फरवरी में थोक महंगाई बढ़कर 2.38% पर पहुंची:फूड प्रोडक्ट्स मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट बढ़ने से महंगाई बढ़ी; जनवरी में 2.31% पर थी
फरवरी महीने में थोक महंगाई बढ़कर 2.38% पर आ गई है। इससे पहले जनवरी में महंगाई 2.31% पर थी। फूड प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने आज यानी 17 मार्च को ये आंकड़े जारी किए। रोजाना जरूरत के सामान, खाने-पीने की चीजें सस्ती हुईं सब्जियां और दालें सबसे ज्यादा सस्ती होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का आम आदमी पर असर थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है। होलसेल महंगाई के तीन हिस्से प्राइमरी आर्टिकल, जिसका वेटेज 22.62% है। फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15% और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे ज्यादा 64.23% है। प्राइमरी आर्टिकल के भी चार हिस्से हैं। महंगाई कैसे मापी जाती है? भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 22.62% और फ्यूल एंड पावर 13.15% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है। -------------------------- यह खबर भी पढ़ें... फरवरी में रिटेल महंगाई घटकर 3.61% पर आई:7 महीने में सबसे कम, सब्जियां-दालें सस्ती; जनवरी में महंगाई 4.31% पर थी दाल और सब्जियां सस्ती होने से फरवरी में रिटेल महंगाई दर घटकर 3.61% पर आ गई है। ये महंगाई का 7 महीने का निचला स्तर है। जुलाई 2024 में महंगाई 3.54% पर थी। वहीं जनवरी 2025 में महंगाई 4.31% थी। सांख्यिकी मंत्रालय ने आज 12 मार्च को महंगाई के आंकड़े जारी किए। पूरी खबर पढ़े...

फरवरी में थोक महंगाई बढ़कर 2.38% पर पहुंची
फरवरी 2024 में भारत में थोक महंगाई दर 2.38% तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा पिछले जनवरी के 2.31% से बढ़ा है, जिससे सभी उद्योगों में चिंता का विषय बन गया है। इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण फूड प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट का बढ़ना है। महंगाई के इस स्तर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए चुनौतीपूर्ण दौर में ला दिया है।
महंगाई के बढ़ने के प्रमुख कारण
थोक महंगाई दर में वृद्धि का मुख्य कारण खाद्य उत्पादों की उत्पादन लागत में वृद्धि है। कृषि वस्तुओं की लागत, जैसे कि अनाज और सब्जियों की, में रिकॉर्ड स्तर पर वृद्धि हो रही है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और परिवहन लागत में इजाफा भी इस वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सफल रहा है। ऐसे परिप्रेक्ष्य में, किसान और उपभोक्ता दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
सरकारी उपाय और नीतिगत परिवर्तन
भारत सरकार ने इन वित्तीय चुनौतियों को देखते हुए कई उपाय किए हैं। खाद्य सुरक्षा योजनाओं को मजबूत किया जा रहा है और कृषि के लिए सब्सिडी नीतियों में सुधार किया जा रहा है। इसके अलावा, निर्यात पर सख्त नियंत्रण भी लगाए जा सकते हैं ताकि घरेलू बाजार में कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
आर्थिक विश्लेषण और भविष्य की संभावनाएं
विश्लेषकों का मानना है कि अगर स्थितियां ऐसे ही रही, तो आने वाले महीनों में महंगाई को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। केंद्रीय बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को इस पर कड़ा कदम उठाना पड़ सकता है। इंतजार किया जा रहा है कि महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई जाएंगी या अन्य प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
इस तरह की वृद्धि से निवेशकों और कारोबारियों में अस्थिरता का भाव उत्पन्न होता है। महंगाई की दर को नियंत्रित करना देश के विकास के लिए आवश्यक है।
फरवरी में बढ़ी महंगाई की खबर को ध्यान में रखते हुए उपभोक्ताओं को अपनी वित्तीय योजनाओं पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस हो सकती है। इससे उनका दैनिक खर्च और बजट प्रभावित हो सकता है।
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