बच्चे का अपहरण कर हत्या में सजा का ऐलान:दो दोषियों को 4-4 साल कैद और 10-10 हजार जुर्माना, 27 साल बाद फैसला
मुजफ्फरनगर में शनिवार को न्यायाधीश गैंगस्टर कोर्ट काशिफ सेख द्वारा मुकेश पुत्र भज्जड़ और विनोद पुत्र महेंद्र को चार-चार वर्ष के कठोर कारावास और दस-दस हजार रुपए जुर्माने की सज़ा सुनाई। मुकदमे की प्रभावी पैरवी विशेष लोक अभियोजक दिनेश सिंह पुंडीर और विशेष लोक अभियोजक राजेश शर्मा द्वारा की गई। दरअसल, थाना भोपा इलाके के ग्राम भोकरहेड़ी निवासी कर्मवीर 6 साल के बेटे जॉनी की 27 साल पहले 30 हज़ार रुपये की फिरौती लेकर अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी। इस मामले में कर्मवीर ने पड़ोस में रहने वाले बदमाश मुकेश पुत्र भज्जड़, विनोद पुत्र महेंद्र और सुभाष पुत्र मलखान के ख़िलाफ़ 28 मार्च 1998 को थाना भोपा पर रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि 20 मार्च 1998 को उनका 6 वर्षीय बेटा जॉनी अचानक गायब हो गया है। बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिला तो अगले दिन 21 मार्च 1998 को उनके घर के बगड़ में एक चिट्ठी मिली, जिसमें बदमाशों ने जॉनी को छुड़ाने के बदले 30 हज़ार रुपये की मांग की थी। चिट्ठी में यह भी लिखा था कि यदि पुलिस को सूचना दी तो जॉनी को जान से मार देंगे। कर्मवीर ने अपने बेटे की जान का खतरा समझते हुए 24 मार्च 1998 को बदमाशों द्वारा बताए गए स्थान पर 30 लेकर गए, जहां उन्हें मोहल्ले का विनोद मिला। विनोद ने पैसे ले लिए और कहा कि जॉनी कल घर वापस आ जाएगा, लेकिन जॉनी घर वापस नहीं आया। 10 दिन बाद जॉनी का शव और कपड़े मिले। जॉनी का अपहरण कर मोहल्ले के बदमाश मुकेश पुत्र भज्जड़, विनोद पुत्र महेंद्र और सुभाष पुत्र मलखान ने उसकी हत्या कर दी थी। वर्तमान में अभियोग मुकेश और विनोद के विरुद्ध चल रहा था। मुकेश पुत्र भज्जड़ का एक संगठित गिरोह था, जिसका मुखिया स्वयं मुकेश था। यह लोग क्षेत्र में अवैध हथियारों से हत्या और अपहरण जैसे गंभीर अपराध करते थे। तत्कालीन थाना अध्यक्ष भोपा ओम प्रकाश सिंह ने उनके विरुद्ध 2/3 गैंगस्टर का मुकदमा पंजीकृत कराया था, जिसकी विवेचना तत्कालीन थाना अध्यक्ष अनिल कुमार राघव द्वारा की गई थी।

बच्चे का अपहरण कर हत्या में सजा का ऐलान
हाल ही में एक जघन्य अपराध के मामले में, भारत की न्याय प्रणाली ने 27 साल बाद एक अहम निर्णय सुनाया। दो दोषियों को बच्चे के अपहरण और हत्या के मामले में चार साल की कैद और 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। यह केस बच्चों की सुरक्षा को लेकर समग्र समाज में जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
केस का सारांश
यह मामला तब शुरू हुआ जब एक छोटे बच्चे का अपहरण किया गया था, जिसका शव बाद में मिला। मामले की जांच में पुलिस ने कई गवाहों के बयान लिए और सबूत इकट्ठा किए। इस मामले ने न्यायालय में लंबा समय बिताया और अंततः न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि भारतीय न्यायपालिका अपराधियों को दंडित करने में कितनी सजग है।
दोषियों की सजा
न्यायालय ने फैसले में कहा कि समाज में ऐसे अपराधों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दोषियों को चार साल की कैद और 10-10 हजार रुपये का जुर्माना ऐसे मामलों में एक संदेश है, जिसमें बच्चों के जीवन का कोई भी उल्लंघन किया जाता है। यह सजा जितनी कम लगती है, उतनी ही महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य में और भी बच्चों के जीवन की रक्षा की जा सके।
महत्वपूर्ण बिंदु
यह मामला वर्ष 1996 का है, जब बच्चा लापता हो गया था। इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया था। इस तरह के मामले विभिन्न कानूनों और न्यायिक प्रक्रियाओं के महत्व को उजागर करते हैं। साथ ही, यह दर्शाता है कि कैसे लोग और सरकार ऐसे अपराधों के खिलाफ एकजुट होते हैं।
समाज पर प्रभाव
इस फैसले का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह अपराध सभी को यह सिखाता है कि बच्चों की सुरक्षा की कितनी आवश्यकता है। सभी माता-पिता को इस बारे में जागरूक होना चाहिए और बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय करना चाहिए। इसके अलावा, यह एक सशक्त संदेश है कि ऐसे कृत्यों का परिणाम कितना गंभीर हो सकता है।
भविष्य की आवश्कताएँ
भविष्य में, हमें ऐसे मामलों में तेजी से न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि मदद मिल सके और आगे कोई अन्य बच्चा इस तरह की समस्या का सामना न करे। समाज और सरकार को मिलकर बच्चों की सुरक्षा हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए।
इस फैसले से न केवल आरोपी को सजा मिली है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्याय की प्रक्रिया कभी बंद नहीं होती, और हर अपराध को कानूनी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
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