कारण बताए बिना की गई गिरफ्तारी अवैध: हाई कोर्ट:छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के आरोपी की गिरफ्तारी को हाईकोर्ट ने अवैध करार देते हुए रद्द किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को कारण बताए बिना गिरफ्तार करना अवैध है। कोर्ट ने कहा की गिरफ्तारी के समय संविधान के अनुच्छेद 22 (1) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के प्रावधानों का पालन किया जाना अनिवार्य है । कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के आरोपी गाजियाबाद के अनवर घेवर की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए उसका रिमांड रद्द कर दिया है। अनवर की याचिका पर न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति मदनपाल सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई की। याची का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था की अनवर के खिलाफ छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो ने धोखाधड़ी और जालसाजी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिक की दर्ज की थी। उसे 4 अप्रैल 2024 को गिरफ्तार किया गया। मगर 14 जून 2024 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी। जमानत पर रिहा होते ही याची को यूपी पुलिस ने उसी दिन गिरफ्तार कर लिया। यूपी पुलिस ने गौतम बुद्ध नगर के कसना थाने में 2023 में उसके खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में प्राथमिक की दर्ज की थी । जिसमें उसे गिरफ्तार किया गया । इसके बाद रायपुर में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कर उसे उत्तर प्रदेश लाया गया। और स्पेशल जज एंटी करप्शन मेरठ की अदालत में 21 जून 2024 को पेश किया गया जहां से कोर्ट ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि याची की गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 19 (1)और अनुच्छेद 22(1 ) के विपरीत है। साथ ही उसकी गिरफ्तारी में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के प्रावधानों का भी पालन नहीं किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट का ध्यान यूपी पुलिस द्वारा जारी गिरफ्तारी मेमो की ओर दिलाया । जिसमें गिरफ्तार किए जाने का कोई कारण नहीं बताया गया था। अधिवक्ता का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 22 (1) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है । यूपी पुलिस द्वारा जारी गिरफ्तारी मेमो में कोई कारण नहीं दिया गया है । साथ ही यांची को अपने बचाव में अधिवक्ता करने के अधिकार से भी वंचित नहीं किया जा सकता है । यह भी कहा गया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य है । हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई न्यायिक निर्णय को भी प्रस्तुत किया गया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह निश्चित है की गिरफ्तारी मेमो में ऐसा कोई कॉलम नहीं दिया गया है जिसमें गिरफ्तारी का कारण बताया गया हो। यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तारी में संविधान और कानून के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया । कोर्ट ने गिरफ्तारी को अवैध घोषित करते हुए गिरफ्तारी मेमो और रिमांड आदेश रद्द कर दिया। मगर अदालत ने याची के विरुद्ध दाखिल आरोप पत्र में हस्तक्षेप नहीं किया है तथा संबंधित न्यायालय को या छूट दी है कि वह आरोप पत्र के अनुसार कार्यवाही जारी रख सकते हैं। कोर्ट ने इस आदेश की प्रति डीजीपी यूपी को भेजने का निर्देश दिया है ताकि वह सभी संबंधित पुलिस अधिकारियों को भविष्य में गिरफ्तारी के समय तकनीकी खामियों से बचने का निर्देश जारी कर सकें।

कारण बताए बिना की गई गिरफ्तारी अवैध: हाई कोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार करना कानूनी दृष्टि से अवैध है। इस फैसले ने न केवल आरोपी की गिरफ्तारी को अवैध ठहराया, बल्कि यह भी दर्शाया कि भारतीय संविधान के समानांतर कानूनों का पालन करना आवश्यक है। इस निर्णय के अनुसार, छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले के आरोपी अनवर घेवर की गिरफ्तारी अवैध मानी गई है।
केस का विवरण
अनवर घेवर के खिलाफ छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो ने धोखाधड़ी और जालसाजी की धाराओं के तहत प्राथमिक की दर्ज की थी। वह 4 अप्रैल 2024 को गिरफ्तार हुए थे, लेकिन 14 जून को उन्हें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। हालाँकि, जमानत के तुरंत बाद, उन्हें यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया, जो गौतम बुद्ध नगर के कसना थाना क्षेत्र में एक अन्य मामले में था।
हाईकोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने इस अदालती सुनवाई में कहा कि गिरफ्तारी के समय संविधान के अनुच्छेद 22 (1) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के प्रावधानों का पालन किया जाना अनिवार्य है। याची की तरफ से अदालत में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह तर्क रखा कि अनवर की गिरफ्तारी बिना किसी कारण बताये की गई थी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) और 22(1) का उल्लंघन है।
गिरफ्तारी मेमो पर सवाल
अधिवक्ता ने अदालत का ध्यान उन गिरफ्तारी मेमो की ओर दिलाया जिसमें कोई कारण नहीं दिया गया था। उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के वक्त अनवर को अपने बचाव में अधिवक्ता रखने का अधिकार भी नहीं दिया गया था, जो कि संविधान के नियमों का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी मेमो में कोई कॉलम नहीं था जिसमें गिरफ्तारी का कारण व्यक्त किया गया हो।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तारी को अवैध घोषित करते हुए गिरफ्तारी मेमो और रिमांड आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने इस निर्णय से याचिका के खिलाफ दाखिल आरोप पत्र में हस्तक्षेप नहीं किया है। यह आदेश सभी संबंधित पुलिस अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नैतिक पाठ भी है, जिसमें उन्हें भविष्य में गिरफ्तारी के तकनीकी पहलुओं का ध्यान रखने की सलाह दी गई है। सभी संबंधित पक्षों को यह याद रखना चाहिए कि कानून का पालन केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि यह हर नागरिक का कर्तव्य भी है। इसके अतिरिक्त, इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी गिरफ्तारी में उचित प्रक्रिया का पालन अत्यंत आवश्यक है।
इस निर्णय ने न केवल अनवर की बल्कि सभी नागरिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
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