indiatwoday विशेष रिपोर्ट: उत्तराखंड सतर्कता विभाग का प्रशिक्षण – सुधार की सच्ची मंशा या गहरे दागों पर पर्दा डालने की कवायद?

उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

May 4, 2025 - 01:41
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indiatwoday विशेष रिपोर्ट: उत्तराखंड सतर्कता विभाग का प्रशिक्षण – सुधार की सच्ची मंशा या गहरे दागों पर पर्दा डालने की कवायद?
उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

हल्द्वानी/देहरादून: उत्तराखंड में 'भ्रष्टाचार मुक्त शासन' के नारों के बीच, राज्य के सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance Uttarakhand) की कार्यप्रणाली गंभीर सवालों के घेरे में है। indiatwoday को प्राप्त जानकारी के अनुसार, हाल ही में सतर्कता निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन के निर्देश पर हल्द्वानी स्थित सेक्टर कार्यालय (Vigilance Haldwani) में जांच और विवेचक अधिकारियों के लिए एक हाइब्रिड प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य त्रुटिरहित विवेचना और प्रभावी पैरवी सुनिश्चित कर भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसना बताया गया, जिसमें टेप प्रकरणों और आय से अधिक संपत्ति जैसे मामलों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया।

प्रथम दृष्टया, यह कदम विभाग की सक्रियता और सुधार की इच्छा का संकेत दे सकता है। परन्तु, सतर्कता विभाग (Vigilance Department) के पिछले रिकॉर्ड और उस पर लगे गंभीर आरोपों को देखते हुए, यह प्रशिक्षण महज एक औपचारिकता या शायद गहरे और असुविधाजनक सवालों से ध्यान भटकाने का प्रयास अधिक प्रतीत होता है। indiatwoday की पड़ताल कई परतों को उजागर करती है जो दर्शाती हैं कि यह प्रशिक्षण उन ज़ख्मों पर मरहम लगाने में शायद ही कामयाब हो जो विभाग की कथित कार्रवाइयों ने दिए हैं।

देर आयद, दुरुस्त आयद? या महज़ खानापूर्ति?

सबसे बड़ा सवाल प्रशिक्षण के समय पर उठता है। यह पहल तब क्यों की जा रही है जब अनगिनत सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार कथित तौर पर विभाग के फर्जी रिश्वत प्रकरणों (fake bribe case) या उत्तराखंड फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) का दंश झेल चुके हैं? उन मामलों का क्या होगा जिनमें कथित तौर पर बिना किसी ठोस सबूत, बिना कार्य लंबित (pendency) हुए, और सबसे महत्वपूर्ण, बिना किसी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का पालन किए या अधिकारियों के पर्याप्त प्रशिक्षित हुए बिना ही विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा झूठे जाल (false trap by vigilance haldwani) बिछाए गए या विजिलेंस उत्तराखंड द्वारा फर्जी ट्रैप (fake trap by vigilance uttarakhand) की कार्रवाई की गई? क्या यह प्रशिक्षण उन पूर्व की कथित चूकों और अन्यायों का प्रायश्चित है, या भविष्य में होने वाली आलोचनाओं से बचने का एक पूर्व नियोजित कदम?

नेतृत्व की भूमिका और SOP पर 'महाझूठ'?

आलोचना की सुई सीधे विभाग के शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन (Dr. V Murgeshan vigilance fraud), की ओर घूमती है। क्या यह अपने आप में संस्थागत भ्रष्टाचार का परिचायक नहीं है कि आपके नेतृत्व में अप्रशिक्षित या प्रक्रिया से अनभिज्ञ अधिकारी (dishonest vigilance officer) संवेदनशील ट्रैप कार्रवाइयों को अंजाम देते रहे, जिसके परिणाम न केवल कथित विजिलेंस उत्तराखंड फ्रॉड (vigilance uttarakhand fraud) के रूप में सामने आए, बल्कि कई ईमानदार अधिकारियों के करियर और जीवन भी दांव पर लग गए?

