बिजली निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों ने खोला मोर्चा:वाराणसी में 4 दिसम्बर को जन पंचायत का किया ऐलान, शामिल होंगे बिजली कर्मी
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा घाटा दिखाते हुए प्रदेश की बिजली कंपनियों को चलाने के लिए पीपीपी माडल पर निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी के फैसले का चौतरफा विरोध कार्मिकों ने शुरू कर दिया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मंगलवार की रात बैठक के बाद ऐलान किया है कि निजीकरण के फैसले के खिलाफ व्यापक जनसंपर्क अभियान और जन पंचायतें की जाएंगी। पहली जन पंचायत चार दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में की जाएगी। 4 दिसम्बर को वाराणसी में होगा जन पंचायत बैठक के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की गई है कि व्यापक जनहित में वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के निर्णय को निरस्त करें। समिति ने यह भी निर्णय लिया है कि निजीकरण के बाद होने वाली कठिनाइयों से लोगों को अवगत कराने के लिए व्यापक जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। जन जागरण अभियान के पहले चरण में आगामी 4 दिसम्बर को वाराणसी में और 10 दिसम्बर को आगरा में जन पंचायत आयोजित की जाएगी। जन पंचायत में बिजली कर्मियों के साथ ही आम उपभोक्ता शामिल होंगे। घाटे के भ्रामक आंकड़ें प्रस्तुत करने का लगाया आरोप विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति प्रमुख पदाधिकारियों जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने बताया है कि पॉवर कारपोरेशन का फैसला कर्मचारियों और आम जनता के हित में नहीं है। 25 जनवरी 2000 को मुख्यमंत्री के साथ हुए लिखित समझौते में यह लिखा है 'विद्युत सुधार अंतरण स्कीम के लागू होने से हुए उपलब्धियों का मूल्यांकन कर यदि आवश्यक हुआ तो पूर्व की स्थिति बहाल करने पर एक वर्ष बाद विचार किया जाएगा।' संघर्ष समिति ने कहा है कि पावर कारपोरेशन द्वारा जारी घाटे से संबंधित आंकड़ें पूरी तरह भ्रामक हैं। इसे इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है, जैसे घाटे का मुख्य कारण कर्मचारी व अभियंता हैं। उन्होंने बताया इस वर्ष सरकार द्वारा 46130 करोड़ रुपये की सहायता देने की बात कही गई है। जिसमें यह तथ्य छिपाया जा रहा है कि 46130 करोड़ रुपये में सब्सिडी की धनराशि 20 हजार करोड़ रुपये है जो विद्युत अधिनियम-2003 के अनुसार सरकार को देनी ही होती है। इसी प्रकार जिस ओडिशा माडल की बात प्रबंधन कर रहा है, उसका परफॉर्मेंस उप्र की वितरण कंपनियों से कहीं ज्यादा खराब है। घाटे का बड़ा कारण निजी क्षेत्र से महंगी बिजली खरीदकर घाटा उठाते हुए सस्ते दरों पर बेचना है।
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