वाराणसी में रिहाई के बाद फर्जी निकले जमानतदार...आरोपी पर FIR:साइबर अपराधी अंकित की जमानत निरस्त, नकली दस्तावेज-जमानतदारों पर कोर्ट सख्त

फर्जी जमानतदारों के जरिये रिहा साइबर अपराधी अंकित भारद्वाज की जमानत कोर्ट ने निरस्त कर दी है। साइबर क्राइम थाना की प्रभावी पैरवी के चलते जमानत निरस्त कराया गया। साइबर धोखाधड़ी के आरोपी उत्तराखंड के देहरादून रायपुर निवासी अंकित भारद्वाज को पिछले साल 11 जुलाई को एसीजेएम प्रथम वाराणसी की कोर्ट ने जेल भेजा था। सत्र न्यायालय से 2 अगस्त 2024 को अंकित को जमानत मिल गई। जांच में सामने आया कि अंकित की ओर से पेश किए गए दो जमानतदार फर्जी हैं। लोहता के केराकतपुर निवासी इकबाल और अब्दुल इस्लाम का सत्यापन लोहता पुलिस ने किया तो वह सब फर्जी मिले। पुलिस ने बताया कि जांच में धमरिया के सुहेल के सहयोग से जमानतदारों के आधार कार्ड नकली थे और उन्हें स्कैनर की मदद से बनाया गया था। पूरी जमानती प्रक्रिया में कूट रचना कर धोखाधड़ी की गई। इसके बाद धमरिया के अली हुसैन, सकील अहमद, अंकित भारद्वाज निवासी रायपुर, देहरादून और सुहेल के खिलाफ धोखाधड़ी समेत अन्य आरोपों में केस दर्ज किया गया है। साइबर क्राइम थाना के प्रभारी निरीक्षक राजीव कुमार सिंह ने बताया कि लगातार पैरवी व आवश्यक साक्ष्य कोर्ट में पेश किया गया। इस आधार पर आरोपी अंकित भारद्वाज की जमानत निरस्त कर दी गई। आरोपियों के खिलाफ केस के बाद उनकी तलाश की जा रही है।

Mar 22, 2025 - 00:59
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वाराणसी में रिहाई के बाद फर्जी निकले जमानतदार...आरोपी पर FIR:साइबर अपराधी अंकित की जमानत निरस्त, नकली दस्तावेज-जमानतदारों पर कोर्ट सख्त
फर्जी जमानतदारों के जरिये रिहा साइबर अपराधी अंकित भारद्वाज की जमानत कोर्ट ने निरस्त कर दी है। सा

वाराणसी में रिहाई के बाद फर्जी निकले जमानतदार...आरोपी पर FIR: साइबर अपराधी अंकित की जमानत निरस्त, नकली दस्तावेज-जमानतदारों पर कोर्ट सख्त

News by indiatwoday.com

परिचय

वाराणसी में एक दिलचस्प और गंभीर घटना सामने आई है, जहां जमानत पर रिहा हुए आरोपी साइबर अपराधी अंकित की जमानत निरस्त कर दी गई है। अदालत ने जमानतदारों के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए फर्जी दस्तावेजों की जांच करने का आदेश दिया है। यह मामला ठगी और साइबर क्राइम की दुनिया में एक नई परत को उजागर करता है, जहाँ अपराधियों द्वारा जमानत देने वालो को धोखा देने के लिए नकली दस्तावेजों का उपयोग किया गया था।

जमानत का मामला

आरोपी अंकित पर कई गंभीर आरोप हैं, जिसमें डेटा चोरी और ऑनलाइन ठगी शामिल हैं। रिपोर्टों के अनुसार, उसे जमानत पर रिहाई मिली थी, लेकिन जांच में यह खुलासा हुआ कि जो जमानतदार पेश किए गए थे, वे असली नहीं थे। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जमानत निरस्त करने का आदेश दिया। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि न्याय प्रणाली अब फर्जी दस्तावेजों के प्रति कितनी सजग है।

कोर्ट के आदेश

कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जमानतदारों के खिलाफ तुरंत FIR दर्ज की जाए। इसके साथ ही, जमानत देने के प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की भी आवश्यकता है। न्यायधीश ने कहा कि इस तरह की घटनाएं न केवल कानून का मखौल उड़ाती हैं, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी कमजोर करती हैं।

साइबर अपराध के बढ़ते मामले

साइबर अपराधियों की गतिविधियां आजकल तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे मामलों में फर्जी दस्तावेजों और गलत पहचान का उपयोग एक आम बात हो गई है। हाल के वर्षों में, ऐसी घटनाओं ने पुलिस प्रशासन और न्यायिक सिस्टम को चुनौती दी है। इसके परिणामस्वरूप, जमानत के मामलों में सख्त नियम लागू करने के लिए कई कानूनी संशोधन किए गए हैं।

निष्कर्ष

इस मामले ने हमें यह याद दिलाया है कि जब भी हम जमानत की प्रक्रिया से गुजरते हैं, तो हमें सावधान रहना चाहिए। अदालतों द्वारा न केवल मामलों की जांच की जा रही है, बल्कि जमानत देने वाले का सत्यापन भी अनिवार्य किया गया है। जैसे-जैसे साइबर अपराध का स्वरूप बदलता है, वैसे-वैसे हमारी कानूनी प्रणाली को भी अपडेट होना आवश्यक है।

इसके अलावा, इस घटना के माध्यम से जागरूकता फैलाना बहुत महत्वपूर्ण है। आम लोगों को यह समझना चाहिए कि फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज के लिए भी खतरा पैदा करता है। इसलिए, सही जानकारी और गहन जांच के बिना किसी पर जमानत देने से बचना चाहिए।

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