रूस में बेटे पर बम गिरा...पिता सदमे में मरे:मां बोली-गरीबी झेल लेंगे, बेटे को लौटा दो; इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी

मुझे मेरा बेटा जिंदा वापस दिलवा दो, हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। हम गरीबी में जी लेंगे, लेकिन इस उम्र में बेटे की लाश नहीं देखी जाएगी। एजेंट के चक्कर में बेटा परिवार की हालत सुधारने के लिए रूस चला गया। 6 महीने से उससे बात नहीं हो पाई है। उसकी पत्नी फोन लेकर बदहवास बैठी रहती है। हर पल लगता है कि उसका फोन आएगा और कहेगा कि मैं वापस आ रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं होता है। ये दर्द उस मां का है जिसका बेटा काम करने के लिए रूस गया था, लेकिन वहां युद्ध क्षेत्र में झोंक दिया गया। ऐसा हाल 9 परिवारों का है। एक परिवार में तो बेटा बम गिरने से घायल हुआ तो पिता को हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई। दैनिक भास्कर की टीम उन परिवारों का दर्द समझने उनके घर तक पहुंची। ये जानना चाहा कि उनका जीवन, आर्थिक हालात कैसे हैं। सरकार से क्या मदद मिल रही। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... हमारा परिवार पागल हो जाएगा, बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, बहू बेसुध है हम जिला मुख्यालय से 10 किमी. दूर कंधरापुर थाना क्षेत्र के खोजापुर माधवपट्‌टी गांव पहुंचे। गांव वालों से जैसे रूस में गए युवकों के बारे में पूछा तो उन्होंने सीधे योगेंद्र के घर की ओर इशारा किया। हम योगेंद्र के घर पर पहुंचे, जहां एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। हर चेहरा उदास है, सबसे पहले हमने योगेंद्र की मां से बातचीत शुरू की, वे फफक कर बोल पड़ीं- मऊ के एजेंट विनोद ने मेरे बेटे को फंसा दिया। गार्ड की नौकरी के लिए लेकर गए और बार्डर पर भेज दिया। बेटे को बहकाकर विनोद 13 जनवरी 2024 को घर से लेकर गया। कुछ दिन तक वो दिल्ली में रहे। इसके बाद रूस लेकर चला गया। अप्रैल महीने तक हमारी बातचीत होती रही। हमें लगता था कि छह महीने में बेटा जब वापस लौटेगा तो हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। अप्रैल के पहले सप्ताह में हमारे पास बेटे का फोन आया। उसने बताया कि हमें लड़ाई के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसा लगता है अब ये लोग हम सभी को युद्ध में भेज देंगे। इसके बाद हुआ भी ऐसा ही 25 अप्रैल को उसे लड़ाई में भेज दिया गया। 9 मई को मेरे बेटे को चोट लग गई, जिसके बाद 25 मई 2024 तक बात हुई। 25 मई से आज तक मेरे बेटे से कोई बात नहीं हुई। बेटे से बात न होने से हम लोग रोज घुट-घुटकर मर रहे हैं। हमने यहां के नेताओं, पुलिस और जिले के अफसरों सभी से गुहार लगाई। लेकिन कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा। हम तो खुद पागल हो गए हैं। हम कैसे जी रहे हैं यह तो मेरी आत्मा ही जानती है। हम गरीबी में जी लेंगे पर अपने बेटे के बिना नहीं जी पाएंगे। मां के रोते ही बहू, बच्चे और गांव के जो लोग वहां पर खड़े हो गए। सभी की आंखों में आंसू आ गए। मां ने खुद को संभालते हुए कहा- पत्नी और 4 बच्चों को कैसे संभालें, यही समझ नहीं आ रहा। योगेन्द्र यादव की पत्नी अनीता कहती हैं- रोज बच्चे अपने पापा के पास फोन लगाते हैं, पर बात नहीं हो पाती। हमें कोई रुपया पैसा नहीं चाहिए। मुझे मेरा सुहाग, मेरा पति चाहिए। मैं किससे अपना दर्द कहने जाऊं। योगेन्द्र यादव चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। योगेन्द्र की 3 बेटियां और एक बेटा है। छोटे बच्चे पिता से बात करने की जिद करते हैं। हमारी एक नजर फोन पर ही लगी रहती है कि पता नहीं कब कॉल आ जाए। बेटे के गम में पिता की मौत हो गई, बहन बोली- धोखा हुआ योगेंद्र यादव के गांव से निकलकर हम 15 किलोमीटर दूर गुलामी के पूरा गांव पहुंचे। यहां के अजहरूद्दीन को 27 जनवरी 2024 को एजेंट विनोद अपने साथ लेकर गया था। अजहरूद्दीन की मां नसरीन कहती हैं- विनोद मेरे घर आया और बोला, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी है, दो लाख रुपया महीना मिलेगा। सैलरी अच्छी समझकर मेरा बेटा वहां चला गया। जब बेटा वहां गया तो 2 महीने तक तो हम सभी से बात होती रही। इसी बीच बेटे को ट्रेनिंग देकर लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। फिर एक दिन सूचना मिली कि युद्ध में बम गिरने से बेटा घायल हो गया, यह बात जब अजहरूद्दीन के अब्बू मैनुद्दीन को पता चली तो उन्हें एक अप्रैल को हार्ट अटैक आ गया। आठ अप्रैल को उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद हमने एजेंट विनोद से अपने बेटे से बात कराने की जिद की। मगर उसने बात नहीं कराई। हमारे पास तो इलाज के भी पैसे नहीं थे। गहने बेचकर इलाज कराया। फिर भी अजहरूद्दीन के अब्बू नहीं बचे। हमने एंबेसी में फोन किया, बहुत मिन्नतें कीं, इस दौरान खूब रोई। मेरी बेटे से अंतिम बात 27 अप्रैल को हुई थी। तब उसने कहा था कि अम्मी छह महीने तक यहां काम करूंगा और लौट आऊंगा। लेकिन आजतक उसका पता नहीं चला है। यह कहते हुए अजहरूद्दीन की मां रोने लगती हैं। मां को संभालते हुए बहन जेबा खान बोलीं- हमारे तीन भाईयों में यही एक भाई कमाने वाला था। हम लोग अपने भाई को लेकर बहुत दर्द से गुजर रहे हैं। जिस एग्रीमेंट पर साइन कराया गया, वो रूसी भाषा में था। मेरे भाई के साथ धोखा हुआ है। हमारी सरकार से मांग है कि सरकार हमारी मदद करे। अब पढ़िए 4 उन परिवारों का दर्द, जो बेटों की आने की राह देख रहे हुमेश्वर प्रसाद के पिता बोले- रोते-रोते सो जाती है पत्नी यहां से 15 किमी सफर तय कर मुबारकपुर थाना क्षेत्र के सठियांव गांव पहुंचे। लोगों से पूछते हुए इंदु प्रकाश के घर पहुंचे। इंदु प्रकाश के बेटे हुमेश्वर प्रसाद भी रूस गए हैं। उन्होंने कहा- हम लोगों का बहुत बुरा हाल है। हम खाना नहीं खा पा रहे हैं। बहू रोते-रोते सो जाती है। कई बार तो वह रात में उठकर जोर-जोर से रोने लगती है। हम सभी बेटे के सुरक्षित लौटने की आस लगाए हुए हैं। सरकार हमारी मदद करे और मेरे बेटे को लाने में मदद करे। पिता को खो दिया, मामा अभी भी फंसे आजमगढ़ जिले के बनकटा के रहने वाले कन्हैया यादव (44) की रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के दौरान गोली लगने से मौत हो गई है। कन्हैया की डेडबॉडी 23 दिसंबर को गांव पहुंची। कन्हैया यादव कुक वीजा पर 16 जनवरी 2024 को रूस गए थे। जहां से ट्रेनिंग देकर उन्हें यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। कन्हैया के बेटे अजय ने बताया कि एजेंट सिक्योरिटी गार्ड का का

