IIT-BHU गैंगरेप में एक्सटर्नल-इंजरी रिपोर्ट बनेगी जजमेंट का आधार:डॉक्टर बोलीं- 48 घंटे बाद धुंधले हुए निशान, प्राइवेट पार्ट पर चोट, आरोपियों का तर्क चेस्ट पर निशान क्यों नहीं
वाराणसी समेत देश के सबसे चर्चित IIT-BHU गैंगरेप मामले में पीड़िता का मेडिकल करने वाली डॉक्टर अनामिका सिंह के बयान से नया मोड़ आ गया है। डॉक्टर ने कोर्ट में दाखिल सप्लीमेंट्री मेडिको लीगल रिपोर्ट पढ़ी तो बिंदुवार उसे समझाया भी। महिला और पुरुष के शारीरिक अंगों का तुलनात्मक अंतर भी बताया। गैंगरेप पीड़िता के परीक्षण के बाद बनी रिपोर्ट के हर प्वाइंट को मेडिकल साइंस में स्पष्ट भी किया। कुछ मिनट के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट डॉक्टर के चैंबर जैसा नजर आया, जिरह में उदाहरण के साथ छात्रा के हालात और शारीरिक चोटों का जिक्र किया तो वकील भी स्तब्ध होकर सुनते रह गए। डॉक्टर ने साफ कर दिया कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को हाथों से छुआ गया, उस हिस्से को चोट पहुंचाई गई। आंतरिक चोट नहीं मिली लेकिन ऐसे केस में एक्सटर्नल इंजरी इज फाउंड भी कम नहीं है। यह साफ दिखाता है कि रेप का कठोर प्रयास हुआ, शारीरिक हिंसा हुई उसमें प्राइवेट पार्ट पर चोट भी आईं। घटना के बाद उनके पास छात्रा तीसरे दिन यानि 4 नवंबर को पहुंची जबकि वारदात 1/2 नवंबर की रात हुई। 50-60 घंटे में कई चोट कि निशान हल्के या मिट से गए। वहीं, घटना के बाद पहुंची युवती नहा चुकी थी, इसका असर भी मेडिकल रिपोर्ट पर पड़ता है। सबसे पहले आपको बताते हैं कोर्ट की कार्रवाई... IIT-BHU में छात्रा से गैंगरेप मामले में जिला अस्पताल की विशेषज्ञ डॉक्टर अनामिका सिंह शुक्रवार दोपहर कोर्ट पहुंची। कोर्ट की कार्रवाई शुरू होते ही अभियोजन ने सबसे पहले उनसे छात्रा के अस्पताल आने के सवाल पूछे और पूरी मेडिकल रिपोर्ट के बारे में जज के सामने बताने का अनुरोध भी किया। स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अनामिका सिंह ने परिचय के साथ अपना बयान देना शुरू किया। उन्होंने बताया कि लंका पुलिस 4 नवंबर को एक IIT छात्रा को लेकर आई थी। जिसकी एफआईआर कॉपी के साथ मेडिकल परीक्षण के दस्तावेज पेश किए गए। IIT-BHU गैंगरेप केस की चर्चा के बीच छात्रा का व्यक्तिगत तौर पर एक फार्मासिस्ट के साथ परीक्षण शुरू किया। उन्होंने बताया कि युवती के प्राइवेट पार्ट में इंटरनल चोट के निशान नहीं मिले। बाहर कुछ स्क्रेचेज मिले हैं। कोई शुक्राणु भी नहीं मिला। लेकिन, रेप संबंधित हिंसा से इनकार नहीं कर सकते। जब पीड़िता से बात की तो वह पूरी तरह से एक्टिव थी। उसने घटनाक्रम बताया था कि उसके साथ जबरदस्ती की गई। कपड़े जबरन फाड़ दिए गए। इसी के आधार में डॉक्टर ने पूरा परीक्षण किया और मेडिकल रिपोर्ट बनाई थी। जो अहम बातें सामने आई उसमें लिखी गई। उसने बताया कि सबसे पहले विवेकानंद अस्पताल में उसका परीक्षण किया गया, हालांकि जिन जगहों पर उसने बताया हमने उन अंगों का परीक्षण किया। सीने, हाथ और शरीर के अन्य अंगों पर निशान हल्के होने का कारण वारदात के तीसरे दिन की वजह हो सकती है। डॉक्टर ने सैंपल लेकर तैयार कराई रिपोर्ट राजकीय महिला चिकित्सालय वाराणसी की इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर डा. अनामिका सिंह ने बताया कि पीड़िता के बयान के आधार पर रूम में उसका पूरा शारीरिक परीक्षण किया। उसका ब्लडप्रेशर मापा जो 110/70 था। उसके ब्लड और यूरिन सैंपल लिए गए। इसके बाद पीरियड के चलते हाईमन की मौजूदगी भी थी। इसके बाद आरोपों के आधार पर स्मीयर स्लाइड बनाई गई। मेडिकल मुआयना के साथ सैंपल पैथोलॉजी भेज दिए गए। रिपोर्ट के आधार पर 5 नवंबर को मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार की गई । कुणाल पांडे के वकील ने जिरह में उठाए सवाल बचाव पक्ष की ओर से सबसे पहले कुणाल पाण्डेय के वकील ने डा. अनामिका सिंह से जिरह शुरू की। मेडिकल रिपोर्ट में एक्सटर्नल इंजरी इज फाउंड शब्द पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अगर जबरदस्ती हुई तो चोटों के निशान शरीर के अन्य अंगों पर क्यों नहीं मिले? डा. अनामिका ने जवाब दिया कि पीड़िता की पहली मेडिकल रिपोर्ट उनके सामने थी जिसके बाद मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार की गई। हालांकि उस रिपोर्ट से इतर चीजों पर परीक्षण किया गया था। उस समय निशान नहीं मिले। इसका एक कारण यह भी है कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं की त्वचा अधिक कोमल होती है उस पर निशान जल्दी आते हैं और अधिक प्रभावित करती है। महिला को पीछे से पकड़ा गया होगा लेकिन 4 नवंबर तक निशान नहीं मिले। कोर्ट में जज ने महिला डॉक्टर के बयान को दर्ज कराया, उनके बिंदुओं को गंभीरता से सुना। जज ने रिपोर्ट के आधार पर एक्सटर्नल इंजरी इज फाउंड शब्द को काफी गंभीरता से लिया। इसके साथ ही पूरी रिपोर्ट पर जिरह के लिए 20 जनवरी की तारीख तय कर दी । 22 अगस्त को छात्रा ने कोर्ट में बयान दर्ज कराए थे अभियोजन की वकील बिंदू सिंह ने बताया- कोर्ट ने IIT-BHU गैंगरेप की सुनवाई तेज कर दी है। केस में सबसे पहले छात्रा को कोर्ट ने 22 अगस्त, 2024 को बुलाया था। तब पुलिस सुरक्षा में छात्रा को कोर्ट में पेश किया गया। अपने साथ हुई वारदात को छात्रा ने कोर्ट के सामने रखा। बताया कि तीनों आरोपियों ने दरिंदगी की, धमकाया और फिर फरार हो गए। घटना के बाद से कई तरह के दबाव महसूस कर रही है। बाहर आते-जाते डर लगता है, इसलिए अधिकांश समय हॉस्टल में रहती हूं। 8 महीने बाद ट्रायल, 12 बार जिरह में तलब जिला एवं सत्र न्यायालय की फास्ट ट्रैक कोर्ट में 18 जुलाई, 2024 से ट्रायल शुरू हुआ था। इस सुनवाई के दौरान छात्रा ने अपना बयान 22 अगस्त तक दर्ज कराया। इसी बीच आरोपियों को जमानत मिल गई। आरोपियों की मौजूदगी में जुलाई से दिसंबर तक छात्रा को 12 बार कोर्ट में तलब किया जा चुका है। कोर्ट उससे 8 बार जिरह कर चुकी है। वहीं 4 बार अलग-अलग कारणों से वह नहीं आ सकी। कभी आरोपियों की ओर से अपील तो कभी अगली तारीख, इन सब के बीच अब तक उसके बयान पर जिरह पूरी नहीं हो सकी है। पहले आनंद फिर कुनाल और सक्षम की हो चुकी रिहाई वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद सबसे पहले आरोपी आनंद ने 11 नवंबर, 2023 को जमानत याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। आनंद ने घर वालों की बीमारी समेत कई कारण बताए थे। इस पर कोर्ट ने 2 जुलाई, 2024 को जमानत दे दी। आनंद को जमानत मिलते ही दू

IIT-BHU गैंगरेप में एक्सटर्नल-इंजरी रिपोर्ट बनेगी जजमेंट का आधार
हालिया IIT-BHU गैंगरेप के मामले में एक्सटर्नल-इंजरी रिपोर्ट को जजमेंट का आधार बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। डॉक्टरों ने इस मामले में महत्वपूर्ण बयान दिए हैं, जिसमें उन्होंने मामले की गंभीरता को उजागर किया है। यह रिपोर्ट विशेष रूप से इस मामले की सुनवाई में निर्णय लेने में अहम भूमिका निभाएगी।
चोटों का विश्लेषण
डॉक्टरों का कहना है कि घटना के 48 घंटे बाद चोटों के निशान धुंधले पड़ चुके हैं। उन्होंने प्राइवेट पार्ट पर चोट का उल्लेख किया जो इस मामले की संवेदनशीलता को और बढ़ाता है। इस साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
आरोपियों का तर्क
इस केस में आरोपियों का तर्क था कि चेस्ट पर निशान नहीं होने के कारण उनकी बेगुनाही साबित होती है। लेकिन डॉक्टरों के अनुसार, यह तर्क न्यायसंगत नहीं है। चोटों की विवेचना करते समय हर प्रकार की चोट को ध्यान में रखना जरूरी होता है।
कानूनी प्रक्रिया और आगे का मार्ग
कानूनी प्रक्रिया में एक्सटर्नल-इंजरी रिपोर्ट महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। यह रिपोर्ट फॉरेंसिक चिकित्सा और जांच से प्राप्त डेटा पर आधारित होगी। प्रशासन और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी साक्ष्य संरक्षित रहें और सही तरीके से प्रस्तुत किए जाएं।
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