वाराणसी के रामेश्‍वर में लोटा-भंटा मेला का आज से आगाज:भगवान राम ने शिव को लगाया था बाटी-चोखा भोग, श्रद्धालु चढ़ाते वही प्रसाद

काशी के गंगा तट से लेकर वरुणा तट तक भगवान शिव के मंदिरों का इतिहास सतयुग से लेकर कलयुग तक है। प्राचीन वरुणा नदी के तट पर आज श्रद्धालुओं का रेला जुटेगा। वरुणा व पंच शिवाला संगम क्षेत्र में लोटा-भंटा मेला गुरुवार से आगाज हो चुका है। भोर से ही रामेश्वर तीर्थ में भक्तों की अपार भीड़ पहुंच रही है, दूर दूर से आस्‍थावानों की भीड़ भोले को बाटी चोखा का भोग लगाने में जुटी हुई है। आस्‍था का रेला शुरू होने के साथ ही कंडों पर आलू, बैंगन और टमाटर को भूनकर चोखा और आटे व सत्‍तू से बाटी बनाकर प्रसाद ग्रहण करने और उसका भोग रामेश्‍वर में महादेव को लगाने के लिए आस्‍थावानों की कतार लगी हुई है। उधर, डीसीपी गोमती जोन प्रमोद कुमार ने एडीसीपी समेत अन्य अधिकारियों के साथ रामेश्वर पंचशिवाला-हरहुआ के बीच इंतजाम देखे। यातायात और सुरक्षा व्यवस्था की पड़ताल की। भक्तों की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस, पीएसी और अन्य सुरक्षा बल तैनात है। वाराणसी में देव दीपावली के बाद लोटा-भंटा मेला भी ग्रामीण इलाके का उत्सव है, मार्गशीर्ष की षष्ठी तिथि पर काशीवासी भगवान भोलेनाथ को बाटी-चोखा का भोग लगाते हैं। गुरुवार को भोर से रामेश्वर में लगने वाले सुप्रसिद्ध मेले में शामिल होने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचने लगे। रामेश्वर, पांचों शिवाला, रसूलपुर, चक्का सहित आसपास के कई गांव के बगीचों में भीड़ नजर आ रही है। रामेश्वर की सभी धर्मशालाएं बुधवार की देर रात्रि से ही भर गई थीं, तो वहीं मंदिर के बाहर भोर से कतार लगी है। रामेश्वर तीर्थ में दर्शन के बाद श्रद्धालुओं ने वरुणा नदी के कछार पर लगे मेले में अपने अहरे लगा दिए हैं और इनसे उठता धुंआ नजर आ रहा था। रामेश्‍वर महादेव सहित विभिन्न देवालयों में दर्शन-पूजन के बाद प्रसाद स्‍वरूप बाटी-चोखा का प्रसाद लिया। भगवान राम के लंका से लौटने का महात्म्य लोटा-भंटा मेला का महात्म्य भगवान श्रीराम से जुड़ा है, जहां शिव व राम का पहला मिलन स्थल रामेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। विद्वानों की माने तो रावण वध के बाद भगवान श्रीराम ने प्रायश्चित करने के लिए यहां एक मुट्ठी रेत का शिवलिंग बना कर लोटा जल से पूजा कर बाटी-चोखा प्रसाद बनाकर भगवान शिव को भोग लगाया। मान्‍यता है कि रामेश्‍वरम के बाद काशी में भगवान राम ने रेत से शिवलिंग की स्‍थापना की थी। वरुणा तट पर रेत से बनी रामेश्‍वर महादेव का शिवलिंग आज भी भगवान राम की स्‍मृतियों को ताजा करती है। आस्‍थावानों का यह रेला संतान की कामना से बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उमड़ा तो सुबह से बाटी चोखा की सुवास वातावरण में घुल गई। यह भी मान्यता है कि अगहन महीने की षष्ठी तिथि पर रामेश्वर तीर्थ पर स्नान और दर्शन-पूजन के साथ रात्रि प्रवास करने पर नि:संतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस कामना से पूर्वांचल ही नहीं बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड आदि राज्यों से काफी संख्या में लोग लोटा-भंटा मेले में पहुंचते हैं।

