स्टारलिंक पर सिंधिया बोले- लाइसेंस तभी, जब गाइडलाइंस पूरी होंगी:हमारा बाजार खुला, लेकिन नियम मानने होंगे; सरकार ने कॉल इंटरसेप्शन की शर्त रखी थी
इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत में ऑपरेशन शुरू करने के लिए सरकार से लाइसेंस तभी मिलेगा, जब वह सभी जरूरी गाइडलाइंस को पूरा करेगी। यह बात केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कही है। सिंधिया ने मंगलवार को मनीकंट्रोल को बताया कि हमारा फोकस कंज्यूमर के हिसाब से नीति बनाना है। अगर किसी भी कंपनी को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस देना है, तो उसे सभी शर्तें पूरी करनी होंगी। लाइसेंस लेना होगा, स्पेक्ट्रम प्राप्त करना होगा। इसके बाद ऑपरेशन शुरू करना होगा। सिंधिया ने स्टारलिंक की 4 साल से पेंडिंग लाइंसेंस एप्लिकेशन के सवाल पर कहा कि ये पूरी तरह से कंपनी और आवेदन प्रक्रिया के बीच का मामला है। जैसे ही कंपनी सभी नियमों का पालन करेगी, उसे लाइसेंस मिल जाएगा। सिंधिया बोले- बाजार खुला लेकिन, नियमों मानने होंगे सिंधिया ने बताया कि भारत में पहले ही वन वेब और जियो SES को दो लाइसेंस दिए जा चुके हैं। हमारा बाजार पूरी तरह खुला है, लेकिन कंपनियों को सभी नियमों का पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि सैटेलाइट कम्युनिकेशन आपदा प्रबंधन और दूर-दराज के इलाकों को कनेक्टिविटी देने में मददगार साबित हो सकता है। सरकार ने कंट्रोल सेंटर बनाने और कॉल इंटरसेप्शन की शर्त रखीं भारत में एंट्री से पहले केंद्र सरकार ने स्टारलिंक के सामने कुछ शर्तें रखी हैं। सरकार की मांग है कि शटडाउन कंट्रोल के लिए देश में ही कंट्रोल सेंटर बनाया जाए। यानी अगर कभी इस सर्विस को बंद करना हो तो इसके लिए कंट्रोल सेंटर भारत में ही हो। साथ ही डेटा सिक्योरिटी के लिए सुरक्षा एजेंसियों को ये सुविधा दी जाए कि वो कॉल इंटरसेप्ट यानी डेटा की निगरानी कर सकें। इसके अलावा सैटेलाइट के जरिए विदेश में किए जाने वाले कॉल्स को सीधे फॉरवर्ड के बजाए स्टारलिंक को इन्हें पहले भारत में बनाए गए स्टारलिंक गेटवे पर लाना होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहली दो शर्तें देश की टेलिकॉम कंपनियों जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया (VI) पर पहले से लागू हैं। लाइसेंस मिलने की प्रोसेस आखिरी चरण में रिपोर्ट के मुताबिक स्टारलिंक की सैटेलाइट कम्युनिकेशन लाइसेंसिंग की प्रोसेस लगभग पूरी होने वाली है। कंपनी भारत में इंटरनेट सेवाओं के लिए जियो और एयरटेल के साथ मार्केटिंग और नेटवर्क एक्सपेंशन के लिए समझौते कर रही है। भारत में क्यों जरूरी है कंट्रोल सेंटर देश के किसी भी हिस्से में कानून-व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में संचार सेवाओं को तत्काल बंद करने के लिए कंट्रोल सेंटर जरूरी है। इसमें सैटेलाइट सर्विसेज भी शामिल हैं। इसलिए स्टारलिंक का कंट्रोल सेंटर भारत में बनाने की मांग की गई है। जियो और एयरटेल ने स्टारलिंक के साथ करार किया भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइड करने के लिए देश की दो बड़ी टेलिकॉम कंपनियां जियो और एयरटेल ने इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के साथ करार किया है। समझौते के तहत, स्पेसएक्स और एयरटेल बिजनेस, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य सेवा केंद्रों और दूरदराज के क्षेत्रों में स्टारलिंक सर्विसेस देने के लिए मिलकर काम करेंगे। एयरटेल के मौजूदा नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर में स्टारलिंक टेक्नोलॉजी इंटीग्रेट करने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। 