अलीगढ़ में जामा मस्जिद में शिव मंदिर का दावा:हिंदू पक्ष ने कहा- अंदर शिव जैसी संरचना; मुस्लिम पक्ष बोला- कोर्ट में जवाब देंगे, 17 गुंबदों पर सोना
संभल की जामा मस्जिद और जौनपुर की अटाला मस्जिद के बाद अब अलीगढ़ की शाही जामा मस्जिद भी विवादों में घिर गई है। अलीगढ़ की सिविल कोर्ट में RTI एक्टिविस्ट पंडित केशव देव की याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। जिसमें दावा किया गया है कि मस्जिद की जगह पर बौद्ध स्तूप या शिव मंदिर हो सकता है। अब 15 फरवरी को सुनवाई होगी। हिंदू पक्ष की कोशिश होगी कि कोर्ट में ASI सर्वे को लेकर मजबूत पक्ष रखा जाए। RTI एक्टिविस्ट ने कोर्ट में पुरातत्व विभाग के दस्तावेज पेश किए हैं। इनमें मस्जिद के अंदर शिवलिंग जैसी संरचना का जिक्र किया गया है। पूरे एशिया में यह एकमात्र मस्जिद है, जिसमें 6 क्विंटल सोना लगा हुआ है। पढ़िए रिपोर्ट... पहले हिंदू पक्ष की बात... RTI में जानकारी मिलने के बाद कोर्ट में याचिका डाली कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले केशव देव ने बताया- मैंने नगर निगम, प्राधिकरण, विद्युत विभाग और प्रशासन के राजस्व विभाग में RTI लगाईं। मगर शाही जामा मस्जिद को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं दे सका। नगर निगम इसको सार्वजनिक संपत्ति मान रहा है। राज्य पुरातत्व विभाग में भी अर्जी लगाई थी। उन्होंने अपने पुराने सर्वे का जिक्र करते हुए अहम जानकारी दी। इनको 3 पॉइंट में समझे... पुरातत्व विभाग से मिले डॉक्यूमेंट को देखें अब आपको संवेदनशील ऊपर कोट इलाके में ले चलते हैं... यह इलाका अलीगढ़ का सबसे संवेदनशील जिस इलाके में शाही जामा मस्जिद है, उसको ऊपर कोट एरिया कहते हैं। यह सबसे संवेदनशील इलाका माना जाता है। फोर्स की तैनाती के साथ ही जुमा की नमाज होती है। मुस्लिम के इलाके में PAC तैनात रहती है। शाही जामा मस्जिद की जगह क्या कभी कुछ और था? इस सवाल के साथ दैनिक भास्कर ऊपरकोट इलाके में पहुंचा। बाजार में मौजूद लोगों ने कैमरे पर बात करने से ही मना कर दिया। मगर ऑफ कैमरा अपनी नाराजगी दिखाई। कहा- सैकड़ों सालों से यह मस्जिद है, जिसमें नमाज अदा की जा रही है। यह शहर का माहौल खराब करने वाली बात है। इसलिए प्रशासन को इस मामले को देखना चाहिए। सर्वे वगैरह की बात सरासर गलत है। मुस्लिम पक्ष बोला- हम कोर्ट में जवाब देंगे अलीगढ़ चैरिटेबल सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी और शाही जामा मस्जिद कमेटी के सदस्य गुलजार अहमद ने कहा- हमारे पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। अभी तक कोर्ट की कोई नोटिस या सूचना भी नहीं आई है। अगर कोर्ट से कोई सूचना आएगी तो फिर वह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखेंगे। भास्कर ने मस्जिद के इतिहास को AMU के रिटायर्ड प्रोफेसर से समझा... रिटायर्ड प्रोफेसर बोले- शहर में खोदाई के दौरान बौद्ध-जैन धर्म के निशान मिल चुके AMU के रिटायर्ड प्रोफेसर राहत अबरार ने कहा- देखिए, अलीगढ़ की यह बड़ी मस्जिद है। उसी को जामा मस्जिद कहते हैं। इसकी ख़ासियत है कि एशिया की किसी मस्जिद में इतना सोना नहीं लगा हुआ है। यहां के गुंबद सोने से मढ़े गए हैं। मुगल काल के निर्माण हैं। दूसरी खासियत है कि ये 1857 के दौर की है। यहां के लोगों ने अंग्रेजों का मुकाबला किया था। इसी जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल जमील के नेतृत्व में यह लड़ाई हुई। इसमें 73 लोग शहीद हुए। उनकी कब्रें मस्जिद के अंदर हैं। डॉक्यूमेंट में यह मस्जिद 300 साल पुरानी है। इसके बगल में एक मीनार थी। जिसको मीनार-ए-कोल कहते थे। इस पर अलीगढ़ का इतिहास भी लिखा हुआ था। एक और संदर्भ मिलता है। इस शहर में 2 किले थे। एक किला जामा मस्जिद के बिल्कुल सामने था, जिसे ढोल का किला कहते थे। जिसके निशान आज भी मिलते हैं। दूसरा किला सिविल लाइन एरिया में था, जो अब यूनिवर्सिटी की संपत्ति है। उसी किले की वजह से इस शहर का नाम अलीगढ़ पड़ा। फ्रांसिसियों ने किला बनवाया था। यहां जो खोदाई हुई हैं, उसमें बौद्ध और जैन धर्म के निशान भी मिल चुके हैं। रहा सवाल कोर्ट में गए मामले का। तो एक बात स्पष्ट है कि मस्जिद है, तो मस्जिद रहेगी। मंदिर है तो मंदिर ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त नोटिस दिया है। इस मामले में कोर्ट में ज्यादा लंबी बहस नहीं चलेगी। छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष बोले- नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा AMU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन ने कहा- कोल गर्वनर मुगल साबिर खां ने मस्जिद 300 साल पहले बनवाई थी। 