बाबा बालकनाथ मंदिर में 10 दिन में ₹2.82 करोड़ चढ़ावा:हिमाचल में हरियाणा-पंजाब से 2.53 लाख श्रद्धालु पहुंचे; 12 देशों की करेंसी भी दान की

हिमाचल के हमीरपुर में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर में चल रहे चैत्र मेले में हरियाणा, पंजाब समेत कई राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। पिछले 10 दिन में यहां 2.3 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। इस दौरान यहां 2, 82, 32,136 का चढ़ावा आया है। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष और बड़सर के SDM राजेंद्र गौतम ने बताया कि 2 करोड़ 12 लाख 8 हजार 311 रुपए गुफा के अंदर और 70 लाख 23 हजार 825 रुपए दानपात्र में मिले हैं। इससे पहले 10 दिन में 2.25 करोड़ से ज्यादा का चढ़ावा कभी नहीं चढ़ा। श्रद्धालुओं ने 81.95 ग्राम सोना, 1 किलो 219.09 ग्राम चांदी समेत 12 देशों की विदेशी करेंसी भी चढ़ाई। चैत्र मेला 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चलेगा। श्रद्धालु 360 सीढ़ियां चढ़कर बाबा बालक नाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। कुछ श्रद्धालु यहां दंडवत भी आते हैं। कई देशों की विदेशी करेंसी आई राजेंद्र गौतम ने आगे बताया कि मंदिर में विदेशी करेंसी भी चढ़ावे में आई है। इनमें 1 हजार 920 ब्रिटिश पाउंड, 1 हजार 448 अमेरिकी डॉलर, 1 हजार 270 यूरो, 10 हजार 946 कनाडाई डॉलर, 485 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, 1 हजार 930 यूएई दिरहम, 29 कतर रियाल, 15 सऊदी रियाल, 330 न्यूजीलैंड डॉलर, 110 सिंगापुर डॉलर, 8 बहरीन दीनार और 84 मलेशियाई रिंगित शामिल हैं। इनकी कीमत करीब सवा 12 लाख रुपए है। धौलागिरी पर्वत की पहाड़ियों में है गुफा बाबा बालक नाथ मंदिर हमीरपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर हमीरपुर और बिलासपुर जिले की सीमा पर चकमोह गांव के दियोटसिद्ध नामक क्षेत्र में स्थित है। धौलगिरी पर्वत की पहाड़ियों पर एक प्राकृतिक गुफा में बाबा की प्रतिमा स्थापित है। वर्तमान में महंत श्री श्री 1008 राजेंद्र गिरि जी महाराज गद्दी पर विराजमान है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु गुफा में दर्शन के बाद महंत का भी आशीर्वाद लेने के लिए भी उनके निवास पर पहुंचते हैं। मान्यता है की गुफा दर्शनों के बाद गद्दीसीन महंत के दर्शन करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास... बाबा बालक नाथ हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जो गुरु दत्तात्रेय के प्रति अपनी भक्ति और अपने चमत्कारिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं। किंवदंती के अनुसार, बाबा ने तीन वर्ष की आयु में अपना परिवार छोड़ दिया था और ऋषि नारद ने उन्हें गुरु दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करने के लिए निर्देशित किया था। जब बाबा चार वर्ष के थे, तब गुरु दत्तात्रेय ने उन्हें अपना शिष्य बनाया और वे चार-धाम यात्रा पर निकल पड़े। अपनी तीर्थयात्रा के दौरान, बाबा बनवाला में रुके और बाद में हिमाचल के शाहतलाई पहुंचे, जहां वे माता रत्नो के दत्तक पुत्र बने और उनकी गायों की देखभाल की। बाबा बालक नाथ ने बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए, योगाभ्यास करते हुए और भोजन में रत्नो माई से रोटी और लस्सी स्वीकार करते हुए 12 वर्ष बिताए। बारहवें वर्ष के अंत में गांव के लोगों की शिकायतें आने लगीं कि बाबा उनकी गायों की उपेक्षा कर रहे हैं और उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रत्नो माई ने स्वयं लोगों को समझाने की कोशिश की, लेकिन ग्राम प्रधान ने गायों द्वारा फसलों को हुए गंभीर नुकसान के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से डांटा। तब रत्नो माई ने अपना धैर्य खो दिया और बाबा से उनकी लापरवाही की शिकायत की। यह सुनकर, बाबा उन्हें और गांव के मुखिया को उस खेत में ले गए जिसके बारे में वे शिकायत कर रहे थे, जहां उन्हें आश्चर्य हुआ कि फसलें चमत्कारिक रूप से पूर्ववत हो गई थीं। बाबा ने बरगद के वृक्ष के तने पर अपना चिमटा फेंका, जिसके नीचे वह पिछले 12 वर्षों से बैठे थे, और लकड़ी का एक टुकड़ा टूट गया, जिससे अंदर रोटियों का ढेर दिखाई देने लगा। उन्होंने अपना चिमटा जमीन में भी धंसाया और छाछ का झरना फूट पड़ा, जो शीघ्र ही छाछ का तालाब बन गया। यह तालाब आज भी शाहतलाई में देखा जा सकता है, जिससे इस स्थान का नाम पड़ा। आज, जिस स्थान पर पौराणिक बरगद का वृक्ष स्थित था, वहां एक खोखली संरचना है जिसे "खोखले वृक्ष के नीचे तपस्या की भूमि" कहा जाता है और बाबा बालक नाथ, गुगा चौहान और नाहर सिंह की मूर्तियों वाला एक मंदिर है। भक्तों का मानना है कि उस स्थान की मिट्टी पशुओं के पैर के रोगों के लिए एक प्रभावी औषधि है। बाबा बालक नाथ की कथा आस्था और भक्ति की शक्ति की याद दिलाती है और उनके चमत्कार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

