स्टीव-जॉब्स की पत्नी ने लिया काली के बीज-मंत्र की दीक्षा:लॉरेन पॉवेल बोलीं- भारतीय सनातन परंपरा की गहराई ने मुझे छुआ है, नई दिशा मिली है

महाकुंभ में एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल ने भगवती मां काली की बीज मंत्र दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद उन्होंने कहा-भारतीय सनातन परंपरा की गहराई और शांति ने मुझे भीतर से छुआ है। भगवती मां काली की आराधना से मुझे आत्मिक शांति और नई दिशा मिली है। यह दीक्षा निरंजनी अखाड़ के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने दी। पंचायती अखाड़ा निरंजनी में स्वामी कैलाशानंद गिरि ने लॉरेन को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और आशीर्वाद दिया। लॉरेन पॉवेल चार दिन से महाकुंभ में हैं। उन्हें कैलाशनंद गिरि ने कमला नाम दिया है। महाकाली का बीज मंत्र 'ॐ क्रीं महाकालिका नमः' हैं। इसी की दीक्षा स्वामी कैलाशानंद गिरि ने दी है। दीक्षा समारोह का आध्यात्मिक माहौल पंचायती अखाड़ा निरंजनी में आयोजित इस समारोह में अध्यात्म और पवित्रता का अद्भुत संगम देखने को मिला। दीक्षा के दौरान वैदिक मंत्रोच्चारण और मां काली की पूजा-अर्चना ने वातावरण को अत्यंत दिव्य बना दिया। इस मौके पर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी ने कहा, "मां काली की साधना से मनुष्य अपने जीवन में शांति और सशक्तिकरण का अनुभव करता है।" अमृत स्नान के दिन बीमार पड़ गई थीं महाकुंभ में अमृत स्नान से पहलेलॉरेन पॉवेल बीमार पड़ गई थीं। स्वामी कैलाशानंद गिरि ने ANI से कहा था कि- लॉरेन पॉवेल मेरे शिविर में आराम कर रही हैं। उन्हें एलर्जी हो गई है। वह कभी इतनी भीड़भाड़ वाली जगह पर नहीं गई हैं। वह काफी सरल स्वभाव की हैं। उन्होंने पूजा के दौरान हमारे साथ समय बिताया। हमारी परंपरा ऐसी है कि जो लोग इसे पहले नहीं देख पाए है, वे सभी इसमें शामिल होना चाहते हैं। दीक्षा लेते समय वह स्वस्थ दिखीं। काशी विश्वनाथ के दर्शन करके महाकुंभ आई थीं महाकुंभ में आने से पहले लॉरेन पॉवेल काशी विश्वनाथ के दर्शन किए थे। गंगा में नौकायन के बाद गुलाबी सूट और सिर पर दुपट्‌टा डालकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए थे। लारेन पॉवेल ने गर्भगृह के बाहर से ही बाबा का आशीर्वाद लिया। सनातन धर्म में गैर हिंदू शिवलिंग का स्पर्श नहीं करते, इस बात का ध्यान रखते हुए उन्होंने बाहर से ही दर्शन किया है। यहां से फिर वे महाकुंभ आई थीं। 13 जनवरी को प्रयागराज पहुंची थी लॉरेन एपल के फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन 13 जनवरी को प्रयागराज पहुंची थी। यहां वह 10 दिन तक कल्पवास करेंगी। साधुओं की संगत में रहकर सनातन, आध्यात्म और भारतीय संस्कृति के बारे में जानेंगी। अमृत स्नान यानी शाही स्नान पर लॉरेन ने गंगा में डुबकी नहीं लगाई। उन्होंने निरंजनी अखाड़े में कल्पवास यानी आत्मशुद्धि और तपस्या का संकल्प लिया है। अखाड़े के आचार्य ने कहा कि लॉरेन कभी इतनी भीड़ भरी जगह पर नहीं रही हैं, उन्हें थोड़ी एलर्जी भी हो गई है, लेकिन वे अभी यहीं रहेंगी।

Jan 15, 2025 - 17:55
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स्टीव-जॉब्स की पत्नी ने लिया काली के बीज-मंत्र की दीक्षा:लॉरेन पॉवेल बोलीं- भारतीय सनातन परंपरा की गहराई ने मुझे छुआ है, नई दिशा मिली है
महाकुंभ में एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल ने भगवती मां काली की बीज मंत्र दीक्

स्टीव-जॉब्स की पत्नी ने लिया काली के बीज-मंत्र की दीक्षा

लॉरेन पॉवेल का अद्वितीय अनुभव

स्टीव-जॉब्स की पत्नी, लॉरेन पॉवेल, ने हाल ही में काली के बीज-मंत्र की दीक्षा ली है। उनका यह निर्णय भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा के प्रति उनकी गहरी रुचि और संबंध को दर्शाता है। लॉरेन ने इस दीक्षा के बारे में कहा, "भारतीय सनातन परंपरा की गहराई ने मुझे छुआ है। इससे मुझे एक नई दिशा मिली है।" इस दीक्षा ने न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि यह उनकी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।

भारतीय संस्कृति का प्रभाव

लॉरेन पॉवेल की इस आध्यात्मिक यात्रा ने यह दर्शाया है कि कैसे भारतीय संस्कृति और परंपराएँ वैश्विक स्तर पर लोगों को आकर्षित कर रही हैं। काली मां का मंत्र, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है, ने लॉरेन को एक नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने भारतीय योग और ध्यान के माध्यम से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने का प्रयास किया है। उनकी यात्रा हमें यह बताती है कि कैसे पुराने ग्रंथ और मान्यताएँ आज की दुनिया में महत्वपूर्ण हैं।

संपर्क में रहना

लॉरेन की यात्रा केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। वे विभिन्न भारतीय सभ्यताओं के साथ संपर्क में रहने की कोशिश कर रही हैं। उन्हें भारतीय धर्म ग्रंथों और उपनिषदों के गहरे अर्थों में रुचि है।

इस प्रकार, लॉरेन पॉवेल का यह निर्णय न केवल उनके लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने जीवन में एक नई दिशा और उद्देश्य की तलाश कर रहे हैं। उनके अनुभव ने यह स्पष्ट किया है कि किस प्रकार पुरानी परंपराएँ हमें आज की चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकती हैं।

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