33 साल पुराने केस में ट्रायल अभी भी अधूरा:लखनऊ हाईकोर्ट सख्त, डीजीपी और अपर मुख्य सचिव को शपथपत्र देने का आदेश
लखनऊ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए उत्तर प्रदेश के डीजीपी और अपर मुख्य सचिव गृह से शपथपत्र मांगा है। यह आदेश 1991 के एक आपराधिक मामले में 33 वर्षों से लंबित ट्रायल के संदर्भ में दिया गया है। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने अलीगढ़ निवासी मधुकर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय लिया। मामला 1991 में हुए विधानसभा घेराव और प्रदर्शन से जुड़ा है, जिसमें याचिकाकर्ता को भी आरोपी बनाया गया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अंशुल शर्मा ने न्यायालय को बताया कि 1994 में आरोप पत्र दाखिल होने और निचली अदालत द्वारा संज्ञान लेने के बावजूद, अब तक मामले का ट्रायल पूरा नहीं हो सका है। न्यायालय ने दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को राज्य सरकार की लिटिगेशन पॉलिसी के बारे में विस्तृत जानकारी देने का भी निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 30 जनवरी को निर्धारित की गई है। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में होने वाले अनावश्यक विलंब की ओर इशारा करता है, जिस पर अदालत ने गंभीर संज्ञान लिया है।

33 साल पुराने केस में ट्रायल अभी भी अधूरा: लखनऊ हाईकोर्ट सख्त
लखनऊ हाईकोर्ट ने हाल ही में 33 साल पुराने एक मामले की सुनवाई करते हुए सख्त रुख अपनाया है। इस केस में न्याय की प्रक्रिया को रफ्तार देने के लिए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी और अपर मुख्य सचिव को शपथपत्र देने का आदेश दिया है। यह निर्णय उस समय आया जब अदालत ने देखा कि मामले में प्रगति नहीं हो रही है और पक्षकारों को तेजी से न्याय की आवश्यकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 1990 के दशक का है, जब पहली बार शिकायत दर्ज की गई थी। इतने लंबे समय के बाद भी, कोर्ट में ट्रायल अब तक अधूरा है। इस अवधि में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। न्यायालय ने इस प्रकार की धीमी गति को देखकर चिंता जताई है और त्वरित कार्यवाही करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
कोर्ट के आदेश का महत्व
यह आदेश उन मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है जहां लंबे समय तक न्यायालय में लंबित मामलों की सुनवाई की जाती है। लखनऊ हाईकोर्ट ने डीजीपी और अपर मुख्य सचिव को विशेष रूप से पेश होने का आदेश दिया है ताकि वे स्थिति का वास्तविक आकलन प्रस्तुत कर सकें। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में देरी पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसका तत्काल समाधान आवश्यक है।
आगे की प्रक्रिया
अगली सुनवाई में कोर्ट दोनों अधिकारियों से साक्ष्य और स्थिति रिपोर्ट प्राप्त करेगा। इसके बाद, मामले की सुनवाई की प्रक्रिया को तेज करने के लिए संबंधित न्यायालय में उचित निर्देश दिए जाएंगे। यह निर्णय पहले से लंबित मामलों के समाधान के लिए एक नई दिशा प्रशस्त कर सकता है।
इस मामले से जुड़े सभी पक्षकारों को अब सिस्टम में भरोसा जताने की उम्मीद है कि जल्द ही न्याय की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
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