Mar 25, 2025 - 11:59
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बाबा बालकनाथ मंदिर में 10 दिन में ₹2.82 करोड़ चढ़ावा:हिमाचल में हरियाणा-पंजाब से 2.53 लाख श्रद्धालु पहुंचे; 12 देशों की करेंसी भी दान की
हिमाचल के हमीरपुर में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर में चल रहे चैत्र मेले में हरियाणा, पंजाब समेत कई र

बाबा बालकनाथ मंदिर में 10 दिन में ₹2.82 करोड़ चढ़ावा

बाबा बालकनाथ मंदिर, जो कि हिमाचल प्रदेश में स्थित है, ने हाल ही में चढ़ावे के मामले में एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। पिछले 10 दिनों में, इस मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा कुल मिलाकर ₹2.82 करोड़ का चढ़ावा चढ़ाया गया है। यह चढ़ावा विभिन्न स्रोतों से आया है, जिसमें हरियाणा और पंजाब से आए श्रद्धालु भी शामिल हैं।

श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड संख्या

इस साल, बाबा बालकनाथ मंदिर में हरियाणा और पंजाब से लगभग 2.53 लाख श्रद्धालु पहुंचे हैं। यह संख्या इस बात का संकेत है कि इस धार्मिक स्थान की लोकप्रियता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। श्रद्धालुओं ने न केवल कुछ रुपए चढ़ाए, बल्कि 12 देशों की करेंसी भी दान की, जो इस मंदिर के प्रति उनकी आस्था को दर्शाता है।

आस्था का प्रतीक

बाबा बालकनाथ मंदिर, जो अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए जाने जाते हैं, भारतीय समाज में आस्था का एक बड़ा प्रतीक बन चुका है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान खोजने और मानसिक शांति पाने के लिए आते हैं। उनके द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे का उपयोग मंदिर के विकास और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है।

स्पेशल इवेंट्स और सुविधाएँ

मंदिर प्रबंधन ने इस वर्ष विशेष आयोजनों की योजना बनाई है, जिसमें भजन संध्या और अन्य धार्मिक कार्यक्रम शामिल हैं। इसके अलावा, मंदिर के आसपास की सुविधाओं को भी बेहतर बनाने के लिए प्रयास जारी हैं ताकि श्रद्धालुओं को एक सुखद अनुभव मिल सके।

धार्मिक यात्रा को प्रमोट करना

बाबा बालकनाथ मंदिर की व्यवस्थाएँ कुछ इस तरह की गई हैं कि लोगों को यहाँ आना आसान हो सके। खासकर हिंदू त्योहारों के दौरान, मंदिर में बड़े पैमाने पर लोग आते हैं। इसके अतिरिक्त, स्थानीय प्रशासन भी इस धार्मिक स्थल की यात्रा को प्रमोट करने के लिए विभिन्न योजनाएं बना रहा है।

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इन सब के माध्यम से, बाबा बालकनाथ मंदिर केवल श्रद्धा का केंद्र नहीं रह गया है, बल्कि यह हिमाचल प्रदेश के पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। हर साल देश-विदेश से श्रद्धालुओं की एक बड़ी संख्या यहाँ पहुँचती है, जो इस क्षेत्र के लिए एक आर्थिक विकास का माध्यम है। Keywords: बाबा बालकनाथ मंदिर, श्रद्धालु, चढ़ावा, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा पंजाब, 12 देशों की करेंसी, धार्मिक आस्था, मंदिर प्रबंधन, विशेष आयोजनों, भारतीय मंदिर, पर्यटन स्थल, धार्मिक यात्रा, आर्थिक विकास, मंदिर सेवाएँ.

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