निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मियों में आक्रोश:लखनऊ में चौथे दिन भी काली पट्टी बांधकर दर्ज कराया विरोध
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के आह्वान पर प्रदेशभर में बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं ने लगातार चौथे दिन काली पट्टी बांधकर निजीकरण के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया। यह अभियान 18 जनवरी को भी जारी रहेगा। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है कि निजीकरण के बाद प्रदेश में बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं के 77,491 पद समाप्त हो जाएंगे। जो पद समाप्त होंगे उनमें 50,000 संविदा कर्मी, 23,818 तकनीशियन और अन्य कर्मचारी, 2,154 जूनियर इंजीनियर, 1,518 अभियंता शामिल हैं। समिति ने बताया कि पहले से ही संविदा कर्मियों को बड़े पैमाने पर हटाया जा रहा है। इससे बिजली कर्मियों में असंतोष और गुस्सा बढ़ रहा है। संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि दिल्ली, उड़ीसा, आगरा और ग्रेटर नोएडा जैसे स्थानों पर निजीकरण के बाद कर्मचारियों को वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) देकर हटाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट द्वारा तैयार आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) दस्तावेज में अर्ली वीआरएस का उल्लेख किया गया है। कम सेवा वाले कर्मचारियों को भी हटाने की योजना की ओर संकेत करता है। प्रमुख शहरों में विरोध सभाएं विरोध प्रदर्शन वाराणसी, आगरा, गोरखपुर, प्रयागराज, मेरठ, मथुरा, कानपुर, झांसी, बरेली, गाजियाबाद, अलीगढ़ सहित कई जिलों में आयोजित हुआ। सभाओं में बिजली कर्मियों ने निजीकरण के दुष्परिणामों पर चर्चा की और अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने का संकल्प लिया। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने राज्य सरकार से मांग की है कि निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोका जाए और बिजली कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों को अनसुना किया गया तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। यह विरोध प्रदर्शन बिजली कर्मियों के भविष्य और उनके रोजगार को बचाने के लिए एक बड़ा संदेश है।
निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मियों में आक्रोश: लखनऊ में चौथे दिन भी काली पट्टी बांधकर दर्ज कराया विरोध
लखनऊ में बिजली कर्मियों का आक्रोश तेजी से बढ़ता जा रहा है। निजीकरण के खिलाफ उनका विरोध चौथे दिन भी जारी है। कर्मियों ने काली पट्टी बांधकर अपने विरोध को और मजबूत किया है। यह आंदोलन उस समय जोर पकड़ रहा है जब सरकार ने बिजली क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने की नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया है।
पार्श्वभूमि
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि निजीकरण से उनके अधिकार समाप्त होंगे और बिजली क्षेत्र में गुणवत्ता में कमी आ सकती है। इनका मानना है कि यह फैसला न केवल उनके रोजगार पर असर डालेगा, बल्कि आम जनता को भी महंगी बिजली के खर्च का सामना करना पड़ेगा।आंदोलन का उद्देश्य सरकार को यह समझाना है कि निजीकरण कुछ भी सुधार लाने की बजाय समस्याएं बढ़ाएगा।
संघर्ष की रणनीति
बिजली कर्मचारी संगठन ने प्रदर्शन के लिए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराने का निर्णय लिया है। कर्मियों ने काली पट्टी बांधकर अपनी एकता और असंतोष व्यक्त किया है। लखनऊ में एकत्र हुए कर्मचारियों का उद्देश्य है कि वे अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचा सकें।
सरकारी प्रतिक्रिया
इस आंदोलन पर सरकार की प्रतिक्रिया अभी तक सतर्क रही है। कुछ मंत्रियों ने बिजली कर्मचारियों के साथ चर्चा की है, लेकिन कर्मचारियों के मुख्य मुद्दों पर कोई ठोस प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है।
निष्कर्ष
बिजली कर्मियों का यह आंदोलन उनकी एकजुटता का प्रतीक है। यदि सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया, तो यह आंदोलन और भी विकराल रूप धारण कर सकता है। कर्मचारियों का कहना है कि वे अपने हक के लिए अंत तक लड़ते रहेंगे।
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