पंचायत चुनाव के नतीजे: कांग्रेस का कमबैक, बीजेपी के लिए वेकअप अलार्म, विधायकों के बेटे-पत्नी हार गए चुनाव

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Aug 2, 2025 - 00:27
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पंचायत चुनाव के नतीजे: कांग्रेस का कमबैक, बीजेपी के लिए वेकअप अलार्म, विधायकों के बेटे-पत्नी हार गए चुनाव

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रैबार डेस्क: पंचायत चुनावों के नतीजे आ गए हैं। सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। चुनावी नतीजों में भाजपा के कई पूर्व ब्लॉक प्रमुखों, जिलाध्यक्षों को और विधायकों के पत्नी या बेटों को हार मिली है। हालांकि भाजपा दाव कर रही है कि पंचायत चुनाव में भी पार्टी ने बड़ी बढ़त बनाई है। वहीं कांग्रेस के लिए पंचायत चुनाव संजीवनी से कम नहीं हैं। कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों ने कई अहम सीटों पर जीत दर्ज की है।

चुनाव परिणामों के प्रभाव

इन चुनावों में जनता ने कुछ ऐसे ट्रेंड दिखाए कि कई बड़े दिग्गजों के उम्मीदवार चारों खाने चित हो गए। बीजेपी भले ही जीत के दावे कर रही हो, लेकिन सच्चाई ये है कि जिला पंचायत की 358 सीटों में से भाजपा समर्थित प्रत्याशी केवल 114 पर ही जीत दर्ज कर सके। नतीजों में पार्टी के कई दिग्गजों की साख को बड़ा झटका लगा है।

हारे विधायक और उनके परिजन

विधायक दलीप रावत की पत्नी हारी

लैंसडौन से विधायक और बीजेपी नेता दलीप रावत की पत्नी नीतू देवी जिला पंचायत का चुनाव लड़ रही थीं। उन्हें चुनाव के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बनने तक की प्लानिंग थी। लेकिन वोटरों ने उनके सपने चकनाचूर कर दिए। विधायक की पत्नी 411 वोट से चुनाव हार गई।

दो-दो विधायकों के बेटे हारे चुनाव

कुमाऊं में भी पंचायत चुनाव के नतीजे बीजेपी को झटका देने वाले रहे। नैनीताल विधायक सरिता आर्य के बेटे रोहित भवालीगांव जिला पंचायत सीट से चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन वहां कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी यशपाल ने उन्हें 1200 वोटों से हरा दिया।

बलिदान के दाग

अल्मोड़ा के सल्ट में भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा। यहां से विधायक महेश जीना का बेटा करन जीना स्याल्दे बबलिया सीट से क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहा था। करन जीना को विरोधी प्रत्याशी करन सिंह ने 51 वोटों से परास्त कर दिया।

कांग्रेस का संजीवनी

विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी कांग्रेस के लिए पंचायत चुनाव संजीवनी लेकर आए हैं। कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी अधिकतर जगहों पर चुनाव जीते हैं।

देहरादून में जिला पंचायत में कांग्रेस समर्थित 12 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है जबकि 7 सीटों पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी जीते हैं। पौड़ी में जिला पंचायत सदस्यों की 38 सीटों पर चुनाव हुआ, जिनमें से 16 सीटों पर कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी विजयी हुए।

निष्कर्ष

इन चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मतदाता अब राजनीतिक कुर्सियों पर बैठे नेताओं के परिवार को भी आसानी से नकार सकते हैं। कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि बीजेपी के लिए यह एक वेकअप अलार्म साबित हुआ है। यदि बीजेपी ने अपने विधायकों और उनके परिवारों के उम्मीदवारों को नहीं बचाया, तो आने वाले समय में यह दबाव और भी बढ़ सकता है।

अंततः, पंचायत चुनाव निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाने की क्षमता रखते हैं। इस चुनाव ने यह दिखाया है कि स्थानीय स्तर पर राजनीतिक धारणा कितनी तेजी से बदल सकती है।

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