जेल में महिलाओं के पैर धोए, साइकोलॉजी के टीचर बने:बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी; पढ़ें पोप फ्रांसिस का पूरा सफर

13 मार्च 2013 वेटिकन में पोप का चुनाव चल रहा था। चार बार की वोटिंग में किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई वोट नहीं मिले। जब पांचवीं बार बैलेट खुले, तो अर्जेंटीना के उस कार्डिनल जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो को 266वां पोप चुन लिया गया, जिसे चुनाव से पहले दावेदार भी नहीं माना जा रहा था। यही कार्डिनल पोप फ्रांसिस के नाम से जाने गए। वे पहले ऐसे पोप हैं जिन्होंने फ्रांसिस नाम को अपनाया। यह नाम उन्होंने संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के सम्मान में लिया, जो गरीबों की सेवा के लिए जाने गए थे। उनका चुना जाना इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि 1300 साल में पहली बार किसी गैर-यूरोपीय को पोप चुना गया था। इसके अलावा एक जेसुइट पादरी का पोप चुना जाना भी अपने आप में बड़ी बात थी। आज पोप फ्रांसिस नहीं रहे। पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह वेटिकन में 7:35 मिनट पर निधन हो गया। इस स्टोरी में जानेंगे पोप फ्रांसिस की जिंदगी की कहानी, कैसे एक जेसुइट पादरी पोप बना, वे क्या बदलाव लाए... जेसुइट पादरी थे पोप फ्रांसिस जेसुइट यानी सोसाइटी ऑफ जीसस। पेरिस यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले सेंट इग्नाटियस लोयोला ने अपने साथियों के साथ मिलकर 1534 में सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट समाज) की स्थापना का संकल्प लिया। 1540 में पोप पॉल तृतीय ने इस सोसाइटी की स्थापना को मंजूरी दी। सेंट इग्नाटियस लोयोला ने पढ़े-लिखे लोगों का एक ग्रुप बनाया। इन लोगों का एक ही मकसद था- लोगों को ईश्वर की खोज में मदद करना। सेंट इग्नाटियस लोयोला चाहते थे कि जेसुइट पादरी घूम-घूमकर ईश्वर का संदेश फैलाने वाले मिशनरी बनें। जहां पर संभावना हो, लोगों की भलाई करेंगे। 1540 में इस संगठन में 10 सदस्य थे, जो अब बढ़कर 15 हजार से ज्यादा हो गए हैं। जेसुइट पादरी का पोप बनना हैरानी की बात क्यों? जेसुइट पादरी ये शपथ लेते हैं कि वे रोमन कैथोलिक चर्च में बड़ा पद पाने की इच्छा नहीं करेंगे और हमेशा चर्च की आज्ञा का पालन करेंगे। इसके अलावा जेसुइट्स अक्सर अपने प्रगतिशील विचारों के चलते चर्च के रूढ़िवादी विचारों से टकराव करते रहते हैं। वे मानवाधिकार और गरीबी जैसे मुद्दों पर कई बार कैथोलिक के सिद्धांतों से आगे जाकर काम करते हैं, इसलिए उनका रवैया चर्च के सामने अनादर जैसा माना जाता है। कैथोलिक समुदाय के कुछ हिस्सों में उन्हें जरूरत से ज्यादालिबरल होने के आरोपों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में किसी जेसुइट पादरी का कैथेलिक चर्च के सर्वोच्च पद को पाना अपने आप में बड़ी बात थी। कार्डिनल जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो पोप कैसे चुने गए? 28 फरवरी 2013 को कैथोलिक चर्च के 265वें पोप बेनेडिक्ट XVI ने अपनी उम्र और सेहत का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। अगले पोप का चुनाव मार्च में होना था। वोटिंग वाले हफ्ते तक जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो का नाम भी पोप की रेस में नहीं था। वे 76 साल के थे और कई कार्डिनल्स ने कहा था कि वे 70 से ज्यादा उम्र के किसी पादरी को वोट नहीं देंगे। इसके अलावा 2005 में हुए पोप के चुनावों में बर्गोग्लियो दूसरे नंबर पर रहे थे। ऐसे में बहुत कम संभावना थी कि वे उम्मीदवार के तौर पर देखे जाएंगे। लेकिन जब 12 मार्च वोटिंग शुरू हुई तो पहली ही बार में बर्गोग्लियो को काफी सारे वोट मिले। इससे वे एक उम्मीदवार के तौर पर देखे जाने लगे। पांचवीं बार की वोटिंग में बर्गोग्लियो दो-तिहाई वोट मिले और 13 मार्च को उन्हें पोप चुन लिया गया। अपनी सादगी की वजह से पोप बने पादरी बर्गोग्लियो पोप के चुनाव से पहले तक इटली के शहर मिलान के कार्डिनल एंजेलो स्कोला को पोप बनने के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था। कई पादरियों का मानना था कि वे पोप के ऑफिस में बड़े बदलाव ला सकते हैं। और उनका इटली से होना उन पादरियों को भा रहा था जो चाहते थे कि पोप का किसी यूरोपीय को ही मिले। बर्गोग्लियो इस पूरे समय बेहद शांति से अपनी ड्यूटी निभाते रहे। उन्होंने किसी भी तरह लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश नहीं की। इससे उनकी विनम्रता की झलक मिली। उन्हें वोट देने वाले पादरियों को ये बात बहुत अच्छी लगी। इसके अलावा बर्गोग्लियो पादरी के तौर पर अपने समपर्ण के लिए जाने जाते थे। वे 76 साल के होने के बावजूद स्वस्थ थे, लेकिन इसके बाद पोप के चुनाव में उनके उम्मीदवार बनने की संभावना नहीं थी। ये सारी बातें मिलकर उनके पोप चुने जाने की वजह बनीं। उन्हें पोप चुने जाने पर फ्रांस के कार्डिनल आंद्रे विंग्ट ने कहा कि बर्गोग्लियो इटली से भले नहीं आते, लेकिन उनके माता-पिता इटली के थे, ऐसे में वे इटली का कल्चर जानते हैं और उसमें घुल-मिल सकते हैं। अगर इसकी थोड़ी भी संभावना है कि वेटिकन की व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है, तो बर्गोग्लियो इसके लिए सबसे सही व्यक्ति हैं। पोप फ्रांसिस के बड़े फैसले 1. समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने पर: पद संभालने के 4 महीने बाद ही पोप से समलैंगिकता के मुद्दे पर सवाल किया गया था। इस पर उन्होंने कहा, ‘अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज कर रहा है, तो मैं उसे जज करने वाला कौन होता हूं।’ 2. सेम-सेक्स कपल्स को आशीर्वाद देने पर: पोप फ्रांसिस ने 2023 में समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की अनुमति देने का फैसला किया। वेटिकन ने कहा कि यह आशीर्वाद "ईश्वर की दया और प्रेम का प्रतीक" होगा, लेकिन यह कैथोलिक चर्च के पारंपरिक विवाह सिद्धांतों को नहीं बदलेगा, जो अब भी पुरुष और महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है। 2. पुनर्विवाह को धामिक मंजूरी: पोप ने तलाकशुदा और दोबारा शादी करने वाले कैथोलिक लोगों को चर्च में अधिक स्वीकृति देने का फैसला लिया। पोप फ्रांसिस ने कहा कि ऐसे लोगों को चर्च से अलग नहीं किया जाना चाहिए। इससे पहले तक कैथोलिक चर्च ऐसे लोगों को पवित्र संस्कारों से वंचित कर देता था। 3. बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी: पोप फ्रांसिस ने अप्रैल 2014 में चर्च में बच्चों के यौन शोषण के मामलों पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्होंने स्वीकार किया कि चर्च के कुछ पादरियों ने बच्चों का यौन शोषण किया। पोप ने कहा कि यह एक ‘