इससे भी अधिक गंभीर और चौंकाने वाला प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष सामने आया, जहाँ SOP को लेकर विभाग द्वारा कथित तौर पर एक बड़ा 'खेल' खेला गया (sop fraud by murgesh vigilance uttarakhand)। यह बात अदालती रिकॉर्ड का हिस्सा है कि कैसे विजिलेंस उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) के अधिकारी शपथ लेकर कहते रहे कि उनके पास कार्रवाई के लिए SOP मौजूद है, परन्तु जब न्यायालय ने SOP प्रस्तुत करने को कहा, तो कथित तौर पर निदेशक महोदय को स्वीकारना पड़ा कि विभाग के पास कोई निर्धारित SOP नहीं है और उन्होंने न्यायालय से ही SOP की प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध कर डाला! यह घटनाक्रम न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी (Vigilance Sector Haldwani), विजिलेंस सेक्टर देहरादून (Vigilance Dehradun), विजिलेंस हेड क्वार्टर (Vigilance Head Quater) और विजिलेंस एस्टाब्लिशमेंट (Vigilance Establishment) में व्याप्त कथित मनमानी और पारदर्शिता के पूर्ण अभाव की ओर स्पष्ट इशारा करता है।

मानवीय त्रासदी और अंतरात्मा की आवाज़

यह केवल नियमों या प्रक्रियाओं के उल्लंघन का मामला नहीं है; यह उन परिवारों की अनकही मानवीय त्रासदी है जिनके सदस्य कथित तौर पर विभाग के गलत या पूर्वाग्रह से ग्रसित कार्रवाइयों का शिकार बने। भ्रष्टाचार का एक आरोप, चाहे वह बाद में झूठा ही क्यों न साबित हो, व्यक्ति और उसके परिवार को सामाजिक रूप से बहिष्कृत और आर्थिक रूप से तबाह कर देता है। बच्चों की शिक्षा, उनका भविष्य, परिवार की इज़्ज़त – सब कुछ एक झटके में नष्ट हो जाता है।

आज प्रशिक्षण देने वाले अधिकारियों को अपनी अंतरात्मा में झांकना चाहिए। उन पीड़ित परिवारों की आहों का क्या जिनकी ज़िंदगियाँ कथित तौर पर एक फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) ने उजाड़ दीं? समाज में और पीड़ितों के मन में यह गहरा विश्वास और भय बैठ रहा है कि निर्दोषों पर अत्याचार करने वालों को ईश्वर कभी क्षमा नहीं करता। क्या अन्याय करने वाले अधिकारियों को यह डर नहीं सताता कि निर्दोषों और उनके बच्चों की आहें कहीं उनके अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय न कर दें? यह महज़ भावनात्मक उबाल नहीं, बल्कि एक गहरा नैतिक प्रश्न है जिसका सामना हर उस अधिकारी को करना होगा जिसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है।

न्यायिक हस्तक्षेप और मुख्यमंत्री की नेक नीयत पर आंच?

यह एक स्थापित तथ्य है कि श्रीमती भंडारी जैसे मामलों में प्रक्रियात्मक खामियों को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। भगवान तुल्य न्यायमूर्ति श्री राकेश थपलियाल जी द्वारा प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल देना स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि विभाग की कार्यप्रणाली में गंभीर सुधार की आवश्यकता है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी एक स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी मंशा पर संदेह नहीं किया जा सकता; वे वास्तव में एक भ्रष्टाचार-मुक्त उत्तराखंड चाहते हैं। लेकिन सतर्कता विभाग (vigilance department) की कथित कार्रवाइयां कहीं उनकी इस नेक नीयत पर ही तो आंच नहीं डाल रहीं? क्या एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जहाँ ईमानदार अधिकारी भी भयभीत रहें, जो कि मुख्यमंत्री की सोच के ठीक विपरीत है?

निष्कर्ष: indiatwoday का आह्वान

indiatwoday का मानना है कि सतर्कता विभाग उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) को अपनी खोई हुई साख और विश्वसनीयता बहाल करने के लिए केवल प्रतीकात्मक प्रशिक्षण से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने होंगे। आवश्यकता है:

  1. उन सभी पुराने मामलों की तत्काल, निष्पक्ष और स्वतंत्र समीक्षा की, जिनमें फर्जी ट्रैप (fake trap), झूठे रिश्वत प्रकरण (fake bribe case) या गंभीर प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के आरोप लगे हैं।
  2. दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों (dishonest vigilance officer) के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
  3. एक स्पष्ट, पारदर्शी और कानूनी रूप से वैध SOP तत्काल प्रभाव से लागू की जाए और उसका कड़ाई से पालन हो।
  4. पीड़ितों को न्याय और उचित मुआवज़ा दिलाने की प्रक्रिया शुरू की जाए।

जब तक डॉ. वी. मुरुगेशन और उनका विभाग अतीत की गलतियों को खुले मन से स्वीकार कर उनमें सुधार नहीं करते और पीड़ितों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करते, तब तक ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम जनता की नज़र में केवल दिखावा और आँखों में धूल झोंकने का प्रयास ही माने जाएंगे। indiatwoday इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखेगा और सच को सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा, ताकि उत्तराखंड वास्तव में भ्रष्टाचार मुक्त ही नहीं, बल्कि भय मुक्त भी बन सके।

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