बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध में 10 दिन में 2.82 करोड़ चढ़ावा:सोना-चांदी और 12 देशों की मुद्रा भी दान, 10 दिन में 2.53 लाख श्रद्धालु पहुंचे
उत्तर भारत के प्रसिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। चैत्र माह मेले के दौरान यहां 10 दिन में 2.53 लाख श्रद्धालुओं ने गुफा में दर्शन किए और चढ़ावे के रूप में नया कीर्तिमान स्थापित किया। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष एवं एसडीएम बड़सर राजेंद्र गौतम ने बताया कि 10 दिन में श्रद्धालुओं ने 2 करोड़ 82 लाख 32 हजार 136 रुपए श्रद्धालुओं ने मंदिर में चढ़ाए है। इससे पहले 10 दिन में 2.25 करोड़ से ज्यादा का चढ़ावा कभी नहीं चढ़ा। इसमें 2 करोड़ 12 लाख 8 हजार 311 रुपए गुफा के अंदर चढ़ाए गए, जबकि मंदिर के दान पात्र में 70 लाख 23 हजार 825 रुपए प्राप्त हुए। मंदिर में 81.95 ग्राम सोना और 1 किलो 219.09 ग्राम चांदी भी भक्तों ने अब तक चढ़ा दिया है। इन देशों की विदेशी मुद्रा भी चढ़ाई दियोटसिद्ध मंदिर में विदेशी मुद्रा भी चढ़ाई गई है। एसडीएम राजेंद्र गौतम ने बताया कि 1 हजार 920 ब्रिटिश पाउंड, 1 हजार 448 अमेरिकी डॉलर, 1 हजार 270 यूरो, 10 हजार 946 कनाडाई डॉलर, 485 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, 1 हजार 930 यूएई दिरहम, 29 कतर रियाल, 15 सऊदी रियाल, 330 न्यूजीलैंड डॉलर, 110 सिंगापुर डॉलर, 8 बहरीन दीनार और 84 मलेशियाई रिंगिट भी श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में चढ़ा गए हैं। श्रद्धालुओं ने बनाया दान का रिकॉर्ड: गौतम राजेंद्र गौतम ने बताया कि श्रद्धालुओं ने दिल खोलकर दान किया है, जो एक नया रिकॉर्ड है। बता दें कि दियोटसिद्ध मंदिर में हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, जम्मू कश्मीर के अलावा विदेशों से भी काफी लोग दर्शन को पहुंचते हैं। दंडवत होकर पहुंचते हैं कुछ श्रद्धालु यह मेला 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चलेगा। इस मंदिर में श्रद्धालु 360 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं। कुछ श्रद्धालु दंडवत होकर मंदिर पहुंचते हैं। गद्दी पर राजेंद्र गिरी विराजमान बाबा बालक नाथ के वर्तमान में महंत श्री श्री 1008 राजेंद्र गिरि जी महाराज गद्दी पर विराजमान है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु गुफा में दर्शन के बाद महंत का भी आशीर्वाद लेने के लिए उनके निवास पर पहुंचते हैं। मानता है की गुफा दर्शनों के बाद गद्दीसीन महंत के दर्शन करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर बाबा बालक नाथ मंदिर हमीरपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर हमीरपुर और बिलासपुर जिले की सीमा पर चकमोह गांव के दियोटसिद्ध नामक क्षेत्र में स्थित है | धौलगिरी पर्वत की पहाड़ियों पर एक प्राकृतिक गुफा में बाबा जी पवित्र प्रतिमा स्थापित है। बाबा बालक पर लोगों की आस्था का कारण बाबा बालक नाथ हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जो गुरु दत्तात्रेय के प्रति अपनी भक्ति और अपने चमत्कारी कार्यों के लिए जाने जाते हैं। किंवदंती के अनुसार, बाबा ने तीन साल की उम्र में अपना परिवार छोड़ दिया था और ऋषि नारद ने उन्हें जप करने या गुरु दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करने के लिए निर्देशित किया था। जब बाबा 4 साल के थे, तब गुरु दत्तात्रेय ने उन्हें अपने शिष्य के रूप में लिया और वह चार-धाम यात्रा पर निकल पड़े। अपनी तीर्थयात्रा के दौरान, बाबा बनवाला में रुके और बाद में हिमाचल के शाहतलाई पहुंचे, जहां वे माता रत्नो के दत्तक पुत्र बने और उनकी गायों का पालन-पोषण किया। बाबा बालक नाथ ने बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए, अपनी योगाभ्यास करते हुए और भोजन के लिए रत्नो माई से रोटी और लस्सी स्वीकार करते हुए 12 साल बिताए। 