमरनाथ मौर्य का नाम पहले रेस में था। लेकिन, पार्टी ने मुस्तफा सिद्दीकी को टिकट दे दिया। यहां उनका विरोध भी देखने को मिला। भाजपा ने यहां कैंपेनिंग की। पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल के बेटे को टिकट दिया। केशव मौर्य को यहां का प्रभारी बनाया। 3. कांग्रेस का फूलपुर में अच्छा वोट बैंक है। यही वजह थी कि इस पर पार्टी अपना दावा पेश कर रही थी। सीट खाली होने के बाद से लगातार सम्मेलन किए गए। चुनाव प्रभारी नियुक्त किए गए। राहुल गांधी भी प्रयागराज आए। लेकिन, सीट खाते में नहीं आई। इसलिए कांग्रेसियों में नाराजगी है, जिसका नुकसान सपा को हो सकता है। लोग बोले...
प्रयागराज से करीब 40 किमी. दूर फूलपुर ग्रामीण एरिया है। यहां लोगों का मुख्य पेशा खेती और पशुपालन है। हम 10 अलग-अलग क्षेत्रों में गए। करीब 100 लोगों से बात की। यहां एकमात्र सरकारी इंटर कॉलेज है। उसकी भी स्थिति खराब है। डिग्री और पॉलिटेक्निक कॉलेज की मांग कई सालों से की जा रही है। हम पहले बाबूगंज बाजार के पास चकमाली गांव पहुंचे। यहां नहर के किनारे शेषमणि पटेल पत्नी और बेटी के साथ धान कुटाई कर रहे थे। फूलपुर के उपचुनाव पर हमने चर्चा शुरू की तो बोल- फूलपुर में वर्षों से विशेष विकास नहीं हुआ। फिर भी BJP ने दीपक पटेल को उतारा है, तो हम लोग उनके साथ हैं। पत्नी राजकुमारी ने कहा- मोदी-योगी ने अच्छा काम किया है, सभी सुविधाएं मिल रही हैं, इसलिए पहली पसंद भाजपा ही है। आगे पाली बाजार पहुंचने पर क्लिनिक चलाने वाले डॉ. एसआर पाल मिले। पूछने पर बताया- सपा ने प्रत्याशी गलत उतारा है। लेकिन सपा प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल हमारे इलाके के हैं, इसलिए पाल बिरादरी का वोट उन्हें मिलेगा। यहां लड़ाई अभी 50-50 की है। इसी तरह यहां किराने की दुकान पर मौजूद पुरुषोत्तम, शोभनाथ व सुरेश यादव ने कहा, सपा प्रत्याशी से नाराजगी है। लेकिन, हम लोग अखिलेश यादव के चेहरे पर वोट करेंगे। महारथ इलाके में रहने वाले राकेश पाठक भाजपा के निर्णय पर नाराज दिखे। बोले- फूलपुर में पटेल के अलावा और भी जातियां हैं। आखिर उन्हें मौका क्यों नहीं मिलता? 2022 के चुनाव में प्रवीण पटेल को टिकट मिला। फिर लोकसभा में भी उन्हीं को टिकट दे दिया। अब फिर इस चुनाव में दीपक पटेल को प्रत्याशी बना दिया। उन्हें दूसरी जातियों का भी ख्याल रखना चाहिए। व्यापारी लक्ष्मीकांत मिश्र (काका) कहते हैं- अभी तक के समीकरण को देखा जाए तो भाजपा कहीं न कहीं मजबूत दिखाई दे रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सपा से मुस्लिम प्रत्याशी उतारा जाना भी है। यदि सपा किसी हिंदू कैंडिडेट को यहां लाती, तो लड़ाई कांटे की होती। अगर अमरनाथ मौर्य को टिकट मिलता तो मौर्या बिरादरी समेत अन्य छोटी जातियां सपा के साथ होती हैं। अब जानते हैं वे कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं... 1. सपा अगर PDA फार्मूले को लोकसभा चुनाव की तरह भुना लेती है, तो माहौल बदल सकता है। कांग्रेस के विरोध को मनाना बड़ी चुनौती होगी। 2. भाजपा सपा पर परिवारवाद का आरोप लगाती है। लेकिन, खुद ही परिवार के कैंडिडेट को टिकट दिया। सपा इसे मुद्दा बना रही है। यह मुद्दा हिट हुआ, तो परिणाम बदल सकते हैं। 3. फूलपुर की बड़ी समस्या गोवंश और बिजली की है। इफको में स्थानीय लोगों को रोजगार न मिलना भी बड़ा इश्यू है। ये मुद्दे भी लोगों का रुख बदल सकते हैं। अब जानते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने क्या कहा... फूलपुर की राजनीति को करीब से जानने वाले आशीष गुप्ता कहते हैं- यहां लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। यहां यादव और मुस्लिम अगर सपा को वोट देते हैं, तब भी भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। वजह उनका प्रत्याशी है। लोकसभा में सपा ने जिस हथियार का प्रयोग किया था, उसकी धार अब कमजोर हो गई है। उस समय उन्होंने आरक्षण और संविधान को हथियार बनाया था। यहां मुख्यमंत्री का 'बंटोगे तो कटोगे' वाला बयान चर्चा में है। भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बना लिया है। आशीष गुप्ता ने बताया- भाजपा को हिंदू वोटर्स पसंद कर रहे हैं। इनमें क्षत्रिय, ब्राह्मण तो हैं ही। साथ ही पटेल-निषाद और अन्य जातियां भी भाजपा के साथ हैं। हरियाणा में भी भाजपा ने विकास और हिंदुओं की एकजुटता की बात करते हुए चुनाव जीत लिया। अब जानते हैं, दो सीटों पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे .................................... यह खबर भी पढ़ें अखिलेश की करहल सीट पर 'भतीजा' मजबूत: 2002 के यादव फॉर्मूले से BJP को जीत की उम्मीद; अनुजेश को उतार मुकाबले में आई मैनपुरी की करहल सीट को सपा अपना मजबूत गढ़ मानती है। 2 दिन पहले तक इस सीट पर एकतरफा चुनाव दिखाई दे रहा था, लेकिन 24 अक्टूबर को भाजपा ने जैसे ही अनुजेश यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। सीट चर्चा में आ गई। भाजपा ने यहां 'यादव कार्ड' खेलकर खुद को मजबूत मुकाबले में खड़ा कर दिया है। अनुजेश यादव सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के बहनोई हैं। पढ़ें पूरी खबर...