त्याग और समर्पण का प्रतीक है ईद-उल-अजहा:कुर्बानी, परोपकार और बंटवारे का त्योहार है बकरीद, समाज में फैलाता है एकता का संदेश
मुस्लिम समाज का प्रमुख त्योहार ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हिजरी कैलेंडर के अनुसार 10 जिलहिज्जा को मनाया जाता है। यह त्योहार हजरत इब्राहिम की महान कुर्बानी से जुड़ा है। कुरआन की मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में अपने पुत्र की कुर्बानी का आदेश दिया। इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश को स्वीकार कर लिया। जब वे अपने बेटे इस्माईल की कुर्बानी देने वाले थे, तब अल्लाह ने उनकी वफादारी को देखते हुए एक मेढ़ा भेज दिया। इस्माईल की जगह मेढ़े की कुर्बानी दी गई। इसी घटना की याद में दुनियाभर के मुसलमान बकरीद पर जानवर की कुर्बानी करते हैं। यह त्योहार सिर्फ कुर्बानी का नहीं, बल्कि धैर्य, आज्ञाकारिता और मानवता का संदेश भी देता है। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों को, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है। तीसरा हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है। इस त्योहार से समाज में भाईचारा, प्रेम और समानता का संदेश फैलता है। बकरीद सिखाती है कि अल्लाह का आदेश मिलने पर उसका तुरंत पालन करना चाहिए।

त्याग और समर्पण का प्रतीक है ईद-उल-अजहा: कुर्बानी, परोपकार और बंटवारे का त्योहार है बकरीद, समाज में फैलाता है एकता का संदेश
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ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, मुस्लिम समाज का प्रमुख त्योहार है। यह हिजरी कैलेंडर के अनुसार 10 जिलहिज्जा को मनाया जाता है। इस अवसर पर हजरत इब्राहिम की महान कुर्बानी को स्मरण किया जाता है। यह त्योहार त्याग, समर्पण और मानवता का प्रतीक है, जो एकता और भाईचारे का संदेश फैलाता है। इस लेख में हम इस खास पर्व के महत्व, परंपराएं, और इसके सामाजिक संदेश के बारे में जानकारी देंगे।
हजरत इब्राहिम का बलिदान
कुरआन के अनुसार, अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को सपने में अपने पुत्र इस्माईल की कुर्बानी का आदेश दिया। इब्राहीम ने इस आदेश को स्वीकार किया और अपने पुत्र के भविष्य के बारे में सोच कर बलिदान देने के लिए तैयार हो गए। लेकिन जैसे ही वे अपनी मन्नत को पूरा करने वाले थे, अल्लाह ने उनकी वफादारी को देखते हुए एक मेढ़ा भेज दिया। इस घटना की याद में, मुस्लिम समुदाय हर साल बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी करता है। यह न सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह दूसरों के प्रति प्रेम, दया और समानता का प्रतीक भी है।
कुर्बानी और उसके अर्थ
बकरीद का त्योहार सिर्फ कुर्बानी का नहीं बल्कि इसके पीछे गहरे अर्थ निहित हैं। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा गरीबों को दिया जाता है, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है और तीसरा हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है। इस तरह से यह त्योहार परोपकार और दान पर जोर देता है, जो समाज में प्रेम और एकता के भाव को और अधिक मजबूत बनाता है।
एकता और भाईचारे का संदेश
बकरीद का पर्व सभी वर्गों के लोगों को एकत्र करने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार समाज में भाईचारे, प्रेम और समानता का संदेश फैलाता है। यह सिखाता है कि हमें अल्लाह के आदेश का पालन तत्परता से करना चाहिए और अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरों की भलाई के लिए भी सोचना चाहिए। संपूर्ण समुदाय का एकत्र होना, एक-दूसरे से मिलना, परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ समय बिताना, इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है।
बकरीद का महत्व
समाज में बकरीद का महत्व केवल धार्मिक न रहकर सामाजिक भी है। यह हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिक अनुशासन के साथ-साथ हमें परोपकार और सद्भावना का कार्य करना चाहिए। ऐसे समय में जब दुनिया में हिंसा और संघर्ष बढ़ रहे हैं, बकरीद एक ऐसा पर्व है जो शांति, सहिष्णुता और सहानुभूति के संदेश को फैलाता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, बकरीद एक ऐसा त्योहार है जो त्याग, समर्पण और परोपकार के महत्व को उजागर करता है। यह न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि मानवीय मूल्यों का भी। हमारे समाज में एकता और प्रेम की भावना को बढ़ावा देने के लिए यह अनिवार्य है कि हम इस पर्व को मनाकर और अधिक सशक्त बनाएं। ईद-उल-अजहा का यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हम सब एक ही समाज का हिस्सा हैं और हमें एक-दूसरे के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।
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