1400 साल पहले ह्वेनसांग ने लिखा-संगम स्नान पाप धो देता:मेगस्थनीज ने गंगा किनारे मेले के बारे में बताया; तैमूर ने कुंभ में नरसंहार किया
आदि गुरु शंकराचार्य ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व जब कुंभ को लोकप्रिय बनाना शुरू किया, तब कोई नहीं समझ सका था कि यह अनवरत चलने वाली ऐसी सनातन यात्रा प्रारंभ हो रही है, जो कालखंड में बांधी न जा सकेगी। इसके बाद सदियां बीतती गईं और कुंभ का वैभव बढ़ता गया। भारतीय अध्यात्म परंपरा ही नहीं, सदियों पहले से यहां आने वाले विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरण में कुंभ को दर्ज किया है। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समय (302 ईसा पूर्व) यूनानी यात्री मेगस्थनीज भारत आया। उसने अपनी किताब ‘इंडिका’ में गंगा किनारे लगने वाले मेले का वर्णन किया है। चीनी यात्री फाहियान (399 से 411 ई.) वाराणसी आया और गंगा से जुड़े किस्से लिखे। सम्राट हर्षवर्धन के समय आए ह्वेनसांग ने 16 सालों तक देश के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन किया। करीब 1400 साल पहले (644 ईस्वी) में वह सम्राट हर्षवर्धन के साथ प्रयाग कुंभ का साक्षी बना। उसने अपनी किताब ‘सी-यू-की’ में लिखा- ‘देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे। संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता है। प्रयाग में स्नान सभी पाप धो देता है। अल-बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द में देव-दानव संघर्ष का वर्णन किया ह्वेनसांग ने प्रयागराज को मूर्तिपूजकों का महान शहर बताया और लिखा कि इस उत्सव में 5 लाख से ज्यादा लोग शामिल होते हैं। दूसरी ओर महमूद गजनवी के शासनकाल में 1030 ईस्वी के आस-पास अबू रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल-बिरूनी ने ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी। इसमें उसने वाराहमिहिर के साहित्य के आधार पर समुद्र मंथन और अमृत कुंभ को लेकर हुए देव-दानव संघर्ष का वर्णन किया है। अकबर 1567 में पहली बार प्रयाग आया मुगल बादशाह अकबर 1567 में पहली बार प्रयाग पहुंचा। वह कुंभ और नागा साधुओं से भी परिचित था। अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ में लिखा, ‘यह स्थान प्राचीन काल से पयाग (प्रयाग) कहलाता था। बादशाह के मन में विचार था कि जहां गंगा-यमुना मिलती हैं और भारत के श्रेष्ठ लोग जिसे बहुत पवित्र समझते हैं, वहां दुर्ग बनाया जाए।’ इससे पहले सन् 1398 में समरकंद से आए आक्रांता शुजा-उद-दीन तैमूर लंग ने हरिद्वार अर्धकुंभ मेले पर हमला किया। इस दौरान उसने लूटपाट और नरसंहार किया। तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इसका जिक्र किया है। --------------------------------------------------- महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर। यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबर इवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगा कुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशन कुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।

1400 साल पहले ह्वेनसांग ने लिखा-संगम स्नान पाप धो देता
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ह्वेनसांग की ऐतिहासिक यात्रा
ह्वेनसांग, एक महान बौद्ध यात्री, जिसने 1400 साल पहले भारत की यात्रा की थी, ने संगम स्नान के महत्व को स्पष्ट किया। उन्होंने अपने लेखनों में उल्लेख किया कि यह स्नान न केवल शारीरिक शुद्धता लाता है, बल्कि आत्मिक पापों को भी धो देता है। उनका यह विचार आज भी लोगों के लिए एक मार्गदर्शक है, खासकर उन भक्तों के लिए, जो कुंभ मेले और संगम स्नान के महत्व को समझना चाहते हैं।
मेगस्थनीज और गंगा किनारे मेले की विमर्श
मेगस्थनीज, जो एक प्राचीन ग्रीक यात्री थे, ने भी गंगा किनारे आयोजित होने वाले मेलों के बारे में अपने लेखन में उल्लेख किया है। उन्होंने इन मेलों की भव्यता और सांस्कृतिक महत्व को उजागर किया। ये मेले न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है, जहां लाखों लोग एकत्रित होते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए स्नान करते हैं।
तैमूर का कुंभ में नरसंहार
इतिहास के कुछ काले पन्नों में तैमूर द्वारा कुंभ मेले के दौरान नरसंहार का भी उल्लेख है। इस क्रूर घटना ने न केवल भारतीय समाज को प्रभावित किया, बल्कि इसने हिंदू धर्म के मेलों की सुरक्षा के प्रति सजगता को भी जन्म दिया। यह घटना आज भी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में जानी जाती है, और इसके प्रभाव को भुलाया नहीं जा सकता है।
निष्कर्ष
ह्वेनसांग और मेगस्थनीज के लेखन आज भी हमें भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के गहरे अर्थ को समझने में मदद करते हैं। संगम स्नान, मेले की महत्ता और इतिहास की कड़वी सच्चाइयाँ हमें यह सिखाती हैं कि हमारी विरासत कितनी सामर्थ्यशाली और सीखने योग्य है।
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