12वें वर्ष के अंत में गांव के लोगों की शिकायतें आने लगीं कि बाबा उनकी गायों की उपेक्षा कर रहे हैं और उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रत्नो माई ने स्वयं लोगों को खुश करने की कोशिश की, लेकिन ग्राम प्रधान ने उनकी गायों द्वारा उनकी फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से डांटा। तब रत्नो माई ने अपना धैर्य खो दिया और बाबा से उनकी लापरवाही की शिकायत की। यह सुनकर, बाबा उन्हें और गांव के मुखिया को उस खेत में ले गए जिसके बारे में वे शिकायत कर रहे थे, जहां उन्हें आश्चर्य हुआ कि फसलें चमत्कारिक रूप से ठीक हो गई थीं। जब बन गया छाछ का तालाब बाबा ने बरगद के पेड़ के तने पर अपना चिमटा फेंका, जिसके नीचे वह पिछले 12 वर्षों से बैठे थे, और लकड़ी का एक टुकड़ा टूट गया, जिससे अंदर रोटियों का ढेर दिखाई देने लगा। उसने अपना चिमटा भी जमीन में धकेल दिया और छाछ का झरना फूट पड़ा, जो जल्द ही छाछ का तालाब बन गया। यह तालाब आज भी शाहतलाई में देखा जा सकता है, जिससे इस स्थान का नाम पड़ा। आज, जिस स्थान पर पौराणिक बरगद का पेड़ स्थित था, वहां एक खोखली संरचना है जिसे "खोखले पेड़ के नीचे तपस्या की भूमि" कहा जाता है और बाबा बालक नाथ, गुगा चौहान और नाहर सिंह की मूर्तियों वाला एक मंदिर है। भक्तों का मानना है कि उस स्थान की मिट्टी मवेशियों के पैर रोग के खिलाफ एक प्रभावी दवा है। बाबा बालक नाथ की कहानी आस्था और भक्ति की शक्ति की याद दिलाती है और उनके चमत्कार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध में 10 दिन में 2.82 करोड़ चढ़ावा
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धार्मिक आस्था और श्रद्धा का प्रतीक
बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध, जो अपनी अद्भुत शक्ति और अनुग्रह के लिए प्रसिद्ध हैं, ने हाल ही में 10 दिन में 2.82 करोड़ रुपये चढ़ावे का अद्भुत आंकड़ा पार किया है। यह चंदा केवल भक्तों की आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि श्रद्धालु अपने इष्ट देव के प्रति कितने समर्पित हैं।
सोना-चांदी और विभिन्न मुद्राएं
इस 10 दिन के दौरान ना केवल नकद दान किया गया, बल्कि श्रद्धालुओं ने सोने-चांदी के आभूषणों के साथ-साथ 12 देशों की मुद्राएं भी दान की हैं। यह वास्तव में धार्मिक भक्ति का एक अनोखा उदाहरण है जो देश-विदेश के भक्तों की श्रद्धा को दर्शाता है।
श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या
दिलचस्प बात यह है कि इस अवधि में कुल 2.53 लाख श्रद्धालु बाबा बालकनाथ के दर्शन के लिए आए। यह संख्या पहले के वर्षों की तुलना में काफी अधिक है, जो कि बाबा की बढ़ती लोकप्रियता और भक्तों का उन पर विश्वास दर्शाती है।
आस्था के केंद्र का महत्व
दियोटसिद्ध का ये मंदिर न केवल क्षेत्र के लोगों के लिए, बल्कि देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल बना हुआ है। भक्तों का यह जमावड़ा यह दर्शाता है कि बाबा बालकनाथ की कृपा वास्तव में उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
इस मंदिर के विकास और इसकी सुविधाओं को सुधारने के लिए विभिन्न योजनाएँ चल रही हैं ताकि आने वाले भक्तों की सुविधाओं का आवंटन सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष
बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध में इतनी बड़ी मात्रा में चढ़ावे का एकत्रीकरण न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि भविष्य में इस स्थान की धार्मिक अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा। हम सभी को चाहिए कि हम ऐसी धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और विकास में योगदान दें।
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