1991 में वर्शिप एक्ट में कहा गया कि 1947 से पहले बने धार्मिक स्थलों को न तो खोदा जाएगा। याचिका अगर कोई लंबित है, तो रिजेक्ट हो जाएगी। कुछ लोग सिर्फ नफरत फैलाने के लिए यह सब कर रहे हैं। 300 साल पहले पहले बनी थी मस्जिद अलीगढ़ के इतिहासकार मानते हैं कि अलीगढ़ की शाही जामा मस्जिद का निर्माण मुगलकाल में 1724 में लगभग 300 साल पहले हुआ था। मुगल शासक मुहम्मद शाह के समय कोल के शासक साबित खान ने इसका निर्माण शुरू कराया था। लगभग 12 साल में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई थी। मस्जिद की सबसे लंबी मीनार 22 फिट की है और इस पर 17 गुंबद बने हुए हैं। इसके सभी गुंबदों में सोना लगा हुआ है, जो इसे सबसे अनूठा और अलग बनाता है। दावा किया जाता है कि इस मस्जिद में एशिया का सबसे ज्यादा सोना लगा हुआ है। यहां पर एक साथ 5000 लोग नमाज पढ़ सकते हैं। गुंबद में लगा हुआ है पक्का सोना मस्जिद के सर्वे के दौरान पता चला था कि इसके गुंबदों में पक्का सोना लगा हुआ है। यह भी दावा किया जाता है कि इसमें लगभग 5 से 6 क्विंटल सोना लगा हुआ है। जिसके कारण इसकी दुनिया भर में चर्चा होती रही है। कौन बनेगा करोड़पति में भी इस मस्जिद के बारे में सवाल पूछा जा चुका है कि ऐसी कौन सी मस्जिद है, जिसमें सबसे ज्यादा सोना लगा हुआ है। जिसके बाद यह मस्जिद पूरे देश में चर्चा में आ गई थी। कही जाती है शहीदों की मस्जिद, अंदर हैं कब्र शाही जामा मस्जिद इसलिए भी अनूठी है, क्योंकि यह शहीदों की मस्जिद भी कही जाती है। यह एक मात्र मस्जिद है, जहां पर आजादी के दीवानों की 73 कब्रें भी बनी हुई हैं। मस्जिद के अंदर कब्र वाली जगह को गंज-ए-शहीदा कहा जाता है। 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 73 उलेमा शहीद हुए थे, ज

अलीगढ़ में जामा मस्जिद में शिव मंदिर का दावा
अलीगढ़ में हाल ही में जामा मस्जिद को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मस्जिद के अंदर शिव जैसी संरचना मौजूद है। यह मुद्दा तब चर्चा का विषय बना, जब कुछ स्थानीय हिंदू संगठनों ने मंदिर के रूप में अपनी पहचान की बात उठाई।
हिंदू पक्ष का बयान
हिंदू पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद के अंदर जो संरचनाएँ पाई गई हैं, वे सर्वशक्तिमान शिव के प्रतीकों की तरह प्रतीत होती हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि यह स्थल पहले एक शिव मंदिर था और इसके वर्तमान स्वरूप को जानबूझकर बदल दिया गया है। इस दावे के समर्थन में हिंदू पक्ष ने कुछ सबूत भी प्रस्तुत किए हैं, जिससे उनकी बात को बल मिलता है। इसके परिणामस्वरूप, इस विषय पर गहन अध्ययन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
मुस्लिम पक्ष का प्रतिवाद
हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि जामा मस्जिद एक ऐतिहासिक स्थल है और इसे अपने धार्मिक महत्व के कारण संरक्षित किया जाना चाहिए। मुस्लिम पक्ष ने यह भी उल्लेख किया कि वे इस मामले में कानूनी तरीके से अपना पक्ष रखेंगे और अदालत में जवाब देंगे।
विवाद का महत्व
अलीगढ़ में इस विवाद ने न केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काया है, बल्कि स्थानीय समुदाय में तनाव भी पैदा किया है। अब समाज में सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि ऐसी संवेदनशील मुद्दों को किस प्रकार सुलझाया जाना चाहिए, बिना किसी प्रकार के सामाजिक विक्षोभ के।
इसी मुद्दे पर चर्चा करते हुए, कुछ विद्वेषक यह भी कहते हैं कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच संवाद बढ़ाना चाहिए ताकि सभी को इस समस्या का हल मिल सके। न्यायालय में दिए जाने वाले उत्तर और बहस का परिणाम इस विवाद के भविष्य का निर्धारण करेगा।
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