6 सवाल-जवाब में स्टारलिंक के बारे में जानें... सवाल 1- स्टारलिंक क्या है? जवाब- स्टारलिंक 100 से ज्यादा देशों में सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट देती है। उसके पास पृथ्वी की निचली कक्षा में 7 हजार से ज्यादा सैटेलाइट का सबसे बड़ा सैटेलाइट नेटवर्क है। स्टारलिंक इंटरनेट के जरिए स्ट्रीमिंग, ऑनलाइन गेमिंग, वीडियो कॉल आसानी से किया जा सकता है। इसमें कंपनी एक किट उपलब्ध करवाती है जिसमें राउटर, पावर सप्लाई, केबल और माउंटिंग ट्राइपॉड दिया जाता है। हाई-स्पीड इंटरनेट के लिए डिश को खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। iOS और एंड्रॉयड पर स्टारलिंक का एप मौजूद है, जो सेटअप से लेकर मॉनिटरिंग करता है। सवाल 2- यह कैसे अलग है? जवाब- जियो और एयरटेल जैसी कंपनियां फाइबर ऑप्टिक्स, मोबाइल टावर से इंटरनेट देती हैं। स्टारलिंक सैटेलाइट नेटवर्क पर आधारित है। ये छोटे उपग्रहों, ग्राउंड स्टेशनों और यूजर टर्मिनल्स के जरिए काम करती है। इसमें फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं पड़ती। सवाल 3- इसकी स्पीड क्या ज्यादा है? जवाब- स्टारलिंक के सैटेलाइट ट्रेडिशनल सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस के मुकाबले धरती से ज्यादा करीब (550 किमी) हैं। इससे तेज इंटरनेट मिलता है। स्टारलिंक का दावा है कि वह 150 MBPS तक स्पीड देती है, जो फाइबर ब्रॉडबैंड से कम है लेकिन पारंपरिक सैटेलाइट इंटरनेट से बेहतर। सवाल 4- भारत में क्या बदलाव होगा? जवाब- स्टारलिंक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह उन क्षेत्रों में इंटरनेट सर्विस दे सकता है जहां ट्रेडिशनल ब्रॉडबैंड प्रोवाइडर्स अपनी सर्विस नहीं दे सकते। इसमें ग्रामीण क्षेत्र, दूरदराज के स्थान और यहां तक कि प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्र भी शामिल हैं। हमारे देश में दूर-दराज के कई इलाकों में इंटरनेट की पहुंच नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2024 तक ग्रामीण टेली-डेंसिटी 59.1% थी। स्टारलिंक इन क्षेत्रों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है। दुर्गम इलाकों में ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल स्वास्थ्य सेवा बढ़ेगी। सवाल 5- क्या स्टारलिंक मौजूदा कंपनियों के लिए चुनौती है? जवाब- स्टारलिंक और अन्य सैटकॉम सर्विसेज पारंपरिक इंटरनेट कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि इनकी पूरक सर्विस है। हालांकि, इनकी लागत ज्यादा है। स्टारलिंक के प्लान्स मौजूदा ब्रॉडबैंड प्लान्स के मुकाबले 18 गुना तक महंगे हैं। सरकार चाहे तो डिजिटल इंडिया योजना में यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड का इस्तेमाल करके कीमतें कम करने में मदद कर सकती है। सवाल 6- भारत में कैसा होगा भविष्य? जवाब- देश में सैटेलाइट कम्युनिकेशन का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। KPMG की 2024 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह बाजार साल 2028 तक 1.7 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता

स्टारलिंक पर सिंधिया बोले- लाइसेंस तभी, जब गाइडलाइंस पूरी होंगी
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में टिप्पणी की है कि स्टारलिंक को लाइसेंस तभी प्रदान किया जाएगा जब सभी आवश्यक गाइडलाइंस पूरी होंगी। यह बयान इस समय में आया है, जब स्टारलिंक भारत में अपने सेवाओं को शुरू करने की योजना बना रहा है। सिंधिया ने स्पष्ट किया कि भारत का बाजार खुला है, लेकिन इसके लिए नियमों का पालन करना आवश्यक है।
सरकार की शर्तें और कॉल इंटरसेप्शन
सिंधिया ने बताया कि सरकार ने कॉल इंटरसेप्शन से संबंधित कुछ शर्तें निर्धारित की हैं। इन नियमों के अनुसार, कोई भी सेवा प्रदाता तभी काम कर सकता है जब वह इन शर्तों का पालन करे। यह नियम सुनिश्चित करेगा कि उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाए।
स्टारलिंक की संभावनाएँ
स्टारलिंक, जो कि टेस्ला के सीईओ एलन मस्क द्वारा स्थापित एक कंपनी है, ने उच्च स्पीड इंटरनेट सेवाओं की पेशकश की है। भारतीय बाजार में इसके प्रवेश से ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। हालाँकि, इसके लिए सभी सुरक्षा और नियामक आवश्यकताओं का पालन करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, स्टालरिंक के लिए लाइसेंस तभी जारी किया जाएगा जब सभी नियम और गाइडलाइंस का पालन होगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत का बाजार खुला है, लेकिन इसकी सुरक्षा और नियमों का उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा।
इस विकास पर आपकी क्या राय है? क्या आप मानते हैं कि इस प्रकार के नियम भारतीय इंटरनेट सेवाओं के विकास में सहायक साबित होंगे? अपने विचार हमारे साथ साझा करें।
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