हिमाचल में दूसरी बार 8 पुलिस कर्मियों को उम्रकैद:मंडी-बल्ह में भी ऐसा हो चुका; तब IG-DSP रैंक के अफसर नहीं थे, खाकी पर दाग
हिमाचल प्रदेश में 80 के दशक में पहले भी एक बार आठ पुलिस जवानों को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है। मगर तब SHO रैंक से नीचे के जवान हत्याकांड में शामिल थे। आईजी-डीएसपी लेवल के अफसरों समेत आठ पुलिस कर्मियों को पहली बार उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। जिस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट (SIT) का गठन गुड़िया को न्याय देने के लिए किया गया था, उस SIT ने खुद ही पुलिस लॉकअप में संदिग्ध आरोपी को टार्चर कर मौत के घाट उतार दिया। यही नहीं SIT ने सूरज की मौत का दोष भी दूसरे संदिग्ध राजू नाम के आरोपी पर लगाने का प्रयास किया। मगर केंद्रीय जांच एजेंसी CBI ने हिमाचल की SIT की साजिश का पर्दाफाश किया और पुलिस अधिकारियों व जवानों के खिलाफ साक्ष्य जुटाकर हमेशा के लिए सलाखों के पीछे भेज दिया है। गुड़िया रेप-मर्डर केस में गिरफ्तार सूरज के हत्याकांड में IG जहूर एच जैदी, ठियोग के तत्कालीन DSP मनोज जोशी, SI राजिंदर सिंह, ASI दीप चंद शर्मा, ऑनरेरी हेड कॉन्स्टेबल मोहन लाल व सूरत सिंह, हेड कॉन्स्टेबल रफी मोहम्मद और कॉन्स्टेबल रानित शामिल है। ताउम्र के लिए जेल भेजे गए अब इन्हें ताउम्र के लिए जेल भेज दिया गया है। हालांकि इनके पास अभी CBI कोर्ट के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का विकल्प खुला है। चाहे जो भी हो हिमाचल पुलिस की खाकी के लिए बड़ा दाग माना जा रहा है। बल्ह में भी सात-आठ जवान दोषी करार दिए थे: भंडारी हिमाचल के रिटायर DGP आईडी भंडारी ने बताया कि 80 के दशक में मंडी जिला के बल्ह थाना में भी सात-आठ पुलिस कर्मी लॉकअप में हत्या मामले में दोषी करार दिए गए थे। मगर तब एसएचओ से निचले रेंक के जवान थे। उन्होंने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है कि आईजी-डीएसपी लेवल के अधिकारियों को इस तरह लॉकअप में हत्या मामले में सजा गई है। आईडी भंडारी ने बताया कि ऐसे मामले सामने आने के बाद जनता का पुलिस पर से भरोसा उठ जाता है। पुलिस को छवि सुधारने के लिए काम करना चाहिए भंडारी ने कहा, पुलिस को अपनी छवि सुधारने की जरूरत है। इसके लिए सभी जवानों को जागरूक किया जाना जरूरी है। जो जवान आरोपियों की हिरासत के दौरान वॉयलेंस करता है, उसके खिलाफ सीनियर अधिकारियों को कार्रवाई करनी चाहिए। CBI ने डेढ़ साल तक शिमला में डाला था डेरा कोटखाई में जब गुड़िया का रेप और मर्डर हुआ। उसके बाद प्रदेशभर में लोगों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए हाईकोर्ट के आदेशों पर इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई। तब सीबीआई ने राज्य सरकार के अतिथि गृह पीटरहॉफ को बेस कैंप बनाया। इस दौरान सीबीआई के रहने व खाने-पीने का 21.96 लाख रुपए का बिल भी बना, जिसका भुगतान सरकारी उपक्रम पर्यटन विकास निगम (HPTDC) को अब तक नहीं किया गया। बिल भुगतान का भी खूब गरमाया HPTDC ने बिल के भुगतान के लिए कई बार राज्य सरकार को चिट्टी लिखी। एक बार सीबीआई को भी दिल्ली चिट्टी भेजी गई। सीबीआई ने दो टूक कहा कि कानूनन जांच टीम के रहने की व्यवस्था राज्य को ही करनी थी।

हिमाचल में दूसरी बार 8 पुलिस कर्मियों को उम्रकैद
हिमाचल प्रदेश में हाल ही में 8 पुलिस कर्मियों को दूसरी बार उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह मामला मंडी-बल्ह क्षेत्र से संबंधित है, जहाँ पहले भी ऐसे घटनाक्रम घटित हो चुके हैं। इन मामले में दोषी ठहराए गए पुलिस कर्मियों ने कानून का उल्लंघन किया और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से नजरअंदाज किया। इस घटना ने उन सवालों को खड़ा किया है कि क्या खाकी पर दाग लगने से सुरक्षा व्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
हिमाचल प्रदेश में पुलिस कर्मियों की भूमिका
पुलिस कर्मियों का कार्य केवल कानून का पालन करवाना नहीं है, बल्कि समाज में सुरक्षा और अमन को बनाए रखना भी है। लेकिन जब वही पुलिसकर्मी अपराधी बन जाएं, तो इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हिमाचल प्रदेश में ऐसे मामलों में दोहराव चिंता का विषय है। प्रशासन को इस दिशा में सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
आपराधिक मामले का संक्षिप्त विवरण
इस विशेष मामले में, जाँच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि पुलिस कर्मियों ने गंभीर अपराध किए हैं। IG और DSP रैंक के अधिकारियों की अनुपस्थिति में यह मामला और भी गंभीर बन गया है। इस स्थिति ने संकेत दिया कि जब शीर्ष स्तर पर सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं निभाई जाती, तो इसके परिणाम क्या हो सकते हैं।
सामाजिक प्रतिक्रिया
इस निर्णय के बाद, स्थानीय समाज में पुलिस के प्रति अविश्वास की भावना बढ़ी है। नागरिकों ने सड़क और अन्य सामाजिक स्थलों पर चर्चा की है कि पुलिस इस बात पर ध्यान दे कि उन्हें किस प्रकार के कर्मियों को नियुक्त किया जा रहा है। विशेषकर उन स्थानों पर, जहाँ पहले भी खाकी पर दाग लगे हैं।
भविष्य के संभावित कदम
भविष्य में, यह अपेक्षित है कि हिमाचल प्रदेश पुलिस इस घटना से सीख लेगी और सुधार के लिए प्रयास करेगी। पॉलिसी रिफॉर्म्स, प्रशिक्षण कार्यक्रम, और बेहतर मूल्यांकन प्रक्रियाएं अपनाई जानी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए, सभी स्तर के अधिकारियों को एकजुट होकर काम करना होगा ताकि समाज में न्याय की भावना बनी रहे।
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