Apr 21, 2025 - 15:59
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जेल में महिलाओं के पैर धोए, साइकोलॉजी के टीचर बने:बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी; पढ़ें पोप फ्रांसिस का पूरा सफर
13 मार्च 2013 वेटिकन में पोप का चुनाव चल रहा था। चार बार की वोटिंग में किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई वोट न

जेल में महिलाओं के पैर धोए, साइकोलॉजी के टीचर बने: बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी; पढ़ें पोप फ्रांसिस का पूरा सफर

पोप फ्रांसिस ने हाल ही में एक सराहनीय कार्य किया, जिसमें उन्होंने जेल में महिलाओं के पैर धोकर उन्हें सम्मान दिया। यह एक सांकेतिक क्रिया थी, जो प्यार और सेवा को दर्शाती है। उनके इस कार्य ने समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और सहानुभूति को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

पोप का पवित्र संदेश

उनके इस कदम ने न केवल धार्मिक समुदाय बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी चर्चा उत्पन्न की। बच्चों के यौन शोषण के मामलों पर उन्होंने सार्वजनिक माफी भी मांगी, जो इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि वह अपने सभी अनुयायियों के लिए जिम्मेदार महसूस करते हैं।

साइकोलॉजी के टीचर की भूमिका

पोप फ्रांसिस का यह यात्रा केवल पवित्रता और सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने शिक्षा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं को संबोधित करने का भी प्रयास किया है। बच्चों और युवा मानसिक स्वास्थ्य को लेकर उनकी विशेषज्ञता समाज में जागरूकता फैलाने में मदद कर रही है।

समाज के प्रति दायित्व

यह भी महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक व्यक्तित्व अपने कृत्यों के लिए जिम्मेदारी लें। पोप फ्रांसिस का यह कार्य समाज के प्रति उनके दायित्व को दर्शाता है, और यह संदेश देता है कि सच्चे नेतृत्व का मतलब केवल पद पर होना नहीं है, बल्कि समुदाय की भलाई के लिए काम करना है।

पोप फ्रांसिस का पूरा सफर विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण और निर्णयों से भरा हुआ है। उनकी यात्रा ने न केवल धार्मिक समुदायों को प्रभावित किया है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम भी बनी है।

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