अयोध्या में पट्टा निरस्तीकरण मामला:हाईकोर्ट ने राजस्व अधिकारी और कमिश्नर के आदेश पर लगाई रोक

लखनऊ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अयोध्या के मुख्य राजस्व अधिकारी और रिविजनल कोर्ट कमिश्नर के आदेश पर रोक लगा दी है। यह मामला ग्राम पुरे हुसैन खान चांदपुर की निवासी राजकला से जुड़ा है। मुख्य राजस्व अधिकारी ने 16 अगस्त 2007 को एक पट्टा निरस्त कर दिया था। उनका तर्क था कि पट्टेदार का बेटा पुलिस विभाग में है और बहू ग्राम प्रधान है। रिविजनल कोर्ट कमिश्नर ने भी 6 मई 2022 को राजकला की रिवीजन याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की अदालत ने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया। पहला, यह पट्टा सब डिविजनल मजिस्ट्रेट सदर फैजाबाद की स्वीकृति के बाद जारी किया गया था। दूसरा, उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 122C(3)(iii) के तहत बेटे का पुलिस विभाग में होना और बहू का ग्राम प्रधान होना पट्टा निरस्तीकरण का वैध आधार नहीं है। याचिकाकर्ता राजकला की ओर से अधिवक्ता आशुतोष कुमार तिवारी ने पैरवी की। अदालत ने दोनों अधिकारियों के आदेशों पर स्टे देते हुए मामले में राहत प्रदान की। यह जानकारी आशुतोष तिवारी ने दी है।

Mar 15, 2025 - 16:59
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अयोध्या में पट्टा निरस्तीकरण मामला:हाईकोर्ट ने राजस्व अधिकारी और कमिश्नर के आदेश पर लगाई रोक
लखनऊ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अयोध्या के मुख्य राजस्व अधिकारी और रि

अयोध्या में पट्टा निरस्तीकरण मामला: हाईकोर्ट ने राजस्व अधिकारी और कमिश्नर के आदेश पर लगाई रोक

अयोध्या का पट्टा निरस्तीकरण मामला हाल ही में सुर्खियों में रहा है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। न्यायालय ने राजस्व अधिकारी और कमिश्नर द्वारा जारी निरस्तीकरण आदेश पर रोक लगा दी है। यह मामला अयोध्या में भूमि विवादों से संबंधित है, जहाँ आसपास के क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व और अधिकारों के प्रति नागरिकों की चिंताएं बढ़ी हैं। ऐसे में, उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल स्थानीय जनता के लिए राहत की बात है, बल्कि यह कानून और न्याय के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।

पृष्ठभूमि और मामला

अयोध्या में भूमियों के पट्टे के निरस्तीकरण के मामलों में अक्सर विवाद देखने को मिलते हैं। पिछले कुछ महीनों में, ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ भूमि अधिकारों के दावेदारों ने निरस्तीकरण के आदेशों को चुनौती दी है। यह मामला भी उसी श्रेणी में आता है, जहां न्यायालय ने नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने राजस्व अधिकारी और कमिश्नर के आदेश को अस्थायी रूप से रोकते हुए यह स्पष्ट किया कि ऐसे संवेदनशील मामलों में सभी पक्षों को सुनना अनिवार्य है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि भूमि संबंधी मामलों में एक पारदर्शिता होनी चाहिए, जिससे नागरिकों को न्याय मिल सके। इससे यह साबित होता है कि न्यायालय स्थानीय नागरिकों की चिंताओं को गंभीरता से लेता है।

स्थानीय नागरिकों की प्रतिक्रिया

इस निर्णय के बाद अयोध्या के नागरिकों ने राहत की सांस ली है। उनकी उम्मीदें अब न्याय के प्रति और ज्यादा बढ़ गई हैं। स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय न केवल अयोध्या, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में भूमि अधिकारों के मामलों पर एक सकारात्मक प्रभाव डालेगा। इसके अलावा, यह निर्णय अन्य न्यायालयों के लिए भी एक मिसाल प्रस्तुत करता है, जिसमें न्यायिक सक्रियता और मानवाधिकारों के प्रति सजगता दिखाई दे रही है।

निष्कर्ष

अयोध्या में पट्टा निरस्तीकरण मामले में हाईकोर्ट का यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल स्थानीय नागरिकों के लिए राहत की बात है, बल्कि यह एक आत्मनिर्भर न्यायिक प्रणाली की ओर संकेत भी करता है। इस प्रकार के मामलों में न्यायालय की सक्रियता बहुत महत्वपूर्ण है। आगे आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस निर्णय का क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़ता है। अधिक अपडेट के लिए, कृपया indiatwoday.com पर विजिट करें।

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