7 लाख पौधे, एक संकल्प! उत्तराखंड का हरेला पर्व बना मिसाल
हरेला पर्व देहरादून: उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा और प्रकृति से गहरा जुड़ाव रखने वाला हरेला पर्व अब सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक व्यापक जनआंदोलन बन चुका है। इस साल हरेला पर पूरे उत्तराखंड में कुछ ऐसा हुआ, जिसने इतिहास रच दिया और हर व्यक्ति को हरियाली के प्रति […] The post 7 लाख पौधे, एक संकल्प! उत्तराखंड का हरेला पर्व बना मिसाल first appeared on Vision 2020 News.

7 लाख पौधे, एक संकल्प! उत्तराखंड का हरेला पर्व बना मिसाल
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देहरादून: उत्तराखंड में हरेला पर्व, जिसे सांस्कृतिक आत्मा और प्रकृति से गहरा जुड़ाव रखने वाला माना जाता है, अब सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण जनआंदोलन बन चुका है। इस पर्व ने इस साल एक नया इतिहास रच दिया है, जहां पूरे उत्तराखंड में 7 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया है। यह पहल अब केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं रह गई, बल्कि हरियाली के प्रति सभी लोगों की जिम्मेदारी को भी दर्शाती है।
एक वृक्षारोपण अभियान का आगाज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान से प्रेरित होकर, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे "हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ" जैसे संवेदनशील संदेश से जोड़ा। मुख्यमंत्री ने इस मुहिम का आरंभ करते हुए देहरादून में पौधारोपण किया। इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी कि इसे केवल सरकारी आयोजन तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि हर गाँव, शहर, स्कूल और मोहल्ले ने इस हरित महोत्सव का हिस्सा बनने का मौका पाया।
हरियाली की इस पहल का महत्व
आंकड़ों के अनुसार, इस अभियान के तहत उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में 7 लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए, जोकि किसी एक पर्व पर हुआ सबसे बड़ा पौधारोपण आयोजन बन गया है। इस पहल की विशेषता केवल आंकड़ों में नहीं है, बल्कि लोगों की गहरी आस्था, जिम्मेदारी और भागीदारी में है। यह अभियान प्रदूषण कम करने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और स्थानीय पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
जन सहभागिता और उत्सव का स्वरूप
इस हरेला पर्व में वन विभाग, जिला प्रशासन, स्वयंसेवी संगठन, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, महिला समूह और युवा वर्ग ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। हर हाथ में कुदाल और हर दिल में हरियाली के सपने के साथ, लोगों ने पौधे लगाए। इस पर्व ने उत्सव के साथ-साथ एक सकारात्मक बदलाव का संकल्प लिया।
हरियाली का प्रतीक और विकास
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हरेला पर्व अब केवल सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि प्रदेशवासियों की सामूहिक चेतना का उत्सव बन चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिए कृतसंकल्पित है। पौधे सिर्फ पेड़ नहीं हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद और सतत विकास के प्रतीक हैं।
निष्कर्ष
हरेला पर्व ने एक बार फिर साबित किया है कि सामूहिक प्रयासों और जन जागरूकता से बड़े बदलाव संभव हैं। यह एक सकारात्मक दिशा में मानवता का एक ठोस कदम है। यदि हम सभी ऐसे ही छोटे-छोटे प्रयास करते रहें, तो पर्यावरण की रक्षा करने में मदद मिल सकती है और एक हरित एवं स्वच्छ भारत की ओर बढ़ा जा सकता है।
कम शब्दों में कहें, हरेला पर्व ने हरियाली और जिम्मेदारी का एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है।
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