Jan 17, 2025 - 05:45
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रूस में बेटे पर बम गिरा...पिता सदमे में मरे:मां बोली-गरीबी झेल लेंगे, बेटे को लौटा दो; इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी
मुझे मेरा बेटा जिंदा वापस दिलवा दो, हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। हम गरीबी में जी लेंगे, लेकिन इस उम्र

रूस में बेटे पर बम गिरा...पिता सदमे में मरे: मां बोली-गरीबी झेल लेंगे, बेटे को लौटा दो; इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी

एक दुखद घटना की कहानी

रूस में एक ऐसा दिल दहला देने वाला वाकया सामने आया है जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक माँ ने अपने बेटे की मौत के बाद बेमिसाल दर्द भरे शब्द कहे हैं जो हर किसी को रुला सकते हैं। यह घटना युद्ध की भयावहता और उसके सामाजिक प्रभाव को उजागर करती है। माँ की अपील ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या युद्ध ही मानवता का अंतिम समाधान है।

पिता की प्रतिक्रिया

घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद, पिता का दिल तेजी से धड़कने लगा। जब वह अपने बेटे की मौत की खबर सुना, तो वह सदमे में आ गए और उनकी तबियत बिगड़ गई। यह पिता अपने बेटे के बिना जी नहीं पा रहा था, और अब वह बिलकुल टूट चुका है। यह एक ऐसा समय है जब परिवार टूट जाता है, और प्रेम का एक अनमोल बंधन समाप्त हो जाता है।

माँ की भावनाएँ

माँ की ह्रदयविदारक बातों ने लोगों के दिलों को छू लिया है। उन्होंने कहा, "हम गरीबी सह लेंगे, लेकिन मेरे बेटे को वापस लौटा दो। इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी।" उनकी बातों में न केवल अपना दर्द है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक माँ अपने बच्चे के लिए कितनी बलिदान कर सकती है। युद्ध की इस स्थिति में एक माँ की यह पुकार हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या ऐसे हालातों में हम इंसानियत को भुला सकते हैं?

समाज पर प्रभाव

यह घटना केवल एक परिवार का दुख नहीं है बल्कि यह समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। युद्ध और उसके परिणाम न केवल व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि पूरे समाज के स्तर पर उनकी गहरी छाप छोड़ते हैं। हमें यह समझना होगा कि युद्ध सिर्फ नष्ट करने का एक साधन है, लेकिन प्यार और मानवीयता सबसे बड़ी ताकत हैं।

निष्कर्ष

यह घटना हमें यह सिखाती है कि हमें अपनेपन, प्रेम और करुणा को साधारण परिस्थितियों में भी नहीं भूलना चाहिए। हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि क्या हम अपने जीवन में लड़ाई की बजाय प्रेम का मार्ग चुन सकते हैं। समाज को युद्ध के परिणामों पर गहराई से विचार करने और कार्य करने की जरूरत है।

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