शेख हसीना के पिता अब बांग्लादेश के राष्ट्रपिता नहीं कहलाएंगे:स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा भी बदली; 3 दिन पहले करेंसी से तस्वीर हटाई थी

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान का 'राष्ट्रपिता' का दर्जा खत्म कर दिया है। इसके लिए एक अध्यादेश जारी कर कानून से 'राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान' शब्द को हटा दिया गया। इसके साथ साथ ही, 1971 के स्वतंत्रता सेनानी और संग्राम की परिभाषा को भी बदला गया है। हाल ही में 1 जून को मोहम्मद यूनुस की सरकार ने नए करेंसी नोटों से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को भी हटा दिया है। नए नोटों पर हिंदू और बौद्ध मंदिरों की तस्वीरें भी छापी जाएंगी। हालांकि पुराने नोट और सिक्के भी चलन में बने रहेंगे। भारत में ट्रेनिंग लेने वालों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा स्वतंत्रता सेनानी की नई परिभाषा के तहत 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच जिन नागरिकों ने युद्ध की तैयारी की, भारत में ट्रेनिंग कैंप्स में हिस्सा लिया, पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों के खिलाफ हथियार उठाए थे उन्हें स्वतंत्रता सेनानी माना जाएगा। नई परिभाषा के तहत सशस्त्र बलों, ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स (EPR), पुलिस, मुक्तिबाहिनी, मुजीबनगर सरकार और उसकी मान्यता प्राप्त सेनाओं, नौसेना कमांडो, किलो फोर्स और अंसार के सदस्यों को भी स्वतंत्रता सेनानी की कैटेगरी में शामिल किया गया है। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों ने जिन महिलाओं (वीरांगना) पर जुल्म किए थे उन्हें भी स्वतंत्रता सेनानी माना जाएगा। इसके साथ ही युद्ध के दौरान घायल बांग्ला लड़ाकों का इलाज करने वाले डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल सहायकों को भी स्वतंत्रता सेनानी माना जाएगा। स्वतंत्रता संग्राम की परिभाषा में बदलाव पहले यह कहा जाता था कि स्वतंत्रता संग्राम शेख मुजीबुर रहमान के अपील पर शुरू हुआ था। अब नई परिभाषा में उनका नाम हटा दिया गया है। अब इसे 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 तक चले सशस्त्र संघर्ष के तौर पर परिभाषित किया गया है। यह संघर्ष बांग्लादेश के लोगों ने समानता, मानव गरिमा और सामाजिक न्याय पर आधारित एक लोकतांत्रिक देश की स्थापना के लिए पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ लड़ा था। जनवरी में पाठ्य पुस्तकों में भी बड़ा बदलाव किया गया बांग्लादेश की मौजूदा सरकार ने जनवरी में देश की पाठ्य पुस्तकों में बड़ा बदलाव किया था। नई किताबों में बताया गया है कि साल 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मुजीबुर्रहमान ने नहीं बल्कि जियाउर रहमान ने दिलाई थी। जियाउर रहमान बांग्लादेश की पूर्व राष्ट्रपति खालिदा जिया के पति थे। वे बांग्लादेश की आजादी के बाद को-आर्मी चीफ बने। बाद में वे देश के राष्ट्रपति भी बने। साल 1981 में सेना से जुड़े कुछ लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी। बांग्लादेश की आजादी की घोषणा को लेकर विवाद बांग्लादेश में यह हमेशा से विवादित रहा है कि वहां आजादी की घोषणा किसने की थी। अवामी लीग का दावा है कि यह घोषणा ‘बंगबंधु’ मुजीबुर्रहमान ने की थी, जबकि खालिदा जिया की BNP पार्टी अपने संस्थापक जियाउर रहमान को इसका श्रेय देती है। शेख मुजीब से जुड़ी कई निशानियों पर हमला अगस्त 2024 को बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से लगातार शेख मुजीब की जुड़ी निशानियों पर हमला किया गया था। ढाका में उनकी मूर्ति को तोड़ा गया और कई सार्वजनिक स्थानों पर लगी नेमप्लेट को भी हटा दिया गया। अंतरिम सरकार ने आजादी और संस्थापक से जुड़े दिनों की 8 सरकारी छुट्टियां भी कैंसिल कर दी थी। शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति थे। वह 17 अप्रैल 1971 से लेकर 15 अगस्त 1975 तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर्रहमान की उनके घर पर ही हत्या कर दी गई थी। शेख हसीना पिछले 10 महीने से भारत में रह रहीं शेख हसीना पिछले साल 5 अगस्त को देश छोड़कर भारत आ गई थीं। दरअसल, उनके खिलाफ देशभर में छात्र प्रदर्शन कर रहे थे। बांग्लादेश में 5 जून को हाईकोर्ट ने जॉब में 30% कोटा सिस्टम लागू किया था, इस आरक्षण के खिलाफ ढाका में यूनिवर्सिटीज के स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट कर रहे थे। यह आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को दिया जा रहा था। हालांकि, हसीना सरकार ने यह आरक्षण बाद में खत्म कर दिया था। इसके बाद छात्र उनके इस्तीफे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगे। बड़ी संख्या में छात्र और आम लोग हसीना और उनकी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर आए। इस प्रोटेस्ट के दो महीने बाद 5 अगस्त को उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद अंतरिम सरकार की स्थापना की गई। ----------------------------------------- यह खबर भी पढ़ें... बांग्‍लादेशी करेंसी से शेख हसीना के पिता की तस्‍वीर हटाई:राष्ट्रपिता माने जाते हैं शेख मुजीब, नए नोटों पर हिंदू-बौद्ध मंदिरों की फोटो बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने रविवार को 1000, 50 और 20 टका के नए नोट जारी किए। इन नोटों से शेख हसीना के पिता और देश के संस्‍थापक राष्‍ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की तस्‍वीर को हटा दिया गया है। यहां पढ़ें पूरी खबर...

