कोटे की दुकान के लिए महिला स्वयं सहायता समूह की:चयन के बावजूद प्रधान नहीं कर रहे फाइल पर हस्ताक्षर, DM से लगाई गुहार
रॉबर्ट्सगंज विकास खंड के कतवरिया गांव में उचित दर की दुकान को लेकर विवाद गहरा गया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने गुरुवार को जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर न्याय की गुहार लगाई है। 31 जनवरी को खुली बैठक में खंड विकास अधिकारी की उपस्थिति में समूह का चयन किया गया था। सभी औपचारिकताएं पूरी होने और शासनादेश के अनुसार पात्र पाए जाने के बावजूद ग्राम प्रधान फाइल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर रहे हैं। समूह की सदस्य पूनम कुमारी के अनुसार, प्रधान बैठक के दौरान ही बिना हस्ताक्षर किए उठकर चले गए। महिलाओं का आरोप है कि प्रधान जानबूझकर उनके समूह को कोटे की दुकान नहीं देना चाहते। समस्या के समाधान के लिए महिलाएं कई बार विकास खंड कार्यालय का चक्कर लगा चुकी हैं और आवेदन भी दे चुकी हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। खंड विकास अधिकारी ने जल्द समाधान का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे पहले भी महिलाएं जिलाधिकारी को ज्ञापन दे चुकी हैं। उनका कहना है कि नियमानुसार चयनित होने के बाद भी उनके समूह के अधिकारों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।

कोटे की दुकान के लिए महिला स्वयं सहायता समूह की: चयन के बावजूद प्रधान नहीं कर रहे फाइल पर हस्ताक्षर, DM से लगाई गुहार
महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की शक्ति और उनकी सामर्थ्य को स्वीकार करते हुए, एक नई घटना सामने आई है जिसमें एक समूह ने कोटे की दुकान के लिए सिफारिश की है। हालांकि, उनके चयन के बावजूद, गाँव के प्रधान फाइल पर हस्ताक्षर करने में टालमटोल कर रहे हैं। यह स्थिति महिला समूहों की अधिकारिता और स्थानीय प्रशासन के बीच एक टकराव को उजागर करती है।
महिला स्वयं सहायता समूह की चुनौतियाँ
महिला स्वयं सहायता समूहों ने गाँव में बहुत सी योजनाओं और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब जब उन्होंने कोटे की दुकान के लिए चयनित होने का मौका पाया है, तो यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती थी। लेकिन प्रधान द्वारा हस्ताक्षर न करने से उनके लिए राह कठिन हो गई है।
DM से गुहार
समूह की महिलाओं ने इस स्थिति को लेकर जिलाधिकारी (DM) से गुहार लगाई है। उनका कहना है कि प्रधान द्वारा इस प्रक्रिया में बाधाएँ खड़ी करना महिलाओं के अधिकारों का हनन है। DM की सहायता से, वे चाहते हैं कि उनकी मंजूरी जल्दी मिले ताकि वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकें।
समुदाय का समर्थन
स्थानीय समुदाय में भी इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। महिलाओं की मेहनत और संघर्ष को देखने के बाद, कई लोग उनके समर्थन में आए हैं। वे प्रधान के खिलाफ आवाज उठाने के लिए खड़े हैं ताकि महिलाओं को उनका हक मिले।
इस तरह की घटनाएँ न केवल स्थानीय प्रशासन की चुनौती हैं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि महिलाओं को उनकी पहचान और अधिकार के लिए किन्हीं शत्रुओं का सामना करना पड़ सकता है।
क्या होने वाला है आगे?
जिलाधिकारी और स्थानीय प्रशासन इस मामले को लेकर क्या कदम उठाएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी आवाज को सुनना सभी के लिए आवश्यक है।
संक्षेप में, यह घटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि महिला स्वयं सहायता समूहों को समर्थन की आवश्यकता है, ताकि वे अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें।
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