सैयद हसन रजा ने इल्म-ए-जफर छोड़ पढ़ा पंचांग:मुस्लिम वर्ग के लोगों की बना रहे कुंडली,बोले- धर्मों में नहीं रखना चाहिए भेदभाव
देश में भले ही धर्मों को लेकर मतभेद की खबरें सामने आती रहती है। लेकिन इस मुल्क में आज भी गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करने वाले लोग मौजूद हैं। ऐसे ही है मुगलसराय के सैयद हसन रजा जिन्होंने कहा कि हमारे इल्म-ए-जफर को बताने और उसको समझने वाले बहुत कम है जिन्हें उसके बारे में जानकारी थी वह अब इस दुनिया में नहीं है या फिर बुजुर्ग हो गये है। सैयद हसन रजा आज के समय में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों की कुंडली तैयार करते हैं साथ ही विवाह की तिथि भी पंचांग से देखकर तय करते हैं। दैनिक भास्कर ने खासबात की पेश है रिपोर्ट.. सवाल : कब से आप ने ज्योतिष पढ़ना शुरू किया ? जवाब : बीएचयू से ही UG-PG डिप्लोमा कोर्स पूरा किया। 2022 के बाद से लगातार अब तक प्रैक्टिस कर रहा हूं। घर मुगलसराय के बरहुली गांव में है। पिता किसान और शायर मोहसिन रजा मायम चंदौलवी हैं। ज्योतिष-वास्तु में यूजी-पीजी डिप्लोमा के बाद एमए-एस्ट्रोलॉजी किया। अब लोगों के प्रश्नों का जवाब देते हैं। जिसमें शुभ तिथि निकलने,शादी, कुंडली बनाने का काम कर रहा हूं। उन्होंने बताया 3 वर्षों में हमने लगभग 1500 कुंडली और 2 हजार से अधिक लोगों को शुभ मुहूर्त पंचांग देखकर बता दिया है। सवाल : जब आप ने संस्कृत पढ़ने का फैसला लिया तो कोई विरोध हुआ? जवाब : नही, मेरे घर का जो परिवेश रहा है वहां ज्ञान के लिए कोई रोक-टोक नहीं था। हमारे परिवार का कहना था कि आप ज्ञान लीजिए चाहे वह किसी भी परंपरा या मजहब का हो। सैयद ने कहा, भारत के किसान अपनी खेती की शुरुआत मूहुर्त तिथि-नक्षत्र देखकर ही करते हैं। दादा और पिता दोनों ही किसान हैं। ऐसे में ऐसे में मेरे अंदर भी वहीं से ज्योतिष का बीज पड़ा और मैंने इसकी शिक्षा ली। पिता ने इस पढ़ाई के लिए पूरी मदद की और धन मुहैया कराया। सवाल : क्या मुस्लिम समुदाय के लोग आते हैं आप के पास कुंडली या विवाह की तिथि दिखवाने? जवाब : हां, जो लोग परेशान रहते हैं वह अपनी कुंडली विवेचन के लिए मेरे पास आते हैं। हमारे यहां कुछ लोग मुख्य धारा में जुड़े हुए हैं जिन्हें इसका ज्ञान है वह लोग भी हमारे पास आते हैं शादी विवाह का मुहूर्त भी निकलवाते हैं। उन्होंने कहा कि मैं कुंडली विश्लेषण, कुंडली बनाने का काम, पंचांग देखकर तिथि का निर्धारण करना, विवाह के लिए मुहूर्त इत्यादि देखने का काम करता हूं। सवाल : दिनचर्या कैसा चलता हैं, क्या पूजा-पाठ कराते हैं? जवाब : मैं पूजा-पाठ करने का अधिकारी नहीं हूं। क्योंकि धर्मशास्त्र मुझे इसका अधिकार नहीं देता है। लेकिन कुंडली देखना किसी परंपरा के अधीन नहीं है वह ज्ञान की परंपरा है। जहां पूजा पाठ की बात आएगी वह कर्मकांड है बाकी मैं अपने धर्म का पूरा पालन करता हूं रमजान का पवित्र महीना चल रहा मैं व्रत हूं। सवाल : आप सभी धर्म के लोगों को एक करने के लिए क्या करेंगे? जवाब : मेरी पूरी कोशिश यही है कि लोग ज्यादा से ज्यादा जाने ज्योतिष किसी धर्म से जुड़ी हुई चीज नहीं है यह एक विद्या है। यह पूरी वैज्ञानिक पद्धति से जुड़ा हुआ ज्ञान है। किसी भी वर्ग का व्यक्ति हो उसे इसका लाभ जरूर लेना चाहिए क्योंकि यह हमारी सबसे पुरानी परंपरा है इसमें सभी समस्याओं का उत्तर मिलता है।

सैयद हसन रजा ने इल्म-ए-जफर छोड़ पढ़ा पंचांग
हाल ही में सैयद हसन रजा ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की है जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्होंने इल्म-ए-जफर का अध्ययन छोड़कर पंचांग पढ़ना शुरू कर दिया है। उनका यह निर्णय मुस्लिम वर्ग के लोगों के लिए कुंडली बनाने में मददगार सिद्ध हो रहा है। हसन रजा का मानना है कि धर्मों के बीच भेदभाव नहीं होना चाहिए और सभी को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए। उनके इस दृष्टिकोण से समाज में एक नई जागरूकता लाई गई है।
धर्मों में भेदभाव की समस्या
सैयद हसन रजा ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि कई बार विभिन्न धर्मों के बीच भेदभाव की भावना लोगों के बीच दूरियों को बढ़ाती है। उनका मानना है कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए। कुंडली बनाने का कार्य न केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए सहायक है, बल्कि यह सभी धर्मों के लोगों को जोड़ने का माध्यम बन सकता है।
पंचांग का महत्व
पंचांग, जिसे भारतीय ज्योतिष में विशेष स्थान प्राप्त है, समय के अनुसार त्योहारों और महत्वपूर्ण अवसरों को समझने में मदद करता है। हसन रजा के अनुसार, अध्ययन और ज्ञान का एक साझा स्रोत होने के नाते, पंचांग सभी के लिए लाभकारी है। यह न केवल भविष्य की घटनाओं की जानकारी प्रदान करता है बल्कि व्यक्ति की जीवन दिशा को भी स्पष्ट करता है।
समाज में सकारात्मक बदलाव
हसन रजा ने अपने इस फैसले के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की उम्मीद जताई है। 'धर्मों में भेदभाव नहीं होना चाहिए' की सोच को आधार बनाकर, उन्होंने सभी समुदायों के लोगों को एक साथ लाने का प्रयास किया है। उनका यह कदम एक नए संवाद की शुरुआत कर सकता है जो समाज में एकता और समरसता को बढ़ावा देगा।
इस बदलाव से जुड़े लोगों का मानना है कि यदि हम सभी एक समान दृष्टिकोण अपनाएं, तो समाज में जगह-जगह फैल रहा असमानता का भाव समाप्त किया जा सकता है।
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