कुंदरकी में पोस्टल बैलेट से EVM तक वोटिंग ट्रेंड कॉमन:रामवीर को 70 फीसदी पोस्टल बैलेट मिले, 19 रिजवान को; हाजी को ले डूबी बेटे की करतूत
कुंदरकी में भाजपा की रिकॉर्ड 1.44 लाख वोट से ऐतहासिक जीत को सपा नेता प्रशासनिक बेईमानी का नतीजा बता रहे हैं। लेकिन पोस्टल बैलेट का रिकॉर्ड बताता है कि इस बार कुंदरकी के लोग पहले ही बदलाव का मन बना चुके थे। कुंदरकी में पोस्टल बैलेट से लेकर ईवीएम तक वोटिंग का ट्रेंड कॉमन रहा है। ये कॉमन ट्रेंड सपा नेताओं के आरोपों को खारिज कर रहा है। पोस्टल बैलेट में किसी तरह की बेईमानी मुमकिन नहीं है। इसमें किसी तरह का प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं होता है। कुंदरकी उपचुनाव में कुल 98 पोस्टल बैलेट यूज हुए। इनमें से 68 वोट भाजपा प्रत्याशी रामवीर सिंह को मिले। जोकि टोटल पोस्टल बैलेट का करीब 70 प्रतिशत है। रामवीर को ईवीएम से भी इतने ही फीसदी वोट मिले हैं। जबकि सपा प्रत्याशी हाजी रिजवान को पोस्टल बैलेट से सिर्फ 19 वोट मिले। ये दर्शाता है कि हाजी रिजवान को इस बार शुरू से ही कुंदरकी की पब्लिक ने नापसंद किया। कुल पोस्टल बैलेट में से 3 वोट बसपा प्रत्याशी रफतउल्ला को, 7 आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी हाजी चांद बाबू को, जबकि AIMIM प्रत्याशी हाजी वारिस अली को 1 पोस्टल बैलेट मिला है। रिजवान की करारी हार की 3 वजहें कैंडिडेट सिलेक्शन में चूकी सपा, रिजवान का विरोध नहीं भांप सकी समाजवादी पार्टी से कुंदरकी में कैंडिडेट सिलेक्शन में बड़ी चूक हुई। यहां सपा ने तीन बार के विधायक हाजी मोहम्मद रिजवान को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन सपा नेतृत्व ये भांपने में नाकाम रहा कि हाजी रिजवान का कुंदरकी में जबरदस्त विरोध है। उनके बेटे हाजी कल्लन की करतूतों की वजह से मुस्लिमों में भी हाजी रिजवान का बड़ा विरोध था। जब हाजी रिजवान विधायक थे तो कल्लन पर आए दिन गुंडई करने के आरोप लगते रहे। पहले उसने विरोधियों को परेशान किया फिर उसकी हरकतों से रिजवान के समर्थक भी परेशान होने लगे। रिजवान के खिलाफ लोगों में गुस्सा था ये बात अखिलेश के मंच से भी गूंजी थी। अखिलेश जब कुंदरकी में वोट मांगने आए तो सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने उनकी मौजूदगी में मंच से पब्लिक से कहा था- आपके मन में किसी के प्रति गुस्सा हो सकता है लेकिन अखिलेश यादव के लिए गुस्सा नहीं हो सकता। इसलिए अखिलेश के चेहरे पर वोट करें। बर्क का विरोध करना रिजवान की बड़ी चूक साबित हुई इसके अलावा हाजी रिजवान ने जिस तरह 2022 में सपा से बगावत करके बर्क के पोते जियाउर्रहमान को हराने की कोशिश की थी, उससे तुर्क भी उनसे खफा थे। डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को तुर्कों का सबसे बड़ा नेता माना जाता था। तुर्क बहुल सीट होने की वजह से बर्क का कुंदरकी में जबरदस्त प्रभाव था। यही वजह थी कि उन्होंने अपने पोते को राजनीति में एंट्री दिलाने के लिए कुंदरकी को चुना था। लेकिन तब हाजी रिजवान बर्क के पोते को हराने के लिए किसी भी लेवल तक जाने को तैयार थे। रिजवान ने 2022 विधानसभा चुनाव में अपने समर्थकों से ये तक कहा था कि साइकिल का वोट भाजपा पर धकेल दो लेकिन ये (जियाउर्रहमान) नहीं जीतना चाहिए। इससे तुर्कों में रिजवान की साख कम हुई। सपा के सांसद-विधायकों ने नहीं लड़ाया चुनाव कुंदरकी उपचुनाव में सपा के सांसद-विधायक पिक्चर से गायब रहे। सिर्फ अखिलेश के मंच पर चेहरा दिखाने पहुंचे। अखिलेश यादव से भी ये बात छुपी नहीं है। उन्होंने कुंदरकी में मंच से कहा था, हमारे कुछ लोग प्रशासन से मिले हैं। उनमें से कुछ यहां मेरे पीछे मंच पर भी बैठे हैं। इन्हें 2027 में टिकट नहीं मिलेगा। अखिलेश का ये बयान यूं ही नहीं आया था। दरअसल कुंदरकी उपचुनाव में सपा के सांसद और विधायक शुरू से आखिर तक कहीं नजर ही नहीं आए। सपा के मुरादाबाद में तीन सांसद हैं। मुरादाबाद सांसद रुचिवीरा, संभल सांसद जियाउर्रहमान बर्क और राज्यसभा सांसद जावेद अली। जावेद मुरादाबाद में ही रहते हैं। जियाउर्रहमान की तो 2 विधानसभा ही मुरादाबाद जिले में आती हैं। उन्हीं की सीट कुंदरकी पर उपचुनाव हो रहा था। ऐसे में इस सीट को बचाने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सांसद जियाउर्रहमान बर्क पर ही थी। लेकिन बर्क को शायद 2022 की टीस याद थी, इसलिए उन्होंने इस चुनाव से खुद को समेटकर दूर रखा। मुरादाबाद में सपा के 5 विधायक हैं। ये भी चुनावी पिक्चर से दूर ही रहे।
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