हिमाचल में 2 साल से नहीं लगी महिला अदालत:सरकार नहीं कर पाई अध्यक्ष-सदस्य की नियुक्ति, वुमन कमिशन को मिली 1400 शिकायतें
हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के हकों की रक्षा करने वाले वुमन कमीशन में 25 महीने से पीड़ित महिलाओं की सुनवाई नहीं हो रही। कांग्रेस सरकार 2 साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी महिला आयोग में चेयरमैन और मेंबर की नियुक्ति नहीं कर पाई। इससे आयोग पीड़ित महिलाओं की शिकायतों के निपटारे के लिए अदालत नहीं लगा पा रहा। सूत्रों की माने तो महिला आयोग को करीब 1400 शिकायतें मिल चुकी है। इन पर सुनवाई नहीं हो पा रही है, क्योंकि इनकी सुनवाई का अधिकार चेयरमैन को है। चेयरमैन के साथ चार सदस्य लगाने का भी कानून में प्रावधान है। मगर राज्य सरकार न चेयरमैन लगा पाई और न ही सदस्य लगाए गए। ज्यादातर शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ी महिला आयोग को मिली ज्यादातर शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ी हुई है। कुछ शिकायतें ऑनलाइन तो कुछ महिलाएं खुद महिला आयोग दफ्तर पहुंचकर दे रही है। इनके निपटारे के लिए महिलाएं बार बार महिला आयोग दफ्तर के चक्कर काट रही है। विभिन्न जिलों में कोर्ट लगाता है महिला आयोग बता दें कि महिला आयोग का चेयरमैन विभिन्न जिलों में जाकर कोर्ट लगाता है। इनमें सभी पीड़ित महिलाओं की फरियाद सुनी जाती है। कुछ मामले आयोग द्वारा पुलिस, संबंधित विभागों के भेजे जाते हैं। कुछ केस अपने स्तर पर निपटाए जाते है। इसी तरह चेयरमैन विभिन्न जिलों में जाकर भी महिलाओं की शिकायतें सुनती है, ताकि प्रदेश के दूर दराज क्षेत्रों से लोगों को शिमला न पहुंचना पड़ेगा। सु-मोटो भी लेता है चेयरमैन आयोग चेयरमैन महिलाओं की शिकायतें सुनने के अलावा महिलाओं से जुड़े मामलों में कई बार सु-मोटो भी लेता है। महिलाओं से जुड़े मामले में चेयरमैन किसी भी विभाग को तलब कर सकता है। महिलाओं के हक में कानून बनाने की आयोग सिफारिश कर सकता है। इस काम में चेयरमैन को सदस्य एसिस्ट करते हैं। मगर चेयरमैन और सदस्य न होने से यह काम ठप पड़ा है। प्रतिभा सिंह भी कई बार उठा चुकी नियुक्ति का मामला बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह भी कई बार पार्टी वर्कर को विभिन्न बोर्ड निगमों में तैनाती की मांग उठाती रही है।इसकी कई बार उन्होंने पार्टी हाईकमान से शिकायत भी की है। फिर भी कई बोर्ड निगम अभी खाली पड़े है। उनमें में से महिला आयोग एक प्रमुख है। महिला आयोग में भी कांग्रेस-भाजपा की सरकार अपनी पार्टी वर्कर में से ही किसी को चेयरमैन और मेंबर लगाती रही है। पूर्व सरकार ने डेजी ठाकुर को बनाया था चेयरमैन पूर्व जयराम सरकार ने डेजी ठाकुर को महिला आयोग को चेयरमैन बनाया था। इनके साथ तीन सदस्य भी लगाए गए थे। सत्ता परिवर्तन के साथ ही चेयरमैन और सदस्य पद से हट गए। इसके बाद से महिला आयोग की अदालत नहीं लग पा रही। वहीं महिला आयोग का लगभग 8 से 10 कर्मचारियों का स्टाफ महिलाओं की रूटीन में मिल रही शिकायतें ले रहा है। कुछ को संबंधित विभागों और पुलिस को भेजा जा रहा है। सचिव बोले- महिलाओं की शिकायतों का हो रहा समाधान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिव आशीष सिंघमार ने बताया कि महिलाओं की शिकायतें संबंधित विभागों को भेज रहे हैं। उन्होंने बताया कि ज्यादातर महिलाएं थानों, डीसी, वुमन हेल्प लाइन नंबर, वन स्टॉप सेंटर में उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतें कर रही है। ऐसा नहीं कि महिलाओं की शिकायतों का समाधान नहीं हो रहा। आयोग गठित हो जाएगा तो वह अतिरिक्त सुविधा हो जाएगी।

हिमाचल में 2 साल से नहीं लगी महिला अदालत
हिमाचल प्रदेश में महिला अदालत का न होना एक गंभीर विषय बन गया है। पिछले दो वर्षों से राज्य में महिला अदालत क्रियाशील नहीं है, जिसके चलते हजारों समस्याएँ unresolved रह गई हैं। इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए, राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर पाई है। यह स्थिति महिला न्याय के प्रति सरकार की लापरवाही को उजागर करती है, जिससे प्रभावित महिलाएँ न्याय से वंचित रह रही हैं।
महिला न्यायालय की महत्वपूर्णता
महिला अदालतें विशेष रूप से महिलाओं को उनकी कानूनी मदद प्रदान करने के लिए स्थापित की गई हैं। ये अदालतें महिलाओं के खिलाफ अपराधों, घरेलू हिंसा, और अन्य मुद्दों पर त्वरित न्याय सुनिश्चित करती हैं। बिना महिला अदालत के, पीड़िताओं को अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।
वुमन कमिशन को मिली 1400 शिकायतें
हाल ही में, वुमन कमिशन ने बताया कि उन्हें 1400 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जो दर्शाती हैं कि महिलाओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ये शिकायतें गंभीर और कई बार संवेदनशील मुद्दों पर आधारित हैं। आयोग का कहना है कि शिकायतों का सही ढंग से निपटारा करने के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता है।
सरकार की जिम्मेदारी
सरकार को इस स्थिति का संज्ञान लेते हुए जल्द से जल्द नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। यह न केवल महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज में न्याय की स्थापना के लिए भी महत्वपूर्ण है। सरकार की ओर से दी गई कार्यवाही की कमी महिला संकट को बढ़ा सकती है।
निष्कर्ष
हिमाचल प्रदेश में महिला अदालत की अनुपस्थिति चिंता का विषय है। यह ऐसी व्यवस्था है जो महिलाओं को समाज में सुरक्षित और संरक्षित महसूस कराती है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार जल्द ही अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करेगी ताकि न्याय सुनिश्चित करने में कोई रुकावट न आए।
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