Jun 4, 2025 - 18:27
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शेख हसीना के पिता अब बांग्लादेश के राष्ट्रपिता नहीं कहलाएंगे:स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा भी बदली; 3 दिन पहले करेंसी से तस्वीर हटाई थी
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता और पहले राष्ट्रपत

शेख हसीना के पिता अब बांग्लादेश के राष्ट्रपिता नहीं कहलाएंगे: स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा भी बदली; 3 दिन पहले करेंसी से तस्वीर हटाई थी

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक विवादास्पद निर्णय लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता, बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति, शेख मुजीबुर रहमान का 'राष्ट्रपिता' का दर्जा खत्म कर दिया है। यह निर्णय 1 जून को बांग्लादेश की केंद्रीय बैंक द्वारा जारी नए नोटों में से उनकी तस्वीर हटा देने के बाद आया है। यह कदम बांग्लादेश के इतिहास को नए दृष्टिकोण से परिभाषित करने का एक प्रयास नजर आता है, जो 1971 के स्वतंत्रता संग्राम की परिभाषा को भी प्रभावित करता है।

शेख मुजीबुर रहमान का 'राष्ट्रपिता' का दर्जा खत्म

अंतरिम सरकार ने इस विषय पर एक अध्यादेश जारी किया है, जिसके तहत 'राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान' शब्द को कानूनी मान्यता से हटा दिया गया। इस निर्णय ने बांग्लादेश में राजनीतिक हलचलें पैदा कर दी हैं, क्योंकि शेख मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा को भी व्यापक रूप से बदला गया है।

स्वतंत्रता सेनानी की नई परिभाषा

नई परिभाषा के अनुसार, 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच जो नागरिक पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष में शामिल हुए थे, उन्हें अब स्वतंत्रता सेनानी माना जाएगा। इस नई श्रेणी में सशस्त्र बलों, पुलिस, मुक्तिबाहिनी, और अन्य संगठनों के सदस्य शामिल हैं। इससे पहले स्वतंत्रता संग्राम को शेख मुजीबुर रहमान की अपील पर शुरू होने वाली घटना माना जाता था, लेकिन अब इसे एक जन आंदोलन के रूप में देखा जाने लगा है।

करेंसी नोटों से हटाई गई तस्वीर

हाल ही में जारी किए गए नए करेंसी नोटों में से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को हटा दिया गया है, और इसके स्थान पर हिंदू और बौद्ध मंदिरों की तस्वीरें छापी जाएंगी। यह कदम संस्कृति और धर्म के सम्मिलन के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह शेख मुजीब के अनुयायियों के बीच भारी विवादों का कारण भी बन रहा है।

भविष्य की योजना

अंतरिम सरकार ने न केवल राष्ट्रपिता का दर्जा खत्म किया है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई सरकारी छुट्टियों को भी रद्द कर दिया है। इन सब परिदृश्यों से यह स्पष्ट हो रहा है कि बांग्लादेश की वर्तमान सरकार अपने स्वतंत्रता संघर्ष की नई कहानी लिखने की कोशिश कर रही है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

नेता शेख हसीना, जो पिछले 10 महीनों से भारत में रह रही हैं, अपने देश में एक विरोध प्रदर्शन के कारण लौटने में असमर्थ रहे हैं। कई युवा छात्र और आम नागरिक बांग्लादेश में उनके नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सब बदलाव बांग्लादेश की राजनीति में एक नई दिशा देने का संकेत दे रहे हैं।

ये घटनाक्रम सिद्ध करते हैं कि राजनीतिक संघर्ष केवल शक्ति की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक नई पहचान को खोजने का भी प्रयास है। हालाँकि, बांग्लादेश की पहचान सदियों से शेख मुजीबुर रहमान से जुड़ी रही है, ऐसे में उनका राष्ट्रपिता मान्यता का खत्म होना एक बड़ा घटनाक्रम है।

ये सभी घटनाएँ बांग्लादेश के इतिहास, संस्कृति और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। आने वाले समय में कैसे ये बदलाव बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करेंगे, ये देखना दिलचस्प रहेगा।

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