Nov 21, 2024 - 08:05
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वाराणसी के रामेश्‍वर में लोटा-भंटा मेला का आज से आगाज:भगवान राम ने शिव को लगाया था बाटी-चोखा भोग, श्रद्धालु चढ़ाते वही प्रसाद
काशी के गंगा तट से लेकर वरुणा तट तक भगवान शिव के मंदिरों का इतिहास सतयुग से लेकर कलयुग तक है। प्राचीन वरुणा नदी के तट पर आज श्रद्धालुओं का रेला जुटेगा। वरुणा व पंच शिवाला संगम क्षेत्र में लोटा-भंटा मेला गुरुवार से आगाज हो चुका है। भोर से ही रामेश्वर तीर्थ में भक्तों की अपार भीड़ पहुंच रही है, दूर दूर से आस्‍थावानों की भीड़ भोले को बाटी चोखा का भोग लगाने में जुटी हुई है। आस्‍था का रेला शुरू होने के साथ ही कंडों पर आलू, बैंगन और टमाटर को भूनकर चोखा और आटे व सत्‍तू से बाटी बनाकर प्रसाद ग्रहण करने और उसका भोग रामेश्‍वर में महादेव को लगाने के लिए आस्‍थावानों की कतार लगी हुई है। उधर, डीसीपी गोमती जोन प्रमोद कुमार ने एडीसीपी समेत अन्य अधिकारियों के साथ रामेश्वर पंचशिवाला-हरहुआ के बीच इंतजाम देखे। यातायात और सुरक्षा व्यवस्था की पड़ताल की। भक्तों की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस, पीएसी और अन्य सुरक्षा बल तैनात है। वाराणसी में देव दीपावली के बाद लोटा-भंटा मेला भी ग्रामीण इलाके का उत्सव है, मार्गशीर्ष की षष्ठी तिथि पर काशीवासी भगवान भोलेनाथ को बाटी-चोखा का भोग लगाते हैं। गुरुवार को भोर से रामेश्वर में लगने वाले सुप्रसिद्ध मेले में शामिल होने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचने लगे। रामेश्वर, पांचों शिवाला, रसूलपुर, चक्का सहित आसपास के कई गांव के बगीचों में भीड़ नजर आ रही है। रामेश्वर की सभी धर्मशालाएं बुधवार की देर रात्रि से ही भर गई थीं, तो वहीं मंदिर के बाहर भोर से कतार लगी है। रामेश्वर तीर्थ में दर्शन के बाद श्रद्धालुओं ने वरुणा नदी के कछार पर लगे मेले में अपने अहरे लगा दिए हैं और इनसे उठता धुंआ नजर आ रहा था। रामेश्‍वर महादेव सहित विभिन्न देवालयों में दर्शन-पूजन के बाद प्रसाद स्‍वरूप बाटी-चोखा का प्रसाद लिया। भगवान राम के लंका से लौटने का महात्म्य लोटा-भंटा मेला का महात्म्य भगवान श्रीराम से जुड़ा है, जहां शिव व राम का पहला मिलन स्थल रामेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। विद्वानों की माने तो रावण वध के बाद भगवान श्रीराम ने प्रायश्चित करने के लिए यहां एक मुट्ठी रेत का शिवलिंग बना कर लोटा जल से पूजा कर बाटी-चोखा प्रसाद बनाकर भगवान शिव को भोग लगाया। मान्‍यता है कि रामेश्‍वरम के बाद काशी में भगवान राम ने रेत से शिवलिंग की स्‍थापना की थी। वरुणा तट पर रेत से बनी रामेश्‍वर महादेव का शिवलिंग आज भी भगवान राम की स्‍मृतियों को ताजा करती है। आस्‍थावानों का यह रेला संतान की कामना से बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उमड़ा तो सुबह से बाटी चोखा की सुवास वातावरण में घुल गई। यह भी मान्यता है कि अगहन महीने की षष्ठी तिथि पर रामेश्वर तीर्थ पर स्नान और दर्शन-पूजन के साथ रात्रि प्रवास करने पर नि:संतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस कामना से पूर्वांचल ही नहीं बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड आदि राज्यों से काफी संख्या में लोग लोटा-भंटा मेले में पहुंचते हैं।

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