69000 सहायक अध्यापक भर्ती प्रकरण में अहम फैसला:हाईकोर्ट ने कहा-आर्थिक पिछड़ा वर्ग अभ्यर्थियों को नहीं मिलेगा आरक्षण लाभ, दाखिल अपीलें खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में आर्थिक पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण का लाभ देने की मांग को लेकर दाखिल अपील को खारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने यह माना की 69000 सहायक अध्यापक भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने के समय प्रदेश में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू किया जा चुका था और सरकार को इसका लाभ देना चाहिए था । अब क्योंकि नियुक्त की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है । चयनित अभ्यर्थी नियुक्त पा चुके हैं और इसको चुनौती नहीं दी गई है। इन परिस्थितियों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने शिवम पांडे का पांच अन्य तथा दर्जनों अन्य अपीलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। अपीलों में एकल न्याय पीठ द्वारा आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना था की ईडब्ल्यूएस योजना 12 जनवरी 2019 को संविधान में 103 वा संशोधन के द्वारा लागू की गई। राज्य सरकार ने इसे 2020 में लागू किया । मगर इससे पूर्व राज्य सरकार ने एक कार्यालय ज्ञापन 18 फरवरी 2019 को जारी करके ईडब्ल्यूएस आरक्षण योजना लागू करने की घोषणा कर दी थी। क्योंकि 69000 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया विज्ञापन जारी होने की तिथि 17 मई 2020 से आरंभ मानी जाएगी और उस समय प्रदेश में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू हो चुका था इसलिए अभ्यर्थियों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट के समक्ष प्रमुख रूप से तीन प्रश्न थे कि ईडब्ल्यूएस योजना 18 फरवरी 2019 से लागू मानी जाएगी या 31 अगस्त 2020 को एक्ट लागू होने की तिथि से माना जाएगा। इसी प्रकार से कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया विज्ञापन जारी होने की तिथि से मानने पर भी विचार किया। कोर्ट के समक्ष तीसरा प्रश्न था कि क्या याची कोई राहत पाने के हकदार है। कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण 18 फरवरी 2019 से लागू माना तथा एकल न्याय पीठ के इस मत को स्वीकार नहीं किया कि आरक्षण एक्ट लागू होने की तिथि से लागू माना जाएगा। इसी प्रकार से कोर्ट ने विज्ञापन जारी किए जाने की तिथि 17 मई 2020 से नियुक्ति प्रक्रिया को आरंभ माना। खंडपीठ का कहना था कि इस हिसाब से नियुक्ति प्रक्रिया आरंभ होने के समय ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू हो चुका था और राज्य सरकार को 69000 सहायक अध्यापक नियुक्ति का विज्ञापन जारी करते समय इसे लागू करना चाहिए था। मगर याचियों को वर्तमान परिस्थितियों में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने के प्रश्न पर खंडपीठ का कहना था कि नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। तथा सभी 69000 नियुक्तियां की जा चुकी है। याचिकाओं में चयनित अभ्यार्थियों को पक्षकार नहीं बनाया गया है और ना ही चयन प्रक्रिया को चुनौती दी गई है। पीठ का कहना था कि 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ किसको दिया जाए इसके लिए मेरिट लिस्ट बनानी होगी। मगर रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ नहीं है। आवेदन करते समय किसी भी अभ्यर्थी ने अपने ईडब्ल्यूएस स्टेटस का विवरण नहीं दिया है। इसलिए अब तय करना मुश्किल है कि कौन अभ्यर्थी ईडब्ल्यूएस की श्रेणी में आएगा। पीठ का कहना था कि यदि ऐसा विवरण एकत्र भी कर लिया जाए तो इस स्तर पर आरक्षण देने के लिए पूर्व में चयनित हो चुके लोगों को बाहर करना होगा। मगर वह इन याचिकाओं में पक्षकार नहीं है। कोर्ट ने सभी अपीलें खारिज़ कर दी।
69000 सहायक अध्यापक भर्ती प्रकरण में अहम फैसला: हाईकोर्ट ने कहा- आर्थिक पिछड़ा वर्ग अभ्यर्थियों को नहीं मिलेगा आरक्षण लाभ
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उत्तर प्रदेश में सहायक अध्यापक भर्ती प्रकरण में हाईकोर्ट का नया फैसला सामने आया है। 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि आर्थिक पिछड़ा वर्ग (EWS) के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इसके साथ ही दाखिल की गई अपीलों को भी खारिज कर दिया गया है। यह फैसला कई उम्मीदवारों के लिए एक बड़ी निराशा बनकर सामने आया है, जो लंबे समय से इस भर्ती प्रक्रिया का इंतजार कर रहे थे।
फैसले की पृष्ठभूमि
सहायक अध्यापक भर्ती के लिए जो मांगें उठाई गई थीं, उनमें ईडब्ल्यूएस वर्ग के लोगों को आरक्षण देने की मांग भी शामिल थी। इस दिशा में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, लेकिन कोर्ट ने इस पत्र को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि स्थायी और न्यायपूर्ण विकास की दृष्टि से सभी विद्यार्थियों को समान अवसर मिलना आवश्यक है। न्यायालय ने कहा कि ये कदम केवल शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जरूरी हैं।
समझौतों का एक नया अध्याय
इस निर्णय के बाद शिक्षा विभाग में काफी हलचल मच गई है। अभ्यर्थियों को अब अपनी उम्मीदों को पुनः परिभाषित करना होगा। यह सभी के लिए एक आवश्यक कदम है क्योंकि इससे उन्हें यह स्पष्टता मिलती है कि आरक्षण के स्थान पर योग्यता और कड़ी मेहनत ही सफलता का प्रमुख आधार होगी। ऐसे समय में प्रतियोगी परीक्षाओं के मैदान में संघर्ष और बढ़ जाएगा।
अभ्यर्थियों की प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद छात्रों और अभ्यर्थियों में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कुछ अभ्यर्थियों का कहना है कि यह निर्णय उनके भविष्य में बहुत बड़ा बदलाव लेकर आएगा, जबकि अन्य मानते हैं कि न्यायालय का यह फैसला अन्यायपूर्ण है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने अपने आदेश में बताया कि शिक्षण संस्थानों में नियुक्ति के लिए उचित तरीके मात्र योग्यता और परीक्षा की बाध्यता के आधार पर ही चलायी जानी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण केवल तभी लागू होता है जब उसका स्पष्ट प्रावधान हो।
निष्कर्ष
आर्थिक पिछड़ा वर्ग लेकर हुए इस फैसले ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या आरक्षण का एक सही तरीका है या यह केवल असंतुलन का निर्माण कर रहा है। हालांकि, कोर्ट के इस फैसले का अभी भी व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव देखने को मिलेगा।
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