हिजाब पहनी 10 छात्राओं ने छोड़ा हाईस्कूल का पेपर:बोली-चेहरा दिखाने को तैयार थीं, केंद्र व्यवस्थापक ने कहा-मिलान से किया मना
जौनपुर के शाहगंज में स्थित सर्वोदय इंटर कॉलेज में नकाब के चलते 10 छात्राओं के परीक्षा छोड़ने का मामला उलझता ही जा रहा है। स्कूल प्रशासन कह रहा है कि छात्राओं ने चेहरे से नकाब हटाकर प्रवेश पत्र से मिलान कराने से इनकार कर दिया था। वहीं छात्राओं का कहना है कि उन्हें चेहरा मिलान कराने से दिक्कत नहीं थी। लेकिन चेकिंग के बाद भी हिजाब लगाकर जाने नहीं दिया जा रहा था। छात्राओं के अभिभावक भी यही बात कह रहे हैं। वहीं, इस पूरे मामले में अभी तक प्रशासन की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। अब मामला ये है कि छात्राएं अगली परीक्षा दे पाएंगी या नहीं। चेकिंग कर रहे शिक्षकों में काफी देर तक बहस परीक्षा छोड़ने वाली छात्राओं में से उम्मेखौला का कहना है कि वो जब परीक्षा केंद्र पहुंची, तो चेकिंग कर रहे लोगों ने बड़े सख्त तरीके से कहा कि नकाब निकाल कर आओ। ऐसे में छात्रा ने अपने पिता को बुलाया। पिता और चेकिंग कर रहे शिक्षकों में काफी देर तक बहस भी हुई। लेकिन केंद्र व्यवस्थापक ने नकाब के साथ केंद्र में घुसने से मनाकर दिया। जिसके बाद छात्राएं वापस लौट आईं। उम्मेखौला की मानें तो वो चेहरा दिखाकर प्रवेश पत्र से मिलान कराने को तैयार थीं। छात्राएं नकाब पहनकर देना चाहती थीं परीक्षा छात्रा के अभिभावक अब्दुर्रहीम का कहना है कि सरकारी कामों में अक्सर बच्चियां अपने चेहरे दिखाती रही हैं। परीक्षा केंद्र पर भी वो मिलान के लिए तैयार थी। उधर, केंद्र व्यवस्थापक दिनेश चंद्र गुप्ता ने कहा कि छात्राओं ने प्रवेश पत्र से चेहरे का मिलान कराने से इनकार कर दिया था। बताते चलें कि सोमवार को मॉडर्न कॉन्वेंट स्कूल की 4 छात्राओं ने हिंदी की परीक्षा छोड़ दी थी। छात्राएं नकाब पहनकर परीक्षा देना चाहती थीं। इन छात्राओं के घर की अन्य 6 छात्राएं इसी वजह से केंद्र तक ही नहीं गईं। सोमवार को हिंदी का पेपर देने पहुंची थीं छात्राएं खेतासराय स्थित मॉडर्न कॉन्वेंट स्कूल का सेंटर सर्वोदय इंटर कॉलेज को बनाया गया है। स्कूल से कॉलेज की दूरी करीब 4 किमी है। सोमवार को पहली पाली में 10वीं की हिंदी का पेपर था। परीक्षा देने के लिए तमाम छात्र-छात्राएं कॉलेज पहुंचीं। मुस्लिम छात्राएं हिजाब में थीं। कॉलेज के गेट पर चेकिंग के बाद छात्र-छात्राओं को एंट्री दी जा रही थी। कई मुस्लिम छात्राएं अपना हिजाब उतारकर परीक्षा देने चली गईं। लेकिन चार छात्राएं हिजाब न उतारने पर अड़ गईं थी। हिजाब में परीक्षा देने को मिलेगी, तभी भेजेंगे सोमवार को सेंटर पर छात्रा के पिता अहमदुल्लाह ने कहा कि बेटी का हिंदी का पेपर था। पता चला कि बेटी स्कूल नहीं जा रही हैं। बेटी ने बताया कि हिजाब में पेपर नहीं देने दिया जा रहा। इस पर मैंने बोला- आप लोगों के साथ चलता हूं। चार बच्चियों को लेकर स्कूल पहुंचा था। सेंटर में जब एंट्री होने लगी तो बच्चियों को अंदर नहीं जाने दिया गया। गेट पर बोला गया कि आप लोगों को हिजाब उतार करके ही अंदर जाना है। तब मैंने वहां खड़े टीचर से कहा कि आप किसी लेडीज टीचर से चेकिंग करवा लीजिए, फिर बच्चियों को अंदर जाने दीजिए। लेकिन टीचर नहीं माने। बच्चियां बिना परीक्षा दिए ही घर चली आईं। अहमदुल्लाह ने कहा-अगर बच्चियों को हिजाब में पेपर देने दिया जाएगा, तो हम बच्चियों को भेजेंगे। वरना नहीं भेजेंगे। उन्होंने बताया कि सोमवार को जैनब, फातिमा, मरियम, नायमा, उम्मेखौला, रुश्दा, जुबिया, हुमैरा, सिद्दीका, काशिफा ने हिंदी की परीक्षा छोड़ी है।

हिजाब पहनी 10 छात्राओं ने छोड़ा हाईस्कूल का पेपर
हाल ही में एक घटना ने शिक्षा क्षेत्र में बहस का विषय बना दिया है, जहाँ हिजाब पहनने वाली 10 छात्राओं ने अपने हाईस्कूल के पेपर को छोड़ने का निर्णय लिया। ये छात्राएँ अपने चेहरे को दिखाने के लिए तैयार थीं, परंतु केंद्र व्यवस्थापकों ने उनके मिलान करने से मना कर दिया। इस मामले ने न केवल उन छात्राओं के अधिकारों का मुद्दा उठाया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि किस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जा रहा है। छात्राओं का कहना है कि वे अपनी पहचान को बनाए रखते हुए परीक्षा देना चाहती थीं, परंतु प्रशासन के नियमों ने उन्हें यह करने से रोका।
इस मामले के पीछे की कहानी
छात्राओं ने बताया कि वे हिजाब पहनने के बावजूद परीक्षा में शामिल होने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। प्रशासन ने हालांकि कहा कि सभी छात्रों का मिलान करना आवश्यक है और इस प्रक्रिया के दौरान चेहरे का दिखना अनिवार्य था। इसने छात्राओं को निराश कर दिया और उन्होंने पेपर छोड़ने का निर्णय लिया। इसको लेकर कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त की और धार्मिक स्वतंत्रता पर विचार-विमर्श किया।
समाज में बहस
इस मामले ने समाज में बड़ी बहस को जन्म दिया है, जहाँ विभिन्न समुदायों के बीच धार्मिक भावनाओं और शिक्षा के अधिकारों को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। क्या शिक्षा का अधिकार धार्मिक परिधियों से परे होना चाहिए? क्या प्रशासन को छात्रों के धार्मिक विश्वासों को ध्यान में रखते हुए नियमों को लचीलापन देना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो इस घटना के कारण उठ खड़े हुए हैं।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल उन 10 छात्राओं के लिए, बल्कि समस्त समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। शिक्षा का उद्देश्य सभी के लिए समान अवसर प्रदान करना है, जबकि धार्मिक पहचान भी महत्वपूर्ण होती है। ऐसे मामलों में सही संतुलन बनाने की आवश्यकता है ताकि सभी का सम्मान हो सके।
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